castसाल 2019 में चुनावी मौसम का आगमन होने वाला है. नेता, कार्यकर्ता व आम जनता के बीच तिगड़ी का खेल शुरू होने वाला है. जहां नेता जाति व पार्टी के बहाने वोटरों को अपने पक्ष में करने का हर संभव प्रयास करेंगे, वहीं पार्टी कार्यकर्ता भी दल व दलगत नेताओं के मान सम्मान की रक्षा की दुहाई देते हुए हर घर दस्तक देने से बाज नहीं आएंगे. उधर, आम मतदाता नेताओं के चुनावी सभाओं में ताली बजाकर अपनी मुरादें पूरी होने का वक्त आने का स्वागत करने में कोई कसर नही छोडेंगे.

ऐसा नहीं है कि यह सब पहली बार होने वाला है. जब भी चुनावी शंखनाद होता है तो कमोवेश कुछ ऐसा ही माहौल शहर से लेकर गांव तक का होता है. किसान व बेरोजगार से लेकर नौकरी पेशा वालों तक को चुनावी वादों पर भरोसा करने को विवश किया जाता है. विकास की लंबी-चौड़ी बातें कर आम मतदाताओं को लुभाने के साथ ही जातीय एकता का राग तक अलापा जाता है. हाल यह होता है कि अंतत: चुनाव परिणाम जातीय चक्की पर नाचती रह जाती है और विकास का सारा सपना निर्वाचित प्रतिनिधियों की मनमानी तक सिमट कर रह जाता है.

16 सितंबर 2018 को सीतामढ़ी शहर के राजेंद्र भवन में राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के तत्वावधान में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया. दलित-महादलित-अतिपिछड़ा अधिकार सम्मेलन में मुख्य अतिथि के रूप में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष सह केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा शामिल हुए. जिसमें स्थानीय सांसद राम कुमार शर्मा के अलावा विधायक सुधांशु शेखर, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शंकर झा आजाद, सीतामढ़ी जिला प्रभारी मनोज यादव, प्रदेश प्रधान महासचिव सत्यानंद दागी, राष्ट्रीय महासचिव जुल्फकार अली बरावी, अत्यंत पिछडा वर्ग के प्रदेश अध्यक्ष रामेश्वर प्रसाद पप्पू, प्रदेश उपाध्यक्ष मोहन सिंह, प्रदेश महासचिव राम प्रवेश यादव, श्याम सिंह कुशवाहा, आरिफ हुसैन, पंकज कुमार मिश्रा व महिला सेल की प्रदेश उपाध्यक्ष रेखा गुप्ता समेत अन्य थे.

कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने सर्वोच्च न्यायालय व उच्च न्यायालय में जजों की नियुक्ति प्रक्रिया पर सवाल उठाया. उन्होंने कहा कि जजों की बहाली की वर्तमान प्रक्रिया के कारण दलित, महादलित और अतिपिछड़ा के अलावा सवर्ण समेत समाज के अन्य वर्ग के गरीब लोगों के लिए जज बनने के दरबाजे बंद हैं. जिसे खोलने के लिए हम  संघर्ष कर रहे हैं. सम्मेलन में एक ओर जहां दलित, महादलित व अति पिछडों को लुभाने का प्रयास किया गया. वहीं सवणार्ंे की चर्चा कर देश में जारी आरक्षण विवाद को लेकर सरकार पर निशाना साधने से भी परहेज नहीं किया गया. मतलब साफ है कि सवर्ण के साथ अन्य को भी खुश करने का प्रयास हो रहा है.

कुशवाहा ने कहा कि केंद्र की सरकारों ने दलित, महादलित व पिछड़ा वर्ग को उनका वाजिब हक नहीं दिया है. सम्मेलन के बहाने उपेंद्र कुशवाहा ने भले ही दलित, महादलित व अतिपिछड़ा वोट बैंक को अपने पक्ष में करने का प्रयास किया हो, लेकिन जो नजारा सम्मेलन का रहा वह इस बात का साफ संकेत देता है कि कार्यक्रम आयोजन में जो बैनर लगा था और वहां जो उपस्थित लोग थे, उनका कोई ताल-मेल नहीं था. कार्यक्रम से लौटने वालों की बातों पर यकीन किया जाए तो केंद्रीय मंत्री के स्वजातीय लोगों के अलावा अन्य बिरादरी की भीड़ ही सम्मेलन का महत्वपूर्ण हिस्सा रही. जबकि सम्मेलन का आयोजन दलित, महादलित व अतिपिछड़ा के अधिकार को लेकर किया गया था. हालांकि सम्मेलन की अध्यक्षता पिछड़ा प्रकोष्ठ के जिलाध्यक्ष प्रमोद आनंद व संचालन की कमान विनय पासवान को देकर पार्टी ने अपना कोरम जरूर पूरा किया.

भारत-नेपाल सीमा पर अवस्थित सीतामढ़ी जिले में पार्टी के जनाधार को सम्मेलन के बहाने परखने का उपेंद्र कुशवाहा के अघोषित प्रयास की चर्चा जोरों पर है. 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान की चर्चा करते हुए लोगों ने कहा कि तब पीएम पद पर नरेंद्र मोदी की चाहत में लोग एनडीए गठबंधन से प्रत्याशी रहे सांसद राम कुमार शर्मा के पक्ष में गोलबंद हुए थे. यही कारण रहा कि उस वक्त तमाम कार्यक्रमों में आमजनों की भागीदारी बढ़-चढ़ कर होती रही. लेकिन चुनाव के बाद से निर्वाचित प्रतिनिधि लोकसभा क्षेत्र के किसी भी कोने में अपनी मजबूत पहचान नहीं बना सके. अब चुनाव का समय करीब आते ही उन्हें जनता व जनसमस्या की चिंता सताने लगी है. आलम यह है कि जिले के रून्नीसैदपुर व बाजपट्‌टी विधानसभा क्षेत्र में रालोसपा की टिकट पर भाग्य आजमा चुके प्रत्याशियों की उम्मीदें भी धाराशायी होने की कगार पर पहुंच गईं हैं. वैसे चुनावी ऊंट किस करवट बैठेगा? फिलहाल कहना मुश्किल है. गठबंधन का नया पैतरा क्या होगा? कौन-सा दल किसके साथ रहेगा? किस सीट पर कौन-सा प्रत्याशी होगा?

इन सवालों का फिलहाल जवाब नहीं दिया जा सकता है. जहां तक सीतामढ़ी लोकसभा सीट पर दावेदारी का सवाल है तो 2019 के लोकसभा चुनाव को लेकर महागठबंधन से राजद व कांग्रेस, तो एनडीए से जदयू व भाजपा खेमा भी कोई कसर छोड़ने को तैयार नहीं है. महागठबंधन से केंद्र सरकार के खिलाफ राजद व कांग्रेस कार्यकर्ता लगातार मुहिम में लगे हैं, तो सीतामढ़ी सीट पर पुन: दावेदारी को लेकर जदयू भी पूरी ताकत झोंकने को आतुर है. वहीं, भाजपा खेमा भी एक मौके की ताक में लगी है. उधर एक खेमा स्वतंत्र प्रत्याशी को एक बार क्षेत्र की बागडोर सौंपने और जिले में विकास और समाज में बदलाव का अलख जगाने में लगा है. वैसे क्या होगा यह आने वाला वक्त ही बताएगा.

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