दल-बदल मामले में बाबूलाल ने एक पत्र के ज़रिए किया खुलासा, 11 करोड़ में खरीदे गए थे झाविमो के छह विधायक

कांग्रेस ने इस मामले की सीबीआई जांच की मांग की है. झारखंड प्रदेश कांग्रेस कमिटि के अध्यक्ष डॉ. अजय कुमार ने विधायकों के दलबदल मामले को गंभीर भ्रष्टाचार और सौदेबाजी की परिपाटी बताते हुए मामले की सीबीआई जांच कराने की मांग की है. डॉ. कुमार ने कहा है कि सत्ताधारी दल की कथनी और करनी में तालमेल नजर नहीं आ रहा है.

vidhayakदल-बदल करने वाले विधायकों के खिलाफ झाविमो सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी ने विधानसभा अध्यक्ष के न्यायालय में याचिका दायर कर यह अनुरोध किया था कि सभी छह विधायकों की सदस्यता दल-बदल अधिनियम के तहत रद्द की जाय. यह मामला अध्यक्ष के न्यायालय में साढ़े तीन वर्षों से चल रहा है, लेकिन अभी तक कोई फैसला नहीं आ सका. शायद लंबे इंतजार से झारखंड विकास मोर्चा के सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी के सब्र का बांध टूटा और उन्होंने राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू को एक ऐसा पत्र सौंपा, जिससे झारखंड की राजनीति में भूचाल आ गया है. बाबूलाल मरांडी का दावा है कि इस पत्र में दल-बदल की सारी जानकारियां हैं.

इसपर तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष रवीन्द्र राय के हस्ताक्षर हैं. इस पत्र के आधार पर बाबुलाल मरांडी दावा कर रहे हैं कि रघुवर दास एवं उनकी पार्टी के नेताओं ने 11 करोड़ रुपए में छह विधायकों को खरीदा है. उनका कहना है कि किसे कितनी राशि मिली, इसका भी पत्र में उल्लेख है. बाबूलाल का दावा है कि भाजपा का दामन थामने के लिए हटिया के विधायक नवीन कुमार जयसवाल को 2 करोड़, सारठ के विधायक रणधीर कुमार सिंह को 2 करोड़, सिमरिया के विधायक गणेष गंझू को 2 करोड़, डाल्टेनगंज के विधायक आलोक चौरसिया को 2 करोड़, बरकट्‌ठा के विधायक जानकी यादव को 2 करोड़ एवं चंदन कियारी के विधायक अमर कुमार बाउरी को एक करोड़ रुपए दिए गए थे.

साथ ही तीन साल बाद इतनी ही और राशि दी जानी थी. बाबुलाल ने यह भी आरोप लगाया है कि इस खरीद-फरोख्त में मुख्यमंत्री रघुवर दास के साथ-साथ चतरा के सांसद सुनील कुमार, राज्यसभा सांसद महेश पोद्दार, मंत्री सी.पी. सिंह, विधायक बिरंची नारायण और अनंत ओझा शामिल थे. झाविमो की ओर से इस दल-बदल में रणधीर सिंह और अमर बाउरी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और इसीकारण इन्हें महत्वपूर्ण एवं मलाईदार विभागों की जिम्मेदारी सौंपी गई.

 

भाजपा में खलबली

इधर, पत्र के सार्वजनिक होते ही दल-बदल करने वाले विधायक बौखलाहट में आ गए और उन सभी ने पत्र को जाली एवं सत्य से परे बताते हुए बाबूलाल मरांडी को सार्वजनिक तौर पर माफी मांगने को कहा. उन्होंने यह भी कहा कि वे बाबूलाल पर मानहानि का दावा ठोकेंगे. भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष एवं कोरमा के सांसद रवीन्द्र राय, जिनके हस्ताक्षर का पत्र झाविमो ने राज्यपाल को सौंपा है, ने दावा किया कि यह पत्र फर्जी है और कम्प्यूटर से उनका जाली हस्ताक्षर बनाया गया है. रवीन्द्र राय ने इस पत्र की सत्यता प्रमाणित करने की चुनौती दी है. उन्होंने कहा है कि अगर यह साबित हो गया कि पत्र मैंने लिखा है, तो मैं राजनीतिक जीवन से सन्यास ले लूंगा और अगर पत्र फर्जी पाया गया, तो बाबूलाल माफी मांगते हुए राजनीतिक जीवन से अलविदा ले लें.

उन्होंने झारखंड विधानसभा के अध्यक्ष से भी अपील की है कि इस मामले की जांच के बाद जब तक रिपार्ट नहीं आ जाती है, तब तक सम्बन्धित छह विधायकों की सदस्यता पर निर्णय को सुरक्षित रखें. राय ने कहा कि बाबूलाल मरांडी ने जालसाजी कर वो पत्र बनाया है. अगर ऐसा नहीं है, तो वे बताएं कि पत्र कहां से, किससे और कब उन्हें मिला. इतने दिनों तक उन्होंने इसे क्यों छुपा कर रखा. उन्होंने आरोप लगाया कि बाबूलाल सस्ती लोकप्रियता और सहानुभूति प्राप्त करने के लिए बाबूलाल कुत्सित प्रयास कर रहे हैं. इस पर बाबूलाल मरांडी ने भी पलटवार करते हुए कहा कि भाजपा की केन्द्र एवं राज्य में सरकार है, वो इस पूरे पत्र की जांच करा लें, इस पूरे मामले की सीबीआई से जांच करा ले, साथ ही उन्होंने हैंडराइटिंग एक्सपर्ट से हैंडराइटिंग की भी जांच कराने की बात कही है.

विरोधियों का हमला

कांग्रेस ने इस मामले की सीबीआई जांच की मांग की है. झारखंड प्रदेश कांग्रेस कमिटि के अध्यक्ष डॉ. अजय कुमार ने विधायकों के दलबदल मामले को गंभीर भ्रष्टाचार और सौदेबाजी की परिपाटी बताते हुए मामले की सीबीआई जांच कराने की मांग की है. डॉ. कुमार ने कहा है कि सत्ताधारी दल की कथनी और करनी में तालमेल नजर नहीं आ रहा है. एक तरफ भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस का दावा करते हैं, वहीं दूसरी ओर ऐसे मामले सामने आ रहे हैं, जिसकी जांच से सरकार पल्ला झाड़ रही है. इसके पहले, राज्यसभा चुनाव प्रकरण में चुनाव आयोग ने एक वरीय पुलिस अधिकारी और सीएम के सलाहकार पर प्राथमिकी दर्ज करने की बात कही, लेकिन इस मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया. जिन विधायकों पर संविधान की 10वीं अनुसूची के तहत विधानसभा की अदालत में मामला चल रहा हो, वैसे विधायक को भाजपा लाभ के पदों पर नियुक्त कर रही है. यह सौदेबाजी की गवाही दे रहा है.

भू-राजस्व मंत्री अमर बाउरी ने कहा है कि बाबूलाल ने यह आरोप लगातार चरित्र हनन का कार्य किया है. झूठे आधार एवं बिना तथ्य की बातें कर रहे हैं. उन्होंने पुराने लेटरहेड का मिसयूज किया गया है. हटिया विधायक नवीन जयसवाल ने तो बाबूलाल मरांडी पर जालसाजी के तहत रांची के डोरंडा थाने में प्राथमिकी दर्ज करा दी है, जबकि अन्य भाजपाई कोर्ट जाने की तैयारी में लगे हुए हैं. हालांकि सबसे आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि अपने विधायकों की बौखलाहट और विरोधियों के प्रहार के बाद भी वो मुख्यमंत्री चुप्पी साधे हुए हैं, जो अपने बड़बोलेपन और तुरंत प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए जाने जाते हैं.

वे इस मामले में कुछ भी बोलने से परहेज कर रहे हैं. हमेशा भ्रष्टाचार के विरुद्ध जीरो टॉलरेंस की बातें करने वाले मुख्यमंत्री की चुप्पी से यह लग रहा है कि दाल में जरूर कुछ काला है. इनकी चुप्पी से पार्टी के आला नेता भी संदेह के घेरे में हैं. इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि आग लगी होगी, तभी धुआं उठा है. हालांकि इन सबके बीच एक पखवाड़े के बाद भी भाजपा नेताओं ने न तो जांच की सिफारिश की है और न ही न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है. वे केवल झाविमो सुप्रीमो को मानहानि के मुकदमे का डर दिखा रहे हैं. इधर झाविमो नेताओं का कहना है कि भाजपा नेताओं की गीदड़ भभकी से वे डरने वाले नहीं हैं.

पत्र पर सवाल

वैस तोे इस लेटर बम ने राजनीतिक हंगामे को जन्म दे दिया है, लेकिन इस पत्र के सामने आने के समय और परिस्थितियों को लेकर सवाल भी उठने लगे हैं. पहला सवाल यह है कि जब लगभग दस महीने पहले ही यह पत्र अधिकारियों से लेकर चुनाव आयोग तक पहुंच चुका था, फिर अब इसे हथियार बनाने का मकसद क्या है? दूसरा अहम सवाल यह है कि विपक्ष में दिनों-दिन दरकिनार किए जा रहे बाबूलाल ने पार्टी को मजबूत दिखाने के लिए यह हमला तो नहीं बोला है, आखिर बाबूलाल ने इतने दिनों तक चुप्पी क्यों साध रखी थी? वैसे भाजपा नेताओं की बौखलाहट से यह आशंका भी है कि पत्र की सत्यता कहीं साबित न हो जाए. वैसे आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है, अब देखना है कि भाजपा सरकार इस मामले की जांच कराती है या भयभीत हो पीछे हट जाती है. वैसे इस पत्र का मामला जो भी हो, पर यह तय है कि दल-बदल करने वाले सभी छह विधायकों की सदस्यता रद्द होनी तय है.

दल-बदल के मामले में काला है झारखंड का इतिहास

झारखंड विधानसभा देश की संभवत: पहली विधानसभा है, जिसने 18 साल में ही दल-बदल के मामले में इतिहास रच दिया है. लेकिन यह इतिहास सकारात्मक नहीं है. झारखंड विधानसभा में 18 साल के दौरान दल-बदल के 28 मामले स्पीकर के न्यायाधिकरण में पहुंच चुके हैं. बिहार से अलग होने के बाद झारखंड में अब तक चार विधानसभा का गठन हो चुका है. चौथी विधानसभा का कार्यकाल अभी डेढ़ साल शेष है. लेकिन दल-बदल के मामले चौथी विधानसभा का भी पीछा नहीं छोड़ रहे हैं. छह विधायकों के खिलाफ विधानसभा अध्यक्ष के न्यायाधिकरण में सुनवाई जारी है.

पहली विधानसभा में दल-बदल के मामले में चार विधायकों की सदस्यता गई. 20 दिसम्बर 2014 को जदयू के चार विधायकों ने एक सार्वजनिक सभा में जदयू छोड़कर राजद की सदस्यता ग्रहण कर ली थी. तत्कालीन स्पीकर मृगेन्द्र प्रताप सिंह ने इस मामले में स्वत: संज्ञान लिया. 3 जनवरी 2015 को चार में से तीन सदस्यों लालचंद महतो, रामचंद्र केसरी और मधु सिंह की सदस्यता खारिज करने का आदेश जारी कर दिया गया. चौथे विधायक बच्चा सिंह ने फैसला आने के पहले 31 दिसम्बर, 2014 को इस्तीफा दे दिया. इसके बाद, दूसरी विधानसभा में 12 विधायकों के दल-बदल का मामला सामने आाया, जिसमें से सात को सदस्यता से हाथ धोना पड़ा था. इनमें से तीन के खिलाफ दायर याचिका खारिज कर दी गई थी. तीन विधायकों ने सुनवाई के दौरान ही इस्तीफा दे दिया.

उस समय एनोस एक्का, कमलेश कुमार सिंह, भानु प्रताप शाही, रवीन्द्र कुमार राय, कुंती देवी, मनोहर टेकरीवाल और थोमस हांसदा की सदस्यता खत्म हुई थी, वहीं स्टीफन मरांडी, प्रदीप यादव व विष्णु प्रसाद भैया ने त्याग पत्र दिया था. तीसरी विधानसभा में भी ऐसा ही एक मामला सामने आाया और इसमें फैसले के पहले ही छह विधायकों को इस्तीफा देना पड़ा. उस समय छह विधायकों के खिलाफ दल-बदल मामले में याचिका दायर की गई थी. 18 जुलाई 2013 को झाविमो के निजामुद्दीन अंसारी के खिलाफ झाविमो विधायक फुलचंद मंडल ने याचिका दायर की थी. इस मामले में सुनवाई चल ही रही थी कि उन्होंने 10 नवम्बर 2014 को इस्तीफा दे दिया.

इनके अलावा, झाविमो के समरेश सिंह, निर्भय कुमार शाहाबादी, जयप्रकाश सिंह भोक्ता और फुलचंद मंडल के खिलाफ दो अगस्त 2014 को बाबूलाल मरांडी और प्रदीप यादव ने याचिका दायर की थी. सुनवाई से पहले ही चारों विधायकों ने अपना इस्तीफा स्पीकार को सौंप दिया. विधायक साइमन मरांडी के खिलाफ नलिन सोरेन ने 14 अगस्त, 2014 को सदस्यता खारिज करने की याचिका दायर की और उन्होंने भी सुनवाई के दौरान इस्तीफा दे दिया.

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