जल, जंगल और ज़मीन की लड़ाई बहुत पुरानी है. जंगल में रहने वालों का मानना है कि उस पर पहला अधिकार उनका है, क्योंकि जंगल ही उनके जीने और रोजी-रोटी का सहारा है. बात सही भी है. जंगल आज भी देश के करोड़ों लोगों के लिए रहने, खाने और जीने का सहारा है. एक उदाहरण अगर हसदेव अरण्य वन्य क्षेत्र का लें, तो यह बात सौ फीसद सही साबित होती है. छत्तीसगढ़ के कोरबा, सरगुजा एवं रायगढ़ ज़िलों में फैला हुआ हसदेव अरण्य आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र है. यह क्षेत्र संविधान की पांचवीं अनुसूची के तहत आता है. यहां पर रहने वाले आदिवासियों की आजीविका, संस्कृति एवं जीवनशैली पूर्ण रूप से जंगल और खेती पर ही निर्भर है, जिसका वे पीढ़ियों से संरक्षण व संवर्धन करते आए हैं. यह इलाका बहुत ही समृद्ध एवं जैव विविधता से परिपूर्ण है और कई महत्वपूर्ण वन्य-जीवों का आवास स्थल भी है. इसलिए यह वन संपदा न स़िर्फ स्थानीय, बल्कि पर्यावरणीय दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है.
वर्ष 2009 में इस संपूर्ण कोल फील्ड को खनन के लिए नो गो एरिया घोषित किया गया था, लेकिन इस सबके बाद भी मौजूदा केंद्रीय सरकार ने इस इलाके में कोयला खदानों का आवंटन किया है. छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन इस मसले पर सालों से विरोध करता आ रहा है. उसकी मांग है कि हसदेव अरण्य क्षेत्र में आवंटित कोयला खदानों को तुरंत निरस्त किया जाए और पूरे हसदेव अरण्य को खनन से मुक्त रखा जाए. इसके साथ ही हसदेव अरण्य क्षेत्र की क़रीब 20 ग्राम सभाओं ने एक प्रस्ताव पारित करके यह सा़फ कर दिया था कि वे अपने क्षेत्र में होने वाले कोल ब्लॉक आवंटन और कोयला खनन का विरोध करेंगी, लेकिन कोल ब्लॉक आवंटन के वक्त ग्राम सभाओं के उस प्रस्ताव पर कोई ध्यान नहीं दिया गया. स्थानीय लोगों का कहना है कि चूंकि हमारे क्षेत्र में पेसा एक्ट (पंचायत एक्सटेंशन टू शिड्यूल एरिया एक्ट, जो आदिवासी इलाकों को विशेषाधिकार देता है) लागू है, इसलिए किसी भी कोल ब्लॉक के लिए ज़मीन अधिग्रहण करने से पहले सरकार को यहां की ग्राम सभाओं की अनुमति लेना आवश्यक है, लेकिन ऐसा हुआ नहीं.
बहरहाल, अब कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने इस मुद्दे पर आवाज़ उठाई है. जून के दूसरे सप्ताह में वह छत्तीसगढ़ के कोरबा ज़िले के मदनपुर गांव में किसानों एवं आदिवासियों के बीच पहुंचे. राहुल गांधी ने कहा कि जंगलों पर वहां निवास करने वाले आदिवासियों का हक़ है. कोयला खदान बनने से जंगल खत्म हो जाएंगे, तो आदिवासियों के हाथ कट जाएंगे. राहुल गांधी ने मौजूदा केंद्र सरकार के भूमि अधिग्रहण क़ानून का उल्लेख करते हुए कहा कि यूपीए सरकार ने अपने भूमि अधिग्रहण अधिनियम में पंचायतों, ग्राम सभाओं और किसानों-आदिवासियों की सहमति से ही भूमि लेने का प्रावधान किया था. अधिग्रहीत भूमि पर पांच वर्ष में उद्योग न लगाने पर किसानों को उनकी ज़मीन वापस देने का नियम बनाया गया था, लेकिन एनडीए सरकार ने उक्त सारे
नियम-प्रावधान बदल दिए हैं. राहुल गांधी ने मदनपुर में एकत्र हुए ग्रामीणों को भरोसा दिलाया कि कांग्रेस पार्टी और वह उनके साथ हैं. ग़ौरतलब है कि मदनपुर हसदेव अरण्य कोयला क्षेत्रों के तहत कोयला खदानों के खिला़फ लोगों के विरोध का केंद्र रहा है. राहुल गांधी ने मदनपुर साउथ, ईस्ट और मोरगा कोल ब्लॉक से प्रभावित होने वाले मदनपुर, पतुरियाडांड, गिद्धमुड़ी, मोरगा, भुलसीभावना, खिरटी, उच्लेंगा, पुटा, परोगिया, जामपानी, कैरहियापारा, साल्टी, घाटबरी, हरिहरपुर एवं फतेपुर सहित 20 गांवों के निवासियों से मुलाकात करके उनसे चर्चा की. मौजूदा सरकार ने इस क्षेत्र में सात कोल ब्लॉक आवंटित किए हैं, जिनका भंडार अनुमानित तौर पर 5.53 अरब टन का है. इन ब्लॉकों में से तीन परिचालन में हैं, जिनमें चोटिया खदान बाल्को को प्रकाश इंडस्ट्रीज से मिली है और दो खदानें राजस्थान राज्य विद्युत निगम लिमिटेड को आवंटित की गई हैं, जो माइंस डेवलपर एंड ऑपरेटर (एमडीए) मॉडल के तहत अडाणी माइनिंग द्वारा संचालित हैं. तीन ब्लॉक छत्तीसगढ़ पावर जेनरेशन कंपनी को, जबकि तारा में एक ब्लॉक नीलामी में जिंदल को मिलने के बाद अभी स्वीकृति नहीं मिली है.
ग्रामीणों ने बताया कि हसदेव अरण्य क्षेत्र कोरबा और सरगुजा में फैला हुआ है. इस क्षेत्र में कुल 20 कोल ब्लॉक हैं, जिनमें 45,883 एकड़ भूमि समाहित होगी. इसमें अकेले कोरबा ज़िले की 26,712.67 एकड़ भूमि शामिल है. बहरहाल, हसदेव अरण्य क्षेत्र के लोग कोल ब्लॅाक आवंटन का अभी भी विरोध कर रहे हैं. उन्हें लगता है कि कोल ब्लॉक के चलते उनकी आजीविका छिन जाएगी, विस्थापन होगा और आदिवासी संस्कृति खतरे में पड़ जाएगी. लेकिन, सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या इस विरोध का कोई मायने है? क्योंकि, मौजूदा केंद्र सरकार द्वारा लाए गए नए कोल ऑर्डिनेंस में ऐसे प्रावधान हैं, जिनकी वजह से ग्रामीणों का विरोध कोई मायने नहीं रखता. इस अध्यादेश में कहा गया है कि कोयला खनन का विरोध करने पर प्रतिदिन एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा. अगर इस तरह का काम दोबारा होता है, तो प्रतिदिन दो लाख रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा.
हसदेव अरण्य संरक्षित क्षेत्र क्यों नहीं
हसदेव अरण्य वन्य क्षेत्र मध्य भारत के कुछ बड़े वन्य क्षेत्रों में से एक है. जैव विविधता से भरे इस क्षेत्र में कई दुर्लभ जड़ी-बूटियां और वन्य-जीव पाए जाते हैं. इस समृद्ध पर्यावरणीय क्षेत्र में, कोयला मंत्रालय के मुताबिक, 1,878 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में एक बिलियन मीट्रिक टन कोयले का भंडार है. इसमें से 1,502 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र वन क्षेत्र है. 2010 में वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की एक रिपोर्ट आई थी. उस रिपोर्ट के आधार पर हसदेव अरण्य क्षेत्र को नो गो एरिया घोषित कर दिया गया. इसका अर्थ यह हुआ कि इस क्षेत्र में कोई कंपनी जाकर खनन का काम नहीं कर सकती. इससे पहले भी राज्य सरकार ने हसदेव अरण्य वन्य क्षेत्र को हाथी अभयारण्य घोषित करने के लिए एक प्रस्ताव पारित करके केंद्र सरकार को भेजा था. वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने उस पर अपनी मुहर भी लगा दी थी, लेकिन राज्य सरकार ने उसे ठंडे बस्ते में डाल दिया. यह कहा जाता है कि सीआईआई ने छत्तीसगढ़ में कोयले की प्रचुरता को देखते हुए इस फैसले पर आपत्ति जताई थी. दरअसल, एक बार अगर कोई वन्य क्षेत्र संरक्षित क्षेत्र या राष्ट्रीय अभयारण्य घोषित हो जाता है, तो उस इलाके में खनन कार्य नहीं किया जा सकता.