शिक्षा के क्षेत्र से लेकर जीवन के हर क्षेत्र में संघ परिवार के लोगों को खुली छूट देकर जिस तरह से महात्मा गाँधी जी के,डॉ बाबासाहब आंम्बेडकरजी के ,रवींद्रनाथ टैगोर के स्थापित मुल्यो की जगह हेडगेवार,गोलवलकर के वह भी हिटलर और मुसोलिनी के फासिस्ट विचार जिसमें घ्रणा और द्वेष के आधरपर संघ परिवार की कार्य प्रणाली के कारण हमारे देश के कई महत्वपूर्ण संस्थानोमें उनके नियुक्त किया गये कारिंदे जो भी कुछ कर रहे हैं उसकी ताजा मिसाल के तौर पर शांतीनीकेतन की विश्वभारती विश्वविद्यालय में जब से संघी वी सी आये हैं तबसे आये दिन कुछ ना कुछ हो रहा है ! अबकी बार मेला प्रांगण की दिवार को लेकर विवाद चल रहा है और इसके पहले और कई संगीन आरोप है कि रविन्द्रनाथ टैगोर की विरासत को खत्म करने की कोशिश चल रही है !


लगता है कि सरकार सभी शिक्षा संस्थानों को नष्ट करने पर तुले हुए दिख रही है आज शांतिनिकेतन में  विद्यार्थियों के साथ की घटना की निंदा करता हूँ उधर गुजरातमे महात्मा गाँधी द्वारा स्थापित गुजरात विद्यापीठ,गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा स्थापित विश्वभारती,जामिया,अलीगढ़,जे एन यू,कोलकाता की जाधवपूर,और देश के प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थानों में विध्यर्थियोने एन आर सी तथा अन्य गलत कानूनों के खिलाफ आवाज बुलंद कर रहे हैं इसमे क्या गलत है ?

वर्तमान समय के सरकार के कितने लोग जेपिके अन्दोलन में शामिल थे ? मैं खुद उस समय का साक्षिदार और एक अन्दोलनकारी रहा हूँ और भारतीय जनता पार्टी तो शत प्रतिशत जेपिके अन्दोलन की कोखसे पैदा हूई है ! अन्यथा उसकी पूर्व जनसंघ की औकात क्या थी ? एक ब्राह्मण,बनिया,राजा महाराजा और जमींदार और पूंजीपतियों की पार्टी बनकर रह गई थी एक साजिश के तहत जेपिके अन्दोलन में शामिल होकर अपने आपको महात्मा गाँधी के हत्या और पूंजीपतियों की दलाल पार्टी का दाग धुलवाने का प्रयास कर के और 1986 के शाहबानो के केस की वजह से बने माहोलमे राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद का मामला उठाकर पूरे देश में गत 30-35 वर्षोसे बाटो और राज करो की नीति से आज दिल्ली तक का सफर तय किया है !


लेकिन बराबर आजसे 100 साल पहले योरोपीय जर्मनी और इटली मे भी इसी तरह की राजनीति का सूत्रपात हुआ था लेकिन 25 साल के भीतर दोनो तानाशाहो का क्या हाल हुआ ? नरेंद्र मोदी और पूरे सन्घपरिवारके लोगों को इतिहासमे गोते लगाने  (सुविधाजनक) झाकने की आदतों को देखते हुये लगता नहीं है कि वह इतिहास की जुगाली करने के बजाय और उससे सीखने की जरूरत महसूस नहीं करते हैं !

2014 से सत्तामे आनेके तुरंत बाद जे एन यू के विद्यार्थियों के साथ गोदीमीडिया को साथमे लेकर जो सूत्रपात शूरू किया उसी कडिमे हैदराबाद विश्वविद्यालय के रोहित वेमुलाको अपनी जान देने के लिए मजबूर कर दिया और जे एन यू के माही हॉस्टल के नजीब का गायब हो जाना आज भी रहस्य बना हुआ है ! उस्मेभी सन्घपरिवारके विद्यार्थियों के लिए बनाये गए तथाकथित ए बी वी पी नामके सन्घटना के नाम है और अभी विश्वभारती,जे एन यू,जामिया,अलीगढ़,तथा अन्य विश्वविद्यालयों के भीतर ए  बी वी पी विद्यापीठ प्रसासन की मदद से जो भी कुछ कर रहे हैं बिलकुल जर्मनी में गेस्टापो तथा फासिस्ट युवा सन्घटना एस एस की हरकतों को देखते हुए लगता है कि सन्घपरिवारके यह आक्टोपस जैसे विभिन्न सन्घटनाओ की हरकतों के कारण जर्मनी की 90 साल पहले की घटनाओं की पुनरावृत्ति हो रही है !


लेकिन जो हश्र इटली और जर्मनी की फासिस्ट सरकारों का हुआ वह अब भारत के भीतर छ सालके भीतर शूरू हो चुका है इसलिए जल्दबाजी में इन्डियन एयरलाइंस, रेल,बी एस एन एल,रक्षा सामान बनाने वाले करखनोको अवनेपवने दामोंमें बेचना जारी है ! देश में तथाकथित नागरिकता के इर्दगिर्द सिमट गई राजनीतिक आपाधापी में लगभग पूरे देश को बेचने की हरकत एक चोर की हरकत कही जाती हैं लेकिन यह सब देशभक्ति का ढोल पीटते हुए किया जा रहा है !

हमारे युवाओं को रोजगार की तलाश है,हमारे किसानों को किसानी बचाने की,वर्तमान कार्यरत कर्मचारियो को अपनी-अपनी नौकरियां,आदिवासियों के लिए अपनी जल,जंगल और जमीन को बचाने के लिए और महिलाओं,दलितोके तथा अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के अस्तित्व के सवाल और महंगाई की मार झेल रहे हैं वह अलग से लेकीन इन सब विषयों पर नहीं कोई बहस नहीं कोई अन्दोलन की कोशिश हो रही है सब एकदम गैरमामूली नागरिकता के मुद्दे पर पूरे देश को उल्झाकर रख दिया है

आज की तारीख में नाही कोई पकिस्तान,बँगला देश या अफगानिस्तान का तो पता नहीं क्या संबंध है ? आज की तारीख में सरकारी आंकड़ों के मुताबिक सिर्फ 32 हजार लोग हैं जिनके पास नागरिकता के प्रमाण नहीं है ! हजारों करोड़ रुपये खर्च करने के बाद और कुछ निकले भी तो इनको कोई वापस लेने वाला नहीं है ! फीर हजारों करोड़ रुपये खर्च करने के बाद तथाकथित डिटेंशन सेंटर में और इन सब सेंटरोमे कितने समय तक और किसके खर्चों पर ?

हमारे देश के प्राथमिकता के सवाल क्या है ? नरेंद्र मोदी और अमित शाह बहुत शातिर चाल चल रहे हैं ! हमारे देश के शेकडौ सालोसे चल रहे मुनाफ़े वालेउद्योग  एक एक करके प्रायवेट पूंजीपतियों को बेचने का काम कर रहे हैं और हम आप सभी को लगा दिया एन आर सी,सी ए ए,एन पी आर जैसे गैरमामूली मुद्दोकी बहसबाजी में ! मुझे रह रह कर हैरानी होती है ! की अखिर हमारे देश के विरोधी दलोंको क्या हो गया है ? क्या वो भी इस षड्यंत्र में शामिल है या उह्ने समझमे नही आ रहा है ? देश की सार्वजनिक संपत्ति को प्रायवेट सेक्टर में एक एक करके चुपचाप देते जा रहे हैं और इसकी कोई चर्चा नहीं हो रही है ? मेरा मानना है की नागरिकता का हौव्वा दिखाकर देशके ज्यादातर लोगों को उस बहसबाजी में उल्झाकर पूरे मुल्क को बेचने की साजिश जारी है !

130-35 करोडकी आबादीमें लाखो करोड़ रुपये खर्च करने के बाद कितने विदेशिओं की संख्या निकलने वाली है ? और थोडी बहुत निकले भी तो उनकों कौनसा ऐसा देश है जो लेनेके लीये तैयार हैं ?
यह नौटंकी सिर्फ लोगों का ध्यान बाटने के लिए चल रही है ताकि देवेन्द्र सिंग जैसा दानव देशमे आतंकवाद की खेती करता रहे अमरजित सिंग दुलत जो अटल बिहारी वाजपेयी के सरकार के समय उनके कश्मिरके सलाहकार रह चुके हैं और उस्केभी पहले वे भारतीय पुलिस सेवा के 1965 बैच के आई बी 1969 से तिस साल और अन्तिम पोस्ट भारत की रिसर्च & अनलिसिस विन्ग्के मुख्य रहे हैं उनकी KSHMIR THE VAJPAYEE’ YEARS नामकी किताब में उन्होंने कहा कि हम बी एस यफ और सेना के साथ मिलकर और पाकिस्तान की सेना,आई येस आई मिलकर क्या क्या काम करते रहे हैं यह सब विस्तार से 342 पन्नोपर आजसे पाँच साल पहले से लिखकर रखा है और मैने इसे पढ़कर उनपर कारवाई की मांग की है लेकिन कारवाई तो दूर उनकी और पाकिस्तान के आई आई येस के  असद दुर्रानी की मिलिजुली किताब The spy chronicles:RAW, ISI and illusion of Peace  आ चुकी है !

इसीतरह नन्दिता हक्सर जो अफजल गुरु की वकालत की थी और वह खुद कश्मिरके प्रमुख हास्तियो मेसे एक पी एन हक्सर साहब की बेटी है जिनकी The Many Faces of Kashmiri Nationalism नाम की 344 पन्नोकी किताब मौजूद हैं और क्या बताऊँ इसके अलावा 26/11को लेकर मुश्रफ,विनिता कामटे शहीद कामटेकी बेवा की किताब मौजूद रहनेके बावजूद इस विषय पर कॉन्ग्रेस हो या बीजेपी किसिनेभी कोई कार्रवाई नहीं की है !

यह बहुत रहस्यमय लगता है अब देवेन्द्रसिंग पकडे गए लेकिन अमित शाह और नरेंद्र मोदी के रहते हुए इतने संवेदनशील काण्ड की जाँच होगी इसपर भरोसा नहीं होता है ! यह देश की सुरक्षा का सवाल है और इसकी जाँच जिनके दामन पहले से दागदार है उनसे क्या खाक होगी 2002के गुजरातके दंगेका अनुभव क्या कहता है ? फिर इनके समयमे जो एन्कौंटर किये गये  इशारत,सोहराबुद्दीन,प्रजापति,एहसान जाफरी,बिल्किस बानो,बेस्ट बेकरी,नरोदा पाटिया नरसंहार,27 फरवरी 2002की गोधरा की ट्रेन का जलना,हरेन पण्ड्या और नागपुर में जस्टिस लोया की संदिग्ध परिस्थितियों की मौत, मालेगाँव,नांदेड़,अजमेर शरीफ,मक्का मस्जिद,समझौता एक्सप्रेस,बटला हाऊस,अक्षरधाम,सुरत,बड़ौदा के ब्लॉस्ट,चिन्नस्वमी,बंगलूरू,इन्स्टिट्यूट ऑफ़,सायन्स,मुम्बई के 1993वर्ष के लोकल ट्रेन के ब्लास्ट,बादके मुम्बई के दंगे ! ,कोइम्तूर,मंगलूरु,सनातनसभाकि गोआ स्तिथ रामनाथि की गतिविधियों और उसके बाद चार महत्वपूर्ण सथीयोकी हत्याओं का सिलसिला  ,दाभोलकर,पानसरे ,कल्बुर्गी,गौरी लंकेश और सबसे पहले 30 जनवरी 1948 की महात्माकी हत्या अगर सचमुच इन सब घटनाओं की स्वतंत्र जांच शुरू होती हैं तो आज देशभक्ति के सर्टिफ़िकेट बाटने वालोकी जुबान को लकवा हो जाएगा !

साथीयोको लगता होगा की मेरा कुछ ज्यादा ही लम्बा होता जा रहा है लेकिन मैंने इनमेसे ज्यादा तर घटनाओकी खुद जाँच की है और मै पिछ्ले 30 सालों से इन सब घटनाओं को क्लब करके एक स्वतंत्र एजेंसी की तरफ से जाँच करने के लिए मैं लगातार माँग करता रहा हूँ और मेरा मानना है कि सी बी आई,एन आई ए,की विशश्वसनियता बचिखूची भी वर्तमान सरकार ने खत्म कर दी है और अभी देवेन्द्रसिंग के मामले में भी यही लोग इन्क़यरिके के नाम पर लिपापोति करकेहि रहेंगे क्योंकि अफजल गुरू से लेकर पुलवामा जैसे संवेदनशील मामले जो है ! जिस पुलवामा का 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने पूरी तरह से भुनानेमे कोई कसर बाकी नहीं रखी थी वह भला देवेन्द्रसिन्ग्से कुछ सत्य आने देगी ! मुझे तो देवेन्द्रसिन्ग्की जानकी चिंता सता रही है ! लोया,हरेन पण्ड्या के उदाहरण जो सामने है !


आज अमेनीस्टि इंटरनैशनल की दिल्ली दंगोकी रिपोर्ट मे दिल्ली पुलिस की पक्षपात भरी हरकते देखनेमे आइ है हप्ता भर पहले औरंगाबाद हायकोर्ट ने तब्लिगी जमात को लेकर दिल्ली पुलिसके चाल-चलन को लेकर बहुत ही गंभीर टिप्पणियाँ की गई है हालाँकि दिल्ली पुलिसका कंट्रोल केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय के अधिन आता है और बहुत संभावना है कि बगैर केंद्र सरकार के निर्देशसे दिल्ली पुलिस दिल्ली मे जो भी कुछ अपना सत्यमेव जयते लोगो होनेके बावजूद असत्य व्यवहार कर रही है वह बहुत ही चिंता की बात है और मुझे जेपीजी ने 1975 मे जो बात कही थी कि मेरि सरकारी कर्मचारीयोको विनम्र सलाह है कि कानून के खिलाफ और गलत आदेशों को नहीं मानना चाहिए !

गोधरा ट्रेन के 27 फरवरी 2002 के हादसेके बाद गुजरातके तत्कालीन मुख्यमंत्री ने जिस तरह से सरकारी महकमों का गुजरात के दंगों के लिए इस्तेमाल किया वह स्वतंत्र भारत के ईतिहासका सबसे घिनौना उदहारण है ! और आज देश की बागडोर उन्ही लोगों के हाथोमे चली गई है यह सबसे बड़ी चुनौती है !
डॉ सुरेश खैरनार,29 अगस्त  2020,नागपुर

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