humanमानव कल्याण विकासवादी संस्थान! आजकल बुंदेलखंड में यह नाम सुर्खियों में है. यह कथित समाजसेवी संस्था बुंदेलखंड में नौकरियां बांट रही है. नौकरियां भी ऐसी जिसमें काम करने का झंझट नहीं और वेतन मनमाफिक. इस संस्था में नौकरी पाने के लिए शैक्षिक योग्यता की भी कोई अनिवार्यता नहीं. अनपढ़ से लेकर स्नातक तक कोई भी आवेदन कर सकता है और इच्छानुसार तय वेतन के अनुरूप एक माह का वेतन जमानत राशि के तौर पर जमाकर संस्था को ज्वाइन कर सकता है. प्रशासन से लेकर पत्रकार तक सब मौन हैं और इस संस्था के कर्ता-धर्ता खुलेआम अपनी ठगी का खेल खेल रहे हैं.

बात जब ठगी की हो तो अनायास ही नटवरलाल का नाम दिमाग में घूम जाता है. हालांकि अब यह किरदार बीते जमाने की बात हो चुका है, लेकिन उसका अनुसरण करने वालों की आज समाज में कोई कमी नहीं है. तरह तरह की योजनाएं और हथकंडे अपनाकर लालची नटवरलाल लोगों को चूना लगा रहे हैं. बीते तीन दशक में बुंदेलखंड ऐसे लोगों के लिए एक बेहतर चारागाह साबित हुआ है. अब तक आधा दर्जन कम्पनियां यहां आईं और गरीब जनता के अरबों रुपए हड़प कर चंपत हो गईं. आशमा फाइनेन्स, जेवीजी, वसुंधरा कुटुम्बकम, परिवार डेयरी, पल्स इंडिया और मैक्सकॉम वे प्रमुख नाम हैं जिन्होंने कागज थमाकर बुंदेलों के करोड़ों रुपए डकार लिए. इन कम्पनियों में जमा धन हासिल करने के लिए कुछ ने न्यायालय की शरण ली तो कुछ ने आत्महत्या कर दुनिया से विदा ले ली, कुछ लोग नियति मानकर तसल्ली से बैठ गए. ऐसी कम्पनियों के आगमन से लेकर रफुचक्कर होने तक प्रशासन धृतराष्ट्र बना रहा और जब खेल पूरा हो गया तो लकीर पीटकर अपनी पीठ ठोक ली.

इन कम्पनियों के शिकार सैकड़ों लोग आज भी उम्मीद लगाए बैठे हैं कि देर सवेर शायद उनको उनका पैसा मिलेगा. पर कब और कैैसे मिलेगा और कौन दिलाएगा इसका कोई जबाब उनके पास नहीं है. वर्ष 2015 में अचानक बंद हुई पल्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड नामक कम्पनी अकेले बुंदेलखंड से लगभग दो हजार करोड़ रुपए लेकर भाग गई. तीन साल बीत चुके हैं और जमाकर्ताओं के पास कागज के चंद टुकड़ों के सिवा कुछ भी नहीं है. गौरतलब है कि लोग अभी इस दुस्वप्न को भूले भी नहीं थे कि बुंदेलखंड में एक कथित समाजसेवी संस्था ने नौकरियां बांटने और उसकी आड़ में धन उगाही का प्रपंच रच कर सबको हैरान कर दिया. इस संस्था की कार्यशैली फरार कम्पनियों से बेहद भिन्न है. पर शायद मकसद इसका भी वही है जो उनका था.

झांसी, ललितपुर, जालौन, महोबा, हमीरपुर, बांदा और चित्रकूट में तेजी से पैर पसार रही इस संस्था को लेकर हर कोई चर्चा कर रहा है. जिस रफ्तार से यह नौकरियां बांट रही है, वह काबिलेगौर है. संस्था का कथित चेयरमेन चंद्रशेखर महोबा जनपद के ग्राम किलहुआ का मूल निवासी है. इसके कथानुसार वह बुंदेलखंड के बेरोजगारों को नौकरी देकर एक बड़ा काम कर रहा है. दर्जन भर प्राईवेट सुरक्षा कर्मियों के घेरे में रहने वाला यह शख्स कई महंगी और लग्जरी कारों का काफिला लेकर चलता है. चर्चा है कि कल तक दिल्ली में एक मामूली से भूमि दलाल के रूप में कार्य करने वाला यह कथित समाजसेवी आज रेवड़ियों की तरह नौकरियां बांट रहा है और सिर्फ बांट ही नहीं रहा, बल्कि आवेदकों की मर्जी के अनुसार वेतन भी दे रहा है.

उम्मीद पर हावी आशंका

यह संस्था बुंदेलखंड में 10 लाख लोगों को नौकरी दिए जाने के दावे कर रही है. बताते हैं कि अकेले महोबा और झांसी जनपद में अब तक दस हजार से अधिक लोगों को यह संस्था नौकरी दे भी चुकी है. दस हजार से दो लाख तक के वेतन पर कर्मचारी रखे गए हैं. हैरत की बात तो यह है कि नियुक्ति पत्र पा चुके कर्मचारियों से काम कुछ भी नहीं कराया जाता. हाजिरी रजिस्टर में हस्ताक्षर के सिवाय अब तक इन कर्मियों ने ढेलेभर का काम नहीं किया. नौकरी हासिल करने के लिए यदि हम शैक्षिक योग्यता की बात करें तो उसकी भी कोई विशेष बाध्यता नहीं है. अनपढ़ से स्नातक तक कोई भी इस संस्था को ज्वाइन कर सकता है. अलबत्ता उसके पास संस्था में जमा करने हेतु इतना धन होना चाहिए जितनी सैलरी वह लेना चाहता है. क्योंकि जितनी सैलरी वह पाना चाहता है, उसे पहले महीने के एडवांस के रूप में जमा करना होता है. उसके बाद उसे उसकी वांछित सैलरी नियमित तरीके से मिलती रहती है.

निर्धारित वेतन के एक माह की रकम संस्था में एडवांस जमा किया जाना अहम शर्त है. जिसने यह शर्त मानी, उसे नौकरी मिल गई. छह महीने पहले ही बुंदेलखंड में प्रवेश करने वाली इस संस्था ने बेहद अल्प समय में अपनी जड़ें गहरी कर ली है. वैसे तो इसकी शाखाएं बुंदेलखंड के सभी जिलों में खुल चुकी हैं, पर झांसी और महोबा इनके मुख्य केंद्र बने हुए हैं. प्रशासन इस कंपनी की गतिविधियों को बखूबी जानता है, पर मुंह पर प्रभाव का ताला जड़ा हुआ है. प्रशासन धृतराष्ट्र क्यों बना है, यह सब कोई समझता है, लेकिन बोलता नहीं. जानकार बताते हैं कि जिलाधिकारी महोबा से कई नागरिकों ने लिखित और मौखिक मांग रखी कि इस संस्था की जांच कराई जाए पर अब तक कोई संज्ञान नहीं लिया गया.

लोगों की मानें तो बीते दिनों महोबा पुलिस और झांसी की कोतवाली नबाबाबाद पुलिस ने संस्था के कुछ लोगों को उठाया भी, लेकिन रस्म अदायगी कर छोड़ दिया. पूछने पर कोतवाली पुलिस का जबाब था कि संस्था नौकरियां बांट रही है और रोजगार देना कोई अपराध नहीं. हालांकि पुलिस के इस बयान के पीछे का दबाब उनकी बातों से साफ समझ में आ रहा रहा था. संस्था के ऊंचे प्रभाव का ही नतीजा है कि जिला सूचना कार्यालय महोबा ने संस्था के क्रिया कलापों पर सवालिया निशान लगाने की जगह उल्टे एक विज्ञप्ति जारी कर इस संस्था के कार्यों का गुणगान कर डाला. जिस प्रशासन को इसकी गहनतापूर्वक जांच और कार्रवाई करनी चाहिए, वही आज इस संस्था का मददगार बना हुआ है.

इस संस्था द्वारा नौकरियां बांटने पर किसी को आपत्ति नहीं, पर संदेह की बात यह है कि संस्था के पास इतना बेपनाह पैसा कहां से आ रहा है? और जिन लोगों को नौकरियां दी जा रही हैं उनसे काम क्या लिया जा रहा है? शासन प्रशासन को इन दो सवालों पर गहराई से छानबीन करनी चाहिए. नौकरियां रेबड़ी की तरह बांटे जाने को लेकर पूरे बुंदेलखंड में आम चर्चा है कि यह पैसा किसी नेता का कालधन है या इसके जरिए किसी गहरी आतंकवादी साजिश को जड़ जमाने का मौका दिया जा रहा है.

संस्था की कार्यशैली संदिग्ध

मानव कल्याण विकासवादी संस्थान की कार्यशैली कई मामलों में संदिग्ध है. बताते हैं कि इस संस्था में आम युवाओं को निर्धारित वेतन के एक माह की रकम जमानत के रूप में जमा कराई जाती है, जबकि शहर के रसूखदारों और प्रभावशाली लोगों को बिना कोई सिक्योरटी लिए रख लिया जाता है, ताकि वह बतौर संरक्षक संस्था के कृत्यों पर पर्दा डालने में सक्षम रहें. संस्था में भर्ती किए गए कर्मचारियों को सिविल कमांडो कहा जाता है. आम लोगों को रखने के लिए चपरासी, गार्ड, रिसेप्शनिस्ट, कम्प्यूटर ऑपरेटर, क्लर्क व मैनेजर जैसे पद तो सृजित किए गए हैं, साथ में हर एक ब्रांच में दो पत्रकारों व अधिवक्ताओं को भी मोटे वेतन पर नियुक्त किया जाना संस्था की कार्यशैली को शक के दायरे में खड़ा करता है.

इतना ही नहीं, इस संस्था में महिलाओं और लड़कियों को प्राथमिकता के आधार पर रखा जाना भी संदेहास्पद है. हाल ही में इस संस्था की एक प्रमुख पदाधिकारी द्वारा गरीबों को ईद पर कपड़े बांटे जाने का आयोजन किए जाने और खूब फोटोग्राफी कराए जाने की भी काफी चर्चा रही. महोबा जिला महिला चिकित्सालय की एक संविदा स्टाफ नर्स संस्था में चंद्रशेखर के बाद दूसरे नम्बर पर है. बताते हैं कि इसने महोबा में संस्था को आगे ले जाने की कमान संभाल रखी है. इसके द्वारा तमाम आशा-कर्मियों को भी इस संस्था से जोड़ा गया है, जो स्वास्थ्य विभाग के कार्यों को छोड़कर सारा दिन संस्था की बेगारी में लगी रहती हैं.

एडीएम कहते हैं प्रशासन को पता ही नहीं

संस्थान की कार्यशैली से किसी बड़ी साजिश की बू आ रही है. जिस प्रकार यह संस्था बिना काम किए कर्मचारियों के वेतन के नाम पर प्रतिमाह करोड़ों रुपए लुटा रही है, उससे कंपनी और उसके कर्ताधर्ता शक के दायरे में हैं. इस संस्था के सत्यापन को लेकर किए गए सवाल पर महोबा के अपर जिला अधिकारी महेन्द्र प्रताप सिंह ऐसी किसी भी संस्था के संचालन से अनभिज्ञता जताते हुए कहते हैं कि जिलाधिकारी अवकाश पर हैं और उनके आने पर वही जानकारी देंगे.

जबकि जिला प्रशासन को इस संस्था की संदिग्ध गतिविधियों की दर्जन भर शिकायतें प्राप्त हो चुकी हैं. बीते माह जिलाधिकारी के आदेश पर कोतवाली पुलिस ने महोबा शाखा से संस्था के तीन कर्मचारियों को पूछताछ के लिए उठाया भी था पर कोई फोन आने के बाद तत्काल उन्हें छोड़ दिया गया था. यह कैसे संम्भव है कि जिस संस्था की चर्चा समूचे बुंदेलखंड में हो उसकी भनक अपर जिलाधिकारी को न हो! सत्य वह नहीं जो महोबा के एडीएम कह रहे हैं, बल्कि हकीकत यह है कि जानकारी होने के बाद भी प्रशासनिक अफसर बोलने से कन्नी काट रहे हैं. ऐसा क्यों किया जा रहा है, इस सवाल का जबाब फिलहाल किसी के पास नहीं है.

रफुचक्कर होने की ़िफराक़ में लग गई संस्था

मानव विकासवादी सेवा संस्थान में नौकरी के लिए लगी लाइन दिन प्रतिदिन लम्बी होती जा रही है. हालांकि जो लोग प्रारम्भ में नौकरी पा चुके हैं, वे मौज कर रहे हैं और जो प्रयासरत हैं उनपर अब नए नियम का बोझ डाला जा रहा है. संस्था में ज्वाइन करने के लिए अब नियम बदल दिए गए हैं. अब सीधे ज्वाइनिंग न कर पहले अभ्यर्थी को जमानत धनराशि जमा करने के उपरांत 54 दिन का प्रशिक्षण करना होगा. प्रशिक्षण उपरांत कैंडिडेट को प्रथम माह मात्र 15 दिनों का वेतन दिया जाएगा. उसके अगले माह भी नियुक्त कर्मचारी को पूरा वेतन तभी मिल सकेगा, जब वह अपने नीचे तीन लोगों को ज्वाइन करा देगा. संस्था के इस नए नियम को लेकर जानकारों का कहना है कि अब तक पानी की तरह पैसा बांटकर लोगों को लुभाने की प्रक्रिया खत्म हो चुकी है. अब संस्था ऐसा कर धन बटौर रही है और पर्याप्त धन एकत्रित हो जाने पर यह भी वैसे ही रफुचक्कर हो जाएगी जैसे पहले की कम्पनियां हो चुकी हैं.

संस्थान का हैरान करने वाला दावा

मानव कल्याण विकासवादी संस्थान ने चार साल पहले ही ऐसा सार्वजनिक दावा किया था कि लोग हैरत में आ गए थे. संस्थान ने बाकायदा विज्ञापन भी जारी किया था और सार्वजनिक आयोजन करके भी अपना ढिंढ़ोरा पीटा था. तब यह दावा किया गया था कि महज छह वर्षों में संस्थान छह हजार अरब रुपए के साथ बुंदेलखंड की गरीबी और बेरोजगारी मिटा देगा. संस्थान ने बेरोजगारी दूर करके पूरे बुंदेलखंड क्षेत्र की सामाजिक असमानता को मिटाने का दावा किया था. संस्थान ने झांसी के राजकीय संग्रहालय के साथ-साथ कई अन्य सार्वजनिक स्थलों पर सभाएं आयोजित कर आम नागरिकों के समक्ष दावा पेश करने और जनता को प्रलोभित करने का काम किया था.

हुआ हंगामा तो टूटी पुलिस की तंद्रा

नौकरी का झांसा देकर लोगों को अपनी जाल में फंसाने वाली संस्था पर आखिरकार गाज गिरी. महीने भर से इस संस्था की कारगुजारियों पर चुप्प साधे बैठी पुलिस की तंद्रा टूटी और संस्था पर कार्रवाई शुरू की गई. 13 जुलाई को जिला प्रसाशन ने पुलिस टीम के साथ संस्था के दफ्तर पर छापा मारा. यह छापेमारी करीब 5 घंटे चली. पुलिस टीम द्वारा की गई जांच पड़ताल के बाद संस्था से जुड़े 5 लोगों को हिरासत में लिया गया. पुलिस उन लोगों से पूछताछ कर रही है. पुलिस द्वारा इस संस्था और उनके बैंक अकाउंट को भी सीज़ कर दिया गया है.

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