यह मेरे पिताजी के स्कूल लिविंग सर्टिफिकेट की कापी है ! मै कुछ और कागज ढूंढ रहा था तो उसमें पिताजी के स्कूल लिविंग सर्टिफिकेट की कापी मिली !
मतलब उनकी शताब्दी को शुरू होकर आज तेरह दिन हो रहे है ! अमूमन शताब्दी मनाने के लिए कोई महान व्यक्ति होना चाहिए ऐसी मान्यता है ! और मेरे जीवन के शुरूआती दिनों में मेरे लिए वही महान व्यक्ति थे तो उस हिसाब से मै उनके शताब्दी साल के उपलक्ष्य में उनके बारे मे कुछ संस्मरण लिखने की कोशिश कर रहा हूँ !

मालपुर-कासारे नाम के गाँव में जिला धुलिया महाराष्ट्र के उत्तरपस्चिमी दिशा का आखिरी जिला जिसके पस्चिमी दिशामे गुजरात का डांग जिला है और उत्तर की तरफ मध्य प्रदेश के निमाड सातपूडा यह सीमा है!और नर्मदा-तापी नदी भी अब सातपूडा के तरफ नंदुरबार नाम का नया आदीवासी बहुल जिला बनाया गया है अन्यथा पहले धुलिया एक ही जिला था ! हमारे भी गाँव में भिल्ल आदिवासी और महार,चमार और अन्य पिछड़े वर्ग के लोग है लेकिन ज्यादा संख्या मराठाओकी है! का एक किसान संयुक्त परिवार मे वह पैदा हुए थे ! शायद उस समय गाँव के सबसे ज्यादा गाय बैल हमारे ही थे जिनका सबसे प्रमुख उद्देश्य हमारे खेतों के लिए खाद और खेती करने के लिए बैल दुध दोयम दर्जे की बात थी ! क्योंकि मुझे जहाँ तक याद आ रहा तब एक समय 10-12 गाये जनती थी और उसमें से आधे से ज्यादा गाय अपने स्तनों को हाथ भी लगाने नहीं देती थी! दुध दोहना तो दूर की बात थी और अन्य गायों के बछडे एक तरफ दुध पीते थे और दूसरे तरफसे दुध दोहना होता था ! तो बारह महीने हमारे घर में दुध,दही,मख्खन और घी घर की आवश्यकता से भी ज्यादा होता था लेकिन तबतक बाजार नामके बिमारी से हमारे घर कोसो दूर था ! मुझे याद है कि कभीभी दुध,छांछ या घी को बेचने की बात मैंने नहीं देखा है !
जिस दिन छांछ बनाने का काम होता था तो छांछ लेनेके लिए बाकायदा कतार में खडे होकर गाँव की अन्य महिलाओं को विनामुल्य छांछ बाटा जाता था और कभी किसी के घर में दुध की आवश्यकता होती थी तो वह भी दुध ले विना मुल्य ले जाते थे !

 

इसी तरह साल भर के लिए पापड,बडी,सेवइयों के बनाने में लगभग पूरे मोहल्ले की औरतें आकर विनामुल्य एक दूसरे के हाथ बाटकर यह सब काम अहिराणी भाषा में गाने गाकर एक सास्कृतिक कार्यक्रमों की तरह निपटाने के लिए एक दूसरे की मदद करने चले आते थे !
हमारे क्षेत्र में अहिल्याबाई होलकर के समय से पाटस्थळ (कैनाल द्वारा सिंचाई) की व्यवस्था थी और वह पूरे गाँव द्वारा मिलजुलकर सम्हलने के लिए बिच-बिचमे गाद निकालने से लेकर पानी की बटवारे का व्यवस्थापन सुचारू रूप से चलाने की व्यवस्था थी ! लेकिन इतने सालों में बेतहाशा पानी इस्तेमाल करने के कारण हमारी जमीन मर गई है और सचमुच ही यह बात है कि अब उस सफेदी वाले जमीन पर घास भी नहीं उगता है ! भाक्रा-नानगल के जमीन जैसे!
सरकारी स्कूल शुरू नहीं हुए थे तो हमारे गाँव में मंदिर मे की मुर्तियोको हटाकर उन जगहों पर स्कूल चलते हुए मैंने खुद देखा है!और मेरे ही सामने जिला परिषद की व्यवस्था शुरू हुई तो उसके तरफसे बिल्डिंग का निर्माण स्कूलों के लिए भी देखा है !
काफी लोगों को मूर्तिया हटानेका मामले को लेकर आश्चर्य हुआ होगा तो उन्हें बता दूँ कि हमारे गाँव पर महात्मा ज्योतिबा फुले जी के सत्यशोधक समाज का प्रभाव होनेके कारण हमारे गाँव में मंदिर और ब्राह्मणों द्वारा किया जाने वाला कर्मकांड नहीं के बराबर था ! और तीन या चार ब्राह्मणों के घर थे तो वह भी खेती करने के काम में थे ! कुछ शिक्षक या पटवारी के नौकरी में भी थे !

 

मैंने पैदा हुआ तबसे (25दिसंबर 1953) मेरे गाँव में एक भी धार्मिक अनुष्ठान या पुजा-पाठ देखा नहीं है ! हाँ कासारे नाम के गाव में बिचमे एक नदी है नाम पांझरा के परली तरफ के गाँव में मंदिर और ब्राह्मणों द्वारा किया जाने वाला कर्मकांड जारी था ! लेकिन हमारे गाँव की शादीया तक ज्योतिबा फुले द्वारा रचित मंगलाष्टक गाकर और वह भी गैर ब्राह्मणों द्वारा ! शादिया संपन्न होती थी !
गाँव के पढे लिखे लोगों मे पिताजीका शुमार था ! उस समय के लिए वह सातवीं फाइनल पास याने आराम से शिक्षक की नौकरी कर सकते थे ! लेकिन हमारे खेती-बारी और गोपालन के कारण वह खेती करने के काम में लगे रहे ! वह चार भाई और दो बहनों के परिवार मे बडी बहन के बाद लडकोमे सबसे बडे होने के कारण भी उनको घर की जिम्मेदारी का वहन करना पडा है ! मैंने आँखे खोली तबसे देखा उनके शरीर पर खादी छोडकर कोई दूसरा वस्त्र नहीं देखा !
और हमारा गाँव सत्यशोधक समाज के प्रभाव का होने के कारण कांग्रेस विरोधी यानी हमारे अहिराणी भाषा में गाँव पार्टी और राव पार्टी तो गाँव पार्टी कांग्रेस और राव यानी जिन्हें अंग्रेजों द्वारा राव,सर के खिताब से नवाजा जाता था इसलिये उन्हें राव पार्टी कहाँ जाता था तो पिताजी गाँव पार्टी के कमिटेड सदस्य थे ! और संपूर्ण गाँव में एक मात्र वही थे जो चुनाव में कांग्रेस के लिए चुनाव प्रचार और बुथ एजंट बहुत ही लगन से बने रहे शायद 62-63 के चुनाव में मैभी उनके साथ प्रचार के लिए गया था तो पडोसी गाँव में एक चुनाव सभा पर पथराव हुआ था तो मेरे बाहीनी आखके भौवो के कोने में पत्थर लगकर मै खून से लथपथ हो गया था ! मेरी आँख कुछ सेंटीमीटर से बची अन्यथा मोशेदायान जैसे मेरे भी एक आख को ढकने की नौबत आई होती !
जहाँ तक याद आ रहा है कि यह विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जगह कम्युनिस्ट पार्टी के उम्मीदवार जितकर जाते रहे साक्री विधानसभा लेकिन लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार जितकर जाते रहे ! लेकिन आज लगभग परिवार वही है जिनके पूर्वज कम्युनिस्ट और कांग्रेस के थे उसी घर के आज के प्रतिनिधि भाजपा की तरफ से विधानसभा और लोकसभा चुनाव में बैठे है ! और उनमें से एक लोकसभा सदस्य मेरे रिस्तेदार और बचपन के मित्र डॉ सुभाष भामरे है और उसके पिताजी कम्युनिस्ट पार्टी के बाद में कांग्रेस और फिर अंत में कमुनिस्ट कामरेड गोविन्द पानसरे के उपस्थिति में घर वापसी की थी ! और जब बेटा संसद में गया तो बहुत अभिमान से कह रहे थे कि चलो आखिर में हमारे परिवार से कोई तो संसद में गया !

1936 साल के फैजपूर कांग्रेस के अधिवेशन जोकि कांग्रेस के लिए पहली बार गाँव में हुआ अधिवेशन है उस अधिवेशन में पिताजी पंद्रह साल के उम्र के एक स्वयंसेवक के रूप में भाग लिये थे और 1942 मे भारत छोड़ो आंदोलन के चिमठाना खजाने की घटना के उत्तमराव पाटील और कमलताई पाटील तथा उनके छोटे भाई शिवाजीराव पाटील प्रसिध्द फिल्म अभिनेत्री स्मिता के पिताजी तथा चाचा चाची के साथ एक सिपाही रहे हैं !
दो समय का खाना छोड़कर उनके और कोई शौक नहीं थे ! शायद उन्हें बचपन से ही इस तरह देखते हुए मैंने भी खद्दर से लेकर किसी भी तरह के व्यसन मे न फसने की वजह मेरे जीवन के शुरू आती दिनो के वही हीरो रहे हैं ! साने गुरूजी,गाँधी,विनोबाजी,जेपी,लोहिया सब सेवा दल मे आने के बाद !


सातवीं कक्षा के बाद मुझे गाँव में अगले पढाई के लिए स्कूल नहीं होने के कारण छोटी बुआजी जो हमारे ही तालुका के बगल वाले शिंदखेडा तालुका के गाँव मे 1965 -66 के समय मे जाना पडा!जाने के बाद सबसे पहले एक श्री बी बी पाटील नामके भूगोल के शिक्षक की वजह से संघ की शाखा में जाने लगा लेकिन कुछ ही समय में मेरे मुसलमान मित्रों को भी शाखामे शामिल करने के मेरे आग्रह के कारण मै संघ से निकाल दिया गया ! तो उसी गाँव में एक और शाखा चल रही थी जो की राष्ट्र सेवा दल की थी ! जिसमें हिंदू,मुस्लिम,दलित हो या आदिवासी और लडकियों को भी प्रवेश था ! तो मुझे जल्द ही सेवा दल की शाखा का शाखा नायक और उसी साल मध्यवर्ती के पुणे स्थित मुख्यालय के प्रांगण में सप्ताह से भी ज्यादा समय के दस्तानायक-शाखानायक शिबिर ने मेरे जीवन की आगे की दिशा निश्चित होने मे मदद हुई है ! उसी शिबीरसे सीधा मध्यप्रदेश के हरदा,पिपरिया,भोपाल और रीवा में राष्ट्र सेवा दल के शिबिर प्रशिक्षक की हैसियत से शायद पंद्रह साल के उम्रमें ! फिर क्या अमरावती के होमियोपैथिक मेडिकल कॉलेजकी चार साल बाद 1973 से राष्ट्र सेवा दल के पूर्ण समय कार्यकर्ता उम्र का बीस साल का था और वह निर्णय पिताजी को बहुत नागवर लगा उसपर उनके साथ काफी बहस होनी शुरू हो गयी थी आखिरी बात मैंने कहा कि आपनेमेरे पढाई के लिए काफी पैसा खर्च किया है तो मै अपने पुस्तैनी संपत्ति का अपना हिस्सा कभी भी नहीं लूंगा और मै उस बात पर आज भी अटल हूँ !
और पिताजी कांग्रेस के और राष्ट्र सेवा दल के कारण मै कांग्रेस विरोधी तो पिताजी के साथ इस बात पर काफी बहस होनी शुरू हो गया जिसे लगभग पूरे मोहल्ले या गाँव के लोग सुनते थे शायद मेरी याददाश्त ठीक है तो मेरे गाँव में एक मै ही था जो अखबार,पत्रिका तथा कुछ किताबें पढने वाला होने के कारण पिताजी के साथ बहस-मुबाहिसे मे मेरा ही पलडा भारी होता था ! फिर पिताजी के पास आखिरी तिर होता था तुम्हारे राष्ट्र सेवा दल के सभी नेता ब्राह्मण ही है तो मै जवाब देता था कि वह खुद गैर ब्राह्मणों को शामिल करने के लिए पूरी कोशिश कर रहे हैं और मेरे जैसे को जिस तरह से सभी नेता आप जैसे पिता जी के जैसे मेरे साथ स्नेह करते हैं !


फिर जेपी आंदोलन के समय भी वह जेपी सरकारी कर्मचारीयोको भड़काने का आरोप करते थे तो मैंने कहा गलत आदेश या अपने संविधान के खिलाफ या गैर कानूनी आदेश मत मानो कहते हैं ! लेकिन मुझे आज पीछे मुड़कर देखने से लगता है कि भले मेरे और पिताजी के राजनीतिक मतभेद थे लेकिन कभीभी उन्होंने मुझे डांट डपट या अपने पिताजी होने के नाते अपने आप को जब्त करके मेरे साथ एक मित्र जैसे ही व्यवहार किया है !
आज उनके जाने को बीस साल बाद लगता है कि वह सही मायनों में डेमोक्रेटिक टेंपरामेंट के थे और अच्छा हुआ वह अब नहीं है लेकिन अब हमारे गाँव में मंदिर और ब्राह्मणों द्वारा किया जाने वाला कर्मकांड बदस्तूर जारी है और सबसे बड़ी हैरानी की बात वह मतदाता संघ उनके जाने के बाद लगातार जनसंघ और उसके नये एडिशन बीजेपी के ही लोग चुनाव जीत रहे हैं ! हालाँकि यह वही परिवार के लोग है जो पहले कम्युनिस्ट पार्टी के उम्मीदवार जितकर जाते रहे फिर कांग्रेस और अब बीजेपी !
भारत की बीजेपी लगभग पुरानी कांग्रेस के और वर्तमान समय में बंगाल ,आसामका चित्र से साफ दिखाई देता है कि तृणमूल कांग्रेस के और कम्युनिस्ट पार्टी के लोग बिजेपिमे ! कितनी आसानी से लोग कपड़ों बदलने जैसे पार्टी बदलते रहते हैं !
जो की पिताजी ने शायद ग्राम पंचायत का भी चुनाव नहीं लढा और पार्टी से पैसे मिलते हैं यह बात भी शायद तब नहीं थी या होगी भी तो उन्होंने कभी नहीं लिया यहा तक कि स्वतंत्रता सेनानी की सहुलियत भी नहीं लिया है और शायद मेरे जेहन में उनके ही असर के कारण मैंने आपातकाल की बाद जेल में गये हुए लोगों को पेंशन की मैने 1977 से ही मुखालिफत की है ! मेरे पिताजी भी कोई बहुत बडे नेता नहीं थे और मै भी कोई बडी हस्तियों मे शुमार नहीं हूँ लेकिन एक सुकून मिलता है कि जैसे उन्होंने अपने जीवन में कभी कोई काम्प्रंमाइझ नहीं किया है वैसे ही मैंने भी नहीं कि यही मेरी पिताजी के शताब्दी वर्ष में मेरे तरफ से विनम्र अभिवादन !
डॉ सुरेश खैरनार 17,मार्च 2021,नागपुर

 

डॉ सुरेश खैरनार

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