चुनाव परिणामों का विश्लेषण जन हित से जुड़े मुद्दों और राजनीतिक दलों की नीतियों के आधार पर ही होना चाहिए ।यदि संकीर्ण ,सांप्रदायिक दृष्टिकोण से चुनाव परिणामों का विश्लेषण होगा तो इससे सांप्रदायिकता और कट्टर पंथ को ही बढ़ावा मिलेगा ।

भारत में पांच राज्यों के विधान सभा चुनावों के परिणाम घोषित हो चुके हैं । केरल ,बंगाल और असम में सत्तारूढ़ रहे राजनीतिक दल पुनः सत्ता में वापस लौटे हैं ।तमिलनाडु और पुदुचेरी में सत्ता परिवर्तन हुआ है।
इन राज्यों के चुनाव परिणामों को केंद्र सरकार की जन विरोधी नीतियों के खिलाफ जनता के प्रतिरोध की अभिव्यक्ति

और सत्तारूढ़ दलों की विश्वसनीयता के आधार पर भी देखना चाहिए ।केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा ने इन पांच राज्यों के विधान सभा चुनावों में अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी । किसानों पर थोपे गए काले कानूनों ,सरकारी बैंकों को बेचने , देश पर निजीकरण थोपने , श्रम कानूनों में अमानवीय संशोधन करने ,साम्प्रदायिक ,कट्टरपंथी एजेंडा देश पर थोपने के खिलाफ जनता ने वोट दिया है ।इन राज्यों की जनता ने अपनी समझदारी से भाजपा को पराजित करने में सक्षम राजनीतिक दलों को वोट दिया ।

जनता की इस समझदारी का लाभ केरल में वामपंथी दलों को , बंगाल में तृणमूल कांग्रेस को और तमिलनाडु में द्रमुक को मिला । कांग्रेस अपनी अक्षमता के कारण असम और पुदुचेरी में जनता के असंतोष को अपने पक्ष में नहीं कर सकी ।
इसके साथ ही केरल की वामपंथी सरकार ने जिस तरह संकट के समय अपनी जनता को संरक्षण दिया वह बेमिसाल और प्रेरक है ।वामपंथी सरकार अपनी विश्वनीयता के कारण ही पुनः सत्तारूढ़ हुई है ।

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