यह खबर पढ़ने के बाद ! लोकमान्य टिळक का ऐतिहासिक केसरी अखबार में ! अंग्रेजी सरकार के खिलाफ लिखा हुआ संपादकीय लेख याद आ गया ! जिसका शीर्षक है ! ” सरकारचे डोके ठिकाणावर आहे का ?”
महाराष्ट्र सरकारने किताब के शिर्षक को सत्य बना दिया ! महाराष्ट्र की फुले – शाहू – अंबेडकरी परंपरा के कितने विरोधी है ? यह इस सरकारने और एक बार सिद्ध कर दिया ! आजसे चार साल पहले के !

भिमा कोरेगांव के उत्सव को न सहने वाले ! लोगों से और क्या उम्मीद कर सकते ? शतप्रतिशत दलितों के दो सौ साल पहले के पराक्रम को ! जो डॉ बाबा साहब अंबेडकरजी ने 1 जनवरी 1927 से शुरू किया हुआ उत्सव का ! 2018 में दो सौ साल पूरे होने का उत्सव था ! और उसे अर्बन नक्सल के नाम से प्रचारित किया ! ज्योकि मै खुद राष्ट्र सेवा दल के अध्यक्ष के नाते उस उत्सव समितीका एक सदस्य था ! और हमारे समिति के अध्यक्ष पूर्व सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश श्री. पी. बी. सामंत थे ! और अन्य सदस्यों में महाराष्ट्र के समस्त परिवर्तन वादी संघठन थे ! लेकिन तत्कालीन महाराष्ट्र की सरकार को पेशवाई समर्थक सरकार बोला जाता था ! वह उन्होंने भिमा कोरेगांव के दो सौ साल के उत्सव को ! अर्बन नक्सल बोल कर ! हमारे जैसे सेक्युलर, डेमोक्रॅटिक और संविधान के अनुसार, काम करने वाले, सभी साथियों का अपमान किया है ! और मैंने खुद, राष्ट्र सेवा दल के अध्यक्ष के पद पर कार्यरत रहते हुए ! हमारे साथियों के साथ ! खुद भिमा कोरेगांव के दंगों के बाद एक हप्ते के भीतर भिमा कोरेगांव, वढू बुद्रुक और अन्य जगहों पर जाकर ! जांच कर के, वह रिपोर्ट भिमा कोरेगांव जांच कमिशन को सौपने से लेकर ! तत्कालीन मुख्यमंत्री गृहमंत्री तथा पुणे ग्रामीण के कमिश्नर को भी जांच रिपोर्ट दिया है ! और उसी रिपोर्ट को ! भिमा कोरेगांव के असली गुनाहगार, संभाजी भिडे – और मिलिंद एकबोटे के खिलाफ, की केस में ! पुणे के कोर्ट से लेकर, मुंबई हाईकोर्ट में भी ! वकिलो ने हमारे रिपोर्ट को कोट किया है ! मैनस्ट्रिम जैसे दिल्ली से प्रतिष्ठित अंग्रेजी पत्रिका में प्रकाशित ( 23 जनवरी 2018 ) के अंक में ! रिपोर्ट को, वर्तमान समय में भारत के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ! श्री. धनंजय चंद्रचूड ने सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष जब भिमा कोरेगांव की केस सुनवाई के लिए आई थी ! तो जस्टिस धनंजय चंद्रचूड ने हमारे रिपोर्ट को ! अपने डिसेंट जजमेंट में ! शब्दशः कोट किया है !


और उसके बावजूद अर्बन नक्सल का हौव्वा बना कर,जनता के असली समस्याओं से ध्यान भटकाने के लिए सोची-समझी साजिश है ! अगर मुस्लिम समुदाय के लोगों के साथ का कोई आंदोलन है ! तो आतंकवादी ! और सिखों का किसान मजदूरों के आंदोलन को खलिस्तानी ! और हमारे जैसे पचास साल से भी अधिक समय से जल, जंगल, जमीन के सवाल पर काम करने वाले लोगों को अर्बन नक्सल ! और विरोधी दलों के लोगों को देशद्रोही बोलने की ! और उसे तथाकथित मिडिया के द्वारा ! और प्रचार-प्रसार करने के पिछे ! आम लोगों के रोजमर्रे के सवालों पर से ! ध्यान भटकाने के लिए ! इस तरह की जुमलेबाजी पिछले आठ सालों से लगातार जारी है !


एक तरफ गाहे-बगाहे आपातकाल की आलोचना करने वाले ! अभिव्यक्ति की आजादी के कशिदे पढ़ने वाले ! लोगों की अभिव्यक्ति की व्याख्या कितनी पाखंडी है ! यह कोबाड गांधी की आत्मकथा को ! दिया गया पुरस्कार, वापस लेने की कृती करने वाले लोगों की ! यही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मायने हैं ! सावरकर – गोडसे जैसे लोगों को अपने आदर्श मानने वाले लोगों से दुसरी उम्मीद करना बेकार है !
परसों ही नागपुर में ही, इस जमात के मुखिया विरोधी दलों को देशद्रोही तक बोल कर गए हैं ! हालांकि चिन का ताजा हमले से लेकर, हमारे देश के रक्षा जैसे संवेदनशील विभाग में प्रायवेट मास्टर्स और उसमे भी विदेशी निवेश के हवाले करने वाले लोगों के ! मुहँमे देशभक्ति या देशद्रोही जैसे शब्दों को देखते हुए हंसी आती है ! खुद आजादी के आंदोलन से एक (अ)नितिगत फैसला लेते हुए ! भाग नहीं लेने वाले ! और उल्टा अंग्रेजो के तलुवों को चाटुकारिता में ! आजादी के आंदोलन में शामिल, लोगों के खिलाफ ! अंग्रेजो को जानकारी देने वाले ! और श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने तो ! तत्कालीन व्हाईसरॉय को पत्र लिखकर भारत छोडो आंदोलन के लोगों को कैसे निबटने की जरुरत है ! यह 10 मुद्दे का पत्र लिखने वाले ! और तथाकथित स्वातंत्र्यवीर सावरकर के सात माफी नामो की भाषा पढकर ! उनके प्रति रहा – सहा सम्मान भी खत्म हो जाता है ! और वर्तमान में समस्त भारत के संसाधनों को ! औने-पौने दामों में, पूंजीपतियों के हवाले करने वाले ! दलित, आदिवासी, महिलाओं के और अल्प संख्यक समुदाय के विरोधी लोग ! जब दुसरो को कॅरेक्टर सर्टिफिकेट देते हैं ! तो देशभक्ति का अर्थ ही बदल जाता है ! शायद इन सभी शब्दों का महत्व, एक साजिश के तहत, खत्म करने के लिए ही इन लोगों का प्रयास चल रहा है !
सवाल लोगों की समझ का है ! पिछले कुछ सालों से ! इन्होंने जिस तरह से (अ)धर्म की आड़ में ! समस्त लोगों को भ्रम में डाल कर ! अपने रोजमर्रा के असली समस्याओं से उनका ध्यान हटाकर ! सिर्फ हिंदु – मुस्लिम की झुठी लफ्फाजी फैला कर ! दंगों की राजनीति को हमारे संविधानिक संस्थाओं से मान्यता दिलवाकर ! और समस्त मीडिया को ! जो ज्यादातर पूंजीपतियों का ही पूंजी निवेश होने के कारण ! उन्हें ईडी, सीबीआई तथा आई बी जैसे देश के महत्वपूर्ण संस्थानों को लेकर अपनी डफली बजाने के काम में लगा लिया है !


हमने आपातकाल की घोषणा, और उस समय लगाई गई, सेंसरशिप का भी दौर देखा है ! लेकिन वर्तमान समय में, भारत में गत आठ साल से भी अधिक समय से ! अघोषित आपातकाल और सेंसरशिप जारी है ! उस आपातकाल की आलोचना करने का ! बीजेपी और उसके मातृ संघठन, आर एस एस को कोई नैतिक अधिकार नहीं है ! लेकिन यह जमात बेशर्मो की जमात, होने के कारण ! आजादी से लेकर आपातकाल तक को ! अपने घोर, सांप्रदायिक राजनीति के लिए विशेष रूप से इस्तेमाल कर रहे हैं !
और यही फ्रॅक्चर्ड फ्रीडम का लक्षण है ! इसलिए कोबाड गांधी ने अपने दस सालों के जेल के अनुभवों से लेकर ! हमारे देश की वर्तमान सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक स्थिति को लेकर ! आंखें खोलने की कोशिश की है ! जिसका मै तहे-दिल से स्वागत करता हूँ !( भले ही मै, “बंदुक की नली से क्रांति निकलने जैसे” बातो का विरोधी हूँ ! )


और महाराष्ट्र सरकारने दिया गया पुरस्कार वापस लेने की कृती के पहले ! शायद यह किताब आई – गई हो गई होती ! लेकिन इस असंवेदनशीलता के निर्णय को लेकर, जो विवाद को जन्म दिया है ! यह किताब की बिक्री के लिए विशेष रूप से उपयोगी साबित होगा ! इसमें कोई शक नहीं है ! क्योंकि इस तरह के विवाद के कारण काफी कलाकृतियों को अतिरिक्त प्रचार – प्रसार करने का मौका मिल जाता है ! और लोगों का ध्यान, आकर्षित करने के लिए ! विशेष रूप से काम आता है !
डॉ सुरेश खैरनार 13 दिसंबर 2022, नागपुर

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