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नई दिल्ली: तीन तलाक के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया है जिसे लेकर देश की जनता में ख़ुशी का माहौल है और खासकर वो महिला इस फैसले से सबसे ज्यादा खुश है जिसने तीन तलाक जैसी कुप्रथा को समाप्त करने का साहस जुटाया और आखिरकार फैसला भी उसी के हक़ में हुआ है. जी हाँ हम बात कर रहे हैं शायर बानों की जिन्होंने तीन तलाक के खिलाफ कोर्ट में लड़ाई लड़ी.

आज के दिन शायर बानों के लिए किसी त्यौहार से कम नहीं है. शायरा वो महिला हैं, जिन्होंने इस मुद्दे पर बड़ी कानूनी लड़ाई लड़ी और आखिरकार जीत हासिल की। वह इस मामले में मुख्य याचिकाकर्ता हैं। उत्तराखंड के काशीपुर की रहने वाली शायर बानों की शादी 2001 में हुई थी और 10 अक्टूबर 2015 को उनके पति ने उन्हें तलाक दे दिया था। शायरा ने कोर्ट में दाखिल की गयी अपनी अर्जी में कहा था कि तीन तलाक संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 के तहत मिले मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।

काशीपुर में किसी तरह से अपना गुज़ारा करने वाली शायरा बानो ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करते हुए तीन बार तलाक के नियम में बदलाव की मांग उठाई है. उनकी याचिका को कोर्ट ने स्वीकार करते हुए इस बारे में धर्मगुरुओं से रायशुमारी कर महिलाओं के बारे में विचार करने की बात कही है. प्रदेश18 के एक सवाल के जवाब में शायरा का दर्द छलक गया.

उन्होंने अपने शौहर पर आरोप लगाते हुए कहा कि उसके पहले तो उससे दो बच्चे हैं. इसके बाद करीब सात बार उसका गर्भपात उसकी मर्जी के खिलाफ कराया गया. बावजूद इसके शायरा का शौहर उससे लगातार दहेज की मांग करते हुए उससे आए दिन मारपीट कर करता रहा. इसके अलावा उन्होंने कहा कि ट्रिपल तलाक खत्म होनी चाहिए. ताकि मेरी तरह आने वाली पीढ़ी को इसका खामियाजा न भुगतना पड़े.

आपको बता दें कि शायरा के शौहर ने उसे बीते दिनों कोर्ट के माध्यम से मायके में तलाकनामा भेज दिया. तलाकनामा देख शायरा ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की. लेकिन यहां उसकी याचिका खारिज हो गई. उन्होंने हिम्मत नहीं हारते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. जहां उसकी याचिका मंजूर हो गई. पीड़ित शायरा के अनुसार मुस्लिम देशों में भले ही तलाक का कानून बदल गया हो. लेकिन भारतीय मुस्लिम कानून के अनुसार आज भी महिलाएं पुराने मजहबी जंजीरों में जकड़ी हुईं हैं. शायरा की इस याचिका के बाद मुस्लिम धर्मगुरु कोई सटीक जवाब नहीं दे पा रहे हैं. जबकि इस याचिका के बाद एक बड़े बदलाव की उम्मीद मुस्लिम समुदाय की महिलाएं कर रही हैं.

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