महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के ग्रामीणों के सुख-चैन को औद्योगीकरण की नजर लग गई है. जिस जमीन की उपज के जरिए यहां के लोग खुशीपूर्वक जीवनयापन कर रहे हैं, उस जमीन पर विश्व का सबसे बड़ा रिफाइनरी प्रोजेक्ट प्रस्तावित है. इस रिफाइनरी के निर्माण की खबर ने यहां के बाशिंदों की नींदें उड़ा दी है. दरअसल, भारत सरकार और सऊदी अरामको ने रत्नागिरी रिफाइनरी सह पेट्रोकेमिकल परियोजना में संयुक्त रूप से निवेश करने के समझौते पर हस्ताक्षर किया है. सऊदी अरामको दुनिया की सबसे बड़ी तेल उत्पादक कंपनी है. कहा जा रहा है कि यह प्रोजेक्ट 2022 तक शुरू हो जाएगा. यह दुनिया की सबसे बड़ी सिंगल लोकेशन तेल रिफाइनरी परियोजना होगी, जिसके पास प्रतिवर्ष 60 मिलियन टन कच्चे तेल के प्रसंस्करण की क्षमता होगी. लोग अपने जमीनी उत्पादन से हाथ धोने के शर्त पर स्थानीय लोगों को यह प्रोजेक्ट स्वीकार नहीं है.

जब यहां के लोगों को इस प्रोजेक्ट के बारे में कुछ पता नहीं था, तब से ही दूसरे राज्यों के लोग यहां आकर जमीनें खरीदने लगे थे. मई 2017 से जनवरी 2018 के बीच ही नाणार और उसके आसपास के इलाकों की करीब 559 एकड़ जमीन खरीदी गई. गौर करने वाली बात यह है कि खरीदारों का इस इलाके से कोई ताल्लुक नहीं है. जाहिर है, 18 मई 2017 को एमआईडीसी द्वारा रिफ़ाइनरी प्रोजेक्ट के लिए ज़मीन अधिग्रहण का नोटिफ़िकेशन जारी करने से पहले ही उन लोगों को इस प्रोजेक्ट के बारे में पता था और उन लोगों ने औने-पौने दामों में स्थानीय लोगों से जमीन खरीद ली. अब जब सरकार की तरफ से अधिग्रहण हो रहा है, तो वे लोग जमीनें बेचकर करीब 200 फीसदी का मुनाफा कमा रहे हैं. हालांकि स्थानीय लोग किसी भी कीमत पर इस प्रोजेक्ट के लिए अपनी जमीनें नहीं देना चाहते.

इस इलाके में रिफाइनरी प्रोजेक्ट का भारी विरोध हो रहा है. बीते 30 मई को राजापुर के गांधी मैदान में करीब 15,000 गांववाले इस परियोजना को वापस करने की मांग को लेकर जमा हुए थे. इसमें पुरुषो और युवाओं के साथ महिलाओं ने भी भारी संख्या में भाग लिया. स्थानीय मछुआरा समुदाय पूरी तरह से इसका विरोध कर रहा है. इस समुदाय के ज्यादातर लोग भूमिहीन हैं और उनके पास सिर्फ उनके मकान ही हैं. एक बार विस्थापित हो जाने पर उन्हें आजीविका भी गंवानी पड़ेगी और समुद्री तटों से भी उनका संपर्क टूट जाएगा. वहीं, जो लोग खेती-किसानी के जरिए आत्मनिर्भर हैं उनका कहना है कि सरकार हमें आखिर कौन सी नौकरी देगी? यहां का सबसे गरीब व्यक्ति भी 4-5 श्रमिकों को काम देता है.

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इस परियोजना के लिए 14 लाख से ज्यादा आम के पेड़ों और करीब छह लाख काजू के पेड़ काटे जाएंगे, साथ ही वो 500 एकड़ जमीन भी इस प्रोजेक्ट की भेंट चढ़ जाएगी, जिसमें लहलहाने वाली धान की फसल यहां के लोगों के जीविकोपार्जन का प्रमुख साधन है. प्रोजेक्ट का नकारात्मक प्रभाव इस इलाके की वनस्पतियों, जीव-जंतुओं और नाजुक तटीय पर्यावरण पर भी पड़ेगा. 15,000 एकड़ के क्षेत्र में प्रस्तावित इस रिफाइनरी प्रोजेक्ट पर काम शुरू होने की स्थिति में 17 गांवों के किसानों और मछुआरों का विस्थापन तय है. कोंकण तट पर बसे इन गांवों में से 15 गांव रत्नागिरि और दो गांव बगल के सिंधुदुर्ग में स्थित हैं. इस परियोजना के लिए जरूरी 14,675 एकड़ (5.870 हेक्टेयर) जमीन में से सरकार के पास सिर्फ 126 एकड़ (52 हेक्टेयर) जमीन ही है. बाकी जमीन का अधिग्रहण किया जाना है. परियोजना के लिए जिन 17 गांवों को चुना गया है, वे हैं- नानर, सागवे, तारल, करसिंघेवाड़ी, वडापल्ले, विल्लये, दत्तावाड़ी, पडेकावाड़ी, कटरादेवी, करविने, चौके, उपाडे, पडवे, सखर, गोठीवारे, गिरये और रामेश्वर. इन गांवों के भीतर भी कई छोटे-छोटे राजस्व गांव हैं.

 

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