और अब चार दशकों के साथी राजकुमार केसवानी जी भी नहीं रहे । विगत 21 मई को उनके निधन के समाचार से मन दुखी हो गया ।

विगत एक वर्ष से कोरोना के संक्रमण के कारण उनसे प्रत्यक्ष भेंट तो नहीं हो सकी ,लेकिन फोन के माध्यम से संवाद बना रहता था ।हम अक्सर पुराने भोपाल को याद करके वर्तमान के संकटों और विसंगतियों को लेकर अपनी चिंताएं साझा किया करते थे ।अक्सर इतवार की शाम को उनके कॉलम आपस की बात को लेकर बातचीत होती थी ।हम एक दूसरे को कॉमरेड कहते थे ।वे बेहद दिलचस्प और जिंदादिल साथी थे ।

उनसे बातचीत में कई जानकारियां मिलती थीं । साथी राजकुमार केसवानी जी से हमारे तीन पीढ़ियों के संबंध रहे हैं ।तीन दशक पहले हम लोगों के घर भोपाल के पुराने हिस्से में कुछ दूरी के फासले पर ही थे ।उनके पिता जी लक्ष्मण दास जी और मेरे नाना जी मास्टर नाथू लाल सक्सेना जी के बीच उर्दू भाषा के कारण बौद्धिक मित्रता थी ।केसवानी जी भोपाल के वामपंथी माहौल में विकसित हुए ।वे अक्सर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यालय भी आते थे ।वहां भी राजनीति और साहित्य को लेकर उनसे गंभीर बातें होती थीं ।

राजकुमार केसवानी जी पत्रकारिता , साहित्य ,संगीत ,सिनेमा के क्षेत्र में वामपंथी चेतना और प्रगतिशील ,धर्म निरपेक्ष मूल्यों से प्रेरित होकर सक्रिय रहे । राजकुमार केसवानी जी के निधन से एक अधूरापन ,आज शून्य जैसा महसूस हो रहा है ।एक पुराने साथी के बिछोह का ज़ख्म आसानी से नहीं भरेगा ।लाल सलाम कॉमरेड राजकुमार केसवानी जी ।लाल सलाम ।

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