पूर्व मंत्रियों, पूर्व मुख्यमंत्री और अधिकारियों ने फाइल और तथ्यों को गायब कर दिया
जब मैं मुख्यमंत्री बना, तब मैंने इस केस की जांच की और राज्य सरकार को बचाने की कोशिश की थी. हमारी सरकार ने एफसीआई के खिलाफ केस किया, भारत सरकार के खिलाफ केस किया और सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका भी दाखिल की थी. मुझे इस बात का बहुत ही दुख है कि राज्य के पूर्व मंत्रियों, पूर्व मुख्यमंत्री और अधिकारियों ने मिलकर सभी फाइल, डॉक्युमेंट्स और जरूरी तथ्यों को गायब कर दिया और मिटा दिया. जिसकी वजह से मैं राज्य सरकार को मुख्यमंत्री (पू.) ने आत्महत्या से पहले आखिरी बार लिखा पीडीएस घोटाला इस केस में बचा नहीं सका. इस केस में मुख्य सचिव, सचिव, निदेशकों और अफसरों को जेल तक होने वाली है.
आज इस पीडीएस केस में वास्तविक ठेकेदारों को पैसा नहीं मिला, जबकि उन्होंने सही टेंडर भरा और सही काम भी किया, उचित मूल्य की दुकानों (फेयर प्राइस शॉप्स) तक चावल भी पहुंचाया था. वहीं, दूसरी ओर पीडीएस स्कैम में पेमा खांडू का नाम शामिल है, जिसका आज भी हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में केस चल रहा है. स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना (एसजीएसवाई) के चावल घोटाले में भी दोरजी खांडू और पेमा खांडू खुद फंसे हुए हैं. आज इसका केस सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है. अगर दोरजी खांडू जिंदा होते, तो अभी जेल में होते. पेमा खांडू आज मुख्यमंत्री हैं, फिर भी इस केस में बहुत जल्द जेल में जाएंगे. स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना ही गलत थी, क्योंकि इस योजना में एक भी दाना चावल गांवों तक नहीं पहुंचा और न लोगों को चावल मिला. ये सारा चावल असम में बेचा गया, वो एक घोटाला है. जो चावल गया ही नहीं, उसके लिए झूठा ट्रांसपोर्टेशन बिल बनाया गया, ये दूसरा घोटाला है. इन बाप-बेटों ने घोटालों पर घोटाले किए हैं. इस घोटाले पर कोई भी साधारण व्यक्ति या जनता पेमा खांडू से आज पूछे कि इस योजना में केंद्र से कितना चावल आया था? किसके लिए आया था? कब आया था? और किसको चावल मिला? और इस चावल घोटाले में कितने पैसों की कमाई हुई? मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि इन सवालों के जवाब पेमा खांडू के पास नहीं हैं. उनका सिर्फ एक ही जवाब है, उनके पास आज ढेर सारा नगद पैसा है, जिनके पीछे जनता भागती है. लेकिन ये बात जनता को जानना और समझना चाहिए की ये इन सब घोटालों का पैसा है.
कमजोर, भ्रष्ट, बदमाश और लुटेरों को ही प्राथमिकता देना कांग्रेस पार्टी की नीति है. ऐसे ही लोगों को कांग्रेस नेता बनाती है, ताकि वो सरकार और जनता के पैसों को मिलकर लूटे और कांग्रेस आला कमान को पहुंचाता रहे, जिससे लगातार उनकी कमाई होती रहे. घोटालों और भ्रष्टाचार का पता होते हुए भी नेताओं और विधायकों ने आज तक कुछ नहीं किया. क्योंकि विधायकों और मंत्रियों को भी पीके थुंगन, गेगांग अपांग, दोरजी खांडू, नबाम तुकी और पेमा खांडू जैसे ही भ्रष्ट मुख्यमंत्री चाहिए. जिनके खिलाफ सीबीआई जांच चल रही है, हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट में केस चल रहे हैं. लेकिन यही लोग अधिकारियों, न्यायालयों और जजों को पैसा दे सकते हैं.
अपने मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान मैंने हर जिले को सोशल एंड इंफ्रास्ट्रक्चरल डेवलपमेंट फंड (एसआईडीएफ), ग्रामीण अभियंत्रण (रूरल इंजीनियरिंग) और ‘नॉन प्लान’ में बराबर फंड दिया था. इसके बाद भी पेमा खांडू और उनके दोनों भाईयों ने एक प्रोजेक्ट में मुझसे तत्काल 6 करोड़ रुपए हाईड्रो प्रोजेक्ट मैंन्टेनेंस के लिए मांगे थे, जिसे मैंने पूरा दिया. इन पैसों को अभी काम में ही नहीं लिया गया था कि उन्होंने फूड रिलीफ में मुझसे पैसे मांगे. उन्होंने 10 करोड़ की और मांग की थी. उस समय राज्य में फ्लड रिलीफ के लिए कुल 14 करोड़ रुपए ही थे, फिर भी मैंने सबसे ज्यादा 6 करोड़ रुपए तवांग में दिए थे.
अरुणाचल जैसे छोटे राज्य में हमारे पास एनडीआरएफ में केवल 51 करोड़ रुपए ही थे, जिसे 20 जिलों और 60 विधायकों को जरूरत होने पर देना था और उस समय में बहुत से जिले बाढ़ से पीड़ित थे. मुख्यमंत्री होने के नाते मुझे हर जिले और 60 विधायकों को बराबर देखना था. लेकिन पेमा खांडू और उनके दोनों भाईयों ने मुझसे 100.88 करोड़ रुपए की मांग की थी. मैंने उन्हें राज्य की स्थिति के बारे में बताया और समझाया. लेकिन इस बात से वे मुझसे नाराज हो गए और उन्होंने मेरे खिलाफ चाल चल दी थी.
तवांग गोलीबारी के पीछे भी पेमा खांडू
एक और बात मैं बताना चाहूंगा कि 2 मई को तवांग में हुई गोलीबारी की घटना के पीछे भी पेमा खांडू का ही हाथ है. गिरफ्तार हुए लामा आदमी को पेमा खांडू ने बेल नहीं देने दी थी. इस घटना के जिम्मेदार भी पेमा खांडू ही हैं. डीसी और एसपी तवांग की हुई फोन वार्ता में पेमा खांडू का जिक्र है. तवांग में हुई गोलीबारी की घटना में पेमा खांडू ने डीसी, एडीसी और मजिस्ट्रेट पर बेल न देने का दबाव बनाया था. मुझे और चीफ सेक्रेटरी को इस घटना के मामले में अधिकारियों पर कार्रवाई न करने का भी दबाव डाला था. उसके बावजूद हमने अधिकारियों पर कार्रवाई की, शायद इस बात का उन्हें बुरा लगा हो. इस घटना में कितने लोगों की जाने गईं, कितने लोग गंभीर रूप से घायल हुए थे, उनका आज भी शिलांग और गुवाहाटी में इलाज चल रहा है. जबकि मैं खुद मृतकों के परिजनों से मिला, गंभीर रूप से घायल हुए लोगों से भी तवांग, शिलांग और गुवाहाटी में मिलकर हर संभव मदद की थी. जबकि पेमा खांडू को इस घटना पर कोई दुख और चिंता नहीं थी. लोगों को सोचकर फैसला करना चाहिए कि कौन सही और कौन गलत है?
विधायक से मंत्री और मुख्यमंत्री का फासला नबाम तुकी ने बहुत ही कम समय में तय कर लिया. विधायक बनने से पहले उनके पास कुछ भी नहीं था और आज आधे ईटानगर-नहारलागुन में उनकी जमीनें और सम्पति हैं. वहीं कोलकाता, दिल्ली और बेंगलुरु में भी उनके आलीशान बंगले, फार्म हाउस व जमीनें हैं. सोशल मीडिया, फेसबुक-व्हाट्सएप पर फोटो और वीडियो के साथ उनकी सम्पत्ति का ब्यौरा उपलब्ध है. इनका काला चिट्ठा कुछ इस तरह है:
गुवाहाटी हाईकोर्ट ने नबाम तुकी के खिलाफ की गई सुनवाई में उन्हें दोषी ठहराते हुए सीबीआई जांच के आदेश दिए थे. लेकिन उसी केस में तुकी ने सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एच. एल. दत्तू को 28 करोड़ रुपए घूस देकर स्टे ले लिया और आज भी खुलेआम घूम रहे हैं.
अरुणाचल प्रदेश में हुए पीडीएस स्कैम पर सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अल्तमस कबीर ने कांट्रैक्टरों के हित में फैसला दिया था. जबकि केंद्र सरकार और एफसीआई ने भी इस फैसले को गलत ठहराया था.
फूड एंड सिविल सप्लाई के डायरेक्टर एन.एन. ओसीक के बैंक खाते से नबाम तुकी के खाते में 30 लाख रुपए ट्रांसफर किए गए थे. इस बात को गुवाहाटी हाईकोर्ट ने भी माना है. जिसका रिकॉर्ड हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के पास भी है. इस केस में भी घूस देकर कोर्ट का फैसला खरीदा गया था.