rn04_03_g_2013_IZI_Promisinस्टेम सेल थेरेपी एक प्रकार की चिकित्सा पद्धति है, जिसके तहत चोट अथवा अन्य किसी बीमारी में क्षतिग्रस्त ऊतकों में नई कोशिकाएं डाली जाती हैं. चिकित्सीय शोधकर्ताओं का मानना है कि स्टेम कोशिका द्वारा मानव विकारों का सफल इलाज हो सकता है. विभिन्न किस्मों की स्टेम कोशिका चिकित्सा पद्धतियां मौजूद हैं, किंतु अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण के उल्लेखनीय अपवाद को छोड़कर अधिकांश पद्धतियां अभी प्रयोगात्मक चरणों में हैं. चिकित्सीय शोधकर्ताओं को आशा है कि वयस्क और भ्रूण स्टेम कोशिका शीघ्र ही कैंसर, डायबिटीज, पर्किन्सन, हंटिंग्टन, सेलियाक, हृदय रोग, मांसपेशियों के विकार, स्नायविक विकार और अन्य कई बीमारियों का उपचार करने में सफल होगी. 30 सालों से भी अधिक समय से अस्थि मज्जा और हाल में ही गर्भनाल स्टेम कोशिकाओं का उपयोग कैंसर से पीड़ित रोगियों की ल्यूकेमिया एवं लिम्फोमा जैसी स्थितियों में चिकित्सा हेतु किया जाता रहा है.
स्टेम सेल : स्टेम सेल की प्राप्ति के तीन स्रोत हैं. एक-गर्भस्थ शिशु के भ्रूण के तंतुओं से, जिसे भ्रूण स्टेम सेल कहते हैं. दूसरा कार्ड स्टेम सेल, जो जन्म के समय बच्चों के गर्भनाल से लिए जाते हैं. तीसरा वयस्क स्टेम सेल, जो रक्त अथवा अस्थि मज्जा (बोनमैरो) से एकत्र किए जाते हैं. आजकल बच्चों के जन्म के समय गर्भनाल से स्टेम सेल लिए जा रहे हैं, जिन्हें स्टेम सेल बैकों में माइनस 190 डिग्री तापमान पर स्टोर कर दिया जाता है. अनुमान है कि देश में लाखों लोग अब तक ऐसा कर चुके हैं. अकेले स्टेम सेल बैंकिंग का कारोबार देश में सौ करोड़ से ऊपर पहुंच चुका है. बैंक इसके लिए एक मुश्त 70 से 80 हज़ार रुपये और प्रति वर्ष 5 से 10 हज़ार रुपये शुल्क लेते हैं. जब कभी दुर्घटना अथवा किसी बीमारी के कारण शरीर के किसी अंग को क्षति पहुंचती है, तो बैंक में जमा स्टेम सेल लेकर उनसे प्रयोगशाला में कोशिकाएं तैयार की जा सकती हैं और उन्हें क्षतिग्रस्त अंग में प्रत्यारोपित किया जा सकता है.
फ़ायदा : बच्चे के स्टेम सेल से खून के रिश्ते में सभी लोगों के लिए कोशिकाएं तैयार की जा सकती हैं. भ्रूण या गर्भनाल से एकत्र किए गए स्टेम सेल ज़्यादा उपयोगी रहे हैं. गर्भनाल को अभी तक बेकार की वस्तु समझा जाता था तथा काटकर कूड़े में फेंक दिया जाता था. अब वही भावी बीमारियों से मुक्ति का जरिया बन चुका है. वयस्क व्यक्ति के रक्त या बोनमैरो से एकत्र किए गए स्टेम सेल के विकसित होने की गति धीमी होती है, जबकि भ्रूण कोशिकाओं से हर अंग की कोशिका विकसित हो जाती है. बीमार व्यक्ति का खून के रिश्ते के व्यक्ति के स्टेम सेल से उपचार किया जा सकता है. जैसे कि कोई व्यक्ति रक्त कैंसर से ग्रस्त है, तो वैसी स्थिति में खून के रिश्ते के व्यक्ति के बोनमैरो से स्टेम सेल लेकर उन्हें प्रयोगशाला में तैयार किया जाएगा और बीमार व्यक्ति के शरीर में प्रत्यारोपित कर दिया जाएगा. ये कोशिकाएं कैंसर की वजह से नष्ट हो रही कोशिकाओं को बदल देंगी. वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि भविष्य में स्टेम सेल पर इतना अधिक कार्य बढ़ चुका होगा कि इससे प्रयोगशाला में कृत्रिम अंग, जैसे कि गुर्दे, हृदय, लीवर आदि तैयार करना संभव हो सकेगा. क़रीब दस साल पूर्व सबसे पहले डॉ. वेणु गोपाल ने एम्स में रोगी के बोनमैरो से स्टेम सेल लेकर लैब में कृत्रिम कोशिकाएं उगाकर दिल की क्षतिग्रस्त कोशिकाओं को बदला था. कोलकाता में एक युवक के क्षतिग्रस्त स्पाइनल कॉर्ड को ऐसी ही कोशिकाओं से ठीक किया गया. कुछ मामलों में क्षतिग्रस्त कॉर्निया भी ठीक किया गया है.
संरक्षण : गर्भनाल स्टेम सेल को संरक्षित करने के लिए उच्च तकनीक और उच्च लागत की ज़रूरत होती है. गर्भनाल से ब्लड निकालने के बाद ब्लड बैंक को भेजा जाता है, जहां उसे शुद्ध किया जाता है. फिर उसे माइनस 190 डिग्री से नीचे फ्रीज किया जाता है. इस तरीके से सेल 500 सालों तक सुरक्षित रखा जा सकता है. कोई भी दंपति अपने नवजात के गर्भनाल को स्टेम सेल बैंक में संरक्षित करा सकता है.
संभावित उपचार
मस्तिष्क क्षति : आघात अथवा मस्तिष्क में चोट के चलते कोशिका नष्ट हो जाती है, जिससे मस्तिष्क में स्थित न्यूरॉन्स (तंत्रिका) एवं ऑलिगोडेंड्रोसाइटस का नुक़सान हो जाता है. स्वस्थ वयस्क मस्तिष्क में न्यूरल स्टेम कोशिकाएं शामिल होती हैं, जो स्टेम कोशिकाओं की सामान्य संख्या को बनाए रखने या प्रजनक कोशिका बनने के लिए विभाजित होती हैं. स्वस्थ वयस्क प्राणी में जन्मदाता कोशिकाएं मस्तिष्क में ही स्थानांतरण करती हैं तथा न्यूरॉन्स की संख्या को सामान्य बनाए रखने का प्राथमिक कार्य करती हैं. यह दिलचस्प है कि गर्भावस्था और चोट लगने के बाद इस प्रणाली का नियंत्रण विकास में प्रयुक्त कारक करते हैं एवं वे मस्तिष्क के नए पदार्थ के निर्माण की गति को बढ़ा भी सकते हैं. हालांकि ऐसा प्रतीत होता है कि मस्तिष्क को चोट या आघात लगते ही विरोहक प्रक्रिया का आरंभ होता है, किंतु वयस्कों में पर्याप्त सुधार शायद ही दिखायी देता हो, जो कि मजबूती में कमी दर्शाता है. पर्किन्सन और अल्जाइमर जैसी बीमारियों में भी स्टेम कोशिका का उपयोग किया जा सकता है.
कैंसर : कुत्तों के मस्तिष्क में इंजेक्शन द्वारा न्यूरल स्टेम कोशिका को प्रवेशित कर हुए शोध द्वारा दिखाया गया है कि कैंसर की गिल्टी का उपचार बहुत सफल रहा है. परंपरागत तकनीकों के प्रयोग से मस्तिष्क के कैंसर का इलाज करना कठिन होता है, क्योंकि यह तेजी से फैलता है. हॉर्वर्ड मेडिकल स्कूल के शोधकर्ताओं ने मानव की न्यूरल स्टेम कोशिका को उन चूहों के मस्तिष्क में प्रत्यारोपित किया, जिनकी खोपड़ियों में पहले ही से कैंसर की गिल्टियां प्रवेशित की गई थीं. कुछ ही दिनों के भीतर कोशिकाएं कैंसर प्रभावित क्षेत्र में स्थानांतरित हुईं और सायटोसिन डायमिनेज का निर्माण किया. एक ऐसा एंजाइम, जो ग़ैर विषाक्त समर्थक दवा को कीमोथेराप्यूटिक कारक में परिवर्तित करता है. एक परिणाम के रूप में इंजेक्शन द्वारा दिया गया पदार्थ 81 प्रतिशत कैंसर की गिल्टियां कम करने में सफल रहा. स्टेम कोशिका गिल्टी में तब्दील नहीं हो पाई. स्टेम कोशिका द्वारा उपचार से कैंसर की चिकित्सा की संभावना प्रबल हो सकती है. वयस्क स्टेम कोशिका के प्रयोग से लिम्फोमा रोग के उपचार हेतु अनुसंधान जारी है और इसके लिए मानव परीक्षण भी किया जा चुका है.
रीढ़ की हड्डी में चोट : 25 नवंबर, 2003 को कोरियाई शोधकर्ताओं के एक दल ने सूचना दी कि एक महिला रोगी, जो कि रीढ़ की हड्डी में चोट से पीड़ित था, उसके शरीर में गर्भनाल रुधिर से बहुप्रभावी वयस्क स्टेम कोशिकाओं को प्रत्यारोपित किया गया, जिसके चलते निर्धारित विधि का पालन करके उक्त रोगी बिना किसी कठिनाई और बिना किसी सहायता के चलने लगी. उक्त महिला रोगी लगभग 19 सालों तक खड़े होने में असमर्थ थी. इस अभूतपूर्व परीक्षण हेतु शोधकर्ताओं ने गर्भनाल रुधिर से वयस्क स्टेम कोशिकाओं को पृथक कर उन्हें रीढ़ की हड्डी के क्षतिग्रस्त हिस्से में प्रवेशित किया था.
हृदय की क्षति : हृदय रोगों पर किए गए कई चिकित्सीय परीक्षणों से पता चला है कि पुराने एवं नए रोगों पर समान रूप से वयस्क स्टेम कोशिका द्वारा चिकित्सा सुरक्षित, प्रभावी एवं सक्षम है. नवीन रक्त वाहिकाओं का विकास उत्तेजित करके, विकास कारकों को स्रावित करके, अन्य किसी तंत्र के माध्यम से सहायता प्रदान करके हृदय की मांसपेशी कोशिका में वयस्क अस्थि मज्जा कोशिकाओं को बढ़ाया भी जा सकता है.
गंजापन : बालों की जड़ों में भी स्टेम कोशिकाएं होती हैं और कुछ शोधकर्ता अंदाज़ लगाते हैं कि बालों की जड़ों की स्टेम कोशिकाओं पर अनुसंधान करके उनकी जन्मदात्री कोशिकाओं को क्रियाशील कर गंजेपन के उपचार में सफलता अर्जित की जा सकती है. इस उपचार को खोपड़ी पर पहले से ही विद्यमान स्टेम कोशिकाओं को सक्रिय करके किया जा सकता है. इसके उपरांत की चिकित्सा में मात्र जड़ों की स्टेम कोशिकाओं को संकेत देकर निकट की जड़ों की कोशिका जो बढ़ती आयु के चलते सिकुड़ चुकी हो, को रासायनिक संकेतों से सक्रिय किया जा सकता है, जो कि एवज में संकेतों के फलस्वरूप पुनः निर्मित होकर बालों को दोबारा स्वस्थ बनाने में सहायक होगी.
दांत गिरना : 2004 में किंग्स कॉलेज लंदन ने चूहों में पूर्ण दांत उगाए जाने के तरीके की खोज की और वे प्रयोगशाला के भीतर ऐसा करने में सफल रहे. शोधकर्ताओं को विश्‍वास है कि इस तकनीक से मानव रोगियों में भी जीवंत दांत उगाए जा सकेंगे.
अंधापन और दृष्टिहीनता : 2003 के बाद से शोधकर्ताओं ने क्षतिग्रस्त आंखों में कॉर्निया की स्टेम कोशिकाओं का सफलतापूर्वक प्रत्यारोपण किया है. भ्रूण स्टेम कोशिकाओं का उपयोग कर वैज्ञानिकों ने प्रयोगशाला में समर्थ स्टेम कोशिका की एक पतली परत उगाने में कामयाबी अर्जित की. जब इन परतों को क्षतिग्रस्त कॉर्निया पर प्रत्यारोपित किया जाता है, तो स्टेम कोशिकाएं उत्तेजित एवं स्वयं दुरुस्त होकर अंतत: दृष्टि बहाल करने में सहायक साबित होती हैं. इस तरह की नवीनतम तकनीक से जून 2005 में क्वीन विक्टोरिया अस्पताल इंग्लैंड में शोधकर्ताओं ने चालीस रोगियों की दृष्टि बहाल की. डॉक्टर शेराज दाया के नेतृत्व में एक दल ने रोगी, रिश्तेदार और यहां तक कि एक शव से भी प्राप्त वयस्क स्टेम कोशिका का सफलतापूर्वक उपयोग करने में कामयाबी अर्जित की.

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