साथियो आज समाजवादी पार्टी का 86 वा स्थापना दिवस है ! मैं बचपन से ही राष्ट्र सेवा दलके कारण समाजवादी विचारधारा को मानने वालों में से एक रहा हूँ ! लेकिन तब से लेकर अभितक कौनसी समाजवादी पार्टी सही है और कौन सी गलत है इस पेशोपेश्मे अभि तक हूँ ! और इसिलिए मै किसी भी पार्टी का सद्स्य कभी नहीं बन सका ! क्योकी जब मैं सेवा दलकि शाखा चलाता था उस समय दो सेवा दल के पूर्व अध्यक्ष (उस समय दलप्रमुख)मेरी शाखामे आकर गये थे ! एक एस एम जोशीजी जो सयुंक्त सोशलिस्ट पार्टी के अध्यक्ष थे,दुसरे नाना साहब गोरे जो प्रजा समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष थे ! और मुझे तो दोनो बहुत प्रिय थे !! ले किन उनकी समाजवादी दो पार्टिया मेरी समझ में नहीं आता था की ये दोनो महाराष्ट्र के नेता एक ही शहर के खुब अच्छे मित्र लेकिन दो अलग-अलग पार्टीयो के नेता क्यो है ?

मैं जब इस पेशोपेश्मे था तब ड़ॉ लोहिया इस दुनिया को अलविदा कह गए थे ! और जेपी सर्वोदय में लोक सेवक बन गए थे ! तो मेरे लिए एस एमजोशी ,नाना साहब गोरे ,जॉर्जफर्नांडीज ,बैरिस्टर नाथ पै,प्रो मधु दंडवते, मृणाल गोरे,प्रो सदानंद वर्दे,भाई वैद्य,ड़ॉ जी जीपारीख ,प्रो जी पी प्रधान मास्तर,ड़ॉ बापु कालदाते सभी अच्छे लगते थे ! इन्दुमती-आचार्य केलकर पुत्रवत प्रेम करते थे और उन्होने ड़ॉ लोहिया की मराठी में अनुवादित सभी पुस्तको को उम्र के बीस साल के पहले ही पढ़ चुका था ! फिर सेवादल के अभ्यास शिबिरोमे विनायक कुलकर्णी,हमिद दलवाई,नरहर कुरुन्दकर,अभि शाह,प्रधान मास्तर,यदुनाथ थत्ते,कालदाते,नाना साहब गोरे,एस एम जोशी सभी महानुभावो के भाषण सुन कर बडा हूआ पर इनकी दो पार्टीया क्यो है यह मैं अभितक नहीं समझ पाया ! फिर इनको क्या सुझा मालुम नहीं जेपी आन्दोलन के दौरान या पहलेही इनकी एक पार्टी हो गई ! और अध्यक्ष बने थे तेज तर्रार चक्का जाम के निर्माता जॉर्ज फर्नांडीज ! लेकिन बहुत जल्दी आपात्काल में ही जनता पार्टी के निर्माण में यह पार्टी 1 मई 1977 के दिन विठ्ठल भाई पटेल हाऊस के लॉन में विसर्जित की गयी जिसका मै साक्षियों मे से एक हूँ ! आचार्य केलकर जी के साथ !

फिर दोहरी सदस्यता के मुद्देपर जनता पार्टी दो साल के पहले ही टुट गई तो मुलायम सिंह यादव ने उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की स्थापना की!और उस के ही आसपास हमारे मित्र किशन पटनायक,भाई वैद्य जी की अगुआई में ठाणे मे मैं विषेश रुप से कलकत्ता से उस समय आया था ! पहले समाजवादी जन परिषद और उसके बाद हैदराबाद में सोशलिस्ट पार्टी ऑफ इंडियाके भी बनने के समय सबसे ज्यादा भाई वैद्य जी ने आग्रह करने के बावजूद मैं उसमे नही गया था ! क्योकी मुझे लगता था की जब मुलायम सिंह यादव ने सपा बना ली तो उसि को अन्ग्रेजी नाम देकर पार्टी बनाने का तुक मेरी समझ में नहीं आता था और सभी बनाने वाले लोग अपने घर में पराये हो गये थे ! ग्राम पंचायत स्तर पर भी उनकी किसी का भी जनाधार नही था ! छोटे बच्चों के घर घर खेलने जैसा पार्टी पार्टी खेलने वाले लगते हैं !
फिर उधर उत्तर भारत में रघु ठाकुरजी ने भी समाजवादी पार्टी के स्थापना की थी हालाकि वे अगर मैं गलत नहीं तो मुलायम सिंह यादव की पार्टी के महासचिव थे ! उसके बावजूद उनकी क्या मतभिन्नता हूई जो उन्होने अलग पार्टी का रास्ता अपनाया ?

शायद भारत के संसदिय राजनीति के इतिहास में यह पहली पार्टी होगी जो अमीबा के जैसे अपने ही सेल से दुसरी पार्टी निर्माण करनेका उदहारण हैं ! 1934 से लेकर आज तक कितनी-कितनी बार सुधरो या टूटो का ड़ॉ राम मनोहर लोहिया के सिद्दांत को अमली जामा पहनाया होगा ? सुधारनेकी सुध अभिभी नहीं है लेकिन टुटो को ही याद रख लिया !
और अब 86 साल की बरसी के उपलक्षमे हमारे अपने ही लोग अलग अलग पोस्ट लिख कर दावा कर रहे हैं की फलना महान है जो पार्टी को आगे बढ़ाने के लिये उपयुक्त होगा ! और पहले के 86 साल के भीतर जो हो गये हैं वो क्या थे ? क्या किये क्यो किये ? और इतनी बार टुट होनेके कारण क्या रहे ? इसका बगैर मूल्यांकन किये आप कहा पहुँचने वाले हैं ? फिर वही घूमकर वापस आ जायेंगे और सुधरो या टुटो का खेल खेलते रहोगे ? मेरी व्यक्तिगत मान्यता है की बराबर एक विशिष्ट स्वभाव या पृकृति वाले लोग अपने आप ऐसे संगठन या आयोजनों में शामिल होते हैं वहा इझम सेकंडरी होता हैं क्योंकि कितने लोग वह दर्शन पढ कर समझ कर उस दल या संगठन में शामिल होते है ?

मुझे आपात्काल में मुम्बई में एक बहुत बड़े कमुनिस्ट नेता को मिलनेका मौका मिला जो इन्दिराजी के अंधभक्त हो गये थे ! और अपना राजनैतिक करियर सम्माप्त कर लिये थे ! उन्होने मुझे कहा की दास कापिटलके 50 पन्ना भी मैने नही पढ़े हैं और वो कमुनिस्ट पार्टी के संस्थापकोमेंसे एक थे ! तो मैंने कहा था कि शायद आपने पुरा पढें होते तो आज यह नौबत आपके हिस्से में नहीं आई होती !

अभि फिलहाल कानू सान्याल की फ़र्स्ट नक्सल नामकी सेज प्रकाशन ने छपि हूई जीवनीको पढ रहा हूँ और उस्मेका उनका नक्सल आन्दोलन का सफर देखकर लगता है कि यह लोग भी टुट के बारे में समाजवादीयोके भाईबंद लगते हैं ! 23 मार्च 2010 में कानूबाबुने आत्महत्या करने के पहले तक टुट का सिलसिला जारी था ! और मतभिन्नता देखकर लगता है कि इतने समर्पण वालों की बद्धी को क्या हो गया है ? देश एकदम बुद्धिहीन लोगोके हाथोमे चला जा रहा है ! और हमारे बुद्धिमान मित्र बालकी खाल निकालनेका काम कर रहे हैं !

समाजवादीयो का तो बहुत बड़ा योगदान रहा है जो आज संघ परिवार को प्रतिष्ठित करने के लिए ड़ॉ लोहिया फिर जेपी और जॉर्ज फर्नांडीज,रामविलास पासवान,नितीश कुमार,बचिखूची आबरू मट्टीपलित कर रहे हैं ! और कौनसा समाजवादी अजेंडा लागु कर रहे हैं ? नरेंद्र मोदी लगभग पूरे देश को बेच रहे हैं और रामविलास,नितीशबाबुको सांप सूंघ गया है ! ये लोग कभी समाजवादी रहे होंगे इस बारे में शक होने लगता है ! शायद व्यक्तिगत अहंकार के भरमार वाले लोग इसी पार्टी में शूरू सेही एक चुम्बक की तरह खिचे चले जाते हैं वैसे 1934 से ही इस कुन्बेमे एक अहम की बिमारी से ग्रसित लोगोकी भरमार रही है और अभिभी है और इसी लिये सामाज वादी पार्टी का सपना देखने के लिए ठीक है लेकिन उसे जमिन पर उतरना कभिभी संभव नहीं हो सकता जब तक हमारे अहंकार को काबू में करने के लिए तैयार नहीं होते तब तक !

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