अजय मिश्रा को केन्द्रीय मंत्रिमंडल से बर्खास्त किये बिना कोई बात संभव नहीं: अतुल अनजान
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राष्ट्रीय सचिव और अखिल भारतीय किसान सभा के महासचिव कामरेड अतुल कुमार अनजान की पत्रकार वार्ता में प्रसारित होने वाला प्रेस नोट

भोपाल/ आजाद भारत के इतिहास में सबसे बड़ा किसान आंदोलन लगातार दस माह से अधिक समय से चल रहा है जिसमें 700 से अधिक किसानों की आहूति चढ़ चुकी है लेकिन सरकार कार्पोरेट के दबाव में टस से मस नहीं हो रही है। हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि इस समय किसान विरोधी कानूनों का प्रतिरोध ही वास्तव में देशप्रेम है क्योंकि केंद्र सरकार द्वारा अपने कॉर्पोरेट मित्रों के फायदे में लाये गए ये कानून देश को तबाह कर देंगे. उपरोक्त कानून सिर्फ किसान विरोधी नहीं हैं बल्कि उपभोक्ता विरोधी भी हैं और इनका लागू किया जाना देश की खाद्य सुरक्षा को खतरे में डाल देगा क्योंकि खेती सिर्फ घाटे का सौदा बचेगी और कोई खेती नहीं करना चाहेगा. इसी तरह आवश्यक वास्तु अधिनियम में संशोधन के बाद मंहगाई और कालाबाजारी के कारण ऍम आदमी की गुजर बसर मुश्किल हो जाएगी.  देश के असली रक्षकों- किसानों ने भी आर पार की लड़ाई करने का ठान लिया है। इस आंदोलन को अधिकांश विपक्ष, ट्रेड यूनियन संगठनों और छात्र नौजवानों का समर्थन प्राप्त है। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने अपनी पूरी ताकत से इस आंदोलन का सक्रिय समर्थन किया है और अखिल भारतीय किसान सभा ने पहले दिन से आन्दोलन की पहली कतार में रहकर नेतृत्व प्रदान किया है. उन्होंने कहा कि ये किसान आंदोलन अब अगले चरण में प्रवेश कर गया है और सबसे पहले केन्द्रीय मंत्री अजय मिश्रा को बर्खास्त किया जाये. तभी बात होगी. बात करने के लिए प्रधानमंत्री को खुद आगे आना चाहिए. कृषि मंत्री सज्जन आदमी हैं लेकिन उन्हें किसानों के मुद्दों की कोई समझ नहीं है.

पिछले दो ढाई वर्षों में मोदी सरकार के नेतृत्व में देश चैतरफा तबाही को झेल रहा है। एक ओर सत्तर वर्ष में जनता की मेहनत से कमाई गई संपत्ति को अपने कार्पोरेट मित्रों को औने पौने दाम पर लुटाया जा रहा है, और जनता की आर्थिक हालत यह है कि 80 करोड़ लोग पांच किलो अनाज के लिए लाइन लगाकर खडे़ हैं और देश में अरब खरबपतियों की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है। यह कहने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए कि भारत के इतिहास में मोदी सरकार से भ्रष्ट और जनविरोधी सरकार कभी नहीं बनी। निर्दोष छात्रों, नौजवानों, पत्रकारों और बुद्धिजीवियों को बरसों-बरस से जेल में बंद करके रखा गया है। देश में साम्प्रदायिक नफरत की दीवार ने समाज को इतने गहरे तक विभाजित कर दिया है जो शायद इतिहास में कभी नहीं रहा। कुल मिलाकर देश एक अत्यंत कठिन परिस्थति से गुजर रहा है जिसका मुकाबला करना आज सभी लोकतांत्रिक, धर्म निरपेक्ष, और संवैधानिक मूल्यों के प्रति प्रतिबद्ध दलों, संगठनों और व्यक्तियों की जिम्मेदारी है।

इस बीच हर अच्छी-बुरी घटना को इवेंट में बदलने वाले प्रधानमंत्री एक बार फिर से 100 करोड़ कोरोना वैक्सीन का उत्सव मनानेके लिए प्रकट हो गए हैं. हमारा सवाल ये है कि टीका बनाने में जिनका योगदान था, उन वैज्ञानिकों, तक्नीसियनों और डोक्टरों का सम्मान किया जाना चाहिए. लेकिन सरकार इसमें किस बात का श्री ले रही है? कोरोना महामारी की दूसरी लहर में सारे देश ने मौत के जो भीषण और वीभत्स दृश्य देखे वे अकल्पनीय थे। मरने वालों की संख्या चालीस से साठ लाख तक हो सकती है। कहने की  आवश्यकता नहीं कि इतने बडे़ पैमाने पर मौतों के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकार के बड़बोलेपन, नकारापन और अव्यवस्था की ही बड़ी भूमिका थी जो जनता के प्रति अपनी जिम्मेदारी को पूरा करने में बुरी तरह विफल रहीं। सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधा के अभाव में मजबूर मरीजों को निजी अस्पतालों में जी भरकर  लूटा गया। यदि मौतों की जिम्मेवारी सरकार की नहीं, अस्पतालों में सुविधाओं के लिए सरकार जिम्मेवार नही है तो टीकाकरण के लिए श्रेय लेने का अधिकार मोदी जी को कैसे मिल सकता है?

मध्यप्रदेश की हालत देश से भिन्न नहीं है. यहाँ पिछले दरवाजे से आई भाजपा सरकार सिर्फ घोशनाएँ करती जा रही है और उन पर अमल कहीं दिखाई नहीं देता है. प्रदेश में ऊँचे कराधान के कारण पेट्रोल-डीजल और बिजली देश में सबसे मंहगे दामों पर मिल रहे हैं. एक बार फिर से बिजली की दरें बढ़ाने की कोशिशें की जा रही हैं. जनता ने दमोह उपचुनाव के समय जो सबक सिखाया था, वह वर्तमान उपचुनावों में भी सिखाया जायेगा. इसके लिए भाजपा अपना हमेशा का अजमाया हुआ फार्मूला इस्तेमाल कर रही है और वह है- समाज का सांप्रदायिक आधार पर ध्रुवीकरण करना. पिछले एक माह में किसी न किसी बहाने से प्रदेश में दंगे भड़काने की कोशिशें की जा रही हैं. सीपीआई अन्य वामपन्थी और लोकतान्त्रिक दलों के साथ मिलकर इस जनविरोधी सरकार के खिलाफ जनमत तैयार करने एवं आन्दोलन हेतु प्रयासरत

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