5...16वीं लोकसभा चुनाव के नतीजे सही अर्थों में राजनीतिक सूनामी हैं और ये सूनामी निश्‍चय ही बीजेपी और उसके समर्थक दलों के हक में है. जिस तरह सूनामी में इत्तेफाक से कुछ लोग एवं संपत्ति बच जाते हैं, ठीक उसी प्रकार कुछ राजनीतिक पार्टियां और उनके गठबंधन बच गए एवं शेष सभी इसमें बह गए. स्वाधिनता के बाद उन्हें 1977 में जनता पार्टी की लहर ने इसी तरह का कुछ देखने को मिला था और तब एक विशिष्ट पार्टी कांग्रेस बह गई थी. परंतु 2014 में सिर्फ एक राजनीतिक पार्टी और उसके गठबंधन ही नहीं बल्कि अनेक पार्टियां एवं दूसरे गठबंधन और उनके बड़े-बड़े महारथी करारी हार का शिकार हुए. इस सूनामी के सबसे विशेष बात है कि इसने 1989 से चली आ रही अपंगु संसद की कल्पना को ही समाप्त कर दिया है और इसी के साथ साथ गठबंधन सरकार की आवश्यकता को भी अलविदा कह दिया. इसके अलावा क्षेत्रीय एवं छोटी पार्टियों को सिमटने पर मजबूर कर दिया. चुनाव के नतीजे पर जहां एक ओर प्रभावित पार्टियां एवं उनके गठबंधन चकित है वहं दूसरी ओर विजयी भाजपा भी प्रसन्नता से फुली नहीं समा रही है और इस विजय के समय संतुलन से काम लेते हुए कह रही है कि हमें बहुमत तो निश्‍चय मिल गया है परंतु हमें राष्ट्र को चलाने के लिए समर्थन की आवश्यकता है. बहरहाल यह एक अच्छा एवं स्वागतयोग्य रूझान है. इसे हर हाल में कायम रहना चाहिए. ये लोकतंत्र एवं स्वयं पूरे राष्ट्र के हित में है. इसके अलावा यह खास बात यह भी हुई कि इस बार नोटा अर्थात किसी को भी वोट नहीं का सिलसिला शुरू हुआ, उसका भी कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा, क्योंकि जनता ने पार्टियों में अविश्‍वास के रूझान को खत्म करके किसी एक विशिष्ट पार्टी और उसके गठबंधन को सामूहिक रूप से पसंद किया. भारत जैसे बड़े राष्ट्र में मात्र 60 लाख से अधिक नोटा वोट डाले गए जो कि कुल डाले गए वोट का मात्र 1.1 प्रतिशत है. वैसे रिजर्व क्षेत्र में इसका कुछ उपयोग देखा भी गया.
आइए अब विश्‍लेषण करते हैं कि इस राजनीतिक सूनामी में कौन कौन राजनीतिक पार्टियां और उनके गठबंधन बुरी तरह प्रभावित हुए और कौन कौन से राजनीतिक महारथी नेस्तनाबूत हुए. वैसे भाजपा और उसके गठबंधन के हित में इस सूनामी ने स्वयं उन्हें भी चौंका दिया है क्योंकि इस सूनामी ने स्वयं अपने काबिले जिक्र महारथी अरुण जेटली एवं मुस्लिम चेहरे सैयद शाह नवाज हुसैन जैसे लोगों को भी नहीं बख्शा और वो भी अपनी अपनी सीट को बचा नहीं पाए. ऐसे ही अवसर पर एक चीनी कहावत याद आती है कि जब क्रांति आती है तो वह अपने बच्चों को भी खा जाती है और यही सबकुछ इस राजनीतिक सूनामी में भी हुआ है.
इस सूनामी में राष्ट्र का सबसे बड़े राजनीतिक गठबंधन यूपीए सर्वाधिक प्रभावित हुआ है. यही हार लेफ्ट फ्रंट का भी हुआ है. बहुजन समाज पार्टी, असम गण परिषद, ऑल इंडिया फारवार्ड ब्लॉक, बोडोलैंड पीपुल फ्रंट, बहुजन विकास आगाडी, नेशनल कांफ्रेन्स, झारखंड विकास मोर्चा, एमडीएमके एवं राष्ट्रीय लोक दल जैसी प्रसिद्ध क्षेत्रीय पार्टियां 16वीं लोकसभा से लुप्त हो गई है और 10 पार्टियां मात्र एक सांसद पाकर मुश्किल से अपनी जान बचा पाई. इसके अलावा राष्ट्र के सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस 2009 में 28.6 प्रतिशत से 19.4 प्रतिशत वोट एवं 206 सीट से 44 सीट पर सिमट गई. यही गिरावट अन्य बड़ी छोटी पार्टियों में भी देखने को मिली. भाजपा के लिए यह गौरव की बात है कि 2009 में 18.8 प्रतिशत वोट एवं 116 सीट से बढ़ कर 31.2 प्रतिशत और 282 सीट पर पहुंच कर रिकॉर्ड बनाया. इस लिहाज से ये सूनामी कांग्रेस, बीएसपी, जदयू, एनसीपी, एसपी, सीपीएम एवं आम आदमी पार्टी जैसी पार्टियों के लिए शोचनीय है कि उनके नेता इसे कैसे बचा पाते.
जहां तक विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के महारथियों का मामला है उनमें करारी हार खानेवाले बनारस से आम आदमी पार्टी के कन्वेनर अरविंद केजरीवाल, गुड़गांव से योगेंद्र यादव, मुंबई नोर्थ इस्ट से मेधा पाटकर, अमेठी से कुमार विश्‍वास, चंडीगढ़ से गुलपनाग, चांदनी चौक से आशुतोष, पूर्वी उत्तरी दिल्ली से प्रो. आनंद कुमार, पूर्वी दिल्ली से राजमोहन गांधी, गाजियाबाद से शाजिया इल्मी, बहुजन समाज पार्टी के घोसी से दारा सिंह चौहान, मुजफ्फरनगर से कादीर राणा, सुल्तानपुर से पवन पांडेय, शाहजहांपुर से उमेद सिंह, सपा के रामपुर से नशीद अहमद खां, नोर्थ सेंट्रल मुंबई से फरहान आजमी, डीएमके के दक्षिणी चैन्नई से टीके एस ऐलान गोवन, नागापटि्टनम से एके एस विजेन, अरक्कुनम से एनआर ऐलानगु, पोल्लाची से पुनगल्लुर एन पलानी सामी, थेनी से मुथू रमालंगम, जनता दल यूनाइटेड के मधेपुरा से शरद यादव, पश्‍चिमी चंपारण से प्रकाश झा, सासाराम से केपी रमैया, जमुई से उदय नारायण चौधरी, जहांनाबाद से अनील कुमार शर्मा, एनसीपी के भंडारागोंडीया से प्रफुल्ल पटेल, नासिक से छगन भुजबल, राजद के सारण से राबड़ी देवी, पाटलिपुत्र से मिर्जा भारती, मधुबनी से अब्दुल बारी सिद्दिकी, आरा से भगवान सिंह कुशवाहा, तृणमूल के दार्जिलिंग से भाइचुंग भुटिया, आरएलडी के बागपद से अजीत सिंह, नेशनल कांफरेन्स से श्रीनगर से डॉ फारुख अब्दुला, कांग्रेस के चांदनी चौक से कपिल सिब्बल,नई दिल्ली से अजय माकन, अजमेर से सचिन पायलट, गाजियाबाद से राज बब्बर, लखनऊ ने रिता बहुगुना जोशी, शोलापुर से सुशील कुमार शिंदे, सासाराम से मिराकुमार, उधमपुर से गुलाम नवी आजाद, फरुखाबाद से सल्मान खुर्शीद एवं भाजपा के अमृतसर से अरुण जेटली और भागलपुर से शहनवाज हुसैन के नाम काबिले जिक्र हैं.
सफलता एवं असफलता का मुंह देखने वाले इन महारथियों में भारतीय राजनीति के कई प्रसिद्ध परिवार भी शामिल है. गौरतलब बात एक और है कि नेहरू गांधी परिवार के भाजपा के वरुण गांधी (सुलतानपुर) एवं उनकी माता मेनका गांधी (पीलीभित) ने जहां सफलता पाई, वहीं इस परिवार के कांग्रेस के राहुल गांधी (अमेठी) और उनकी माता सोनिया गांधी (रायबरेली)  ने भी अपने पहले की जीत को दोहराया. व्यक्तिगत एवं परिवारिक तौर पर नेहरू-गांधी परिवार ने सिद्ध कर दिया कि वो जहां भी था और जिस पार्टी में भी था सफल हुआ. परंतु इस कटू सत्य से कोई इन्कार नहीं कर सकता है कि नेहरू-गांधी परिवार के राहुल गांधी एवं सोनिया गांधी के साथ साथ राहुल की प्यारी बहन प्रियंका गांधी नेहरू गांधी परिवार की पार्टी कांग्रेस को करारी हार से बचा नहीं पाए एवं वो 2009 में 28.6 प्रतिशत से 2014 में 19.4 प्रतिशत एवं 2009 में 206 सीट से 44 सीट पर पहुंचा दी गई. ये बात भी महत्व है कि इस परिवार के अलावा मुलायम सिंह यादव और उनके परिवार ने भी पांच सीटों पर जीत दर्ज करा कर उत्तर प्रदेश में सपा की लाज रख ली. स्मरण रहे कि समय मुलायम सिंह यादव आजमगढ़ एवं मैनपुरी, उनकी बहु डीमपले यादव कनौज, दो भतीजे अक्षय यादव, धर्मेंद्र यादव फिरोजाबाद एवं बदायूं से निर्वाचित हुए परंतु ये भी सपा को पतन की ओर जाने से रोक नहीं सके. रामविलास पासवान एवं उनके परिवार के तीन सदस्य हाजिपुर से स्वयं रामविलास पासवान, समस्तीपुर से भाई रामचंद्र एवं बेटे चिराग पासवान सफल रहे. सारण से लालू यादव की पत्नी राबड़ी देवी एवं बेटी मीसा का भी बुरा हश्र हुआ. राष्ट्रीय लोकस दल की सुप्रीमो अजीत सिंह बागपत से एवं उनके बेटे जयंत चौधरी मथुरा से हारे. इसी तरह जम्मू और काश्मीर में नेशनल कांफ्रेंन्स के डॉ फारुख अब्दुला श्रीनगर और उनके दमाद सचिन पायलट अजमेर से निर्वाचित नहीं हो पाए.
प्रश्‍न ये है कि अब इन महारथियों का क्या होगा? क्या वो इन करारी हारों से बाहर निकल भी पाएंगे? क्या वो अपनी अपनी बड़ी एवं छोटी पार्टी को बचा भी पाएंगे?
इन महारथियों की किस्मत का फैसला तो 2014 चुनाव ने कर दिया. इन सबका जो हश्र हुआ, इसके लिए वे खुद जिम्मेदार है. इन्होंने अतीत में अपनी अपनी सफलता के बाद अपने अपने चुनावी क्षेत्र की जनता के साथ केवल खिलवाड़ किया है एवं उनके हित और विकास पर कोई ध्यान नहीं दिया है बल्कि अपने निजी एवं पारिवारिक हित में ज्यादा उलझे रहे हैं. यह चुनाव इन सबके लिए पाठ है. ये भी प्रश्‍न है कि जनता के द्वारा ठुकराए गए ये तमाम महारथी क्या इससे कोई पाठ भी ले पाएंगे?


 
जनता के द्वारा ठुकराए गए जानेमाने महारथियों की सूची
नाम                पार्टी            क्षेत्र
1.              कपिल सिब्बल       कांग्रेस         चांदनी चौक
2.              सुुशील कुमार सिन्दे    कांग्रेस           शोलापुर
3.              सलमान  खुर्शीद       कांग्रेस          फरुखाबाद
4.              गुलाम नबी आजाद     कांग्रेस        उधमपुर
5.              सचिन पायलट         कांग्रेस       अजमेर
6.              अजय माकन          कांग्रेस          नई दिल्ली
7.              राज बब्बर            कांग्रेस          गाजियाबाद
8.            रिता बहुगुणा            कांग्रेस         लखनऊ
9.            मीरा कुमार            कांग्रेस          सासाराम
10.          डॉ फारुक अब्दुला   नेशनल कांफ्रेंस    श्रीनगर
11.          अरुण जेटली          भाजपा          अमृतसर
12.          सैयद शनवाज हुसैन    भाजपा           भागलपुर
13.          शरद यादव           जदयू              मधेपुरा
14.          प्रकास झा           जदयू              पश्‍चिमी चंपारण
15.          प्रफुल पटेल         एनसीपी             भंडारा गोंदिया
16.          राबड़ी देवी          राजद                सारण
17.          मीसा भारती         राजद               पाटलिपुत्र
18.          अजीत सिंह       राष्ट्रीय लोक दल      बागपत
19.          अरविंद केजरीवाल    आम आदमी पार्टी    बनारस
20.          योगेंद्र पाल            आम आदमी पार्टी   गुड़गांव
21.          मेधा पाटकर           आम आदमी पार्टी  मुंबई नॉर्थ इस्ट
22.          कुमार विश्‍वास       आम आदमी पार्टी    अमेठी
23.          राजमोहन गांधी       आम आदमी पार्टी   पूर्वी दिल्ली
24.          प्रो. आनंद कुमार        आम आदमी पार्टी  पूर्वी उत्तरी दिल्ली
25.          आशुतोष             आम आदमी पार्टी     चांदनी चौक
26.          शाजिया इल्मी      आम आदमी पार्टी       गाजियाबाद
27.          गुल पनाग          आम आदमी पार्टी     चंडीगढ़
28.          कादीर राणा     बसपा                  मुजफ् फरनगर
29.          टीके एस एलान गोवन   डीएमके         दक्षीन चैन्नई

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