अब आंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी भारत की इज्जत को पलिता लगाने का काम, वर्तमान प्रधानमंत्री ने अपनी क्षुद्र मानसिकता के कारण ! एक सीनेमा को अपनी सांप्रदायिक राजनीति के कारण जानबूझकर प्रमोशन करने की कोशिश का आज आंतरराष्ट्रीय स्तर पर समस्त भारतीय सीनेमा की इज्जत मट्टी पलित करने की गलती की है ! जिसे लेकर मै शुरू से ही आगाह कर रहा था कि हमारे सिनेमा के सभी मानकों का उल्लंघन इस सिनेमा बनाने वाले ने किया है ! और उसे सिनेमा बोलना ठीक नहीं है वह एक सांप्रदायिक दल के प्रचार – प्रसार करने के लिए एक डाक्यूमेंट्री से आगे कुछ भी नहीं है ! लेकिन भारतीय संसदीय जनतंत्र के इतिहास में पहली बार किसी भारतीय प्रधानमंत्री के द्वारा एक भौंडी और ऐतिहासिक तथ्यों को तोडमरोडकर शुद्ध सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने के उद्देश्य से एक सांप्रदायिक मानसिकता के दल के प्रचार – प्रसार के लिये बनाये गये डाक्यूमेंट्री को सिनेमा के तौर पर खुद प्रधानमंत्री ने प्रमोशन करने की कृती भारत जैसे बहुआयामी संस्कृति के देश के लिए हर तरह से गलत कृति थी ! जिसे हमारे आंतराष्ट्रीय फिल्म उत्सव के प्रमुख जूरी श्री नादव लापिड आगे का मजमून आजके इंडियन एक्सप्रेस अखबार के प्रथम पृष्ठ की न्यूज के साथ मै जैसे के वैसा ही दे रहा हूँ और साथ ही इस खबर की फोटो भी दे रहा हूँ !

यह हमारे देश के सिनेमा जगत के लिए बेआबरू होने की बात है ! हालांकि इससे वर्तमान सत्ताधारी दल को कोई फर्क नहीं पड़ता वह तो चित भी मेरी और पट भी मेरी मानसिकता का होने के कारण हालांकि नादव लापिड इस्राइली होने के कारण बीजेपी के लिए मुश्किल है ! क्योंकि 1977 से बीजेपी के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने विदेश मंत्री रहते हुए ही तत्कालीन इस्राइली रक्षामंत्री मोशे दयान के साथ अपने लोधी इस्टेट के सरकारी बंगले में अनौपचारिक मुलाकात शुरू कर के वर्तमान समय में भारत के रक्षा से लेकर दूरसंचार तथा कई सारे मामलों में इस्राइल के सहयोग से काम जारी है ! इसलिए नादव लापिड के कश्मीर फाईल्स को लेकर की गई टिप्पणी को भारत के वर्तमान सत्ताधारी दल को गले की हड्डी जैसे स्थिति में डाल दिया है ! क्योंकि यह वक्तव्य अनुराग ठाकुर जैसे बड़बोले सूचना मंत्री के सामने गोवा में आंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल के समापन समारोह में विस्तार से बोली गई है !( ” Describing the controversial movie The Kashmir Files as” Propaganda and vulgar ” Israeli filmmaker and a jury chief at the International Film festival of India (IFFI), Nadav Lapid, said he was” shocked” and “disturbed ” by its inclusion in the competitive section.
Sharing the jury report during the closing ceremony of the 53rd edition of IFFI in Goa, Lapid said :”Usually, I don’t read from paper. This time, I want to be precise. I want to thank the director and Head of the programming of the festival for its cinematic richness, the diversity and complexity– There were 15 films in the international competition – – the front window of the festival. Fourteen out of them had the cinematic qualities – – and evoked vivid discussions. We were all of us, disturbed and shocked by the 15th film, The Kashmir Files. That felt to us like a propaganda, vulgar movie, inappropriate for an artistic competitive section of such a prestigious film festival. ”
Lapid was jury chairman of the International Competition section of IFFI. The writer – director, whose film Synonyms won the Golden Bear award at the 69th Berlin International Film Festival in 2019, said :” I feel totally comfortable to share openly these feelings here with you on stage since the spirit that we felt in the festival can surely accept a critical discussion which is essential for art and life.” Lapid delivered his remarks before a number of dignitaries, including Unian I&B Minister Anurag Thakur, as Asha Parekh, Akshay Kumar, Ayushmann Khurrana and Rana Daggubati.
Tel Aviv – born Lapid made his directorial debut in 2011 with policeman, which won the special jury prize at Locarno International Film Festival. He shares an old connection with the IFFI as his 2014 film The Kindergarten teachers actor Sarit Larry was awarded the Best Actor Award (Female) at the festival. In 2016, Lapid was chosen as a member of the International critics Week’s jury.
Other members of the jury for the International competition at IFFI were American producer Jinko Gotoh, French film editor Pascale Chavance, French documentary filmmaker, critic and journalist Javier Angulo Barturen, and Indian director Sudipto Sen.
Released on March 11 this year, The Kashmir Files, directed by Vivek Agnihotri, ran to packed halls The film is based on the “exodus and killings” of Kashmiri Pandits in the Kashmir Valley in the 1990s and was endorsed by a number of Union Ministers and granted tax free status in the most all BJP – ruled states. At the time, Prime Minister Narendra Modi said that the movie had rattled the “entire ecosystem” that claims to be the torchbearer of freedom of expression but does not want the truth to be told.
But critics of the film said it presented a one sided narrative of events and raised concerns over communal polarisation. Agnihotri did not respond to a request from the Indian Express seeking comment on Lapid’s remarks. Incidentally, the 53rd edition of the festival also held a special screening of The Kashmir Files.
Meanwhile, the Spanish Film /Have Electric Dreams, directed by Costa Rican Valentina Maurel,won the Golden Peacock for the Best film at the festival. Ianian writer and director Nader Saeivar was awarded the Silver Peacock for the Best Director for No End, a portrayal of Iran’s socio – political system.


यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके सत्ताधारी पार्टी के लिए आंतरराष्ट्रीय स्तर का झन्नाटेदार तमाचा है ! पिछले कुछ सालों से हर बात में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने की कोशिश का, कश्मीर फाईल्स की गोवा के आंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव का भी उपयोग करने की कोशिश नाकाम रही है ! शायद सत्ताधारी दल को लगा होगा कि हिंदू – मुस्लिम कार्ड इस्राइली जन्म के नादव लापिड के मदद से कश्मीर फाईल्स जैसी असत्य और घटीया किस्म की फिल्म को, आंतराष्ट्रीय स्तर पर प्रमोशन के लिए मददगार साबित होंगे ! लेकिन मदद तो दूर की बात है ! उल्टा मूहँ की खानी पड़ी है ! और यह बात कश्मीर फाईल्स कितनी सच्ची कितनी झुठी ? के टाइटल से मैंने इसे देखने के तुरंत बाद ही लिखा है ! और आज नादव लापिड के बहाने उसे पुनः पोस्ट कर रहा हूँ !
शायद वर्तमान सत्ताधारी दल बौद्धिक रूप से हमेशा से ही दिवालिया होने के कारण, 1950 जनसंघ की स्थापना के समय से ही, कश्मीर के बारे में ऊलजलूल नितियो को लेकर चल रहा है ! जो प्रदेश नब्बे प्रतिशत से अधिक मुस्लिम बहुल होने के बावजूद, और भारत के पच्चीस तीस करोड मुसलमानों को सतत असुरक्षित मानसिकता में ढकलनेके एक से बढ़कर एक कार्यक्रम लगातार जारी रखने वाले लोगों को मुस्लिम बहुल कश्मीर में (1889-1941 की जनगणना में 4%और 6%कश्मीरी हिन्दुओं की जनसंख्या थी और कश्मीरी मुस्लिम समुदाय की 94%-95% जनसंख्या रहीं हैं !) और सबसे चौंकाने वाली बात 1950 में शेख अब्दुल्ला के जमीन सुधार कानून के अमल में लाने की योजना के कारण हिन्दु कश्मीर छोड़कर जाने का भी इतिहास है ! वर्तमान बंगला देश और कश्मीर में ज्यादातर जमींदारों में हिंदुओं का समावेश रहा हैं ! विश्व प्रसिद्ध कवि रविंद्रनाथ टैगोर ने भी अपने जमीनदार के कर्तव्यों का निर्वहन किया है ! सियालदह नाम की जगह उनकी जमींदारी थी जो अब बंगला देश में है !


135 करोड़ आबादी के देशमे मुस्लिम समुदाय के लोगों के साथ गत 30 – 35 सालों से, लगातार उन्हें हाशिये पर डालकर कश्मीर के नब्बे प्रतिशत मुस्लिम जनसंख्या में कैसे भारत प्रेम बन सकता है ? आये दिन कोई न कोई नया हंगामा खड़ा कर के धार्मिक ध्रुवीकरण की राजनीति करने वाले लोगों को अल्पसंख्यक समुदायों को लगातार असुरक्षित मानसिकता में डालने की कृती हमारे देश के सामाजिक स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करना कौन सा देश प्रेम है ? आज भारत की एक चौथाई आबादी अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों की है और हमें उनके साथ ही रहना है ! तो आजादी के पचहत्तर साल पूरे होने के बावजूद अगर हिंदु – मुसलमान के इर्द-गिर्द समस्त राजनीति करना हमारे देश की बहुआयामी संस्कृति को मिटाने की, और देश की एकता और अखंडता को छीन्न – भीन्न करने की गलती वर्तमान सत्ताधारी दल अपनी क्षुद्र मानसिकता के कारण कर रहा है ! और वह भी देश भक्ति के नाम से !
श्यामा प्रसाद मुखर्जी भारत के प्रथम मंत्री मंडल में शामिल थे, और कश्मीर के भारत के साथ शामिल होने के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए हैं ! जिसमें 370 ही शामिल होने की मुख्य शर्त थी ! अन्यथा बटवारे के मुताबिक हर तरह से कश्मीर का पाकिस्तान में शामिल होने की संभावना थी ! बटवारे के मुद्दों में मुख्य मुद्दा आबादी और भौगोलिक स्थिति ! तो कश्मीर में तब भी नब्बे प्रतिशत से अधिक मुस्लिम आबादी थी ! और भौगोलिक क्षेत्र तो वह वर्तमान पस्चिम पाकिस्तान से जुडा हुआ था ! उसके बावजूद भी कश्मीर पाकिस्तान में शामिल होने की जगह भारत में शामिल सिर्फ महाराज हरीसिंह के कारण नहीं, शेख अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली नॅशनल कांफ्रेंस के कारण पाकिस्तान के बजाय भारत शामिल हुआ है ! अतिशे चिनार नामसे शेख मोहम्मद अब्दुल्ला के आत्मकथा के अनुसार उन्होंने लिखा है कि युनो जैसे आंतराष्ट्रीय फोरम में भी शेख अब्दुल्ला ने कहा “कि हम कश्मीर के लोग मर जाना पसंद करेंगे लेकिन पाकिस्तान में कभी भी शामिल नहीं होंगे ! ” यह एतिहासिक तथ्य अनदेखा कर भारत के कुछ लोग सिर्फ भाऊकता के कारण हमारा कश्मीर का राग आलापते है !


मंत्रीमंडल से निकलने के बाद, 370 के खिलाफ आंदोलन करने के वाले श्री. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, जम्मू के जेल में बंद रहते हुए उनकी हृदयाघात के कारण(1953) मौत हो गई !
बीजेपी ने पांच अगस्त 2019 को 370 हटाने का निर्णय, आनन-फानन में लिया है ! जो कि संविधान के अनुसार कश्मीर की विधान सभा का प्रस्ताव पारित होने की शर्त होने के बावजूद, विधानसभा को भंग कर के कश्मीर के संबंध में ऐसा संवेदनशील निर्णय लेने की कृती ! सर्वस्वी गलत है ! (नोटबंदी, कोरोना के समय का लॉकडाऊन, और संसद में पारित और रद्द करने के कृषि बील के जैसा ! ) यह वर्तमान समय की सरकार हमारे संविधानिक प्रावधानों को परे रखकर पिछले आठ सालों से ही काम कर रही है ! और यही इस सरकार की कार्यशैली का वैशिष्ट्य है ! अब आने वाले 25 जून को आपातकाल की घोषणा के 47 साल होने वाले हैं और वर्तमान सत्ताधारी दल खुब जनतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर दुहाई देने वाले हैं !


आने वाले पांच अगस्त को कश्मीर के 370 हटाने का तीन साल पूरे होने जा रहे हैं ! हटाने के समय सरकारने किए गए किसी भी घोषणा की पूर्ति तो बहुत ही दूर की बात है उसकी शुरुआत भी नहीं हुई है !
और जिस तरह का माहौल बना दिया गया है ! उसमें एक भी कश्मीरी हिन्दुओं के वापस जाने की संभावना नहीं है ! कश्मीरी पंडित कल्हण ने कहा है कि “कश्मीर वह देश है जो अध्यात्मिक शक्ति से तो जीता जा सकता है, लेकिन सैन्य शक्ति से नही !
डॉ सुरेश खैरनार 29 नवंबर 2022, नागपुर

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