19 अगस्त को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को श्रद्धांजलि देने के लिए चलती ट्रेन में साहित्यिक गोष्ठी आयोजित किया गया था. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की कविता ‘मौत से ठन गई,’ की पंक्तियों के साथ हिमाचल के साहित्यकार सुदर्शन वशिष्ठ ने संस्मरण की शुरुआत की थी.

सुदर्शन वशिष्ठ ने बताया कि जून 2002 में मनाली में आयोजित कवि सम्मेलन में अटल जी ने कविता पाठ के दौरान काल और मृत्यु पर अधिकतर कविताएं सुनाईं. उन्होंने बताया कि ‘मौत से ठन गई,’ कविता उन्होंने अस्पताल में लिखी थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उस समय हिमाचल प्रभारी थे और वे भी इस कवि सम्मेलन में मौजूद थे.

इसी दौरान अटल जी के मंच से उतरते ही मोदी मंच पर चढ़े और कहा कि ‘मौत से ठन गई कविता’ उन्होंने ‘धर्मयुग पत्रिका’ में पढ़ी थी और इसे पढ़ने के बाद वे दो दिन तक रोते रहे थे. उन्होंने कहा था कि अटल जी के मुंह से मौत की बात अच्छी नहीं लगती. बाद में मोदी ने यह कविता गुजराती में भी अनुवादित की. कार्यक्रम के आयोजक एसआर हरनोट, विनोद प्रकाश गुप्ता और सुमित राज वशिष्ट ने बताया कि सुबह 10:40 बजे ट्रेन शिमला से बड़ोग की ओर रवाना हुई.

बता दें साल 1988 में जब वाजपेयी किडनी का इलाज कराने अमेरिका गए थे तब धर्मवीर भारती को लिखे एक खत में उन्होंने मौत की आंखों में देखकर उसे हराने के जज्बे को कविता के रूप में सजाया था. दरअसल, डॉक्टरों ने अटल जी को सर्जरी की सलाह दी थी. जिसके बाद से वे सो नहीं पा रहे थे. उनके मन में चल रही उथल-पुथल ने इस कविता को जन्म दिया था.

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