गत दिवस नयी दिल्ली स्थित गांधी शांति प्रतिष्ठान में विद्यादान सत्याग्रह अभियान एवं अर्थ कीपर्स कनैक्ट के सहयोग से स्वस्थ, समरस, सतर्क एवं सुरक्षित विश्व की परिकल्पना को साकार करने हेतु मारुति उद्योग के श्री विदित भारद्वाज द्वारा आयोजित संगोष्ठी को सम्बोधित करते हुए वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं पर्यावरणविद ज्ञानेन्द्र रावत ने कहा कि समूचे विश्व ने भारतीय संस्कृति, ऋषिकुल परम्पराओं, शिक्षा और समरसता की भावना का लोहा माना है, इतिहास इसका जीवंत प्रमाण है। यही नहीं मानव जाति के कल्याण की दिशा में भारत ने सदैव विश्व का मार्गदर्शन किया है और भविष्य में भी संस्कृति के संकट और महामारी व अतिभोगवादिता से विश्व को उबारने में अपनी कारगर भूमिका का निर्वहन करने में कोई कोताही नहीं बरतेगा। भारत प्राचीन काल से विश्व गुरू रहा है। यह कहना सरासर गलत है कि भारत अब विश्व गुरू बन गया है या विश्व गुरू बनने की दिशा में अग्रसर है। हां आज देश में जो सामाजिक और सांप्रदायिक वैमनस्य के वातावरण का जो निर्माण किया जा रहा है, उसका निराकरण गांधी दर्शन में ही निहित है। इस सच्चाई को नकारा नहीं जा सकता। इसमें दो राय नहीं कि देश की एकता, अखण्डता और संप्रुभता की रक्षा करने में हम तभी समर्थ होंगे जब हम आपसी मतभेद, वर्ण भेद, जातिभेद और धर्मभेद को तिलांजलि दे एक्यभाव से राष्ट्र निर्माण में सहयोग दें।

इस अवसर पर विद्यादान योजना के प्रणेता व डी आर डी ओ के वैज्ञानिक रहे प्रोफेसर श्री एस के सिंह ने ग्रामीण भारत सशक्तिकरण की अद्भुत कहानी की चर्चा के दौरान ग्रामीण विकास में वास्तविक धरा के विस्तार के साथ किसान के उन्नयन में कार्य योजना की भूमिका, वैचारिक सम्मति-सम्पत्ति के प्रोत्साहन में गांधी विचार व स्वावलम्बन की भूमिका के महत्व पर प्रकाश डाला। गोवा से पधारे श्री डेरिल डिसूजा ने अपने सारगर्भित लम्बे वक्तव्य में हमारे प्राकृतिक संसाधनों के अति दोहन, महानगरीय, जनसंख्या विस्तार, निजीकरण, पूंजीवादी प्रवृत्ति और प्रदूषण के चलते बढ़ते तनाव के दुष्परिणामों का सिलसिलेवार वर्णन किया तथा वृक्षारोपण व आर्गैनिक फार्मिंग की उपयोगिता पर विस्तार से प्रकाश डाला। सी आर डी जी फाउंडेशन के सचेतक श्री अरविंद तिवारी ने कहा कि आवश्यकता इस बात की है कि हम अपने कार्य क्षेत्र में सफलता हेतु अपने प्रभाव क्षेत्र का विस्तार करें और दुष्प्रवृत्ति के लोगों से दूरी बनायें। वरिष्ठ पत्रकार एवं चिंतक श्री संत समीर ने कहा कि पश्चिम और भारतीय संस्कृति में बहुत बडा़ फर्क है। हमारी संस्कृति में संगीत ब्रह्म प्राप्ति का साधन है जबकि पश्चिम का हमारे विनाश और शरीर पर दुष्प्रभाव का कारण। संस्कृति पत्थर की वस्तु नहीं है। याद रखिये यदि संस्कृति बची तो हम बचेंगे, हमारा अस्तित्व बचा रह पायेगा। निर्माण विशेषज्ञ व ईको फ्रैंडली लिविंग फाउंडेशन कोलकाता के श्री अरुण बागला ने अपने वक्तव्य में गोपालन के साथ वृक्षारोपण पर बल दिया और कहा कि मौजूदा दौर में पर्यावरण रक्षा का सवाल सबसे अहम है। पर्यावरणवादी, लेखक व सामाजिक विषयों के जानकार श्री कौशल किशोर जी ने सामाजिक समरसता के महत्व पर प्रकाश डाला व जीवन में नदियों की महत्ता का सिलसिलेवार वर्णन किया।

संगोष्ठी में खुशीग्राम की परिकल्पना के बारे में वरिष्ठ पत्रकार श्री अजीत कुमार जी, वन्य जीव, पर्यटन मामलों के जानकार और पक्षी प्रेमी श्री प्रमोद सिंह जी, जाने माने विचारक श्री ब्रज किशोर झा जी ने राष्ट्रीय महत्व के विषयों पर अपने सारगर्भित विचार व्यक्त किये। इस अवसर पर प्रख्यात कवि श्री विनय विनम्र जी के राष्ट्रभक्ति और वीर रस से ओतप्रोत गीतों ने जहां सभागार में मौजूद बुद्धिजीवियों, समाज सेवियों व श्रोताओं में जोश भर दिया वहीं कवि व लेखक श्री श्याम सुंदर सिंह की कविताओं ने उपस्थित जनों का मन मोह लिया। संगोष्ठी में इंदौर से आये श्री विश्वा शाह, मुजफ्फरनगर से आये श्री अभय रोड, मुंबई से आयीं नादि योग प्रशिक्षक व थैरैपिस्ट श्रीमती दीपाली वघासिया व संगोष्ठी के आयोजन में अहम भूमिका निर्वहन करने वाली प्रयास एक आशा की संयोजिका, पर्यावरणवादी, समाज सेविका श्रीमती जयश्री सिन्हा ने संगठन व भावी योजनाओं के बारे में प्रकाश डाला। संगोष्ठी में पर्यावरणवादी श्री प्रशांत सिन्हा, सेंटर फार मीडिया स्टडीज के श्री आनंद झा जी, पूर्व प्रशासनिक अधिकारी श्री सुशील कुमार सिन्हा जी व नागालैंड सहित देश के बारह से अधिक राज्यों के प्रतिनिधियों की उपस्थिति उल्लेखनीय थी।

अंत में आयोजन के सूत्रधार, गौ विश्व संसद के योजनाकार,खड़गपुर विश्वविद्यालय से शिक्षाप्राप्त, समाज विज्ञानी श्री चंद्र विकाश जी ने सभी उपस्थित जनों का आभार व्यक्त करते हुए वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र के स्थान पर सच्चे एवं सक्षम लोकतांत्रिक वैश्विक संस्था की स्थापना की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि इस दिशा में हम शीघ्र ही शीर्ष समिति की बैठक में विश्व संसद के गठन की कार्य योजना पर निर्णय करेंगे व नव वर्ष के जनवरी माह में इस योजना पर कार्य शुरू कर दिया जायेगा।

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