सरकार की नीतियों से असहमति रखने और काले कानूनों का प्रतिरोध करने वालों के खिलाफ फर्जी प्रकरण बनाने के कई मामलों का पर्दाफाश होता जा रहा है ।किसी ठोस सबूत के अभाव में इन फर्जी प्रकरणों की असलियत अब जग जाहिर हो रही है ।

दिल्ली हाई कोर्ट ने विगत दिनों दंगा और आतंक फैलाने के फर्जी आरोपों के मामले में जिस तरह गंभीर और मार्मिक टिप्पणी की है ,वह फासीवादी ताकतों के अमानवीय चरित्र को भी उजागर कर रही है ।

दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने फैसले में यह स्पष्ट किया है कि सरकार की नीतियों से असहमति रखने और किसी कानून का विरोध करने वालों को देशद्रोही और आतंकवादी कहना उचित नहीं है ।

लेकिन एक महत्वपूर्ण मुद्दा यह भी है कि फर्जी प्रकरणों के जिन लोगो के जीवन का कीमती समय जेलों में बंदी होने और अदालतों के चक्कर लगाने में बर्बाद हुआ उसकी क्षतिपूर्ति कैसे होगी ?

जिस दुर्भावना से छात्रों ,नौजवानों ,सामाजिक कार्यकर्ताओं ,बुद्धिजीवियों , साहित्यकारो ,पत्रकारों के खिलाफ फर्जी प्रकरण बनाए गए वह अक्षम्य है । इस क्षतिपूर्ति के लिए सरकार ,प्रशासन और पुलिस की कोई जवाबदेही तो तय होना चाहिए ।

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