सोशल मीडिया की वेबसाईट्स या कहिए ऑनलाइन चैनलों की कोई रेटिंग नहीं होती। यूं ट्यूब पर हम ढेर सारे चैनल देखते हैं। अब इनको चैनल कहना ही ज्यादा ठीक है क्योंकि ये न सिर्फ मुख्य चैनलों के समकक्ष खड़े हैं बल्कि मिडिल क्लास का ध्यान भी अपनी ओर मुस्तैदी से खींच रहे हैं। इतिहास में बदलता हुआ समय अपनी भूमिका में होता है। भारत में यह राजनीति के हिसाब से बड़ा ही क्रूर समय है। पिछले नौ सालों की राजनीति ने सबकी नींद उड़ा कर रख दी है । यह अप्रत्याशित रूप से हुआ है । और जब हो ही गया है और आज भी अपनी बेशर्मी और धृष्टता से निरंतर बना हुआ है तो मैदान में योद्धाओं की फौज तो उतरेगी ही । इसीलिए यूट्यूब स्वच्छ राजनीति के पैरोकारों के लिए जरूरी हो गया है।
आज ‘सत्य हिंदी’ के समान बहुत से चैनल वजूद में हैं। सबसे पहले ‘द वायर’ से शुरुआत हुई थी। लेकिन वायर बहुत अधिक समझदार लोगों के बीच का माना गया। इस सरकार के पूरे मीडिया तंत्र और आईटी सेल से मुकाबला करने के लिए केवल वायर कहीं से भी पर्याप्त नहीं था। आज न्यूज क्लिक, न्यूज लॉण्ड्री, लल्लन टॉप, लाउड इंडिया टीवी, जी फाइल्स, मोजो, स्क्रॉल, क्विंट , आदि आदि के अलावा रवीश कुमार, पुण्य प्रसून वाजपेई और अजीत अंजुम जैसे पत्रकारों ने भी अपनी अपनी तरह से लोगों का ध्यान खींचा हुआ है। लेकिन हम दो की बात विशेष रूप से करना चाहेंगे ‘सत्य हिंदी’ और रवीश कुमार।
आज ‘सत्य हिंदी’ के लगभग ग्यारह कार्यक्रम वजूद में हैं जिनमें से आठ कार्यक्रम तो रोजाना के हैं। हाल में एक बेहतरीन कार्यक्रम अखबारों का शुरु हुआ है जिसे ‘एबीपी न्यूज’ से आये विजय विद्रोही पेश कर रहे हैं। इस कार्यक्रम की दरकार थी । ‘सत्य हिंदी’ के विस्तार के लिए मुख्य रूप से श्रेय तो आशुतोष को ही जाएगा। कमर वहीद नकवी जैसे लोग पर्दे के पीछे हैं। लेकिन आशुतोष का नजरिया, कमिटमेंट और इन सबके पीछे की उनकी भूख ने यह साबित किया है कि यदि आपको फ्री हैंड मिले और आपमें कमिटमेंट हो तो आप क्या कुछ नहीं कर सकते। किसी ने सवाल किया था कि ‘सत्य हिंदी’ को अपना चैनल खोल लेना चाहिए उस पर आशुतोष का जवाब था कि आप ‘सत्य हिंदी’ को (उसी रूप में) ही देखिए। अखबारों का कार्यक्रम, रोजाना का बुलेटिन, सवाल जवाब का कार्यक्रम, सिनेमा संवाद और ताना बाना इन कार्यक्रमों को छोड़ दें तो बाकी के रोजाना के छः कार्यक्रम बचते हैं जो राजनीति और सामाजिक विषयों पर चर्चा से जुड़े होते हैं। सबसे पहले मैं यह बता दूं कि मेरी पसंद और मेरे मित्रों की पसंद में ‘सत्य हिंदी’ में खासतौर पर तीन लोग हैं आलोक जोशी, शीतल पी सिंह और मुकेश कुमार। आशुतोष बहुत पढ़े लिखे हैं, विद्वान हैं और उनका मित्रों और पत्रकारों का दायरा बहुत बड़ा है। उनका पीआर शायद सबसे बढ़िया है इसलिए कोई उनकी खामियों की तरफ ध्यान देता नहीं। पर मुझे और मेरे दायरे के मित्रों को उनका संचालन निहायत फूहड़ लगता है । इस पर पहले भी कई बार लिखा गया है। गोकि वे पढ़ाकू हैं और जब संचालन नहीं कर रहे होते हैं तो विद्वान दिखते हैं । वस्तुत: हैं भी। शीतल पी सिंह काफी स्टडी करते हैं । जो एक व्यक्ति बिना किसी स्टडी और तैयारी के साथ आता है वह है सतीश के सिंह।
आलोक जोशी ने इन दिनों धमाल मचाया हुआ है। अडानी मामले पर फार्च्यून इंडिया के राजीव रंजन सिंह के साथ उनकी बातचीत ध्यान खींचती है । कभी कभी समझ भी नहीं आती क्योंकि स्टॉक मार्केट का विषय बड़ा ही जटिल है फिर भी राजीव रंजन सिंह के समझाने का अंदाज बाकियों से काफी बेहतर है । मुकेश कुमार के डेली शो के बारे में तो कई बार लिखा जा चुका है। यह शो सबसे अव्वल है बशर्ते कि पैनलिस्ट गम्भीर और विद्वान हों जो अक्सर उनके शो में होते हैं । आशुतोष के शो में भी ऐसा है लेकिन संचालन खटकता है। इन सबमें कुछ किंतु परंतु भी है ।‌ एक तो इन्हें डिबेट नहीं चर्चा ही माना जाएगा ।दूसरे सभी समान विचारों वाले यानी कहिए एक ही थाली के चट्टे बट्टे। यहां तक कि सबकी अपनी अपनी टीमें हैं । इसीलिए नीलू व्यास और अंबरीष कुमार के शो बी ग्रेड के से हो जाते हैं । अगर आठ, नौ और दस बजे के कार्यक्रम ही देख लिए जाएं तो वही पर्याप्त हैं। लेकिन इतना सब होने के बावजूद ‘सत्य हिंदी’ वालों से एक सवाल तो बनता ही है कि आपके श्रोता और दर्शक कौन हैं और किस वर्ग के हैं। किसी भी चैनल के लिए यह मूल सवाल होना चाहिए। हम सब जानते हैं कि मोदी ने अपने आने के साथ ही बेहद चतुराई से पूरा ‘सीनेरियो’ ही बदल डाला है । कभी किसी ने वोट के नजरिए से सबसे निचले तबके को नहीं देखा था । और मीडिया को ‘कैप्चर’ करके उस वर्ग को संबोधित नहीं किया था । मोदी ने सब किया और आज यह वर्ग मोदी का सबसे बड़ा वोटर है । अगर इस वर्ग तक आपके चैनलों का प्रचार प्रसार नहीं है तो आप आधे रास्ते पर ही खड़े हैं। यह बात सोशल मीडिया के सभी चैनलों के साथ है । उस वर्ग को नहीं पता कि अडानी कौन है या मोदी के साथ अडानी का क्या रिश्ता है। जो मीडिया उस तक पहुंचता है वहां यह सिरे से ही गायब है ।‌ ‘सत्य हिंदी’ वालों को इतना भी जान लेना होगा कि उनके ‘बोर’ प्रोग्राम मिडिल क्लास के लोगों को भी विमुख करते हैं । चुनौती है ।
रवीश कुमार इन दिनों पेरिस में हैं । एनडीटीवी से हट कर उनकी पहुंच भी कुछ कम हुई है लेकिन मिडिल क्लास में बड़ी है इसीलिए उनका ‘रवीश कुमार ऑफीशियल’ लोकप्रिय है और पेरिस के एपीसोड भी ध्यान खींच रहे हैं।
वायर अपनी तरह से और अपने कार्यक्रमों से और आरफा खानम शेरवानी अपनी तरह से ध्यान खींचती हैं । वायर का बेहद सम्मान है । मनोरंजन और ज्ञानवर्धन के लिए बीबीसी, लल्लन टॉप और अशोक कुमार पाण्डेय ,ध्रुव राठी , विकास कीर्ति आदि के कार्यक्रम हैं ही ।
लाउड इंडिया टीवी पर भी अभय दुबे शो के अलावा कुछ ऐसा आकर्षण नहीं होता कि उसे नियमित रूप से देखा ही जाए । हां, जब संतोष भारतीय अलग अलग लोगों से जैसे अखिलेंद्र प्रताप सिंह आदि से बात करते हैं तो वह रोचक होता है। राज्यों के चुनाव पर उन्होंने अच्छा कार्यक्रम शुरु किया है जो कल था उड़ीसा के आने वाले विधानसभा चुनाव पर । लेकिन बेहतर हो यदि कम से कम एक पत्रकार और एक राजनीतिक विश्लेषक हो और उनसे अभय जी सवाल पूछें ।
बी ग्रेड का सिनेमा क्या होता है और उसके निर्माण में कौन से कारक होते हैं इस पर एक अच्छी और दमदार चर्चा कल सुनने को मिली ‘सिनेमा संवाद’ कार्यक्रम में। अलग अलग विषय निकाल कर लाना भी एक दूभर काम है । अमिताभ को यह करना ही है । अच्छा लगता है । उन्होंने बताया कि वेब सीरीज पर वे कार्यक्रम कर चुके हैं। हमारा मानना है कि इस पर और भी कीजिए करते रहिए। सीरीज और फिल्मों के बीच मूल अंतर क्या है और वह कितना अच्छा या सुखद है। ये सारे विषय हैं । फिल्में कैसे प्रभावित करती हैं और सीरीज ने कैसे प्रभावित किया है।
कुल मिलाकर आज ‘सत्य हिंदी’ की स्वीकार्यता तो है पर इस पर गम्भीरता से गौर किया जाना चाहिए कि सबसे है निचले तबके में कैसे पहुंचा जाए । समय बड़ा विकट है और बीबीसी पर सरकार की टेढ़ी आंख कब सोशल मीडिया के कार्यक्रमों पर हो जाए कौन कह सकता है ।
अंत में एक सवाल पढ़े लिखे और सिविल सोसायटी के लोगों से कि जब आप सब कुछ जानते हैं और आज की सारी हकीकत से वाकिफ हैं तो कोई बदलाव क्यों नहीं हो रहा। ऐसे वक्त में विपक्ष जो कर रहा है या नहीं कर रहा है तब आपकी भूमिका क्या होनी चाहिए। क्या इस पर मुकेश कुमार या आलोक जोशी कोई बात करेंगे। या आशुतोष भी !! इस पर एक बार शीबा असलम फहमी से फोन पर मेरी लंबी बात हुई जिसका लब्बोलुआब यही था कि ‘भूल जाइए , सर’ !! इस वाक्य के तो बहुत गम्भीर अर्थ हैं !

 

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