नई दिल्ली : आपने हाल ही में आई फिल्म बाजीराव तो देखी होगी जिसमें एक्टर रणवीर सिंह बाजीराव का किरदार निभाते हुए नज़र आए थे. इस फिल्म में आपने शनिवारवाड़ा महल का नाम तो सुना ही होगा. आज भी शनिवारवाड़ा पुणे में आज भी मौजूद है लेकिन इस महल के बारे में लोगों का मानना है कि यह भूतिया है और इसमें आत्माएं भटकती रहती हैं.
लोग कहते हैं कि इस महल से अब भी अमावस की रात एक दर्द भरी आवाज आती है जो बचाओ-बचाओ पुकारती है। यह आवाज उस शख्स की है जिसकी हत्या इस महल में की गई थी। हत्या के बाद उसके शव को नदी में बहा दिया गया था। बाजीराव के मरने के बाद इस महल में राजनीतिक उथल-पुथल का दौर शुरु हो गया था। इसी राजनीतिक दांव-पेंच और सत्ता की लालच में 18 साल की उम्र में नारायण राव की हत्या इस महल में कर दी गई थी।
कहते हैं आज भी नारायण राव अपने चाचा राघोबा को पुकारते हैं ‘काका माला बचावा’। नारायण राव की हत्या क्यों और किस कारण से हुई उसकी एक बड़ी दर्दनाक कहानी है। नारायण राव नानासाहेब पेशवा के सबसे छोटे बेटे थे। अपने दोनों भाईयों की मृत्यु के बाद नारायण राव को पेशवा बनाया गया। नारायण राव को पेशवा तो बना दिया गया लेकिन उम्र कम होने की वजह से रघुनाथराव यानी राघोबा को उनका संरक्षक बनाया गया और शासन संचालन का अधिकार भी राघोबा के हाथों में ही रहा। लेकिन राघोबा और उनकी पत्नी आनंदीबाई खुश नहीं थी वह सत्ता पर पूरा अधिकार चाहते थे।
राघोबा की इस हसरत की भनक नारायण राव को लग गई और दोनों पक्ष के बीच दूरियां बढ़ने लगी। इसी बीच राघोबा ने सुमेर सिंह गर्दी जो भीलों का सरदार था उसे पत्र लिखकर रघुनाथ राव को गिरफ्तार करने का आदेश दिया। लेकिन इस पत्र को आनंदीबाई ने बदलकर नारायण राव को मारने के हुक्म में बदल दिया। सुमेर सिंह और नारायण राव के संबंध अच्छे नहीं थे इसलिए सुमेर सिंह गर्दी ने नारायण राव पर हमला कर दिया और इससे घबराकर नारायण राव ‘काका माला वाचावा’ पुकारता हुआ महल में भागा लेकिन सुमेर सिंह ने अपनी तलवार से नारायण राव का अंत कर दिया।