kala-janda-dikhakr-birodh-kचार दशकों के लंबे इंतज़ार के बाद बीते 15 अक्टूबर को मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने रोहतास-कैमूर की अति महत्वाकांक्षी दुर्गावती जलाशय सिंचाई परियोजना का उद्घाटन तो कर दिया, लेकिन किसानों को अभी भी विश्‍वास नहीं है कि आनन-फानन में किए गए इस उद्घाटन का लाभ उन्हें मिल पाएगा. उद्घाटन के मौ़के पर जल संसाधन मंत्री विजय चौधरी द्वारा परियोजना को लेकर दिए गए बयान पर पूर्व जल संसाधन मंत्री जगदानंद सिंह ने ऐसे तकनीकी सवाल उठाए हैं, जिनका जवाब शायद ही सरकार के पास हो. एक ही गठबंधन के दो घटक दल के दिग्गज नेताओं के बीच सवाल-जवाब की यह घटना खासी चर्चा में है. ग़ौरतलब है कि इलाके के किसान पिछले चार दशकों से पानी के लिए जूझ रहे हैं. रोहतास-कैमूर के 386 गांवों की 33,467 हेक्टेयर ज़मीन को पानी देने वाली यह परियोजना तैयार होने से पहले कुदरा विवर योजना को नौ सौ घन क्यूसेक पानी मिलता रहा है, जिसके लिए सकरी के समीप मिनी डैम तैयार करके 50 वर्ष पूर्व एक नहर निकाली गई थी. इससे 16, 200 हेक्टेयर ज़मीन पर पटवन होता था. जैसे ही यह परियोजना पूरी हुई और डूब क्षेत्र में पानी भरने का काम शुरू किया गया, वैसे ही कुदरा विवर योजना का पानी रोक दिया गया था.
इधर दुर्गावती परियोजना के नवीनतम बायां तट नहर क्षेत्र की प्रभावित 5,572 हेक्टेयर ज़मीन की सिंचाई के लिए आतुर किसान कुदरा विवर में पानी छोड़ने का विरोध करने लगे. विरोध इतना बढ़ गया कि 50 वर्षों की सिंचाई प्रणाली ध्वस्त हो गई. नतीजतन कुदरा, मोहनियां एवं रामगढ़ प्रखंड के 16 हज़ार हेक्टेयर से ज़्यादा कृषि भूमि सूखे की चपेट में आ गई. क्षेत्र के किसान आक्रोशित हो उठे, क्योंकि ऊपरी क्षेत्र बायां तट की पांच हजार से ज़्यादा हेक्टेयर ज़मीन को पानी देने के लिए इन किसानों को सूखे की आग में धकेल दिया गया. किसानों के दो वर्ग जल संसाधन विभाग से लड़ने लगे. जबकि रोहतास की 11,695 हेक्टेयर ज़मीन पर पानी का इंतजार अभी बाकी था. अभी तो कैमूर के ही दो क्षेत्रों के किसानों के हित आपस में टकराए थे. उधर राज्य सरकार ने आनन-फानन में दुर्गावती जलाशय परियोजना का उद्घाटन करने का निर्णय ले लिया.
ग़ौरतलब है कि इस परियोजना से जुड़ी 102 किलोमीटर लंबी नहर प्रणाली तैयार नहीं की गई है. दायां तट की 34 किलोमीटर नहर खुदाई का काम बाकी है. इसी तरह बायां तट की 22 किलोमीटर नहर खुदाई का कार्य अधूरा पड़ा है. 109 किलोमीटर लंबाई में तैयार की जाने वाली वितरणियों की निविदा भी नहीं हुई है. उद्घाटन के दिन स़िर्फ बायां तट नहर में जलस्राव कराया गया. योजना के मुताबिक कुदरा विवर नहर प्रणाली के लिए नदी की मुख्य धारा में छोड़ा जाने वाला पानी किसानों के विरोध के कारण नहीं दिया गया. मतलब साफ़ है कि उद्घाटन भी व्यवहारिक तौर पर अधूरा रहा. उद्घाटन कार्यक्रम में बोलते हुए शिलापट विवाद पर मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने जो तल्ख टिप्पणी की, वह काबिले ग़ौर है, क्योंकि शिलापट पर मुख्यमंत्री के साथ कई लोगों के नाम थे, जबकि स्थानीय सांसद छेदी पासवान, स्थानीय विधायक प्रमोद पटेल एवं श्याम बिहारी राम के नाम गायब थे.

15 अक्टूबर को जब मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी परियोजना का उद्घाटन कर रहे थे, तब हजारों किसान काले झंडे दिखाकर कुदरा विवर योजना में पानी छोड़ने का विरोध कर रहे थे. उधर दूसरा वर्ग कुदरा विवर योजना में पानी छोड़ने का समर्थन करते हुए पुलिस हिरासत में बैठा हुआ था. विरोध करने वाला तीसरा तबका विस्थापितों का था, जो सुविधाओं एवं मांगों को लेकर लगातार नारेबाजी कर रहा था. सभास्थल पर मौजूद लोगों से कई गुना ज़्यादा संख्या परियेाजना स्थल पर थी.

मुख्यमंत्री ने सचिव दीपक कुमार सिंह से कहा, मैं यह बर्दाश्त नहीं कर सकता. इसे तोड़कर परियोजना स्थल पर वैसा शिलापट लगाएं, जिस पर प्रोटोकॉल का पालन करते हुए सांसद एवं विधायकों का नाम अंकित हो. उधर जल संसाधन मंत्री विजय चौधरी ने एक बयान देकर खुद को विवाद के घेरे में खड़ा कर लिया. उन्होंने कहा, आप कहीं पता करें कि कोई भी परियोजना शुरू होती है, तो पहले दिन से ही उसका पूर्ण लाभ समस्त प्रभावी क्षेत्रों को नहीं मिलता. इस बयान पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए पूर्व जल संसाधन मंत्री जगदानंद सिंह ने कहा कि कोई भी परियोजना शुरू करने सेे पहले उसे कई जांच और परीक्षा से गुजरना होता है. इस दौरान काफी दिनों तक नि:शुल्क सेवाएं प्रभावित क्षेत्रों को दी जाती हैं. जब तकनीकी तौर पर विभाग दुरुस्त मान लेता है, तभी उसका उद्घाटन होता है. जगदा बाबू ने उदाहरण के तौर पर बाढ़ प्रभावित एवं अन्य कई क्षेत्रों में लगी बिजली परियोजनाओं की बात की और कहा कि जांच एवं परीक्षा के लिए संबंधित क्षेत्रों में काफी दिनों तक नि:शुल्क बिजली दी गई. जब परियोजना तकनीकी तौर पर दुरुस्त हुईं, तब उन्हें उद्घाटन के लायक समझा गया.
इतना ही नहीं, जगदानंद सिंह ने कहा, इस उद्घाटन का मतलब ही समझ में नहीं आ रहा. जिस परियोजना का आधार कुदरा विवर प्रणाली है. तीन नहर प्रणालियों में से सबसे ज़्यादा नौ सौ घन क्यूसेक पानी इसी को दिया जाना है और इसी का पानी रोक दिया गया है, जिसे छोड़ने में विभाग स्वयं को लाचार समझ रहा है. फिर उद्घाटन करने का मतलब क्या? यहीं नहीं, उद्घाटन के दिन अगर बायां तट नहर प्रणाली और कुदरा विवर नहर प्रणाली के लिए पानी छोड़ा जाना था, तो स़िर्फ बायां तट नहर में ही जलस्राव क्यों हुआ? क्यों नहीं कुदरा विवर प्रणाली के लिए पानी छोड़ा जा सका? इसका मतलब यह उद्घाटन जनता को अंधकार में रखने के लिए किया गया. जगदा बाबू ने राजद सरकार के कार्यकाल की याद दिलाते हुए कहा कि 2005 से पहले बायां और दायां तट नहर मुख्य शाखा का निर्माण कराया गया था. नौ वर्षों तक वर्तमान सरकार इसकी सुरक्षा क्यों नहीं कर पाई? ऐसे कई सवाल उन्होंने खड़े किए और कहा कि किसी भी परियोजना को शुरू करने से पहले उसके डूब क्षेत्र की साफ़-सफाई प्राथमिकता होती है, लेकिन दुर्गावती जलाशय परियोजना के डूब क्षेत्र में खाली कराए गए गांवों, जैसे करमचट-भूलड़ी के घर एवं झोंपड़े आज भी दिख रहे हैं. बड़े-बड़े पेड़ों और झाड़ियों के साथ ऊंचे-ऊंचे टीले भी मौजूद हैं. अगर सफाई नहीं हुई, तो कैसे तैयार हो गया यह डूब क्षेत्र और विभाग ने कैसे समझ लिया उसे उद्घाटन के लायक?
15 अक्टूबर को जब मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी परियोजना का उद्घाटन कर रहे थे, तब हजारों किसान काले झंडे दिखाकर कुदरा विवर योजना में पानी छोड़ने का विरोध कर रहे थे. उधर दूसरा वर्ग कुदरा विवर योजना में पानी छोड़ने का समर्थन करते हुए पुलिस हिरासत में बैठा हुआ था. विरोध करने वाला तीसरा तबका विस्थापितों का था, जो सुविधाओं एवं मांगों को लेकर लगातार नारेबाजी कर रहा था. सभास्थल पर मौजूद लोगों से कई गुना ज़्यादा संख्या परियेाजना स्थल पर थी. लोग पानी रोकने और छोड़ने के लिए आपस में संघर्ष कर रहे थे. परियोजना के लिए संघर्षरत चेनारी के पूर्व विधायक ललन पासवान ने कहा कि यह उद्घाटन किसानों को आपस में लड़ाने के लिए किया गया है. जिस परियोजना का 90 प्रतिशत हिस्सा पूर्ववर्ती सरकार ने पूरा कर दिया था, उसका 10 प्रतिशत हिस्सा पूरा करने में नौ वर्ष का समय क्यों लगा? पासवान ने कहा, किस बल पर राज्य सरकार इस परियोजना के लिए एक हज़ार करोड़ से ज़्यादा रुपये खर्च करने की बात कहती है? वर्तमान वित्तीय वर्ष में इस परियेाजना के लिए मात्र सौ करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है, जिसमें से 89 करोड़ रुपये आज भी डीएम कैमूर के पास पड़े हुए हैं, जो खर्च नहीं हो सके. परियोजना स्थल की स्थिति यह है कि रिवर क्लोजर का कार्य अभी बाकी है. आनन-फानन में आधे-अधूरे कार्य करके पता नहीं किस उद्देश्य से सरकार ने उद्घाटन कर दिया. अभी तक मुख्य नहर और वितरणी के लिए निविदा भी आमंत्रित नहीं की गई.
शाहाबादी किसान संघ के संयोजक राम बिहारी सिंह ने परियोजना के उद्घाटन के लिए सरकार को बधाई तो दी, लेकिन चेतावनी भी दी कि इस उद्घाटन से कुछ लोग श्रेय लेने का प्रयास कर रहे हैं, जबकि इस परियोजना के लिए जगजीवन राम समेत अब तक कई लोगों ने जान लड़ा दी. उन्होंने जगजीवन राम द्वारा शिलान्यास की गई परियोजना का उद्घाटन महादलित नेता जीतन राम मांझी के हाथों कराए जाने का स्वागत किया, लेकिन यह भी कहा कि वर्तमान सरकार जिस तरह इंद्रपुरी में अधूरे पड़े समांतर कैनाल निर्माण के साथ सौतेला व्यवहार कर रही है, वह पूरे शाहाबाद के साथ अन्याय है. उन्होंने दुर्गावती जलाशय परियोजना के कार्य अधूरे छोड़कर उद्घाटन करने पर नाराज़गी जताई और कहा कि शाहाबाद के किसानों के साथ न्याय तभी होगा, जब सरकार इसे जल्द पूरा करे. बहरहाल, आनन-फानन में जिस तरह सरकार परियोजनाओं का उद्घाटन कर रही है, उससे संशय के बादल छाए हुए हैं. इन तमाम दिग्गजों के विरोध और स्वागत के बीच जिस तरह दुर्गावती जलाशय परियोजना का उद्घाटन राज्य सरकार द्वारा कराया गया, उससे प्रश्‍न तो कई उठते हैं, लेकिन लगभग 40 वर्षों से इस परियोजना के निर्माण के इंतज़ार में बैठे रोहतास-कैमूर के चार लाख से ज़्यादा किसानों के बीच एक उम्मीद की किरण ज़रूर पहुंची है.

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