तुकाराम का जन्म सत्रहवीं सदी के शुरू में पुणे के करीब 25 किलोमिटर दूर देहू नामके छोटे से देहांत मे हुआ था और कुल बयालीस साल की जीवन यात्रा शूद्र कुणबी समाज मे पैदा हुए काफी प्रतिकूल परिस्थितियों में जीवन यापन करते हुए अपनी अंतर्गत प्रतिभा के कारण और खुद का कडा आत्मनिरीक्षण करते हुए खुद की दुनिया निर्माण करते गये !
समस्त मानव जाती के उपर असीम करूणा के कारण हर संकट को मात देते हुए कोई गुरु या मार्गदर्शक और नाही कोई अधिकार के बगैर एक सशक्त बिज से निर्मित विशालकाय वृक्ष के जैसे हर विरोध और विपदाओं का अपने सर्जनात्मक व्यक्तिमत्व की बढोतरी के लिए इस्तेमाल किया है !

तुकाराम के संपूर्ण जीवन (1608-50)तेरहवीं शती के महाराष्ट्र में यदवोके काल से निर्मित कट्टरपंथी और उदारपंथ का पाँच हजार साल से भी ज्यादा समय से चला आ रहा ब्राम्हणी वर्ण श्रेष्ठत्व के खिलाफ हुए वारकरी,नाथ,महानुभाव तथा सूफी संत के अनेक पंथ इस कट्टरपंथी ब्राम्हणी वर्ण श्रेष्ठत्व के खिलाफ प्रयास कर रहे थे ! उसी दौरान उत्तर की तरफ से हो रहे मोगलो के आक्रमणकारियों ने उत्तर दक्षिण की सीमा तापी नदी तक अपने साम्राज्य का विस्तार कर दिया था और बहामनी साम्राज्य के आपसी युद्ध से संपूर्ण दख्खन के आदिलशाही,कुतुबशाही और निज़ामशाही के खिलाफ तीन सौ साल से भी ज्यादा समय युद्ध भूमि में तब्दील हो गया था !

तुकाराम का जन्म भिमा और नीरा नदियो के बिचवाले प्रदेश में होने के कारण यह प्रदेश भी युद्ध भुमि मे तब्दील होने के कारण पारंपरिक खेती-किसानीका काम करने वाले बाकायदा आम आदमी की तरह शादी कर के खेती करते थे और 1629-30 के भीषण अकाल के कारण उनके परिवार को और उन्हें बहुत ही संकट के दौर से गुजरना पड़ा उन्होंने अपने बयालीस साल की जीवन यात्रा में लगभग हर तरह के अनुभव जीने के कारण उनकी कविताओं में उसकी झलक देखने को मिलती है और इसीलिये आज चार सौ साल होने मे आरहे है तों भी उनकी कविताएं जिन्हें अभंग बोला जाता है आज भी महाराष्ट्र के और अन्य जगहों जगहों पर चलें गये मराठी लोगों के स्मरण में जिंदा है !

नासिक के कलक्टर रवीन्द्रनाथ ठाकुर के बडे भाई थे तो रवींद्रनाथ ठाकुर भी भाई के कारण नासिक मुंबई में रहने के लिए आते थे तो उन्होंने भी तुकाराम के अभंगोमेका कुछ हिस्सा बंगला भाषा में अनुवाद किया है ! किसान परिवार सिर्फ किसानी करने से दो समय का खाना खाने के लिए भी मोहताज होने लगा तो मजबूर होकर फौज में शामिल होने लगा और युद्ध में शामिल होने लगे जिसका गौरव तुकाराम ने अपने अभंगोमेभी किया है ! मुस्लिम सत्ता होने के बावजूद देशी हिंदू मराठी सरदार यही असली ताकत रखने के कारण महाराष्ट्र में धार्मिक तनाव नहीं के बराबर था ! लेकिन तुकाराम के उस समय के अभंगोको देखकर लगता है कि यवनों (मुस्लिम) से ज्यादा तकलीफ सनातनी ब्राम्हणो ने दि है ! और

तुकाराम के गुरु परंपराके बाबाजी दिक्षित,उनके गुरु केशव चैतन्य और तुकाराम के आद्दगुरू राघव चैतन्य इन सभी को हिंदू,मुसलमान,जैन,लिंगायत,महानुभाव,वारकरी,ब्राह्मण,ब्राह्मणेतर,मराठी,तेलगु,और कानडी सभी तरह के लोग उनके भक्त थे ! इतनाहि नहीं कुछ मुसलमान नाम भी थे और वह मुसलमान अवलिया समझे जाने लगे थे ! इस तरह से दक्षिण मे तुकाराम का दर्शन जात धर्म के उपर उठकर विशेषरूप से धार्मिक सहिष्णुता यही संत तुकाराम की उदार दृष्टी का महत्वपूर्ण योगदान है यह भूलना नहीं है !

तुकाराम के अभंगोमेका बहुत बडा हिस्सा जात और धार्मिक कट्टरता के खिलाफ शस्र उठाने वाले है ! उस समय की उदार और क्रांतिकारी परंपरा के साथ रिश्ता जोडने का एतिहासिक कार्य तुकाराम ने करने के कारण मराठी में नये मूल्यों की प्रतीस्थापना अपने जान की बाजी लगाकर करने के कारण शूद्र होने के बावजूद सभी के सदगुरू यह स्थान प्राप्त किया है ! इतना बड़ा कवी मराठी भाषा में आजतक पैदा नहीं हुआ है !

सबसे पीडादायक और समस्त मराठी भाषा के अभिमानीयोके लिए शर्म की बात है कि तुकाराम के अभंगोमेका अंग्रेजभक्त अलेक्जेंडर ग्रांट ने 1869 मे 45000 अभंगोकी गाथा प्रथम बार प्रकाशित की है और यही गाथा शासन के तरफसे अधिकृत 1973 मे प्रकाशित की है वैसे तुकाराम भक्त और वारकरी त्रिंबक कासार ने तुकाराम महाराज की तथाकथित गुप्त होने के बाद सौ साल बाद मौखिक रूप से उपलब्ध गांव गांव में घूमकर लोगों से सुनकर पहली बार उनके बिखरे हुए अभंग इकठ्ठा करने का प्रयत्न किया है ! तुकाराम के अभंगोमेका कुछ हिस्सा उपलब्ध है बाकी काल की चपेट में लुप्त हो गया है और यही ब्राम्हणी षड्यंत्र के कारण बहुजन समाज की कितनी प्रतिभावान साहित्य और ज्ञान का भंडार भी सब बाहर नहीं आ सका !

आज सरकार भी अभिव्यक्ति के आजादी के बारे मे कुछ पाबंदियां लगा रही है लेकिन पाँच हजार साल से भी ज्यादा समय हो रहा हमारे देश के वर्ण श्रेष्ठत्व के कारण अभिव्यक्ति का गला घोटने के अनगिनत प्रमाण उपलब्ध हैं ! और तुकाराम महाराज की साहित्यिक कृतियों के ब्राह्मणों द्वारा नष्ट-भ्रष्ट करने की कृति और आज सरकार के तथाकथित सेंसरशिप उसी मानसिकता का नया रूप दिखाई देता है ! यानी कट्टरपंथी ब्राम्हणी वर्ण श्रेष्ठत्व के खिलाफ और उदारपंथ का संघर्ष आज भी बदस्तूर जारी है !

इसलिए मेरे मित्र और मराठी भाषा के मूर्धन्य विद्वान अशोक शहाणे आजसे साठ साल पहले लीख चुके है कि मराठी भाषा का दुर्भाग्य है कि तुकाराम और ज्ञानेश्वर के बाद कोई दूसरा साहित्यिक पैदा नहीं हुआ है ! और वर्तमान समय में जो भी लेखन कामाठी (कूलीगिरी) कर रहे हैं वह मरते दम तक लिखते रहेंगे और मराठी पाठकों को झक मार कर पढना पड रहा है ! यह है उनके चरसौ साल पहले के उनसे भी आधी उम्र के ज्ञानेश्वर और सत्रहवीं सदी के शुरू में संत तुकाराम की मराठी भाषा के लिए महत्वपूर्ण योगदान सही है कि आज हजार साल होने आरहे संत ज्ञानेश्वर और चार सौ साल संत तुकाराम महाराष्ट्र,कर्नाटक और आंध्र प्रदेशके सामान्य लोगों के दिलों पर राज कर रहे हैं भले तिनों प्रदेशोंमें अबतक कितने राजा और बादशाहों की सत्ता आई-गई पर लोगों के मानस पटल पर आज भी असली सत्ता अगर किसी की है तो संत तुकाराम,ज्ञानेश्वर,बसवअण्णा जैसे क्रांतिकारी संतों की !

और डॉ राम मनोहर लोहिया के अनुसार पाँच हजार साल से भी ज्यादा समय हो रहा है इस देश में कट्टरपंथी ब्राम्हणी वर्ण श्रेष्ठत्व के खिलाफ उदारपंथ की लडाई आज तथाकथित डिजिटल दुनिया के बावजूद विज्ञान की लगभग हर क्षेत्र में क्रांति के बावजूद कमअधिक प्रमाण मे संपूर्ण विश्व में ही आज कट्टरपंथी और उदारपंथ का संघर्ष जारी है और इसी कारण धार्मिक सहिष्णुताके बीसवीं शताब्दी के अंतिम दौर में दोबारा सनातनी ब्राम्हणो ने संघ,हिंदू महासभा और मुस्लिम धर्म के तब्लिगी,जमाते इस्लामी,इसिस और अल कायदा बोको हराम जैसे और ख्रिच्चन कट्टरपंथी,यहूदियों की झियोनीस्ट और बौद्दो से लेकर सभी स्थापित धर्मों में इस तथाकथित वैज्ञानिक और डिजिटलीकरण के बावजूद कमअधिक प्रमाण मे शेकडो ऑक्टोपस जैसे कट्टरपंथी ब्राम्हणी वर्ण श्रेष्ठत्व को बचाने हेतु फलने फूलने लगे!

और हमारे जैसे समस्त तुकाराम,कबीर,नानक देव जी महात्मा बश्वेशर,मछींद्रनाथ-गोरखनाथ और वर्तमान समय के महात्मा गाँधी,विनोबाजी,ॠषी अरविंद,स्वामी विवेकानंद,रमण महर्षि,पेरियार,महात्मा ज्योतिबा डॉ अंबेडकर,रवींद्रनाथ टैगोर जिन्हें सनातनी ब्राम्हणो ने हाईजैक करके उनके तत्वज्ञान को तोड़-मरोड़कर इस्तेमाल करते हुए गत चालीस साल से भी ज्यादा समय हो रहा है अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं !

और हम अपने आप को सेक्युलर,प्रगतिशील जमात वाले इतनी विशाल परंपराओं के रहने के बावजूद क्यो अपने आप को असहाय महसूस कर रहे हैं ? और कुछ ख्रिस्त-गाँधी जैसे मार्टिन लूथर किंग जूनियर से लेकर दाभोळकर,पानसरे,कल्बुर्गी और गौरी लंकेश जैसे कट्टरपंथीयोंकि तरफसे मारे जाने के उदाहरण देखकर लगता है कि आज संत तुकाराम महाराज की 391 वे पुण्य तिथि के बहाने हम सभी तुकाराम महाराज को अपना आदर्श मानने वाले लोग सिर्फ उनकी पुण्यतिथि या जन्म तिथि पर भजन गाकर उनके फोटो या समाधि पर फूल चढ़ाकर समाधान मानने के बजाय उन्होंने दिया हुआ दर्शन के अनुसार बोले तैसा चालें (जो बोलता है वैसा ही आचरण करता है) इस तरह के आखिरी प्रतिनिधि आजसे तिहत्तर साल पहले तुकाराम महाराज के जैसे ही सनातन धर्म के हिमायती लोगों ने हत्या कर के मार डाला तो संत शिरोमणि तुकाराम महाराज की 391 वी पुण्यतिथि मै और आप सभी साथियों ने संकल्प लेना है कि कुछ भी हो जाए पर कट्टरपंथी ब्राम्हणी वर्ण श्रेष्ठत्व के खिलाफ तुकाराम,गाँधीजी ने जलाई हुई ज्योति को कभी बुझने नही देंगे यही मेरी विनम्र श्रद्धांजलि

डॉ सुरेश खैरनार

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