एक सुसाइड नोट की हत्या की यात्रा

  • 17 फरवरी 2017 को कलिखो पुल की पत्नी दंगविम साई ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जे एस खेहर को पत्र लिख कर मांग की कि कलिखो पुल के सुसाइड नोट में जिन न्यायाधीशों के नाम रिश्वत के आरोपों में दर्ज हैं, उनके विरुद्ध जांच कराई जाए.
  • कलिखो पुल ने अपने सुसाइड नोट में आरोप लगाया था कि जुलाई, 2016 में उनकी सरकार को अपदस्त करने का आदेश देने वाली संविधान पीठ के जजों ने अनैतिक/अवांछित प्रभाव में आकर ये आदेश पारित किए है.
  • सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने दंगविम साई के पत्र पर सुनवाई की और इसे क्रिमिनल रिट पिटीशन के रूप में दर्ज़ करने के आदेश दिए.
  • सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार ने रिट पिटीशन दर्ज़ करते हुए इसे जस्टिस ए. के गोयल और जस्टिस यू.यू. ललित की बेंच में सुनवाई हेतु भेजा.
  • कोर्ट के रजिस्ट्रार ने सुनवाई होने के 1 दिन पूर्व श्रीमती पुल (दंगविम साई) को उनके मोबाइल नंबर पर रिट पिटीशन दर्ज़ होने की आधिकारिक सूचना दी.
  • मामले की सुनवाई के दौरान श्रीमती कलिखो पुल के वकील दुष्यंत दवे ने इस मामले की न्यायिक सुनवाई के बारे में कई सवाल खड़े किए.
  • श्री दवे ने कोर्ट में खुलासा किया कि इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश ने हाल ही में उनसे मुलाक़ात की और कई सनसनीखेज जानकारियां दी. लेकिन उन सब का खुलासा कोर्ट में किया जाना उचित नहीं है.
  • उन्होंने कहा कि याची ने सुसाइड नोट में न्यायाधीशों पर लगाए गए करप्शन के आरोपों की प्रशासनिक जांच की याचना की है न कि इसके न्यायिक परीक्षण की.
  • उन्होंने श्रीमती पुल के पत्र को रिट पिटीशन में तब्दील करने को लेकर भी सवाल खड़े किए.
  • श्री दवे ने ये भी टिप्पणी की कि इस रिट पिटीशन को जस्टिस गोयल और जस्टिस ललित की बेंच में भेजा जाना भी संदेह पैदा करता है. उन्होंने बताया कि जस्टिस गोयल काफी जूनियर जज हैं तथा वे सुप्रीम कोर्ट के वर्तमान मुख्य न्यायाधीश जस्टिस खेहर के साथ पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट में बतौर जज काम कर चुके हैं.
  • दवे ने कहा कि कलिखो पुल के सुसाइड नोट में जस्टिस खेहर पर भी करप्शन के आरोप हैं और ये भी कहा गया है कि उन्होंने 36 करोड़ की हुई डील में अपने बेटे का इस्तेमाल किया.
  • श्री दवे ने के. वीरास्वामी वर्सेज यूनियन ऑ़फ इंडिया केस का हवाला दिया तथा इसी आधार पर सुसाइड नोट में न्यायाधीशों पर लगे करप्शन के आरोपों की प्रशासनिक जांच करने की मांग की.
  • के. वीरास्वामी मद्रास हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश तथा सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस वी. रामास्वामी के ससुर थे. वीरास्वामी पर आय के ज्ञात स्त्रोतों से अधिक सम्पति अर्जित करने के आरोप लगाए गए थे. इन आरोपों के खिलाफ उन्होंने मद्रास हाई कोर्ट में याचिका दायर की, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया.
  • वे हाई कोर्ट के पहले चीफ जस्टिस थे, जिनके विरूद्ध महाभियोग चलने का आदेश दिया गया.
  • वीरास्वामी ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा और अंततः वीरास्वामी को पदच्युत कर दिया गया.
  • श्री दवे ने ये भी कहा कि इस मामले को सुनवाई हेतु कोर्ट नंबर 13 में भेजा जाना तथा इसकी सुनवाई का समय भोजनावकाश के दौरान 30 पीएम पर तय किया जाना भी संदेह पैदा करने वाला है, क्योंकि सुनवाई का ये अस्वाभाविक समय था.
  • सुनवाई के दौरान जस्टिस यू. यू. ललित और ए. के. गोयल की बेंच ने कहा कि अगर श्री दवे या उनकी याचिकाकर्ता अभी पिटीशन को वापिस लेना चाहें, तो ले सकते हैं. लेकिन दुष्यंत दवे ने प्रशासनिक जांच को लेकर ज़ोर देना जारी रखा. बेंच द्वारा दवे की दलीलों पर जब विचार करने से इंकार कर दिया गया, तब ये मान कर कि पिटीशन खारिज हो जाने पर उनके लिए पैरवी के सभी रास्ते बंद हो जाएंगे, श्रीमती पुल की सहमति से श्री दवे ने याचिका वापस ले ली. श्रीमती पुल ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट में पैरवी के लिए हमने प्रशांत भूषण से सम्पर्क साधा था, लेकिन वे किसी अन्य केस में व्यस्त थे. इस बीच प्रशांत भूषण ने दुष्यंत दवे से कुछ बातचीत की और श्री दवे ने मेरिट के आधार पर ही इस मामले में पैरवी की. हमने ये याचिका भी प्रशांत भूषण की सलाह पर वापिस ली थी.
  • मामले की सुनवाई करने के उपरांत बेंच ने रिट पिटीशन को ये कह कर खारिज कर दिया कि याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका वापिस ले ली है.
  • बेंच ने ये भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस या अन्य जजों के विरुद्ध यदि गंभीर आरोप हैं, तो सरकार राष्ट्रपति से अनुमति लेकर वरिष्ठ जजों की बेंच बनाकर जांच करा सकती है.
  • लेकिन बाद में इसपर राष्ट्रपति, केंद्र सरकार, विपक्ष और मीडिया सभी ने चुप्पी साध ली और एक मुख्यमंत्री की ख़ुदकुशी रहस्य बनकर रह गई.

उपराष्ट्रपति को पत्र

  • 28 फरवरी 2017 को श्रीमती दंगविम साई ने उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी को पत्र लिख कर मांग की कि एसआईटी (स्पेशल इन्वेस्टीगेशन टीम) गठित कर श्री पुल के सुसाइड नोट में दर्ज़ जजों के विरुद्ध भ्रष्टाचार के आरोपों की निष्पक्ष जांच कराई जाए.
  • श्रीमती पुल ने कहा कि श्री पुल के सुसाइड नोट को मृत्यु पूर्व बयान के रूप में देखा जाना चाहिए. चूंकि सुसाइड नोट में लगाए गए आरोप गंभीर प्रकृति के हैं, इसमें सुप्रीम कोर्ट के वर्तमान चीफ जस्टिस और एक दूसरे वरिष्ठ जज के नाम हैं, इसलिए इसकी जांच एक ऐसी एजेंसी से कराया जाना आवश्यक है, जो सरकार के नियंत्रण से बाहर हो, जिससे न्यायपालिका के सम्मान और स्वतंत्रता की रक्षा हो सके. उन्होंने मिसाल के तौर पर वीरास्वामी बनाम भारत सरकार केस का उद्धरण भी पेश किया.
  • उन्होंने ये भी तर्क दिया कि सामान्यतः सुप्रीम कोर्ट के किसी जज के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायत होने पर राष्ट्रपति के माध्यम से जांच कराने का प्रावधान है. लेकिन इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एक वरिष्ठ जज तथा राष्ट्रपति महोदय का भी नाम है, इसलिए मैं उपराष्ट्रपति महोदय को पत्र लिख कर जांच कराने की मांग कर रही हूं.
  • श्रीमती पुल ने उपराष्ट्रपति से ये आग्रह भी किया कि वे इस मामले की जांच के लिए एसआईटी गठित करने हेतु जस्टिस खेहर व जस्टिस दीपक मिश्रा के अतरिक्त किन्ही अन्य 3 या 5 वरिष्ठ जजों की एक बेंच बनाने हेतु निर्देशित करें, जिससे मामले की सही ढंग से जांच हो सके. अन्यथा उन राजनेताओं और जजों की निष्ठा और ईमानदारी पर संदेह के बादल छाए ही रहेंगे, जिनके नाम श्री पुल ने अपने सुसाइड नोट में लिखे हैं. श्रीमती पुल के इस पत्र पर भी उपराष्ट्रपति ने आज तक कोई कार्यवाही नहीं की.

गृह मंत्री को पत्र

  • श्रीमती पुल 03.2017 को देश के गृह मंत्री श्री राजनाथ सिंह से दिल्ली में मिलीं और उन्हें पत्र लिख कर एसआईटी के माध्यम से सारे मामले की जांच कराने की मांग की. उन्होंने आग्रह किया कि ये जांच सुप्रीम कोर्ट की देख रेख में होना ज़रूरी है, क्योंकि दोनों जजों के ऊपर भ्रष्टाचार के आरोप लगे होने के कारण इसमें न्यायपालिका की गरिमा भी दाव पर लगी है. उन्होंने अपने और अपने परिवार के लिए केंद्रीय सुरक्षा एजेंसी से सुरक्षा उपलब्ध कराए जाने की भी मांग की.
  • श्रीमती दंगविम साई के साथ गृह मंत्री से मिलने वालों में उनका बेटा ओज़िंग-सो पुल तथा कालिखो पुल के सचिव रहे आर.एन. लोलूम शामिल थे. गृह मंत्री ने श्रीमती पुल को ये कह कर टरका दिया कि वे अभी 4-5 दिनों के लिए बाहर जा रहे हैं, लौट कर आने के बाद मामले का अध्ययन करेंगे. बावजूद इसके, गृह मंत्री ने आज तक इस मामले में कोई कार्यवाही नहीं की.
  • श्रीमती पुल ने बताया कि मार्च 2017 में ही अरुणाचल सरकार ने ये मामला गृह मंत्रालय को इस अनुशंसा के साथ भेज दिया था कि वे जांच के बारे में उचित फैसला लें, लेकिन गृह मंत्रालय ने इसे दबा दिया.

जुएल ओरांव को पत्र

  • श्रीमती पुल ने इसी तरह जनजाति मामलों के मंत्री जुएल ओरांव को 03.2017 को पत्र लिख कर न्याय दिलाने की मांग की. पत्र में उन्होंने ये भी कहा कि वे एक जनजातीय महिला हैं और सम्बंधित विभाग के मंत्री होने के नाते उनका ये दायित्व भी बनता है कि वे श्री कलिखो पुल की मृत्यु के कारणों तथा उनके सुसाइड नोट में लगाए गए आरोपों की जांच कराने में मदद करें. श्री ओरांव ने भी इस पर कार्यवाही नहीं की.
  • 03.2017 को ही श्रीमती पुल ने राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष को भी पत्र लिख कर इस मामले में हस्तक्षेप और सहायता करने की मांग की, लेकिन महिला आयोग ने भी चुप्पी साध ली.
  • 04.2017 को श्रीमती पुल ने सुप्रीम कोर्ट के तीनो वरिष्ठ जजों जस्टिस जे.चेलमेश्वर, जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस मदन बी लोकुर को पत्र लिख कर सुसाइड नोट में लगाए गए आरोपों के बारे में एफआईआर दर्ज़ कराने और जांच कराने की मांग की. उन्होंने तर्क दिया कि चूंकि श्री पुल के सुसाइड नोट में चीफ जस्टिस खेहर, वरिष्ठ जज दीपक मिश्रा और राष्ट्रपति प्रणब मुख़र्जी का भी नाम है और इस कारण आप तीनो वरिष्ठ जज हीं इस बारे में निर्णय लेने में सक्षम हैं, इसलिए वे ये अपील कर रही हैं.
  • पत्र के साथ उन्होंने सुसाइड नोट तथा सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को लिखे गए पत्र की प्रतिलिपि भी संलग्न की. इन तीनो जजों ने भी आजतक कोई जवाब नहीं दिया.
  • श्रीमती पुल इसी दौरान केंद्रीय गृह सचिव राजीव महर्षि से भी मिलीं और सारे प्रकरण की निष्पक्ष एजेंसी से जांच कराने की मांग की. श्री महर्षि ने कहा कि वे इस मामले में कानूनी राय ले रहे हैं, लेकिन कोई कार्यवाही अभी तक नहीं हुई.
  • श्रीमती पुल ने अपनी फरियाद लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने की कई बार कोशिश की, लेकिन अ़फसोस की बात ये है कि पीएमओ द्वारा उन्हें आजतक मुलाक़ात का समय ही नहीं दिया गया. दिलचस्प ये है कि प्रधानमंत्री कार्यालय ऐसा उपेक्षापूर्ण व्यवहार उस मुख्यमंत्री के परिजनों के साथ कर रहा है, जिसने भाजपा के सहयोग से ही अरुणाचल में सरकार बनाई थी.
  • श्री कालिखो पुल की रहस्यमय मृत्यु और उनके द्वारा सुसाइड नोट में कई शीर्ष नेताओ और जजों के खिलाफ लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच कराए जाने की मांग को लेकर अरुणाचल प्रदेश में अभी भी पुल समर्थक धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं. लेकिन न तो राज्य सरकार और न ही केंद्र की भाजपा सरकार इसका संज्ञान ले रही है. ये तब है, जब केंद्रीय गृह राज्य मंत्री किरण रिजिजू संसद में उसी क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते है.

मुख्यमंत्री (पू.) ने आत्महत्या से पहले आखिरी बार लिखा

• अरुणाचल के मुख्यमंत्री कलिखो पुल ने आत्महत्या के पहले खोल दी थी नेताओं और जजों की पोल
• सुप्रीम कोर्ट, राजनीतिक दलों और मीडिया ने दबा दिया कालिखो पुल का सनसनीखेज सुसाइड नोट
• सुसाइड नोट जैसा ठोस आखिरी सबूत पेश किए जाने के बावजूद सुप्रीम कोर्ट ने नहीं की सुनवाई
• पहली बार ‘चौथी दुनिया’ हूबहू छाप रहा मुख्यमंत्री कलिखो पुल का 60 पेज का सुसाइड नोट

मैंने एक बहुत ही गरीब और पिछड़े हुए घर में जन्म लिया. मैंने उम्र भर दुःख देखे हैं. दुःख सहा है और बहुत बार दुख पर विजय भी पाई है. लेकिन विधाता ने मेरे जन्म से ही हर एक कदम पर मेरी कठोर परीक्षा ली है. आम लोगों को मां-बाप से दुलार मिलता है, प्यार मिलता है, शिक्षा मिलती है, समझ मिलती है. वहीं मेरे जन्म के 13 महीने बाद ही मां का साया छीन गया और जब मैं छह साल का हुआ, तो पिता भी भगवान को प्यारे हो गए. मेरे अपने कोई नहीं हैं. मां पिता और परिवार के प्यार से मैं हमेशा वंचित रहा हूं.

Adv from Sponsors

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here