yechuriउत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में जनता दल (यू) और वामपंथी दल मिलकर समाजवादी पार्टी को घेरने की तैयारी कर रहे हैं. उत्तर प्रदेश में कुछ अलग ही शक्ल में महा-गठबंधन बनाने की कवायद चल रही है. जद (यू) अध्यक्ष शरद यादव एवं माकपा महासचिव सीताराम येचुरी अलग-अलग कार्यक्रमों के बहाने पिछले दिनों लखनऊ में थे और दोनों नेता राज्य विधानसभा चुनाव में अख्तियार की जाने वाली रणनीति की ओर इशारा कर गए. कुछ बातें तो सा़फ-सा़फ हुईं, उनमें इन नेताओं ने इशारे का सहारा नहीं लिया. मसलन, जद (यू) अध्यक्ष शरद यादव ने सा़फ-सा़फ कहा कि उत्तर प्रदेश में महा-गठबंधन कायम करने की कोशिश में समाजवादी पार्टी को बिल्कुल साथ नहीं रखा जाएगा. दूसरी तऱफ माकपा नेता सीताराम येचुरी कह गए कि कांग्रेस के साथ वामपंथियों के गठबंधन में जाने का सवाल ही पैदा नहीं होता. यानी येचुरी यह भी संकेत दे गए कि पश्चिम बंगाल में होने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और वाममोर्चे के बीच गठबंधन के जो कयास लगाए जा रहे हैं, वे बेबुनियाद हैं.

कुछ और आयामों से देखें, तो नए किस्म का राजनीतिक नजारा दिखता है. कांग्रेस नेता एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा समाजवादी पार्टी के प्रति काफी नरमी दिखा रहे हैं, तो सपा से निष्कासित अमर सिंह पार्टी कार्यक्रमों एवं गतिविधियों में खूब सक्रिय दिखाई दे रहे हैं. उधर, बसपा और कांग्रेस में तालमेल की संभावनाएं तलाशी जा रही हैं, लेकिन मायावती का अड़ियल रवैया और बिहार चुनाव परिणाम से कांग्रेस में आई इतराहट, दोनों ही इस प्रेम संबंध में अड़चन बन रहे हैं. जद (यू) भी बसपा को महा-गठबंधन में शामिल करने को लेकर गंभीर है. ओवैसी फैक्टर भी सामने है, जिसे लेकर जद (यू) और वामदल, दोनों ही ऊहापोह में हैं. मुस्लिम वोटों का प्रलोभन उत्तर प्रदेश के महा-गठबंधन के प्रयोग में ओवैसी को साथ ले सकता है.

जद (यू) राष्ट्रीय लोकदल को भी अपने साथ शामिल करने के मूड और तैयारी में है. तीन विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव में जद (यू) द्वारा रालोद को दिया गया समर्थन इसी इरादे को लेकर है. वैसे भी, अभी कुछ दिनों पहले भाजपा के खिला़फ एक बड़ा गठबंधन बनाने की विस्तृत रूपरेखा पर रालोद अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह एवं जद (यू) अध्यक्ष शरद यादव के बीच विस्तार से बातचीत हुई थी. लब्बोलुबाव यह है कि उत्तर प्रदेश का इस बार का विधानसभा चुनाव बड़ा ही रोचक-रोमांचक होने वाला है.

जद (यू) की उत्तर प्रदेश इकाई की बैठक में शामिल होने के बहाने लखनऊ आए पार्टी अध्यक्ष शरद यादव के बयान के निहितार्थ समझे जा सकते हैं. शरद ने सा़फ-सा़फ कहा कि हमने तो देश का नेतृत्व सौंपा था, लेकिन उन्होंने ही दरवाजे बंद कर लिए. उत्तर प्रदेश में महा-गठबंधन के लिए बसपा और कांग्रेस से बातचीत के प्रयास चल रहे हैं. बसपा, जद (यू), कांग्रेस और रालोद को समेटते हुए बिहार की तर्ज पर महा-गठबंधन कायम करने की संभावनाओं पर काम चल रहा है. मुलायम सिंह के क़रीबी रहे और उनके उपकार से दबे शरद यादव पर कहीं से भी उपकृत होने का भाव नज़र नहीं आया.

उन्होंने बड़े आत्मविश्वास के साथ कहा कि उत्तर प्रदेश में भी बिहार की तरह महा-गठबंधन बनेगा, लेकिन समाजवादी पार्टी से अब कोई बातचीत नहीं की जाएगी. बकौल शरद यादव, सपा ने बातचीत के दरवाजे खुद बंद किए हैं. बिहार में भी हमने कोशिश थी, लेकिन वह बेमानी साबित हुई. हमने तो उन्हें महा-गठबंधन का नेता बनाया था, वह खुद महा-गठबंधन से बाहर चले गए.

जद (यू) के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव ने मुलायम सिंह के साथ-साथ प्रदेश सरकार पर भी तीखे प्रहार किए और कहा कि अखिलेश सरकार ने बुंदेलखंड के लिए कुछ नहीं किया. बुंदेलखंड में हालात काफी बदतर हैं, वहां तीन वर्षों से बारिश नहीं हो रही है और राहत के कोई इंतजाम भी नहीं किए गए. केंद्र सरकार ने भी पर्याप्त क़दम नहीं उठाए हैं. राष्ट्रीय लोकदल के साथ गठबंधन के संकेत देते हुए जद (यू) नेता ने कहा कि राज्य की तीन विधानसभा सीटों बीकापुर, मुजफ्फरनगर एवं देवबंद के लिए होने वाले उपचुनाव में उनकी पार्टी ने रालोद उम्मीदवारों का समर्थन करने का फैसला लिया है.

कांग्रेस और बसपा के बीच गठबंधन के कयास भले लगाए जा रहे हों, लेकिन इसकी संभावनाएं बहुत कम हैं. बिहार में अप्रत्याशित सफलता पाने के बाद कांग्रेस के सुर कुछ इतराए-से निकल रहे हैं, जिसे बसपा नेता मायावती स्वीकार करने के मूड में नहीं दिखतीं. राहुल गांधी के खिला़फ मायावती की तल्ख टिप्पणियों और हैदराबाद में राहुल एवं कांग्रेस के दलित-प्रहसन पर बसपा की नाराज़गी ने भी तालमेल की संभावनाएं धुंधली कर रखी हैं. बहुजन समाज पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष राम अचल राजभर ने कहा भी कि बसपा किसी के साथ गठबंधन नहीं करेगी.

मायावती पहले ही सा़फ कह चुकी हैं कि हमारी पार्टी कार्यकर्ताओं के दम पर अकेले उत्तर प्रदेश का चुनाव लड़ेगी. रही बात बसपा और भाजपा के बीच किसी तरह के तालमेल की, तो भाजपा ऐसे किसी भी गठबंधन से इंकार कर रही है. अभी उत्तर प्रदेश में भाजपा अध्यक्ष का ़फैसला होना बाकी है. उसके बाद चुनावी चेहरा कौन होगा, यह तय होना है. लोकसभा चुनाव में भाजपा को दलितों का खासा समर्थन मिला था. इस बार भी उसे कायम रखने की जद्दोजहद में भाजपा ज़रूर लगी हुई है.
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के महासचिव सीताराम येचुरी भी लखनऊ आकर मुलायम पर बरस कर चले गए.

येचुरी एक निजी कार्यक्रम में आए थे, लेकिन उनके बयान से सा़फ-सा़फ लगा कि उन्होंने कार्यक्रम के ज़रिये राजनीतिक संदेश प्रसारित किया है. येचुरी ने बड़ी तल्खी के साथ मुलायम को धोखेबाज और अवसरवादी करार दिया. येचुरी ने कहा कि मुलायम ने एफडीआई मसले पर भी धोखा दिया था. बकौल येचुरी, हम अलग-अलग समय पर तमाम लोगों के साथ आए, लेकिन सबसे धोखा मिला. धोखा देने वालों में सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव भी रहे.

मैं और मुलायम सिंह यादव दोनों एफडीआई के मुद्दे पर एक रात पहले तक विरोध में थे. थाने में साथ-साथ गिरफ्तारी दी और सुबह वह सा़फ पलट गए और एफडीआई के समर्थन में हो गए. इसी तरह पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा अपने बेटे को मुख्यमंत्री बनवाने के लिए वाजपेयी सरकार के समर्थन में आ गए थे. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी अवसरवाद की पर्यायवाची हैं, वह वाजपेयी सरकार में साझीदार रहीं और मनमोहन सिंह सरकार में भी. येचुरी ने कहा कि कांग्रेस की मौजूदा नीतियों के आधार पर न तो उसके साथ गठबंधन हो सकता है और न कोई फ्रंट बन सकता है.

येचुरी ने ऐसा कहकर पश्चिम बंगाल में कांग्रेस के साथ वाममोर्चे के तालमेल की संभावनाओं का पटाक्षेप कर दिया. माकपा महासचिव ने बसपा नेता एवं उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती पर भी करारे प्रहार किए. उन्होंने कहा कि मायावती ने दलितों के लिए केवल पार्क बनवाए और कुछ नहीं किया. यह सही है कि कांशीराम और मायावती ने दलित चेतना में इजा़फा किया है, लेकिन दलितों के लिए कोई स्पष्ट नीति बनाने में वे पूरी तरह असफल रहे.

ओवैसी की चर्चा किए बगैर बात पूरी नहीं होती. एआईएमआईएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी ने जय भीम-जय मीम का नारा देकर उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में उतरने का ऐलान किया है. स्पष्ट है कि ओवैसी का लक्ष्य मुसलमानों के साथ-साथ दलितों के वोट बैंक में सेंध लगाना भी है. हैदराबाद में रोहित वेमुला की आत्महत्या प्रकरण में ओवैसी इसी इरादे से काफी आगे बढ़कर विरोध प्रदर्शनों में शामिल हुए.

बीकापुर विधानसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव में भी दलित प्रत्याशी उतार कर एआईएमआईएम ने अपने इसी लक्ष्य की मुनादी की है. एआईएमआईएम बसपा और सपा के लिए चुनौती पेश करे, उसके पहले ही बसपा के कुछ नेता उसे अपने साथ चुनावी तालमेल में शामिल कर लेना चाहते हैं, लेकिन मायावती का रुख देखते हुए इसकी संभावनाएं काफी क्षीण लग रही हैं.

सूबे में कहां कामयाब रही गठबंधन राजनीति
उत्तर प्रदेश में भी गठबंधन की राजनीति कामयाब नहीं रही है. इसका बिंदुवार अवलोकन करें, उसके पहले माकपा नेता सीताराम येचुरी का वक्तव्य सामने रखकर विचार करें, तो गठबंधन की सियासत का अवसरवाद सा़फ-सा़फ समझ में आएगा. पिछले दिनों लखनऊ में सीताराम येचुरी ने कहा कि देश में राजनीतिक बदलाव के लिए गठबंधन कोई स्थायी उपाय नहीं हो सकता. चुनाव के समय जो होता है, उससे कोई खास बदलाव नहीं आने वाला. बदलाव राजनीतिक विकल्प से ही आएगा और इसके लिए वामदलों को एकजुट होना होगा. येचुरी ने यह भी कहा कि आम तौर पर माना जाता है कि मार्क्सवाद धर्म के विरोध में है, लेकिन ऐसा नहीं है. हमें जनता के बीच इस भ्रम को सा़फ करना होगा और लोगों को मार्क्सवाद की विचारधारा के बारे में बताना होगा. येचुरी के इस विचार को सामने रखकर हम गठबंधन की राजनीति के हश्र की ऐतिहासिक तस्वीर बिंदुवार देखते चलें…

1967 में कांग्रेस से अलग होकर चौधरी चरण सिंह ने लोकदल बनाया, जिसमें कम्युनिस्ट पार्टी और जनसंघ भी शामिल हुए, लेकिन गठबंधन एक साल भी नहीं चला. 1970 में कांग्रेस से अलग होकर टीएन सिंह ने वामदलों और जनसंघ के साथ मिलकर सरकार बनाई, टीएन सिंह मुख्यमंत्री बने. छह महीने बाद चुनाव लड़े, लेकिन हार गए. 1977 में जनता पार्टी गठबंधन बना. जनसंघ को भी शामिल कर बनी जनता पार्टी चुनाव लड़ी. राम नरेश यादव मुख्यमंत्री बने, लेकिन यह एकता भी बिखर गई. 1989 में कांग्रेस के विरोधियों ने फिर जनता दल गठबंधन बनाया, जिसे भाजपा ने बाहर से समर्थन दिया.

मुलायम सिंह की अगुवाई में सरकार बनी, जो पांच वर्ष नहीं चली. राम मंदिर टकराव पर भाजपा ने समर्थन वापस ले लिया. 1991 में भाजपा को पूर्ण बहुमत मिला, लेकिन ढांचा ढहने पर कल्याण सिंह सरकार भी बर्खास्त हो गई. 1993 में सपा-बसपा ने सरकार बनाई. मुलायम मुख्यमंत्री थे, लेकिन गेस्ट हाउस कांड के बाद सरकार गिर गई. भाजपा के समर्थन से मायावती छह महीने के लिए मुख्यमंत्री बनीं. 1996 में कल्याण सिंह को मुख्यमंत्री बनना था, लेकिन मायावती ने भाजपा को धोखा दिया और समर्थन वापस ले लिया. 2002 में फिर बसपा-भाजपा की सरकार बनी, जो एक वर्ष ही चल सकी.

बेनी के सुर मुलायम क्यों
समाजवादी पार्टी पर काफी तल्ख रहने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा की इन दिनों सपा पर नरमी भविष्य के संकेत के नज़रिये से देखी और आंकी जा रही है. पिछले दिनों बेनी प्रसाद वर्मा ने मीडिया को अपने आवास पर बुलाकर मुलायम के जन्म दिवस को लेकर अपनी सद्भावना ज़ाहिर की और मीडिया के ज़रिये मुलायम को बधाई दी. वर्मा यह भी बोले कि उनकी सपा नेता शिवपाल यादव से बातचीत हो जाती है. अखिलेश यादव की उन्होंने कभी आलोचना नहीं की और न करेंगे. प्रदेश के विकास के प्रति अखिलेश की दृष्टि ठीक है. बेनी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भी कई कार्यों की सराहना की. उनकी अचानक लाहौर यात्रा को सराहते हुए बेनी बोले कि मोदी ने लाहौर जाकर जिस तरह के प्रयास किए हैं, उसकी मैं सराहना करता हूं.

पूरब से घुस रहे नीतीश
बिहार के मुख्यमंत्री, जद (यू) नेता एवं महा-गठबंधन के नायक नीतीश कुमार उत्तर प्रदेश में पूरब के रास्ते घुसपैठ की कोशिश कर रहे हैं. जद (यू) के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव पिछले दिनों लखनऊ में थे, तो नीतीश कुमार पूर्वी उत्तर प्रदेश के गाजीपुर में. गाजीपुर स्थित लटिया प्राचीन स्मारक पर उत्खनन में मिले कुषाण कालीन मृदभांडों एवं गुप्त कालीन स्तंभों के बारे में जानकारी लेने के बहाने नीतीश कुमार ने सियासत की नब्ज टटोली और पीस पार्टी एवं अपना दल (कृष्णा पटेल ग्रुप) जैसे पूरब के छोटे क्षेत्रीय दलों के साथ मिलकर महा-गठबंधन कायम करने की पहल के संकेत दिए. नीतीश ने कहा कि देश-प्रदेश का विकास विचार और संगठनों के मेल से ही संभव है. राष्ट्रीय महासचिव केसी त्यागी ने दावा किया कि अपना दल की कृष्णा पटेल, पीस पार्टी के डॉ. अय्यूब एवं रालोद के चौधरी अजित सिंह से बातचीत हो रही है.

सपा ने हवा में उड़ा दिया जदयू प्रमुख का दावा
जद (यू) प्रमुख शरद यादव के दावे को समाजवादी पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने यह कहकर हवा में उड़ा दिया कि महा-गठबंधन के समर्थक जब ऐसी बात करते हैं, तो उनकी बौद्धिक क्षमता और राजनीतिक समझ उपहास का विषय बन जाती है. चौधरी ने कहा कि संघ और भाजपा जैसी सांप्रदायिक शक्तियों के खिला़फ वे यहां आकर क्या लड़ेंगे, उन पर यदि किसी ने अंकुश लगाया है, तो वह सपा है. मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की प्रशासनिक कुशलता और राजनीतिक दक्षता के चलते उनके इरादे सफल नहीं हो सके.

चौधरी ने कहा कि समाजवादी पार्टी का गठबंधन प्रदेश की 22 करोड़ जनता के साथ है. मुख्यमंत्री अखिलेश का विश्वास जनता पर है और जनता का विश्वास मुख्यमंत्री पर है. जिन्हें जनता पर विश्वास नहीं, वही महा-गठबंधन की बात करते हैं. प्रदेश में समाजवादी पार्टी का व्यापक जनाधार है और वह जनहित के मुद्दों पर संघर्ष करती रही है. बसपा के तानाशाही राज में अकेले समाजवादी कार्यकर्ताओं ने ही मोर्चा संभाला था. जिन्होंने कभी संघर्ष नहीं किया और हमेशा सत्ता के कृपाकांक्षी रहे, वे अब महा-गठबंधन बनाने की हवाई चर्चा में लग गए हैं. जिस तरह रूस में बारिश होने पर भारत के कम्युनिस्ट छाता तान लेते थे, वही हाल महा-गठबंधन वालों का है, जो पड़ोस की जीत से अति उत्साह के शिकार बन गए हैं.

उत्तर प्रदेश के सामने विकास की गति जारी रखने और सांप्रदायिकता से निपटने की कड़ी चुनौती है. समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव इन चुनौतियों से निपट रहे हैं. जनता समझ रही है कि विकास के मोर्चे पर जो काम तेजी से हो रहे हैं, उनमें अवरोध पैदा करने वाले तत्व अब नए-नए मुखौटे लेकर आएंगे. सपा प्रवक्ता ने कहा कि अखिलेश यादव ने बहुत पहले घोषित कर दिया था कि समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश में अकेले विधानसभा चुनाव लड़ेगी, किसी गठबंधन अथवा दल के साथ चुनावी तालमेल में नहीं जाएगी.

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