naxal-surranderसूबे के लातेहार ज़िले के बरवाडीह इलाके में वर्ष 2013 में हुई घटना ने आमजन का दिल दहला दिया था. नक्सलियों के साथ हुई मुठभेड़ में सीआरपीएफ के 10 जवान और तीन आम नागरिक शहीद हुए थे. नक्सलियों ने एक जवान इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश) के नवाबगंज निवासी बाबू लाल के शरीर में चीरा लगाकर उसके अंदर ढाई किलो का प्रेशर बम लगा दिया. इस घटना ने केंद्र सरकार की नींद हराम कर दी थी. सरकार ने इस वारदात को अंजाम देने वाले लातेहार के पल्हैया निवासी एरिया कमांडर कुलदीप मेहता पर दो लाख और अमवाटिकर निवासी सब जोनल कमांडर गजेंद्र साव उर्फ गुज्जू पर पांच लाख रुपये का इनाम घोषित किया था.

इन दोनों नक्सलियों का लातेहार, पलामू एवं गुमला ज़िले में खासा आतंक था. घटना के दो वर्षों बाद तक पुलिस एवं सुरक्षाबलों से लुका-छिपी का खेल खेलते रहे गुज्जू साव को जब लगा कि यह रास्ता ठीक नहीं है, तो उसने हिंसा छोड़कर समाज की मुख्य धारा में वापस लौटने का फैसला कर लिया और अपने साथी कुलदीप के साथ राज्य पुलिस मुख्यालय में पुलिस महानिदेशक डीके पांडेय के समक्ष हथियार डाल दिए.

गजेंद्र साव पर 30 और कुलदीप मेहता के खिला़फ सात मामले दर्ज हैं. पुलिस महानिदेशक ने दोनों को 50-50 हज़ार रुपये दिए. साथ ही घोषणा की कि इनाम की राशि उनके परिवार को मिलेगी, म़ुकदमों की वापसी के लिए प्रयास किया जाएगा और दोनों के परिवार के एक-एक सदस्य को सरकारी नौकरी के साथ-साथ वे सभी सुविधाएं भी मिलेंगी, जिनका आत्मसमर्पण नीति में उल्लेख है.

गजेंद्र और कुलदीप इंदर सिंह नामधारी के काफिले पर हुए हमले में वांछित थे. दोनों के आत्मसमर्पण से कोयलशंख जोन में नक्सलियों को एक बड़ा झटका लगा है. इससे पहले सब जोनल कमांडर नरेंद्र यादव उर्फ नारों ने चतरा पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण किया. वह औरंगाबाद, पलामू, लातेहार और चतरा ज़िले के नक्सल प्रभावित क्षेत्र हंटरगंज, प्रतापपुर, कुंदा एवं लावालौंग के अलावा गया ज़िले के बाराचट्टी, शेरघाटी, रोशनगंज, बांके बाज़ार एवं इमामगंज में सक्रिय था. नारों के खिला़फ झारखंड-बिहार के कई ज़िलों में दो दर्जन से भी अधिक मामले दर्ज हैं और पुलिस को अर्से से उसकी तलाश थी.

कभी जनता और पुलिस के लिए आतंक का पर्याय रहे नारों यादव का कहना है कि पूर्व में ग़रीबों का मसीहा कहा जाने वाला संगठन एमसीसी अब शोषक बन गया है. संगठन में शामिल नक्सली अपने मूल उद्देश्यों से भटक गए हैं. शीर्ष नेता लेवी की वसूली करके अपने निकट संबंधियों का कल्याण कर रहे हैं. इसी वजह से उसने आत्मसमर्पण का फैसला किया और अब वह नक्सलियों के खिला़फ पुलिस का साथ देगा.

पुलिस महानिदेशक डीके पांडेय कहते हैं कि सरकार की नई सरेंडर पॉलिसी के चलते ऑपरेशन-नई दिशा को बल मिला है. नक्सलियों पर घोषित इनाम की धनराशि बढ़ी है. उम्मीद है कि भटके हुए युवा समर्पण कर देश-समाज की मुख्य धारा में शामिल होंगे. राज्य पुलिस ने 73 नक्सलियों पर कुल आठ करोड़ 69 लाख रुपये का इनाम घोषित कर रखा है. सबसे बड़ी इनामी धनराशि 25 लाख रुपये है. उक्त इनाम प्रतिबंधित नक्सली संगठन भाकपा माओवादी और पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएलएफआई) के सदस्यों पर घोषित किए गए हैं.

केंद्रीय कमेटी सचिव, स्पेशल एरिया कमेटी सदस्य एवं रीजनल ब्यूरो सदस्य की गिरफ्तारी पर 25 लाख रुपये का इनाम है, जिनकी संख्या फिलहाल 16 है और जो फरार बताए जाते हैं. रीजनल कमेटी सदस्य पर 15 लाख एवं जोनल कमेटी सदस्य पर 10 लाख रुपये का इनाम है, जिनकी संख्या 18 है. सब जोनल कमेटी सदस्य पर पांच लाख एवं एरिया कमेटी कमांडर पर दो लाख रुपये का इनाम है, जिनकी संख्या 23 है. एलजीएस दस्ते के सदस्य पर एक लाख रुपये का इनाम है, जो दो बताए जाते हैं.

नक्सलियों के खिला़फ चल रही जंग में अब झारखंड पुलिस ने सिनेमा को भी अपना हथियार बनाया है. वह फिल्म-प्रत्यावर्तन के ज़रिये समाज की मुख्य धारा से भटके युवाओं को शिक्षित कर रही है. नक्सलियों और उनकी विचारधारा में आई विकृतियों पर आधारित इस फिल्म का प्रीमियर हीनू स्थित एक सिनेमा हॉल में हो चुका है. लगभग 82 लाख रुपये की लागत से बनी इस फिल्म को पश्चिम बंगाल के नीमू भौमिक ने निर्देशित किया है. फिल्म के नायक ईशान एवं नायिका मौसमी भट्टाचार्य ने अपनी अदाकारी से दर्शकों को बांधने की हरसंभव कोशिश की है.

झारखंड पुलिस द्वारा चलाए जा रहे ऑपरेशन नई दिशा के तहत बनाई गई यह फिल्म नक्सल गतिविधियों में शामिल युवक सूरज द्वारा गैंगरेप पीड़िता सुरतिया के प्रति प्रेम और समाज की मुख्य धारा में वापस होने में आई कठिनाइयां दर्शाती है. बकौल पुलिस महानिदेशक, नक्सलियों को समाज की मुख्य धारा में वापस लाने के लिए ऑपरेशन नई दिशा को नए अंदाज़ में शुरू किया है. ऑपरेशन के नए संस्करण में नक्सलियों को देय सहायता राशि एवं सुविधाओं में बढ़ोत्तरी की गई है, जिसका नतीजे सामने आने लगे हैं और नक्सलियों ने हथियार डालना शुरू कर दिया है.

झारखंड के 22 में से 18 ज़िले नक्सल प्रभावित हैं. बीते वर्ष नक्सली वारदातों में बीस फीसद की कमी आई. आंकड़े बताते हैं कि राज्य में वर्ष 2015 में कुल 186 नक्सली वारदातें हुईं, जबकि 2014 में 231 और 2013 में 349 नक्सली घटनाएं हुई थीं. 2013 में नक्सलियों के साथ हुईं 68 मुठभेड़ों में 26 और 2014 में हुईं 59 मुठभेड़ों में आठ पुलिसकर्मी शहीद हुए थे. वहीं 2015 में हुईं 45 मुठभेड़ों में चार पुलिसकर्मी शहीद हुए.

2015 में नक्सली वारदातों में मारे गए आम लोगों की संख्या स़िर्फ 44 रही. जबकि 2013 में 126 और 2014 में 86 नागरिकों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी. पुलिस का दावा है कि नक्सली जन अदालतें लगाने में पूरी तरह विफल रहे. ग़ौरतलब है कि नक्सलियों ने 2011 में 31, 2012 में 20 और 2013 में 10 जन अदालतें लगाकर कई निर्दोष लोगों को मौत के घाट उतार दिया था.मुख्यमंत्री रघुवर दास का मानना है कि शीर्ष नक्सली कठोर शासन के भय से राज्य की सीमा छोड़कर दूसरे सुरक्षित स्थानों पर भाग गए, जिससे झारखंड में अमन-चैन का वातावरण स्थापित करने में सहायता मिली.

नक्सलियों के खिला़फ जारी अभियान के तहत हजारीबाग पुलिस ने भाकपा माओवादी के सब जोनल कमांडर लालू घटवार उर्फ निरंजन सिंह को विष्णुगढ़ थाना क्षेत्र से गिरफ्तार कर एक बड़ी कामयाबी हासिल की. वह संगठन में काफी पहले बाल दस्ते में शामिल हुआ था और वर्तमान में झुमरा पहाड़ जोन में सब जोनल कमांडर था.

निरंजन के पास से एक नाइन एमएम पिस्टल, पांच राउंड ज़िंदा कारतूस के साथ-साथ नक्सली साहित्य बरामद हुआ. वह बोकारो के महुआ टांड़ थाना क्षेत्र अंतर्गत डेरवा गांव निवासी है. 22 वर्षीय निरंजन ने पुलिस को बताया कि उत्तरी छोटा नागपुर प्रमंडल के हज़ारीबाग, गिरिडीह, बोकारो एवं चतरा में सक्रिय नक्सलियों के पास 23 अत्याधुनिक हथियार हैं, जिनमें एक एके-56, तीन एके-47, नौ एसएलआर और दो कारबाइन शामिल हैं. संगठन का रीजनल कमेटी सदस्य मिथिलेश सिंह उर्फ दुर्योधन महतो एके-56 इस्तेमाल करता है. जबकि चंचल मांझी, जया मांझी एवं सेक्शन कमांडर वीरसेन एके-47 का इस्तेमाल करते हैं.

संगठन के जोनल कमांडर और सब जोनल कमांडर स्तर के सदस्यों के पास एसएलआर एवं कारबाइन जैसे हथियार हैं. नक्सलियों का डॉक्टर शीतल भी एसएलआर लेकर चलता है. निरंजन ने क्रांतिकारी किसान कमेटी के 13 एवं नारी मुक्ति मंच के चार सदस्यों के अलावा संगठन को सूचना देने, लेवी देने और वसूलने वाले लोगों के नाम भी पुलिस को बताए. पुलिस को उसकी तलाश क़रीब दो दर्जन से अधिक मामलों में थी.

इन तमाम दावों के बीच एक सच्चाई यह भी है कि पूर्व में आत्मसमर्पण करने वाले कई नक्सली सरकारी वादे पूरे न होने के कारण खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं. पूर्व नक्सली त्रिलोचन सिंह मुंडा के नाम से कभी रांची एवं खूंटी का ग्रामीण इलाका कांपता था. वह नक्सली कुंदन के साथ बतौर एरिया कमांडर काम करता था. 2010 में अपने बच्चों के भविष्य की खातिर ऑपरेशन नई दिशा के तहत उसने हथियार डाल दिए और अपने खिला़फ लंबित मामलों में तीन वर्ष की सजा भी काट ली.

प्रावधान के अनुसार त्रिलोचन को तीन लाख रुपये तो मिल गए, लेकिन दूसरे कई वादे अधूरे रहे. नतीजतन, अपने जिन बच्चों के भविष्य की खातिर त्रिलोचन ने हथियार डाले थे, वे पढ़ाई छोड़ मज़दूरी कर रहे हैं. बकौल त्रिलोचन, सरकार ने पांच में से तीन बच्चों की पढ़ाई की ज़िम्मेदारी उठाने की बात कही थी, लेकिन साढ़े पांच साल हो गए, अब तक एक भी बच्चे का नामांकन नहीं हुआ.

त्रिलोचन को जो ज़मीन मिली, वह बाहरी इलाके में है, जहां जान का खतरा है. समर्पण करने वालों को नौकरी देने का प्रावधान है, लेकिन त्रिलोचन के मामले में उम्र आड़े आ गई. यही नहीं, एकल, संयुक्त एवं स्वास्थ्य बीमा कराने का भी वादा किया था, लेकिन कहीं कुछ नहीं हुआ. आवास किराये के रूप में 1,500 रुपये प्रतिमाह मिलने थे, लेकिन आज तक एक भी किस्त नहीं मिली.

झारखंड पुलिस के प्रवक्ता एसएन प्रधान कहते हैं कि पूर्व में आत्मसमर्पण करने वाले सभी नक्सलियों को देय सुविधाएं वादे के मुताबिक उपलब्ध करा दी गई हैं. कुछ की कागजी कार्यवाही बाकी है, जिसे पूरा किया जा रहा है. राज्य सरकार ने नई आत्मसमर्पण नीति के तहत प्रोत्साहन राशि एक करोड़ रुपये तक बढ़ा दी है, ताकि नक्सली हथियार छोड़कर मुख्य धारा में शामिल हों और एक बेहतर ज़िंदगी जी सकें. लेकिन, सरकार के प्रयास तभी सफल हो पाएंगे, जब पूर्व में आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों से किए गए वादे पूरे हों, ताकि वे दूसरों के लिए नजीर बनें.

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