मैंने लोहिया जी के जन्म दिन के अवसर पर भी कहा था कि चंद्रशेखर जी के आचरण, सादगी और ईमानदारी को आप एक मिसाल समझें. इतनी सादगी किसी नेता में नहीं थी. या तो डॉ. लोहिया में थी या फिर चंद्रशेखर जी में. कुछ लोग तो प्रधानमंत्री बनते-बनते न जाने कौन-कौन से कपड़े बदल कर पहनने लगते. चंद्रशेखर जी जो कपड़े रा़ेजाना पहनते थे, वही धोती-कुरता, उसी को उन्होंने प्रधानमंत्री बनकर पहना. वह जो सोचते थे, वही करते थे, लेकिन कभी समझौता नहीं करते थे. इसी बात को लेकर वह बहुत लंबे समय तक सोशलिस्ट पार्टी, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी, जयप्रकाश जी के साथ रहे, लोहिया जी के साथ भी रहे. एक बार मैंने कहा, आप सोशलिस्ट पार्टी में थे और आप लोहिया जी का बहुत सम्मान करते हो. इस पर उन्होंने दु:खी होकर कहा, आज तक मुझे बहुत बड़ा पश्चाताप है, आ़खिरी तक वह पश्चाताप हम भूल नहीं पा रहे हैं. हमने कहा कि मामला क्या है? दरअसल, बात यह थी कि तब चंद्रशेखर जी कांग्रेस में चले गए थे. एक दिन लोहिया जी सेंट्रल हाल में बैठे थे. उसी वक्त इंदिरा जी ने चंद्रशेखर जी को बुलवाया. लोहिया जी ने कहा, चंद्रशेखर जी, इतनी तेजी से कहां जा रहे हैं? इस पर उन्होंने कहा, अभी लौटकर आ रहा हूं लोहिया जी. लेकिन उन्हें देर हो गई और देर होने पर उन्होंने सोचा कि अब लोहिया जी नहीं होंगे. 

CSचंद्रशेखर जी के बारे में वही जानते हैं, जो उनके साथ रहे, उनके पीछे रहे. मुझे उनके भाषण सुनने के लोकसभा में भी बहुत-सेे मौक़े मिले. चंद्रशेखर जी ने कभी भी सदन का बहिष्कार नहीं किया. लेकिन, एक ऐसा मौक़ा आया कि उन्हें बहिष्कार करना पड़ गया. एक सवाल उठा दिया उन्होंने गांधी ट्रस्ट का. बनारस में गांधी ट्रस्ट स्थापित करने का काम चंद्रशेखर जी ने किया. लोकसभा में कुछ लोगों ने उन पर टिप्पणी कर दी. मुझमें और चंद्रशेखर जी में थोड़ा ही अंतर रहता था. तब वह उधर बैठते थे, हम इधर बैठते थे. मैंने चंद्रशेखर जी से कहा कि आप बोलिए. मैंने कहा, मैं तो बोलूंगा ही, आप बोलिए. तब वह बोले और उन्होंने बहुत मार्मिक भाषण दिया. उन्होंने कहा कि अगर हमने गांधी ट्रस्ट बनाया है, तो आप इस पर टिप्पणी करोगे? और जो कार्यक्रम हुए कई महान नेताओं पर, उस पर तो हमने टिप्पणी की नहीं थी. लेकिन वह टिप्पणी ऐसी थी, जिसे कोई बर्दाश्त नहीं कर सकता था. हम उस पर बोले और बोलने के बाद मैंने कहा, टिप्पणी करने वाले माफी मांगें. हमारे बोलने के बाद जब मामला बहुत ज़्यादा गंभीर हो गया और सरकार ने गंभीरता से नहीं लिया, तो हमने सदन का बहिष्कार कर दिया. चूंकि वह सवाल उठाया था चंद्रशेखर जी ने, हमने तो उनका समर्थन किया था, लेकिन उन्हें बहिष्कार करना पड़ गया. उन्होंने मेरी पीठ पर मारा थप्पड़ और कहा, मैं पहली बार सदन से बहिष्कार कर रहा हूं. आपने मुझे मजबूर कर दिया, क्योंकि मेरा ही सवाल था. उस सवाल पर आपने जो बहिष्कार किया, तो मैंने सोचा कि यदि अब हम नहीं करेंगे, तो बड़ी दिक्कत होगी. उन्होंने कहा, मैंने कभी भी सदन का बहिष्कार नहीं किया और आज पहली बार मुलायम सिंह ने मुझे मजबूर कर दिया. वह सेंट्रल हाल चले आए, किया बहिष्कार.
मैंने लोहिया जी के जन्म दिन के अवसर पर भी कहा था कि चंद्रशेखर जी के आचरण, सादगी और ईमानदारी को आप एक मिसाल समझें. इतनी सादगी किसी नेता में नहीं थी. या तो डॉ. लोहिया में थी या फिर चंद्रशेखर जी में. कुछ लोग तो प्रधानमंत्री बनते-बनते न जाने कौन-कौन से कपड़े बदल कर पहनने लगते. चंद्रशेखर जी जो कपड़े रा़ेजाना पहनते थे, वही धोती-कुरता, उसी को उन्होंने प्रधानमंत्री बनकर पहना. वह जो सोचते थे, वही करते थे, लेकिन कभी समझौता नहीं करते थे. इसी बात को लेकर वह बहुत लंबे समय तक सोशलिस्ट पार्टी, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी, जयप्रकाश जी के साथ रहे, लोहिया जी के साथ भी रहे. एक बार मैंने कहा, आप सोशलिस्ट पार्टी में थे और आप लोहिया जी का बहुत सम्मान करते हो. इस पर उन्होंने दु:खी होकर कहा, आज तक मुझे बहुत बड़ा पश्चाताप है, आ़िखरी तक वह पश्चाताप हम भूल नहीं पा रहे हैं. हमने कहा कि मामला क्या है? दरअसल, बात यह थी कि तब चंद्रशेखर जी कांग्रेस में चले गए थे. एक दिन लोहिया जी सेंट्रल हाल में बैठे थे. उसी वक्त इंदिरा जी ने चंद्रशेखर जी को बुलवाया. लोहिया जी ने कहा, चंद्रशेखर जी, इतनी तेजी से कहां जा रहे हैं? इस पर उन्होंने कहा, अभी लौटकर आ रहा हूं लोहिया जी. लेकिन उन्हें देर हो गई और देर होने पर उन्होंने सोचा कि अब लोहिया जी नहीं होंगे. इधर लोहिया जी इंतज़ार करते रहे. कोई सदन में नहीं रहा, केवल दो-चार लोग रह गए. लेकिन लोहिया जी बैठे रहे कि चंद्रशेखर जी ने वादा किया था कि वह आ रहे हैं. पर चंद्रशेखर जी चले गए. चंद्रशेखर जी बोले, हम आज तक दु:खी होते हैं कि लोहिया जी इतनी देर तक इंतज़ार करते रहे. हमने समझा कि अब नहीं बैठे होंगे, इसलिए हम चले गए. बहुत सारी बातें हैं. हम उनके यहां रहते थे. वहां कोई चला जाए, उनका विरोधी चला जाए, चाहे उनका समर्थक चला जाए, कभी व्यवहार में अंतर नहीं आया. कई बार मैंने टोका उनको. मैं जाता था, तो मुझे गाड़ी तक छोड़ने आते थे. मैंने कई बार धक्का देकर कहा, नहीं, आप नहीं जाइएगा. मैंने एक बार गाड़ी जान-बूझकर बाहर सड़क पर खड़ी कराई. और, वह मुझे सड़क पर छोड़ने चले आए. उन्होंने कहा कि पार्टी का सम्मेलन कहां करना चाहते हो, तो मैंने दूसरी जगह बताई. इस पर उन्होंने कहा कि बलिया में ही होने दो. तब बलिया में ही हुआ था. देवीलाल जी भी गए थे और हम सब लोग गए थे. वहीं पर पार्टी के नाम में समाजवादी शब्द जोड़ा गया था. चंद्रशेखर जी ने कहा, मैं तो समाजवादी हूं, मुझे कोई आपत्ति नहीं है. देवीलाल से पूछ लो. देवीलाल जी ने कहा, जो चाहो सो रख लो, मुझे कोई आपत्ति नहीं है. पार्टी बनाओ, मजबूत बनाओ. तब नाम रखा गया था समाजवादी जनता पार्टी. ये थे बड़े नेता. जो सरलता चंद्रशेखर जी में थी, वही देवीलाल में थी. कर्पूरी ठाकुर की तो बात ही छोड़िए, कोई जवाब नहीं मिलेगा पूरे देश में. मैंने छह दिनों का दौरा किया था बिहार का. सात दिनों का था, लेकिन एक दिन पहले ही चला आया था. ये जितने समाजवादी हैं, उनकी अभी तक सादगी ज्यों की त्यों है. ये विचारधारा वाले लोग हैं, लोकभोजन, लोकभूषा और लोकभाषा. अभी एक शख्स ऐसा आया, इतना बढ़िया पैंट-शर्ट पहन कर, अभी परसों-तरसों की बात है. मैंने कहा कि खादी का बढ़िया पहन कर आता, तो मुझे आपत्ति नहीं होती, हैंडलूम ही पहन लेता. जब समाजवादी पार्टी ने सा़फ लिखा है कि हम खादी पहनेंगे, नहीं तो हैंडलूम पहनेंगे. चंद्रशेखर जी की सादगी समाजवादी सादगी थी. एक बार मैंने देखा कि कुछ दूसरे
नेताओं ने अलग मंच लगा दिया और यशवंत सिंह ने अलग मंच लगा दिया. उन नेता से मैंने कहा कि मैं तो ज़रूर जाऊंगा, यशवंत सिंह ने मंच लगाया है और नारे मेरे लग रहे हैं, तो मैं कैसे नहीं जा सकता हूं. हम इनके मंच पर गए और इनको धन्यवाद भी दिया. इन्होंने अपना अलग मंच लगाया, उसका कारण सही था. मैंने कहा, चंद्रशेखर जी के खिला़फ बोलोगे, तो मैं भी बर्दाश्त नहीं करूंगा. रात को जब डरौला पर ठहरे, साथ-साथ थे, तो मैंने कहा, चंद्रशेखर जी के खिला़फ कहीं आपने बोल दिया, तो मैं भी आपके साथ नहीं रहूंगा. खैर, नहीं बोले. आज ऐसे दिन जब मनाए जाते हैं, तो आपको प्रेरणा लेनी चाहिए. एक साधारण परिवार में, एक किसान परिवार में पैदा होकर चंद्रशेखर जी उच्चतम शिखर पर पहुंचे.
लेकिन सरकार क्यों चली गई? उसका ज़्यादा जिक्र नहीं करेंगे. उन्होंने इस्ती़फा दे दिया, क्योंकि उन पर दबाव था. एक मंत्री को बुलाया, सच है कि मुझे बुलाया राजीव गांधी ने और कहा कि पूरा समर्थन हम दे ही रहे हैं, सरकार आपकी चल रही है. हम यह नहीं कहते कि उस मिनिस्टर को हटा दो. बल्कि यह कह रहे हैं कि स्टेट मिनिस्टर है, कैबिनेट मिनिस्टर बना दो (इशारा कमल मोरारका की तऱफ), प्रधानमंत्री कार्यालय का वह मिनिस्टर न रहे, इतनी मेरी शिकायत है. हमने चंद्रशेखर जी से कहा, इतनी बात तो मान रहे हैं राजीव भैया. क्या फर्क़ पड़ता है, कैबिनेट मिनिस्टर बना दें, प्रधानमंत्री कार्यालय से अलग कर दें. कारण, कहीं कोई कांस्टेबुल चला गया था. उसे लेकर हरियाणा के मुख्यमंत्री से इस्ती़फा मांगना शुरू कर दिया गया कि वह कांस्टेबुल योजना बनाकर भेजा गया था, हमारे यहां की गतिविधियां जानने के लिए. उन्होंने कहा कि चंद्रशेखर जी से कह दो, कांस्टेबुल के मामले में कोई गंभीरता नहीं है, वह एक छोटा कर्मचारी है. लेकिन, उस स्टेट मंत्री को कैबिनेट मंत्री बना दो, लेकिन प्रधानमंत्री कार्यालय से हटा दो. चंद्रशेखर जी ने कहा, प्रधानमंत्री पद चला जाए, लेकिन मैं ऐसा नहीं करूंगा. नहीं किया. इसलिए कांग्रेस ने समर्थन वापस लिया था. इसी बात के लिए उसने चंद्रशेखर जी की सरकार गिराई. सोचिए, वह लड़ लेते थे, लेकिन अपनों को कभी छोड़ते नहीं थे. समझा लेते थे, डांट लेते थे, सब कुछ कह देते थे, लेकिन अपनों को नहीं छोड़ते थे. हम आज स्वयं महसूस करते हैं कि वह दिल से हमको बहुत मानते थे. राजनीति में सहनशीलता और साहस, दोनों होना चाहिए. जिसकी आलोचना नहीं है, मैं दावा करता हूं कि उसका कोई स्थान कहीं नहीं है. आलोचना सख्त आदमी की होती है. जिन्हें उसकी शक्ति देखकर परेशानी होती है, वे आलोचना करते हैं. मुझे क्या नहीं कहा गया, चंद्रशेखर जी को क्या-क्या नहीं कहा गया.
मैं जब तक मिनिस्टर नहीं बना, तो लोग कहते थे कि मुलायम सिंह यादवों के घर कैसे पैदा हो गए, उन्हें तो बनिया या ब्राह्मण के घर पैदा होना चाहिए था. जब मिनिस्टर बन गया 1977 में, तो मेरे खिला़फ ऐसी किताब छपी, जिसकी एक-एक लाइन गंदी थी. उसे चौधरी साहब (चरण सिंह) को दिखा दिया गया. फाड़कर फेंक दी उन्होंने, बोले, क्या बात करते हो? यह बेचारा मामूली मिनिस्टर है. मैंने कभी परवाह नहीं की. जो लोग आलोचना को बर्दाश्त नहीं कर सकते, वे नेता कभी नहीं बन सकते. चंद्रशेखर जी की कितनी आलोचना होती थी. और वही जब मिलने जाता, तो ऐसे बैठा लेते थे कि उनका सबसे ज़्यादा प्रिय यही है. यह गुण था उनके अंदर. एक बार सर्दी का मौसम था. अमिताभ बच्चन शॉल ओढ़े चुपचाप बैठे थे. हमने देखा ही नहीं, कौन बैठा है और जाकर बैठ गए ऐसे ही. तब चंद्रशेखर जी ने कहा, देखा नहीं, कौन बैठा है? तब मैंने देखा कि अरे, यह तो अमिताभ बच्चन बैठे हैं. एक काम था उनका, चंद्रशेखर जी ने तुरंत कर दिया. इतने आरोप लगने के बाद. उन्होंने पता पहले ही लगा लिया था कि अमिताभ बच्चन बिल्कुल निर्दोष हैं, उन्हें कैसे फंसाया गया था. तारीख कहां पड़ती थी विदेश में और विदेश में तारीख पड़ने का वकील कितने में खड़ा होता, कितना खर्च होता था. बर्बाद कर दिया था. अमिताभ बच्चन ने कोई परवाह नहीं की. आज कोई है मुकाबला इस कलाकार का. सबने मान लिया कि दुनिया का सबसे बड़ा कलाकार अमिताभ बच्चन.
जयप्रकाश जी का आंदोलन चला, तो उनकी मीटिंग यूपी निवास में हुई. चौधरी साहब बोले, क्या करते हो? तुम भी समाजवाद को मानते नहीं हो. भाई, पांच साल के लिए जनता ने उनको जनादेश दिया है. तब हम लोग निकलेंगे एक साथ. मैंने कहा, यहां नीति हमारी पार्टी की कुछ और है कि जहां अन्याय हो, पक्षपात हो, वहीं संघर्ष करो. राज नारायण जी ने कहा, तुम्हीं समझाओ जाकर. मान गए चौधरी साहब और मीटिंग में गए. मीटिंग में ही सबके सब गिरफ्तार कर लिए गए, चौधरी साहब को भी गिरफ्तार कर लिया गया, उनको भी जेल में डाल दिया गया. वह सात महीने जेल में रहे. चुगलखोरों ने जाकर कह दिया कांग्रेस के नेताओं से कि उनको छोड़ दो, तो हम आपके पक्ष में खड़े हो जाएंगे. उन्हें बाद में पता चला कि कौन-कौन थे, तीनों को पार्टी से निकाल दिया. तीनों षड्‌यंत्रकारी थे. और फिर निकल पड़े इमरजेंसी के खिला़फ. आपको पता है कितने समय तक बोले हैं विधानसभा के अंदर? दो घंटे. दो घंटे उन्होंने इमरजेंसी लगाने वालों, प्रधानमंत्री और सबकी इतनी आलोचना की जबरदस्त विधानसभा के अंदर. अ़खबारों में छपा. मैं तो जेल में था. उस समय ऐसे पत्रकार थे, जो कभी नहीं झुके. मैंने पत्रकारों से कहा भी था, मेरा सुप्रीम कोर्ट में सम्मान किया गया था. मैंने कहा, इस देश के पत्रकार कभी नहीं झुके, ज्यूडिशिरी ने भी कभी परवाह नहीं की. लेकिन, एक मा़ैका ऐसा आया, जब पत्रकार भी झुक गए और ज्यूडिशरी भी. आपके समाजवादी आंदोलन ने मामूली काम नहीं किया है. अगर हिंदुस्तान में कहीं काम हो रहे हैं, तो उत्तर प्रदेश सरकार के अंदर. लेकिन, यह बात हमारे एक भी साथी के मुंह से नहीं निकलती. मैंने कहा, कार्यकर्ता मीटिंग में कहो कि क्या-क्या किया है. ऐसा हिंदुस्तान में कोई भी राज्य सरकार नहीं कर रही, जैसा उत्तर प्रदेश की कर रही है.
हम आपसे कहना चाहते हैं कि सीखना चाहिए चंद्रशेखर जी और अन्य महापुरुषों से. चंद्रशेखर जी भले ही थोड़े दिनों के लिए प्रधानमंत्री बने. बाहर थे, तब भी उनके भाषण वही होते थे. युवा तुर्क कहलाते थे वह. चंद्रशेखर जी, आजमगढ़ के एक हरिजन नेता और एक अन्य, ये तीनों लड़ते थे. चौथे थोड़े-बहुत राम सरोही थे बिहार के. वह भी अपनी सरकार के खिला़फ बोलते थे. और, कांग्रेस की नाक में दम कर देते थे. चंद्रशेखर जी ने जब कभी सच्चाई समझी, तो संकोच नहीं किया. हमने कई बार आपसे कहा कि जहां अन्याय हो, वहां विरोध करो. एक बार हम लोग राज नारायण जी को इटावा स्टेशन छोड़ने आए. राज नारायण जी चल रहे थे, तो पुलिस ने भीड़ हटाने के लिए किसी को एक थप्पड़ मार दिया. सब वहीं के वहीं खड़े हो गए. मैंने कहा, तुमने इसे थप्पड़ क्यों मारा? जवाब मिला, राज नारायण जी के रास्ते में भीड़ हो रही थी, इसलिए थप्पड़ मारा. राज नारायण जी बोले, आपने डांट दिया, इतना ही काफी है. चंद्रशेखर जी ने कहा, इसने मेरे सामने थप्पड़ मारा. अन्याय होगा, तो विरोध नहीं करेंगे?
चंद्रशेखर जी जहां अन्याय होता था, वहां खड़े हो जाते थे, अन्याय करने वाले के खिला़फ. एक साधारण परिवार में रहकर उनकी पढ़ाई कैसे चली. उन्होंने बताया था मुझे कि कैसे वह पढ़ पाए और अच्छी यूनिवर्सिटी में पढ़े. उसके बाद निकल कर कहां पहुंचे, देश के सबसे उच्च पद पर. स्वाभिमान के खिला़फ समझौता न करने की वजह से वह प्रधानमंत्री पद से हटे. उन्होंने कहा कि वह स्वाभिमान के खिला़फ कभी समझौता नहीं करेंगे. उन्होंने किसी को नहीं हटाया. वह कभी पद के भूखे नहीं रहे. मैंने एक बार आपसे कहा था. आपने देखा होगा कि महादेव जी की बारात में कैसे-कैसे लोग थे. किसी की एक आंख थी, किसी के कुछ. इसी तरह राजनीतिक दल भी महादेव की बारात बनकर चलें, तो वे मजबूत होंगे और कामयाबी मिलेगी.

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