फैसला टालने के लिए 9 करो़ड मांगे गए
मुझसे 12 जुलाई की रात 9 बजे तक सम्पर्क किया गया कि अगर मैं एडवांस 9 करोड़ रुपए दे दूं, तो फैसले को एक महीने तक टाला जा सकता है और मेरे पक्ष में फैसला देने पर बाकी 77 करोड़ रुपए देने की बात कही गई. लेकिन मैंने उनकी एक नहीं सुनी और न ही पैसे देने के लिए राजी हुआ. न्याय को डगमगाता देखकर ही मैंने फैसले पर कोई प्रतिक्रिया नहीं की और न ही फैसले की वापसी पर विचार करने की कोई अर्जी दाखिल की, क्योंकि मुझे पता चल गया था कि न्याय और जज बिक चुके हैं.
आज 25 जुलाई तक जस्टिस केहर की तरफ से राम अवतार शर्मा मुझसे सम्पर्क कर सुप्रीम कोर्ट का फैसला बदलने की बात कर रहे हैं. इस पर कब और कैसे पेटिशन डालना है, इसका काम भी उन्होंने खुद ही अपने जिम्मे लिया है. इसके लिए उन्होंने मुझसे 31 करोड़ रुपए मांगे हैं.
देश और जनता कानून के इन दलालों, सौदागरों और भ्रष्ट गद्दारों को पहचाने और अपनी अंतरात्मा से न्याय के तराजू पर सच-झूठ, सही-गलत का फैसला करे. सरकार को जज के फैसले पर भी निगरानी रखनी चाहिए और सुप्रीम कोर्ट के फैसले को चुनौती देने के लिए कोई कानून बनाना चाहिए. ताकि इस कानून की मदद से न्यायालय में हो रहे भ्रष्टाचार को रोका जा सके. जल्द से जल्द इस तरह का कानून बनाया जाना चाहिए, जिससे देश और जनता के हित में न्याय हो सके.
आज देश में वकील और जज भ्रष्ट हैं. जज का काम संविधान का सही अर्थ बताना है, न कि उसे झूठ बता कर पेश करना और न उस पर झूठा फैसला करना है. सच कड़वा होता है, लेकिन सच मुझे इस हालत में मिलेगा मुझे नहीं पता था. इस सच का सामना कर मेरी रूह अंदर तक कांप गई है. मेरा न्याय से भरोसा उठा गया है. इस देश के बारे में चिंता होती है कि यहां की भोली जनता का क्या होगा? दोस्तों मैंने जो भी बातें यहां बताई है, वो शत-प्रतिशत सही हैं. मैंने ये बातें अपनी अंतरात्मा से कही है. मैंने इन्हें कहीं भी बढ़ा-चढ़ाकर, मिर्च-मसाला मिलाकर पेश नहीं किया है और न ही तथ्यों से कोई छेड़छाड़ की है.
आज जो बातें हम फिल्मों में देखते और कहानियों में पढ़ते सुनते आ रहे हैं, उन्हें हम हकीकत में देख रहे हैं, जिससे ये बात सिद्ध हो गई कि पैसा बोलता है. जहां कहीं भी घटना होती है, वो एक बार ही होती है, जैसे-जैसे कम्प्लेंट, इन्क्वायरी, कोर्ट केस हियरिंग होती है, वैसे-वैसे स्थिति और हालत नहीं बदलते, फिर जजों के मत और फैसले क्यों बदलते हैं? इस देश में संविधान के कानून की एक ही किताब है जो लोअर कोर्ट, सेशन कोर्ट, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में रखी है और उसके बाहर भी देश-दुनिया में उपलब्ध है. जिसे वकीलों और जजों के अलावा और भी लोग पढ़ते हैं, समझते हैं.
जब कानून की किताब नहीं बदलती, तो जजों के फैसले कैसे बदल जाते हैं? केस में हार-जीत का फैसला बार-बार क्यों बदलता है? किसी भी केस में बदलता हुआ फैसला हमें ये बताता है कि कानून के जज बिके हुए हैं. लेकिन इन फैसलों से सच नहीं बदलता है, सच तो अटल और अजर-अमर है, जिसे भगवान भी नकार नहीं सकते हैं.
मैंने अपनी छोटी सी जिंदगी में, बचपन से ही गांव का प्यार और विश्वास जीता है, छात्र जीवन से ही सभी चुनाव जीते हैं और अपने राजनीतिक जीवन में मैंने कभी हार का चेहरा नहीं देखा. 1995 में अपने पहले विधानसभा चुनाव से ही मैं मंत्री बनाया गया. हर पद पर काम करते हुए, मैंने बिना बदनामी के कठिनता और मेहनत से कार्य किया है. जिससे मैंने अपनी छोटी सी जिंदगी में समाज, समुदाय, क्षेत्र और राज्य के विकास में और लोगों की सेवा में बहुत सा योगदान दिया है.
इसलिए मुझे अपने जिंदगी से, कर्मों से कोई गिला शिकवा, पछतावा, कोई दुःख कोई गम नहीं है. इसलिए सुप्रीम कोर्ट के दिए गए फैसले को मैं अपनी हार नहीं मानता हूं. क्योंकि मैं जानता हूं कि मैं अगर कोई क्लैरिफिकेशन, रीव्यू पेटिशन या एसएलपी दायर करूं, तो मैं पक्का जीतूंगा, जहां जजों की फिर से कम से कम 80-90 करोड़ रुपए का कमाई होगी, वो भी दोनों तरफ से. इसलिए मैं ऐसा नहीं करना चाहता हूं.
मेरा संदेश
इस राज्य और देश की नादान व भोली जनता को मेरा संदेश सरल और साफ है.
मैं मेरी प्यारी जनता से अपील और विनम्र निवेदन करता हूं कि हमेशा राज्य और समाज के हित में ही अपना अमूल्य वोट दें. कभी किसी के दबाव में अपने आने वाले कल को मत मारें और न ही किसी बाहुबली को अपने ऊपर हावी होने दें. चुनाव के समय में बांटे गए शराब और पैसों के लिए अपने भविष्य और आने वाली पीढ़ी को दलदल में न धकेलें और न ही अपने हक के लिए किसी से कोई समझौता करें. अपना वोट देने से पहले एक बार अपने बच्चों को देख लें और उनके भविष्य के बारे में सोच लें, मैं पक्का दावा करता हूं कि आपका वोट सही उम्मीदवार को ही जाएगा. जनता को उम्मीदवारों के खोखले और चुनावी जुमलों को पहचानना चाहिए. वोट मांगने पर उनसे सच-गलत पर सवाल करना चाहिए और जहां तक हो सके उनकी बीती जिंदगी, उनके आचार-विचार और उनके रवैये को देखकर ही वोट देना चाहिए.
मैंने काफी बार ये देखा है कि समाज के बहुत से ईमानदार लोग वोट देने से कतराते हैं. वे सोचते हैं कि उनके एक वोट देने से कोई फर्क नहीं पड़ता, जबकि ये सोच गलत है. जनता का एक-एक वोट हीरे जितना कीमती और बहुमूल्य होता है, क्योंकि उस वोट में लोकतंत्र की वो ताकत होती है, जो हर बाहुबली और तानाशाह को उखाड़ फेंकने में सक्षम होती है.
जनता ये तय करे और उनका ये फर्ज है कि वो सोच-समझकर अपने हित में आने वाले उम्मीदवार को ही वोट देकर विजयी बनाएं, फिर चाहे वो किसी भी कौम, मजहब या समाज का हो. जनता को एक पढ़े-लिखे, संस्कारी, उच्च विचारों से ओतप्रोत, राष्ट्रीय चिंतन, अपने जीवन में जिसने कड़ा संघर्ष किया हो, अपने जीवन में दुख देखा और सहा हो ऐसे देशभक्त उम्मीदवार को चुनना चाहिए. जिससे समाज के हर वर्ग का फायदा हो सके और राज्य व देश सही दिशा में आगे बढ़ सके.
विद्यार्थियों को मेरा संदेश इतना है कि वे अपनी पढ़ाई पूरी लगन, मेहनत और ईमानदारी के साथ करें. आप अपनी पढ़ाई को ही पूजा समझें और पूरी श्रद्धा व शक्ति के साथ अपने लक्ष्य को हासिल करें. आप विद्यार्थी जीवन में जो ज्ञान और समझ हासिल करते हैं वही ज्ञान और विवेक जीवनभर आपके साथ रहता है. हर वक्त ज्ञान लेना, ज्ञान बांटना और ज्ञान में ही डूबे रहने की आपकी कोशिश होनी चाहिए. इस समय आप मिट्टी के एक कच्चे घड़े की तरह होते हो, जिसे कैसे भी घुमाकर आकार दिया जा सकता है, लेकिन अगर पकने पर आकार दिया गया, तो घड़ा फूट सकता है. इसलिए इस वक्त को पहचान कर आप अपने जीवन को महान बना सकते हैं. अगर हम किसी भी महान इंसान की जिंदगी में झांकें, तो हम पाएंगे कि वे अपने विद्यार्थी जीवन में ही सबसे ज्यादा संघर्ष कर आगे बढ़े. आज आपको सिर्फ अपने करियर और लक्ष्य के बारे में ही सोचना चाहिए और उसे हासिल करने के लिए जी-तोड़ मेहनत करनी चाहिए. यहां आपको राजनीति और व्यापार से दूर रहना चाहिए. यदि आप ऐसा करते हैं, तो आपका दिमाग पढ़ाई से हट सकता है और आप शिक्षा में पिछड़ सकते हैं.
हमारे देश में काफी पहले से विद्याश्रम की परम्परा चली हुई है, जिसमें छात्र अपना घर-परिवार, ऐशो आराम छोड़कर आश्रम में पढ़ने जाते थे. जहां वे शास्त्र, शस्त्र और राजनीति की शिक्षा लेते थे. आज हमें भी कुछ ऐसी ही शिक्षा नीति की जरूरत है, जहां हम अपने बच्चों को उनके हिसाब से खेल, संगीत, शास्त्र, विज्ञान, गणित और राजनीति की समझ दे सकें और उनके सुनहरे भविष्य की मंगल कामना कर सकें. मेरा आपसे यही कहना है कि अपने कीमती समय और जीवन को एक दिशा व लक्ष्य देकर एक महान पीढ़ी बनाने में अपना योगदान दें. अपने इस समय में राजनीति में न आएं और न ही इसकी बुरी चालों में फंसें, ऐसा कर आप अपने करियर को बर्बाद कर सकते हैं.
मेरा मानना है कि छात्र एक नॉन पॉलिटिकल प्रेशर ग्रुप है, जिसका काम हमेशा सरकार, नेता और अधिकारियों पर ध्यान व निगरानी रखना है और उन्हें गलत काम करने से रोकना है और जनता व समाज के हित में आवाज उठाना है. राज्य और सरकार में हो रहे गलत कामों के खिलाफ और भ्रष्ट तंत्र के खिलाफ अगर छात्र संघ आवाज नहीं उठाएंगे तो कौन उठाएगा? जनता और समाज को कौन सही दिशा देगा? एक बार अपनी पढ़ाई पूरी कर आप किसी भी क्षेत्र या पेशे में जा सकते हैं.
गैर सरकारी संस्थाओं (एनजीओ) के संदर्भ में मैं कहना चाहूंगा कि एक एनजीओ चलाने का सही मतलब राष्ट्र का चिंतन करना होता है. लोगों में जागरूकता पैदा करना, लोगों के हित में सोचना और देश में सही गलत पर अपने विचार रखना होता है. समाज, राज्य और राष्ट्रीय हित में एक सरकार से ज्यादा एनजीओ की भूमिका होती है. एनजीओ को एक सरकार से ज्यादा सेवा भाव रखना चाहिए. एक विश्वास, लगन, मेहनत, ईमानदारी और जज्बे के साथ काम करना चाहिए. लेकिन मैंने राज्य में ज्यादातर एनजीओ को पैसे कमाते, अधिकारियों को ब्लैकमेल करते और जन हित के पैसों को गबन करते देखा है. सामाजिक कार्यकर्ताओं को अपना काम छोड़ दूसरों के काम में टांग अड़ाते ज्यादा देखा है. सरकार और अधिकारियों की दलाली में वे बुरी तरह से लिप्त हैं या यूं कहूं कि इनकी अपनी अलग ही लॉबी है, जिससे वे लोगों से पैसे लूटने में लगे रहते हैं. यही कारण है कि आज राज्य में सामाजिक कार्यकर्ताओं की इज्जत नहीं की जाती और न ही उनकी आवाज सुनी जाती है. अपनी खोई हुई छवि को वापस पाने के लिए आप सभी सामाजिक कार्यकर्ताओं को एकजुट होकर काम करना चाहिए. आपका मुख्य उद्देश्य इंसानियत की रक्षा करना, भ्रष्टाचार, गलत नीतियों, भेदभाव, ऊंच-नीच, सही-गलत, बदमाशों, गरीबों व पिछड़ी जाति को सताने और दंडित करने वालों के खिलाफ लड़ना है. मैं प्रार्थना करता हूं कि भलाई की इस राह में आपके कदम कभी नहीं डगमगाएंगे.
मैं नेताओं को समझाना नहीं चाहता, लेकिन अपने सिद्धांतों के चलते जो कुछ देखा और अनुभव किया है, उस पर मन में उठ रहे विचारों को जरूर बताना चाहूंगा. नेताओं और मंत्रियों को मेरा ये कहना है कि अगर आप राजनीति में आने की सोचते हैं, तो जनता को अपने परिवार की तरह समझें और उनके दुख को अपना दुख समझकर उन्हें हर तरह से मदद करने की कोशिश करें. कहने का मतलब है कि बिना जनता के प्यार, सहयोग और आशीर्वाद के कोई नेता नहीं बन सकता. क्योंकि चुनावी माहौल और चुनावी रैलियों के दौरान उम्मीदवारों से भी ज्यादा उनके कार्यकर्ता और वोट देने वाले मतदाता बड़ी ही आशा और उम्मीद के साथ काम करते हैं, ज्यादा दौड़-धूप करते हैं, घर परिवार तक बंट जाते हैं, आपस में लड़ते-झगड़ते हैं, खून-खराबों तक बात पहुंचने पर भी वे उम्मीदवारों का साथ नहीं छोड़ते. केवल इसलिए कि उनका उम्मीदवार चुनाव में जीत कर उनके हित के लिए काम करेगा. अच्छी सड़कें, साफ-सुथरा और निरंतर पीने का पानी, बेहतर शिक्षा, बेहतर स्वास्थ्य, युवाओं को नौकरी, अच्छे रहन-सहन, खान-पान, क्षेत्र के आर्थिक विकास, समाज में कानून और शांत माहौल पैदा करने और क्षेत्र के सर्वांगीण विकास के लिए लिए कार्य करेगा.
राजनीति में आने का मतलब कमाई करना नहीं है, बल्कि ये उद्देश्य होना चाहिए कि हम मुख्यमंत्री (पू.) ने आत्महत्या से पहले आखिरी बार लिखा मुख्यमंत्री से लेकर सभी मंत्री और विधायक भ्रष्ट हैं
लोगों की सेवा के लिए आए हैं. अगर हमें कमाई ही करनी है, तो हमें नेता बनने की जरूरत नहीं है. कमाई करने के बहुत से तरीके हैं, जैसे खेती, व्यापार, नौकरी, ठेकेदारी, खेल-कूद और नाच-गाने से भी पैसा कमाया जा सकता है. इन सबके बारे में तो हर कोई आम आदमी भी सोच सकता है और कर सकता है. लेकिन असल राजनीति तो उस सामाजिक धर्म का नाम है, जिसमें आप अपना सुख-चैन, धन-दौलत, नींद-आराम सब कुछ त्यागकर समाज के हर वर्ग, हर तबके को अपनाकर जनता की भलाई करने आते हैं. हमें राजनीति में धर्म, जाति, क्षेत्र, भाषा के नाम पर लोगों को गुमराह नहीं करना चाहिए, बांटना नहीं चाहिए, लड़ना-लड़ाना भी नहीं चाहिए. बल्कि हमें राष्ट्रीय एकता, अखंडता, सद्भावना और संप्रभुता के हित में सुख-शांति बनाए रखनी चाहिए.
लेकिन मैं इस बात से दुखी हूं कि अरुणाचल राज्य में नेता बनने के बाद वो जनता को भूलकर खुद की ही सेवा करने में लग जाते हैं. नौकरी की कहीं पोस्ट निकलने पर वे अपने ही परिवार, रिश्तेदारों और जाति को ही चुनते हैं. कुछ पोस्ट बचने पर वे उन्हें दूसरों को देते हैं, वो भी पैसे लेकर. ऐसी नौकरी तो किसी जरूरतमंद, गरीब और हर तरह से पिछड़े हुए लोगों को ही मिलनी चाहिए. अगर ये गरीब इंसान को नौकरी दे भी देते हैं, तो उनसे घूस मांगते हैं. इतना ही नहीं, घूस लेकर वे अधिकारियों का ट्रांसफर भी कर देते हैं, जिससे अच्छे और काबिल लोगों को काम कर अपना हुनर दिखाने का मौका नहीं मिल पाता है. किसी का प्रमोशन करने पर भी ये घूस मांगते हैं.
राज्य में ठेका निकलने पर विधायक और मंत्री अपनी बीवी और बच्चों के नाम पर ठेका लेते हैं. किसी और को ठेका देने पर भी उसमें अपनी हिस्सेदारी रखते हैं. ऐसे में अच्छे और नेक कॉन्ट्रैक्टरों का क्या होगा? काम समय पर पूरा नहीं होगा और न ही काम में कोई गुणवत्ता रहेगी.
राज्य में स्कीम जनता की जरूरत के हिसाब से नहीं बल्कि मंत्रियों और विधायकों के पैसा कमाने के मतलब से बनाई जाती है. नेता लोग टेंडर पहले ही तय कर, पैसों का हिस्सा भी तय कर लेते हैं कि किसको कितना पर्सेंट मिलेगा. राज्य में स्कीम सैंक्शन होने पर काम में प्रगति नहीं आती, बल्कि मंत्रियों और विधायकों के खजाने में वृद्धि होती है. जिसे वे मिलजुल कर हजम कर लेते हैं. प्रोजेक्ट खत्म होने से पहले ही नेताओं की बिल्डिंगें बन जाती हैं. असल में स्कीम सैंक्शन होने के बाद ठेका का काम एक साल में पूरा हो जाना चाहिए और प्रोजेक्ट बड़ा होने पर ज्यादा से ज्यादा दो साल के अंदर काम पूरा हो जाना चाहिए. लेकिन अरुणाचल में एक प्रोजेक्ट को 8-9 साल तक लंबा खींचा जाता है, ताकि विधायक और मंत्री ज्यादा से ज्यादा अपनी जेब भर सकें. उदाहरण के तौर पर, आप राज्य में सेक्रेटेरिएट बिल्डिंग, एसेम्बली बिल्डिंग और स्टेट हॉस्पीटल, एमएलए कॉटेज, कनवेंशन हॉल को देख सकते हैं. इन योजनाओं को चलते हुए आज 11 साल से ज्यादा का वक्त हो गया है. सेक्रेटेरिएट बिल्डिंग ने राज्य में चार मुख्यमंत्रियों को देखा है. जिनमें गेंगांग अपांग, दोरजी खांडू, जोर्बम गामलिन और नबाम तुकी शामिल हैं. लेकिन एक भी मुख्यमंत्री इस काम को पूरा कराने में सक्षम नहीं थे. इन सभी के कार्यकाल में घोटाले हुए. उसी योजना के फंड को 3-4 बार बढ़ाया गया, फिर भी ये काम अब तक पूरा नहीं हुआ है.
अपने मुख्यमंत्रित्व कार्यकाल के अंदर मैंने जरूरी फंड और अल्टिमेटम देकर चार महीनों में ही सेक्रेटेरिएट बिल्डिंग के काम को पूरा करवाया, जिसमें मुख्यमंत्री और मंत्रियों के दफ्तर शिफ्टिंग को तैयार हैं. इतना ही नहीं बल्कि इसके साथ असेंबली बिल्डिंग और स्टेट हॉस्पीटल और अन्य काम को भी मैंने पूरा करवाने के लिए जरूरी फंड देकर अल्टिमेटम दिया था, जिसे अगस्त महीने में शिफ्ट किया जाना था. मैंने अपनी पूरी मेहनत, जोश और हौसले के साथ काम किया था और वही मेरा कर्तव्य था. मैंने इस राज्य में काम करने की एक मिसाल पेश की है और मैं चाहता हूं कि आगे भी प्रोजेक्ट और योजनाओं को ऐसे ही पूरा किया जाए.
मैंने अपने विधानसभा क्षेत्र के अनजॉ जिले में 11 माइक्रो हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स का निर्माण सही समय पर और सही फंड से करवाया. पहाड़ी और बॉर्डर क्षेत्र होने के बावजूद हमने विकास किया. जिसके कारण जिले के डीसी मुख्यालय और सीओ मुख्यालय में आज 24 घंटे बिजली व्यवस्था उपलब्ध है. जबकि राज्य की राजधानी ईटानगर और सबसे पुराने शहरों, पासीघाट, जीरो, आलो व तेजू में आज भी बिजली की कमी है.
मैंने हवाई जिला मुख्यालय में शहरी जल आपूर्ति योजना मंजूर कराई थी. 14 करोड़ की इस योजना को पूरा करना आसान नहीं था. पहाड़ी क्षेत्र की वजह से हमें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा था. लेकिन फिर भी इस काम को दो सालों में ही पूरा करवा दिया था. आज क्षेत्र के दो शहर और पांच बस्तियों को इस योजना का लाभ मिल रहा है. तेजू में भी पानी की ऐसी ही योजना को मैंने और योजना सचिव प्रशांत लोखंडे ने मंजूर करवाया था. समतल क्षेत्र होने के बाद भी 24 करोड़ रुपए के फंड को खत्म कर इसे आज तक पूरा नहीं किया गया है. उस फंड का अपव्यय हुआ. पूर्व विधायक कारिखो कीरी और उसके इंजीनियर भाई ने पैसों का अपव्यय किया था. तेजू में आज भी पानी सप्लाई में लोगों को तकलीफ झेलनी पड़ रही है.
इसी तरह तेजू शहर में सड़क सुधारने की बहुत सी योजनाएं थी, जिसे अलग-अलग स्रोत मसलन, एसपीए, टीएफसी, नाबार्ड और नॉन प्लान फंड से 4 सालों में 29 करोड़ रुपए का फंड दिया गया था. जबकि इस ओर कुछ भी काम नहीं किया गया और पैसों का अपव्यय हुआ. सड़क का बनना और मरम्मत करना अभी भी बाकी है. राज्य के ऐसे ही और भी बहुत से जिलों में, विधानसभा क्षेत्रों और कस्बों में योजनाएं बनीं, प्रोजेक्ट सैंक्शन किया गया. पैसा खर्च भी हो गया, लेकिन काम पूरा नहीं हुआ.
मुख्यमंत्री से लेकर सभी मंत्री और विधायक भ्रष्ट हैं
इस राज्य में कहीं कोई हिसाब-किताब नहीं है. विधायक और मंत्री मिलजुल कर आगे बढ़ते हैं. जिसके कारण राज्य में बहुत सी योजनाएं आगे नहीं बढ़ पातीं और बीच में ही लटक जाती हैं. जिनका खामयाजा जनता को भुगतना पड़ता है और राज्य विकास नहीं कर पाता है. यहां मुख्यमंत्री से लेकर सभी मंत्री और विधायक भ्रष्ट हैं. जिनके चलते राज्य की दुर्गति होती है. आज के समय में जनता देश में हो रहे भ्रष्टाचार का खुद शिकार है, उसे देखती है, सहती है, लेकिन आवाज नहीं उठाती है. जबकि सरकार को वही चुनती है. ऐसी स्थिति में सच्चाई का मरना तो तय है. आज जनता को एकजुट होकर, एक स्वर में भ्रष्ट तंत्र का विरोध करना चाहिए.
आज अधिकारियों के लिए नियम-कानून, योजना और तंत्र बना हुआ है, जिसके हिसाब से उन्हें काम करना चाहिए. उन्हें जनता की सेवा-सुविधा के लिए नियुक्त किया जाता है. लेकिन ये नेताओं और बड़े अधिकारियों को अपना सहयोग देते हैं, उनके और अपने हित में काम करते हैं और उनके दबाव में काम करते हैं. ऐसी हालत में राज्य और जनता के बारे में कौन सोचेगा? कौन उनके हितों को आगे बढ़ाएगा? आम लोग जाएं तो कहा जाएं?
पुलिस और प्रशासन का काम लोगों के जान-माल की रक्षा-सुरक्षा करना है, उनके सही-गलत को पहचानना है और उनकी हर संभव सहायता करना है. लेकिन आज ये नेताओं की चापलूसी करते हैं, उनके साथ मिलकर राजनीति करते हैं और सिर्फ उन्हीं के लिए काम करते हैं. ऐसे में जनता का क्या होगा और उन्हें कौन बचाएगा?
आज न्यायालय का काम सच का फैसला करना, झूठे और भ्रष्ट लोगों को सजा देना है, फिर चाहे वो अधिकारी, नेता और मंत्री ही क्यों न हो. लेकिन आज लोअर कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट के वकील और जज तक बिके हुए हैं. ऐसे में सच्चे, भोले, निर्दोष, मेहनती और अच्छे व्यवहार वाले लोगों का क्या होगा? कौन उनकी सुनेगा? कौन उन्हें सच्चा फैसला देगा? और कौन उनकी रक्षा करेगा? ये सबसे ज्यादा दुख की बात है कि न्याय और न्यायालय बिके हुए हैं. ऐसे में सिर्फ भगवान ही लोगों की रक्षा कर सकते हैं. लेकिन भगवान वोट देने तो नहीं आएंगे, भ्रष्ट तंत्र को सही करने खुद तो नहीं आएंगे. हे भगवान आपसे मेरी प्रार्थना है कि इस भोली जनता को बुद्धि-ज्ञान दें, सोच-समझ दें, हिम्मत ताकत दें, ताकि वो भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठा सकें, लड़ सकें और भ्रष्ट दिमाग और विचार वाले नेताओं को उखाड़ सकें.
अगर ऊपर बैठे लोग ही सही नहीं हैं, तो कैसे हम किसी को इसका दोष दे सकते हैं. राज्य के बड़े मंत्री दोरजी खांडू, नबाम तुकी, चोउना मीन, पेमा खांडू और बहुत से मंत्री और विधायकों ने हमेशा अपना स्वार्थ देखा है और अपना घर भरा है. मैं राज्य में हो रहे इस भ्रष्टाचार को खत्म करना चाहता था, सरकारी योजनाओं और जनता के पैसों को विकास के कामों में उपयोग करना चाहता था. अपने राज्य और जनता को देश के अन्य राज्यों व दुनिया के बराबर और उससे भी आगे बढ़ाना चाहता था. लेकिन शायद ये बात मेरे साथी विधायकों को अच्छी नहीं लगी.
मैं पूछता हूं कि जनता कब जागेगी और कब इसे होश आएगा. कब तक जनता चुनावों में नेताओं की महंगी कारों को देखकर, शराब व थोड़े से पैसे लेकर और उनके झूठे वादों को सच मानकर वोट देती रहेगी. सच तो ये है कि जनता खुद ही बेवकूफ बने रहना चाहती है, वो सच से दूर भागती है. जनता अपने आप तय करे कि उन्हें क्या करना है. मेरा काम तो जनता को सच बताना था, लेकिन फैसला जनता के हाथ में ही है.
अपने 23 सालों के राजनीतिक सफर में अलग-अलग मंत्री पद पर रहते हुए, मैंने राज्य और जनता के हित में जो काम किया, जिस भी विभाग में काम किया या अपने विधानसभा क्षेत्र में काम किया, वो शायद आपको नहीं दिखा. लेकिन अपने साढ़े चार महीने के मुख्यमंत्रित्व कार्यकाल में जो मैंने कार्य किया, वो राज्य और जनता के हित में किया गया था. जिसे आप सभी ने देखा, सुना, समझा और सराहा है. मैं अरुणाचल प्रदेश और देश की जनता को खासकर युवा पीढ़ी को धन्यवाद देता हूं कि सोशल मीडिया, व्हाट्सएप और ट्वीटर पर 17 लाख से भी ज्यादा लोगों ने हमारी सरकार के काम, नीतियों, योजनाओं और फैसलों का समर्थन किया और सराहा है.
इन बातों को बताने में मेरा कोई स्वार्थ नहीं है, न ही मुझे किसी से कोई भय है, न मैं कमजोर हूं और न मैं इसको अपना समर्पण मानता हूं. इन बातों को कहने के पीछे मेरा इरादा जनता को जगाना है, उन्हें सरकार, समाज, राज्य और देश में हो रहे इन गंदे नाटकों, लूटपाट और भ्रष्ट तंत्र के सच के बारे में बताना है. लेकिन लोगों की याददाश्त बहुत कमजोर है, वे कोई भी बात जल्द ही भूल जाते हैं. इसलिए इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए मैंने जनता को याद दिलाने, जगाने, विश्वास दिलाने, समझाने और विचार करने के लिए ये कदम उठाया है. मैंने अपनी छोटी सी जिंदगी में सबकुछ सहा है, देखा है, अनुभव किया है, बहुत संघर्ष किया और कई बार औरों की खुशी व समाज के हित के लिए बलिदान भी दिया है. लेकिन मैं कभी हारा नहीं और न ही मैंने कभी हार मानी है.
मैंने हमेशा ही राज्य और जनता के हित में फैसला लिया है. मैंने अपना सुख-चैन, समय-स्वास्थ्य, धन-दौलत, नींद-आराम, घर-परिवार और अपने आपको त्यागकर जनता को समर्पित किया है. मैंने अपनी हर सांस, हर लम्हा, हर वक्त और सब कुछ जनता के हितों के लिए त्यागा है. मेरे इस संदेश, त्याग और बलिदान को अगर थोड़े से लोग भी अहसास कर, विचारकर और समझकर अपने में कुछ भी सुधारते हैं, अपने कर्म और सोच विचार में पवित्रता लाते हैं, लूट-लालच को, मांगने-छीनने को, लड़ने-झगड़ने को छोड़ते हैं और समाज, राज्य और देश के हित में थोड़ा योगदान देते हैं और कुछ अच्छा काम करते हैं तो ये सार्थक बात होगी. मैं चाहता हूं कि मेरे दिल की ये बात, सोच-विचार, अनुभव और संदेश ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचे, ताकि मैं आपको समझा सकूं, जगा सकूं और सच्चाई की लड़ाई में आपको हिम्मत और ताकत दे सकूं.
कलिखो पुल
08.08.2016