gau2014 में मोदी सरकार के आने के बाद से गौरक्षा के नाम पर दलितों और अल्पसंख्यकों पर हमले और उन्हें आतंकित करने के मामले बढ़े हैं. खुद को शांति का टापू कहने वाला मध्य प्रदेश भी इससे अछूता नहीं है. 17 मई 2018 की रात सतना जिले के अमगार गांव में गौकशी के शक में भीड़ द्वारा दो लोगों पर हमले का मामला सामने आया है. इसमें एक व्यक्ति की मौत हो चुकी है, जबकि दूसरा गंभीर रूप से घायल है. घटना के बाद पुलिस ने बिना किसी ठोस जांच के, मृतक और घायल व्यक्ति के खिलाफ ही मामला दर्ज कर लिया. गौड़ आदिवासी बाहुल्य गांव अमगार में लगातार मवेशी चोरी होने की घटनाएं हो रही थीं.

17 मई की रात अमगार के कुछ लोगों ने गांव से कुछ दूरी पर, खदान के पास अज्ञात लोगों को मांस काटते हुए देखा. उन्होंने इसकी सूचना गांव के अन्य लोगों को दी और फिर आधी रात को पूरा गांव एकजुट होकर मौके पर पहुंच गया. वहां गुस्साई भीड़ ने गौ हत्या के शक में शकील और सिराज नाम के दो व्यक्तियों को बुरी तरह से पीटा. इसके बाद घटना की सूचना पुलिस को दी गई. पुलिस सुबह 4 बजे के करीब मौके पर पहुंची और दोनों घायलों को मैहर अस्पताल ले गई. इलाज के दौरान ही उनमें से एक की मौत हो गई, जबकि दूसरे को इलाज के लिए जबलपुर रेफर कर दिया गया. पुलिस का दावा है कि उसने घटना स्थल से दो कटे हुए बैल, एक सर कटा हुआ बैल, एक बंधी हुई गाय मिली, तीन बोरों में रखा हुआ मांस और मांस काटने का औजार बरामद किया है.

इस पूरे मामले की एक स्वतंत्र नागरिक जांच दल द्वारा पड़ताल की गई है, जिसकी रिपोर्ट में पूरे घटनाक्रम को लेकर कई गंभीर सवाल खड़े किए गए हैं. जांच दल द्वारा निरीक्षण के दौरान पाया गया कि घटना स्थल से 100 मीटर की दूरी पर पक्की सड़क है और वहां से थोड़ी ही दूरी पर गांव भी है, ऐसे में वहां किसी भी बड़े जानवर को काटने की आवाज रात के समय आसानी से सुनी जा सकती है. ऐसे में कोई भी वहां तीन बड़े जानवर काटने का रिस्क क्यों लेगा? जिन लोगों ने जानवरों को काट रहे उन दो को पकड़ा, उन्होंने उनके अलावा न तो किसी को घटनास्थल से भागते हुए देखा और न ही किसी वाहन की आवाज सुनी, जबकि बड़े मवेशियों को काटने के लिए कम से कम 6 से 8 अनुभवी लोगों की जरूरत पड़नी चाहिए.

ऐसे कई सवाल अनुत्तरित रह जाते हैं. यदि सिराज खान और शकील अहमद मवेशी काट रहे थे, तो उनके साथ और कौन लोग शामिल थे? क्या मांस ले जाने के लिए उनके पास गाड़ी थी? घटनास्थल से 3-4 क्विंटल मांस बरामद किए गए हैं, इतनी अधिक मात्रा में मांस का वे क्या करने वाले थे? क्या इसके पीछे मांस तस्करी का कोई गैंग है? अमगार के गांव वालों का कहना है कि इस घटना के कुछ दिन पहले से उनके गांव से हर रात औसतन 2 से 4 मवेशी गायब हो रहे थे और उन्हें जानवरों के ताजे कंकाल मिल रहे थे. लेकिन किसी ने इसे लेकर पुलिस में रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई. बदेरा थाना निरीक्षक द्वारा भी इसकी पुष्टि नहीं की गई. यह भी बात सामने आई कि ग्रामीण जो कंकाल मिलने की बात कर रहे थे, वो कई महीने पुराने हैं. फोरेंसिक रिपोर्ट आने से पहले ही सिराज खान और शकील अहमद के खिलाफ मामला पंजीकृत करने को लेकर भी जांच दल ने सवाल उठाया है और मांग की गई है कि जब तक यह साबित नहीं हो जाता कि बरामद किया गया मांस गाय का ही है, तब तक के लिए सिराज खान और शकील अहमद पर लगाई गई धाराओं को वापस लिया जाए.

जांच दल की रिपोर्ट में बजरंग दल जैसे संगठनों का पेंच भी उभर कर सामने आया है. अमगार के लोगों ने जांच दल को बताया कि अमगार और बदेरा थाना के आसपास के क्षेत्रों में बजरंग दल सक्रिय है और इनका अमगार और आरोपियों से भी संपर्क रहा है. ग्रामीणों ने बताया कि जानवरों को ले जा रही गाड़ियों को रोककर मारपीट करने की घटनाएं कई बार हो चुकी हैं. इसी तरह से गांव वालों द्वारा इस घटना की सूचना पुलिस को देने से पहले बजरंगदल वालों को दी गई थी और घटना स्थल पर पुलिस टीम के पहुंचने से पहले बजरंग दल के लोग पहुंच चुके थे.

अमगार गांव के लोगों ने जांच दल को यह भी बताया कि बजरंग दल वालों ने आश्वासन दिया है कि इस मामले में जिन चार लोगों को गिरफ्तार किया गया है, उन्हें चार से छह महीने के अन्दर रिहा करवा लिया जाएगा, तब तक शांत रहना है. दरअसल, पिछले कुछ सालों से मैहर और इसके आसपास का इलाका सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील बना हुआ है और इसके पीछे मुख्य रूप से बजरंग दल जैसे संगठनों की गतिविधियां और उनको दी गई खुली छूट कारण है. पिछले साल दिसंबर में ईद मिलादुन्नबी के दिन झंडा लगाने को लेकर मैहर में तनाव की स्थिति बनी थी. उस समय बजरंगदल के जिला संयोजक महेश तिवारी ने मैहर घंटाघर चौराहे पर इस्लामी झंडा लगाने का विरोध किया गया, जिससे तनाव की स्थिति बन गई और बाद में माहौल बिगड़ गया.

भाजपा सरकार के दौर में मध्य प्रदेश में हिन्दुत्ववादी संगठनों के सामने पुलिस प्रशासन लाचार नजर आता है. यहां गाय और धर्मांतरण ऐसे हथियार हैं, जिनके सहारे मुस्लिम और ईसाई अल्पसंख्यकों को निशाना बनाना बहुत आसन और आम हो गया है. पिछले ही दिनों मध्य प्रदेश के राजगढ़ जिले में बजरंग दल द्वारा अपने कार्यकर्ताओं को हथियार चलाने का प्रशिक्षण देने के लिए कैंप का आयोजन करने की खबरें आई थीं, जो बताती हैं कि प्रदेश में संगठन की पैठ कितनी गहरी है और उन्हें सरकार की तरफ से भी पूरा संरक्षण प्राप्त है. अब सवाल यह है कि क्या सतना लिंचिंग मामले में शिवराज सिंह चौहान की सरकार माननीय सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर अमल करेगी?

मध्यप्रदेश में गौरक्षा के नाम पर हुई पूर्व की घटनाएं

मध्य प्रदेश में आए दिन ऐसी घटनाएं सामने आती हैं, जिनमें गौरक्षा के नाम पर गुंडागर्दी की जाती है. 13 जनवरी 2016 को मोहम्मद हुसैन अपनी पत्नी के साथ हैदराबाद से हरदा लौट रहे थे. इस दौरान खिरकिया स्टेशन पर गौरक्षा समिति के कार्यकर्ता यह आरोप लगाकर कि उनके बैग में गोमांस है, बैग की जांच करने लगे. इसका विरोध करने पर उन्होंने दम्पति के साथ मारपीट शुरू कर दी. इस दम्पति ने खिरकिया में अपने कुछ जानने वालों को फ़ोन किया और उनलोगों ने स्टेशन आकर इन्हें बचाया. इससे पहले खिरकिया में ही 19 सितम्बर 2013 को गौ हत्या के नाम पर दंगा हो चुका है, जिसमें करीब 30 मुस्लिम परिवारों के घरों और सम्पतियों को आग के हवाले कर दिया गया था. इसमें कई लोग गंभीर रूप से घायल भी हुए थे. बाद में पता चला कि जिस गाय के मरने को लेकर दंगे हुए थे, उसकी मौत पॉलिथीन खाने से हुई थी. इस मामले में भी मुख्य आरोपी गौ रक्षा समिति का सुरेन्द्र राजपूत था.

26 जुलाई 2016 की शाम मंदसौर रेलवे स्टेशन पर भी गाय का मांस रखने के शक में दो मुस्लिम महिलाओं को सरेआम पीटा गया और फिर पुलिस द्वारा इनके खिलाफ गौ वंश प्रतिषेध की धारा 4 और 5 और मप्र कृषक पशु परिरक्षण अधिनियम के तहत मामला दर्ज करके जेल भेज दिया गया. इस मामले में पुलिस द्वारा बिना वेटेनरी रिपोर्ट के ही दोनों महिलाओं को कोर्ट में पेश करके जेल भेज दिया गया था. बाद में जांच में पाया गया कि महिलाएं जो मांस लेकर जा रही थीं, असल में वो गाय का नहीं भैंस का था. महिलाओं ने आरोप लगाया था कि जिस समय उनके साथ मार-पीट हो रही थी, उस समय पुलिस के लोग वहां मौजूद थे, लेकिन वे तमाशबीन बने रहे.

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