कोई साल भर पहले मैंने लिखा भी था और कई मंचों से कहा भी था कि मोदी जिस तरह की व्यूह रचना अपने स्वयं सोचे हुए दुश्मनों के चारों ओर बना रहे हैं और विपक्ष को उस घेरे में ले रहे हैं उसका सीधा अर्थ है कि विपक्ष सोच और समझ से इतना कुंद हो जाएगा कि मोदी के सामने उसका अस्तित्व ही जैसे समाप्त हो जाएगा । ऐसे में जब तक विपक्ष कुछ समझ पाने की स्थिति में आएगा तब तक मोदी बहुत आगे निकल चुके होंगे ।यह वह स्थिति होगी कि जब मोदी को कोई परास्त करने की हालत में होगा ही नहीं ।तब मोदी को कौन हराएगा ।यह बात जोर देकर मैंने कहीं थी कि तब मोदी ही मोदी को हराएंगे ।आज स्थितियां कुछ वैसी ही बन रही हैं । हमारे उर्मिलेश जी भी कहा करते थे जनता ही विकल्प बनेगी ।वह बात भी सत्य हो रही है । यूपी चुनाव में अगर गठबंधन योगी मोदी पर हावी है तो इसे कहीं से भी अखिलेश की जीत न मानी जाए यह दरअसल योगी मोदी के खिलाफ जन आक्रोश है ।जिसे मात्र एक विकल्प ही चाहिए था जो उसे अखिलेश के रूप में दिखा ।और इसका आधार बनाया किसान आंदोलन और उसमें भी राकेश टिकैत की सूझबूझ ने । कल्पना कीजिए यदि किसान आंदोलन न होता तो चुनाव के पहले ही चरण में बीजेपी हावी हो चुकी होती। अमित शाह को कैराना भेजा ही इसलिए गया था ।जब वक्त अनुकूल होता है तो जाट खोपड़ी में भी समझ की अच्छी फसल उग आती है । टिकट बंटवारे के बाद ऐसा लग रहा था कि नाराज बूढ़े जाट बंट कर ही वोट देंगे । लेकिन बाद के दिनों में सुकून भरी खबर आई कि न जाट न मुसलमान ,सब किसान होकर वोट देंगे ।यह बीजेपी के ताबूत में पहली कील थी । इसके बाद आप मोदी और योगी के भाषणों और धमकियों को देखिए ।यह ‘विनाश काले विपरीत बुद्धि’ का नमूना था जो अभी चल रहा है ।तो मोदी योगी को मोदी योगी ही परास्त करने का खाका खींच रहे हैं ।न कोई मुद्दा ,न कोई चिंतन केवल धमकियां और जहरीली भाषा ।इस सबके लिए आठ साल बहुत होते हैं ।
लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि विपक्ष का क्या होगा । संसद के दोनों सदनों में कांग्रेस को लेकर मोदी का खौफ दिखा ।वह कांग्रेस जिसने स्वयं को मटियामेट कर रखा है । जिसका आलाकमान तीन दिशाओं में दिग्भ्रमित है ।पता नहीं ये तीन राजनीति में क्यूं हैं और क्या कर रहे हैं ।जिस तरह मोदी और उनके लोगों ने कोरोना के दूसरे दौर की बदहाली को छुपाया , जैसे गंगा में बहती लाशें, आक्सीजन की कमी से मरते लोग आदि ,उन मुद्दों को दमदार तरीकों से कांग्रेस या किसी भी विपक्ष ने कब उठाया । संतोष गंगवार का पत्र कांग्रेस के लिए मुद्दा क्यों नहीं बना ।आप कांग्रेस की मानसिक दरिद्रता का अंदाज इसी से लगा लीजिए कि लोकसभा में नेता के रूप में उन्हें कोई दिग्गज नहीं मिला सिवाय एक लंगूर जैसे आदमी के ।आज की तारीख में कांग्रेस महज कहने भर को एक राष्ट्रीय दल रह गया है ।यह नियति होनी थी । महात्मा गांधी की चाह का आधा सत्य भी कांग्रेस ने किया होता तो आरएसएस से भिड़ने को एक दल कांग्रेस के पास होता । राहुल गांधी कांग्रेस को ‘फिनिक्स’ पक्षी की आग में तब्दील करने जिम्मेदारी उठाए हैं । इसलिए मोदी के परास्त होने में कांग्रेस की कोई भूमिका नहीं है और होगी । मोदी ने विपक्ष को ध्वस्त करने का फार्मूला तो निकाल लिया लेकिन जनता के दिलों पर दीर्घकालीन राज करने वाली राजनीति को भूल गये । सुबह का सूर्य दिन में भारी तपिश देता है । उन्हें शायद इसका भी अहसास नहीं रहा । झूठ और छलावों की पोल खोलने के लिए आठ साल बहुत होते हैं । देश की जनता मोदी का पूरा खेल समझ गयी है ।यही मोदी के लिए सिर नोंचने वाली बात है । लिहाजा अब जहां जहां जो पार्टी विकल्प के रूप में आएगी जनता उसी के साथ हो लेगी । प्रसिद्ध लेखिका अरुंधति राय से जब पूछा गया कि अगर ये लोग यूपी का चुनाव हारते हैं तो सुना जा रहा है कि 2024 में चुनाव टाले जा सकते हैं या नहीं करवाये जा सकते तो उन्होंने कहा अगर ऐसा हुआ तो इंकलाब होगा । उन्होंने कहा मोदी का टाइम हो गया । यूपी का चुनाव तो कुछ ऐसा ही संकेत दे रहा है ।आने वाले दिन भारतीय राजनीति के लिए निर्णायक दिन साबित होने जा रहे हैं । ऐसा हमें लगता है ।
अब सोशल मीडिया पर आएं । अरुंधति राय से यह इंटरव्यू ‘सत्य हिंदी’ के मुकेश कुमार ने लिया । सतत हिंदी में लंबी बातचीत रोचक और शानदार रही ।राय ने कहा मोदी का टाइम पूरा हो चुका । उन्होंने चूल्हे पर चढ़े पानी के उस पतीले का उदाहरण दिया जिसका पानी खौलते खौलते खत्म हो गया । ऐसा होगा तो अंत में पतीला पिघलेगा ही पिघलेगा । इस इंटरव्यू को ‘सत्य हिंदी’ के विस्तार के रूप में देखा जाना चाहिए । जल्दी ही शायद आलोक जोशी भी सुधा भारद्वाज का इंटरव्यू लेने वाले हैं । अरुंधति राय ने यह आशंका भी जतायी कि यदि ये हार गये तो बहुत हंगामा मचाएंगे । इसका अभिप्राय समझा जा सकता है। यह इंटरव्यू देखा जाना चाहिए ।’यू ट्यूब’ पर उपलब्ध है ।
‘लाउड इंडिया टीवी’ के संतोष भारतीय ने चौथी दुनिया के लिए कश्मीर पर एक डाक्यूमेंट्री बनाती है ,जिसका निर्देशन फ़ौज़िया अर्शी ने किया है । फ़ौज़िया अर्शी ने संतोष जी की चर्चित पुस्तक ‘वीपी सिंह, चंद्रशेखर , सोनिया गांधी और मैं’ का भी सफ़ल संपादन किया है । कश्मीर पर डाक्यूमेंट्री आंखें खोलने वाली है । संतोष भारतीय की भरभराती आंखों से कही गयी कश्मीर की दास्तां रोंगटे खड़े कर देने वाली है। यह 2016 से 2020 की दास्तां है । इस सत्ता के आने के बाद कश्मीर क्या कहता है । सोचा जाना चाहिए ।
हमारे देश में अभय कुमार दुबे मात्र एक ही हैं ।सौ होने चाहिए । कैसे होंगे ।क्लोन बन सकते हैं ।तो जो एक हैं फिलहाल उन्हीं की बात की जाए । सौ होंगे तो सौ अलग-अलग दिशाओं में सोचेंगे ।तब हमारा भ्रम बना रहेगा , क्योंकि दुबे जी कई बार बातों को दोहराते भी हैं । जैसे मोदी सरकार की ‘जन धन’ योजना पर कल जो उन्होंने कहा ठीक वही शब्दशः पिछली बार भी कहा था ।और भी कई बातें होती हैं जो वे पहले कह चुके होते हैं । लेकिन उनके आकलनों से निकलती ध्वनियों में आप वर्तमान समय का सच देख सकते हैं । उनका यह स्वीकार करना भलमनसाहत है कि ‘जन धन’ योजना के पीछे का सच वे उस समय नहीं समझ पाये थे । मोदी के मन में समय समय-समय पर क्या क्या पकता रहा है वह तब यकीनन कोई इतनी आसानी से नहीं सोच सकता था । क्योंकि मोदी की राजनीति पारंपरिक राजनीति नहीं है । मोदी ने चाहे, घटिया ही सही , पर नयी राजनीति को गढ़ा है ।जिसे समझने में आठ साल लगे ।और अभी भी किसान आंदोलन को धन्यवाद कहिए कि जिसने मोदी के अहंकार का चोला उतार दिया ।आज मोदी सामान्य से भी नीचे के राजनेता लग रहे हैं ।अभय दुबे ने कहा, भारत का लोकतंत्र समुदायों का लोकतंत्र है । हालांकि यह बात भी वे पिछली बार कह चुके हैं । पर उनका यह आकलन शत प्रतिशत सही है कि चुनावों की जो हवा समुदायों में चलती है , मुहर उसी पर लगती है ।इसके आगे जो वे कहते हैं वह ज्यादा रोचक है कि भाजपा इसी सामुदायिक लोकतंत्र को तोड़ना चाहती है ।उनके अनुसार भाजपा का मानना है कि हिंदू समाज संघर्ष पर नहीं सहयोग पर आधारित है । इसलिए चुनी हुई सरकार के खिलाफ आंदोलन और विरोध आदि नहीं होने चाहिए ।अभय जी ने एक बात और मार्के की कही, जो हमें भी लगता रहा है, कि भाजपा इस बार पूरी शिद्दत के साथ चुनाव नहीं लड़ रही है। उसे दरअसल पूरा भरोसा लाभार्थियों पर है । उसके लिए लाभार्थी एक अभूतपूर्व घटना है । अभय दुबे का आकलन चाहे जैसा भी रहे पर यह तो तय है कि रविवार 11 बजे इस कार्यक्रम का इंतजार रहता है ।यह तो संतोष जी सत्य कहते ही हैं । संतोष भारतीय की सोमपाल शास्त्री से बातचीत भी रोचक और तथ्यपरक रही ।
मुकेश कुमार के कार्यक्रम ‘ताना बाना’ में अशोक वाजपेई ने भारत भवन की कहानी कही । वाजपेई भारत भवन से ही ज्यादा चर्चा में रहे हैं । साहित्य के अलावा तो दरअसल उन्हें जाना ही जाता है भारत भवन के लिए । सारा राय के कहानी संग्रह – ‘नबीला और अन्य कहानियां’ पर इस बार चर्चा थी । संग्रह से जितने अंश अपूर्वानंद और मुकेश कुमार ने पढ़ कर सुनाए उन्हें सुन कर तो संग्रह के प्रति लालसा बढ़ जाती है ।तब तो और जबकि एक कहानी, जिसका अंश मुकेश कुमार ने सुनाया, और अपूर्वानंद ने बताया कि पूरी कहानी एक ही वाक्य में है । गजब । अपूर्वानंद का यह कहना रोचक लगा कि जिंदगी ब्यौरों के सिलसिलों के सिवा है ही क्या ।विष्णु नागर की कविताएं सुकूनदायी थीं ।
आरफा खानम शेरवानी का बिजनौर में मायावती पर बनाया गया वीडियो बढ़िया लगा ।भाषा सिंह भी जगह जगह लोगों से बात कर रही हैं और हर रोज अपना वीडियो भेज रही हैं ।कई बार तो सरसरी निगाह से ही देखना पड़ता है ।
पुण्य प्रसून वाजपेई को चाहिए कि अपने साथ दो एक लोगों को जोड़ें और अपने स्तर की चर्चा करें । उनकी एक सरीखी भाषा, सरीखा तेवर अक्सर उबाऊ सा हो जाता है ।हम तो शायद ही अब कभी पूरा देख पाते हों ।हां, लता मंगेशकर वाला जरूर पूरा देखा था ।वह तो देखना ही था ।
फैजान मुस्तफा के अलग अलग विषयों के वीडियो जानकारी देने वाले होते हैं । उन्हें जरूर देखा जाना चाहिए ।
आशुतोष की हड़बड़ाहट वाली शैली में तो कोई अंतर नहीं आया है पर ‘दरअसल’ की आदत ‘कुछ’ कम हुई दिखती है ।वैसे तो ‘सत्य हिंदी’ पर सारे विडीयो आजकल चकल्लस के ज्यादा लगते हैं । हां, इस बार विजय त्रिवेदी शो में दलित चिंतक विवेक कुमार से बातचीत बड़ी प्रासंगिक रही । यूट्यूब पर इतना ज्यादा आजकल हो गया है कि दिन और समय छोटे पड़ गये हैं । ‘सत्य हिंदी’ ने ही सबसे ज्यादा समय ले लिया है ।पर यह उसकी कामयाबी है । चुनाव के अगले चरण रोचक हैं । जिस प्रचार से राजा जीता है वही प्रचार उसकी गर्दन को जकड़ रहा है । आखिर किसान आंदोलन का प्रचार प्रसार पूरे देश और दुनिया में हुआ है । आंदोलन से डरने वाली भाजपा को आंदोलन जकड़ रहा है । 10 मार्च इसकी ताकीद करेगा ।

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