यह कांफ्रेंस इस लिहाज से बहुत खास थी कि विभिन्न राजनीतिक एवं धार्मिक चिंतक एक मंच पर एकत्र थे. इसमें आचार्य प्रमोद कृष्णन एवं पंडित देव आनंद, जैन मुनि जयंत कुमार और कई मुस्लिम धर्मगुरुओं ने अपने विचार रखे. राजनीतिक दलों में भाजपा का नेतृत्व जनरल वीके सिंह ने किया, वहीं कांग्रेस की ओर से राशिद अल्वी एवं अल्लू मियां मौजूद थे.

DSC4076आतंकवाद से भारत समेत दुनिया के कई देश जूझ रहे हैं. विकास और खुशहाली के लिए आतंकवाद का खात्मा बहुत ज़रूरी है. देश के बुद्धिजीवी एवं विभिन्न धर्मों के धर्मगुरु आतंकवाद को लेकर खासे चिंतित हैं. पिछले दिनों राजधानी दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब स्थित मावलंकर ऑडिटोरियम में लिमरा फाउंडेशन के तत्वावधान में एक कांफ्रेंस का आयोजन किया गया, जिसमें बड़ी संख्या में बुद्धिजीवियों, धर्मगुरुओं एवं समाज के अन्य वर्ग के लोगों ने हिस्सा लिया और अपने विचार व्यक्त किए. अधिकांश वक्ताओं का मानना था कि जैसे ही कहीं कोई आतंकी वारदात होती है, तो शक की सूई सबसे पहले मुसलमानों की ओर जाती है और मुस्लिम नौजवानों को पकड़ कर जेल में डाल दिया जाता है, उन पर झूठे आरोप लगाए जाते हैं और फिर कई साल बाद अदालत उन्हें निर्दोष बताकर रिहा कर देती है. और तो और, मीडिया भी ऐसे लोगों का साथ नहीं देता.
कांफ्रेंस को संबोधित करते हुए जस्टिस राजेंद्र सच्चर ने कहा कि कोई भी देश तब तक सभ्य नहीं माना जा सकता, जब तक वहां के अल्पसंख्यक खुद को पूरी तरह सुरक्षित न समझते हों. इस सिलसिले में दुर्भाग्यपूर्ण पहलू यह है कि मीडिया, जिसे लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है, की भूमिका भी संदिग्ध नज़र आती है. आम तौर पर जब भी किसी आतंकवादी घटना को लेकर कोई मुस्लिम नौजवान पकड़ा जाता है, तो जांच पूरी भी नहीं हो पाती कि मीडिया उसे आतंकवादी घोषित करके बे्रकिंग न्यूज बना देता है. लेकिन, वही नौजवान जब सालों बाद निर्दोष साबित होकर जेल से रिहा होता है, तो उस पर कोई चर्चा नहीं होती. जस्टिस सच्चर ने कहा कि हिंदू और मुसलमान दो आंखों की तरह हैं, एक के दर्द को दूसरी आंख महसूस करती है, लेकिन कुछ लोग भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने की बात करते हैं, जो संवैधानिक रूप से बिल्कुल ग़लत है.
जुबैर खां अलीग नामक युवक, जिसे 17 जुलाई, 2012 को दिल्ली के शाहीन बाग (ओखला) से गिरफ्तार किया गया था और जिसे ढाई साल तक तिहाड़ जेल में रहने के बाद जमानत मिली, उसने कांफ्रेंस में अपनी आपबीती सुनाते हुए बताया कि जेल में रहते हुए मीडिया ने उसके बारे में ऐसी-ऐसी बातें कहीं, जिनसे उसका दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं था. वह जब रिहा होकर अपने घर आया, तो उसके सामने सबसे बड़ी समस्या थी रोज़ी-रोटी की. जुबैर ने बताया कि उसने कई कंपनियों में आवेदन किया, जहां उसकी योग्यता को सराहा भी गया, लेकिन जब उन्हें मालूम हुआ कि वह आतंकवाद के आरोप में जेल जा चुका है, तो उसे नौकरी देने से मना कर दिया गया. उसे आज भी ऐसी दिक्कतों से दो-चार होना पड़ता है.
मीडिया के दोहरे मापदंड की ओर इशारा करते हुए प्रख्यात पत्रकार कुलदीप नैयर ने कहा कि आतंकवाद केवल रायफल और बंदूक से ही अंजाम नहीं दिया जाता, बल्कि नकारात्मक सोच और किसी को मानसिक रूप से अपंग कर देना भी आतंकवाद की श्रेणी में आता है. जैन मुनि जयंत कुमार ने कहा कि आतंकवाद हमेशा ग़रीबी की गोद में पलता है. अगर सरकार आतंकवाद का ़खात्मा चाहती है, तो उसे ग़रीबी खत्म करने की दिशा में काम करना चाहिए. जैन मुनि ने कहा कि हमारे देश के 70 प्रतिशत लोग ग़रीब हैं. अगर वाक़ई हम आतंकवाद ़खत्म करना चाहते हैं, तो हमें ग़रीबी ख़त्म करने की संभावनाएं तलाशनी चाहिए. केवल निर्दोषों को पकड़ कर और झूठे आरोप लगाकर हम इससे छुटकारा नहीं पा सकते. केंद्रीय विदेश राज्य मंत्री जनरल वीके सिंह ने कहा कि इस देश में हिंदू और मुसलमान बहुत प्यार-मोहब्बत से रहते थे, लेकिन अंग्रेजों ने दोनों के बीच ऐसा ऩफरत का बीज बोया कि हम एक-दूसरे को शक की निगाह से देखने लगे. इस्लाम हो या कोई और धर्म, वह आतंकवाद से दूर रहने की सीख देता है. उन्होंने कहा, मैंने कुरान का अनुवाद पढ़ा है. कुरान में मुझे कहीं भी आतंकवाद की कोई बात नहीं मिली. मैंने अपने सैन्य जीवन में रोजे भी रखे हैं, क्योंकि मैं हर धर्म को सम्मान की निगाह से देखता हूं.
यह कांफ्रेंस इस लिहाज से बहुत खास थी कि विभिन्न राजनीतिक एवं धार्मिक चिंतक एक मंच पर एकत्र थे. इसमें आचार्य प्रमोद कृष्णन एवं पंडित देव आनंद, जैन मुनि जयंत कुमार और कई मुस्लिम धर्मगुरुओं ने अपने विचार रखे. राजनीतिक दलों में भाजपा का नेतृत्व जनरल वीके सिंह ने किया, वहीं कांग्रेस की ओर से राशिद अल्वी एवं अल्लू मियां मौजूद थे. कुल मिलाकर यह एक अच्छा आयोजन था, लेकिन एक कमी बहुत अखरी. वह यह कि जिस तरह बुद्धिजीवियों, विभिन्न धर्मगुरुओं एवं राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों को एक मंच पर अपने विचार व्यक्त करने के लिए आमंत्रित किया गया, उसी तरह यदि इसमें मुसलमानों के विभिन्न वर्गों के विद्वानों-प्रतिनिधियों को भी शामिल कर लिया जाता, तो कांफ्रेंस कहीं ज़्यादा सफल साबित होती. ऐसे आयोजन निश्चित तौर पर मुसलमानों की वास्तविक छवि लोगों के सामने लाने में सहायक साबित हो सकते हैं और जो लोग इस्लाम या मुसलमानों के प्रति नकारात्मक सोच रखते हैं, उन्हें सही स्थिति समझने में मदद कर सकते हैं. इसके साथ ही मुस्लिम संगठनों को चाहिए कि जिस तरह निर्दोष मुसलमानों पर हो रहे अत्याचार के ़िखला़फ कांफ्रेंस आयोजित करके आवाज़ उठाई जाती है, उसी तरह उन मुसलमानों के ़िखला़फ भी आवाज़ उठाई जानी चाहिए, जो देश विरोधी गतिविधियों में लिप्त हैं. ग़ौरतलब है कि बीते दिनों अलगाववादी नेता मसर्रत आलम ने कश्मीर में एक जलसा किया और उसमें पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगाए. निश्चित तौर पर यह एक निदंनीय कार्य है और इससे देश के मुसलमान आहत हुए हैं. लिहाज़ा, कांफ्रेंस और सम्मेलन जैसे आयोजन करके हर तऱफ यह संदेश देने की ज़रूरत है कि भारतीय मुसलमान जिस तरह आतंकवाद से नफरत करते हैं, उसी तरह देश विरोधी गतिविधियों से भी नफरत करते हैं.

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