नई दिल्ली : आज पीके एक बड़ा नाम बन गए हैं. पीके अमीर खान की फिल्म नहीं, बल्कि प्रशांत किशोर का शॉर्ट नेम है. सत्ता के गलियारों और पत्रकारों के द्वीपनुमा संसार में इनकी काफी चर्चा होती है. जो लोग प्रशांत किशोर को नहीं जानते हैं, उनके लिए बता दूं कि पीके यानि प्रशांत किशोर पेशे से एक चुनावी-रणनीतिकार हैं. पारिश्रमिक लेकर यानि ठेके पर वे राजनीतिक दल व नेता के चुनाव प्रचार की पूरी व्यवस्था संभालते हैं. ये इनका पेशा है. पीके अब तक भारतीय जनता पार्टी, जदयू और कांग्रेस के लिए काम कर चुके हैं. 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान वे नरेंद्र मोदी के साथ थे.

उसके बाद विधानसभा चुनावों में उन्होंने पहले नीतीश कुमार के लिए बिहार में प्रचार किया, उसके बाद से वे कांग्रेस के लिए काम कर रहे हैं. उन्होंने अमेरिका में पढ़ाई की है. संयुक्त राष्ट्र में काम किया है. यही वजह है कि भारतीय मानसिक-व्यवस्था में पीके सटीक बैठते हैं. वे अमेरिका-रिटर्न हैं, तो उनमें ज्ञान, अनुभव और कैलिबर होगा और वे ज्यादा समझदार होंगे, यह हर भारतीय सहर्ष स्वीकार कर लेता है. यही प्रशांत किशोर की अपनी ब्रांडिंग है. देश के बड़े-बड़े नेताओं को भी ऐसे लोगों की तलाश होती है कि कोई ऐसा व्यक्ति मिले, जो नए जमाने के मुताबिक नई रणनीति तैयार कर सके.

यही वजह है कि चुनाव-प्रचार आज एक पेशा बन चुका है. इस पेशे में प्रशांत किशोर का नाम सबसे अव्वल हैं. मतलब यह कि पीके राजनीतिक दलों के लिए चुनाव की रणनीति तैयार करते हैं. उनके पास 300 से ज्यादा लोगों की एक टीम होती है, जो कैंपेन के दौरान चौबीसो घंटे हर बात का ध्यान रखते हैं. रैली से लेकर टीवी और सोशल मीडिया, हर जगह उनकी टीम एक सुनियोजित प्रचार का संचालन करती है. इसके बदले में वे बाकायदा पारिश्रमिक भी लेते हैं. वो भी करोड़ों में. एक तरह से यह जायज भी है.

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस-समाजवादी पार्टी गठबंधन के बावजूद कांग्रेस की ऐतिहासिक हार के बाद से प्रशांत किशोर लापता हैं. उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को महज 7 सीटें मिली हैं. कांग्रेस के लिए ये अब तक की सबसे बड़ी व शर्मनाक हार है. यही वजह है कि लखनऊ में कांग्रेस कार्यालय के बाहर यूपी कांग्रेस कमेटी के सचिव राजेश सिंह ने एक पोस्टर लगाया, जिस पर लिखा था- स्वयंभू चाणक्य प्रशांत किशोर को खोजकर उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के कार्यकर्ता सम्मेलन में लाने वाले किसी भी नेता को पांच लाख रुपए का इनाम दिया जाएगा. कांग्रेस से जुड़े लगभग हर कार्यकर्ता और नेता की यही राय है कि प्रशांत किशोर कांग्रेस की सेहत के लिए हानिकारक हैं. लेकिन राहुल व प्रियंका से प्रशांत किशोर की निकटता की वजह से कांग्रेस में उन्हें अभयदान प्राप्त है.

अपने ड्रॉइंग रूम में कांग्रेसी नेता पीके को कोसते जरूर हैं, लेकिन खुल कर बोलने की हिम्मत किसी में नहीं है. फिर भी, चुनाव नतीजे के बाद से पीके तो लापता हैं. हैरानी तो इस बात की है कि जिन वरिष्ठ पत्रकारों ने बिहार चुनाव के बाद प्रशांत किशोर को इस युग का चाणक्य घोषित कर दिया था, वे भी लापता हैं. बिहार चुनाव के बाद देश के बड़े-बड़े विश्लेषकों ने पीके को देश का सबसे महान रणनीतिकार साबित करने के गलती की. कई अखबार और पत्रिकाओं ने तो लालू-नीतीश से जीत का श्रेय छीन कर पीके को दे दिया. यहां तक कह दिया कि नरेंद्र मोदी की हार की वजह सिर्फ पीके की रणनीति है.

 

Adv from Sponsors

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here