चित्रा भाभी ( महान कथाकार , अनेकों साहित्यिक अलंकरणों से सजी -धजी चित्रा मुद्दल जी ) की याद आ रही थी , चुनांचे उधर घूम गया । एक कड़ी लिख कर ,अगली कड़ी का वायदा किया तो भाई सुधेन्दु पटेल समेत कई मित्र सचेत करने लगे – गुरु ! हर बार की तरह नही , इस बार लिखना ।लिखेंगे । जितना है सब लिखेंगे।

गुजिस्ता खुशबुओं के दिन थे । दिल्ली अपने बार बार उजड़ने , बसने की रवायत के तहत एक बाहरी दिल्ली आबाद कर रही थी जिसे जमुनापार कहा है । दुनिया का अकेला शहर है जो अपने दामन में एक नही कई शहर रख कर भड़ैती करता रहता है । तुर्रा यह कि हर एक बसावट दूसरे बसावट को हिकारत की नजर से देखता है
– पूर्वी दिल्ली से हैं ? हूं
– पश्चिमी से हैं ! वो

अब ये सातवीं दिल्ली बस रही है ‘ जमुनापार ‘ । मशहूर लेखक गुलशेरखां शानी जी जब मयूर विहार आये रहने के लिए तो उन्होंने किसी अखबार में बहुत खूबसूरत सुलेख लिखा – ‘सारे दुखिया जमुनापार ‘ । यह सच भी था । आचरण , समय , हौसले , मंसूबे , उड़ान वगैरह के सवाल पर स्वच्छंदता की हद तक आजाद उड़ने की ख्वाहिश रखने वाले आवारागर्द लोंगो ने खुला आसमान देखते ही भाग चले जमुनापार । लेखक , पत्रकार , आर्टिस्ट , नाटकबाज , संगीतकर , यानी कि अदब का हर पुर्जा इकट्ठा हुआ जमुनापार । और अड्डा बना मयूरविहार । मकबूल लेखक , गुलशेरखां शानी , सुरेश उनियाल , काक , राजीव रंजन , रंजीत कुमार , प्रदीप श्रीवास्तव , हेमानी शिवपुरी , प्रमोद माउथे , वगैरह । इसी में सोने पे सुहागा चित्रा भाभी सपरिवार पहुंची । साथ मे कुछ दिनों के लिए मिसेज शब्द कुमार भी रहीं । शब्द कुमार ?

लम्बा परिचय हैं । संक्षेप में इतना काफी होगा कि जिस फ़िल्म ने राज बब्बर को बड़ी ऊंचाई तक ‘उछाला ‘
‘ इंसाफ का तराजू ‘ उसके लेखक शब्दकुमार जी ही थे । बाद में कुमार साहब के बारे में काका ( राजेश खन्ना ) से पूरी जानकारी मिली । भाई अवधनरायण मुद्गल खुद में चलते फिरते कहकहों की एक किताब थे । बाज दफे तो बड़ी संजीदगी से कह कहे का असल किरदार खुद को बना लेते थे । इतना जीवंत साहित्यकार , संपादक और नेक इंसान का मिलना मुश्किल है । अगली कड़ी में खुलने वाले तीन अड्डों की फेहरिस्त सुन लीजिए , विवरण , यथार्थ अगली कड़ी में । ये तीन अड्डे बने (सांझ के ) एक शानी जी की छत , दूसरा मुद्गल जी का ड्राइंग रूम और तीसरा इस खादिम का गरीबखाना ।

चंचल भू

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