कहाँ गए ओ लोग जिन्होंने दुनिया को बेहतर बनाने के लिए अपने आप को खपाकर नहीं कोई सत्ता-संपत्ति, और नाही अपने घर परिवार का मोह किया ! यह मजमून लिखने का कारण राष्ट्र सेवा दल के कारण मेरे जीवन में जो भी लोग आये उनमें से एक प्रोफेसर ग प्र प्रधान जो फर्ग्युसन जैसे मशहूर पुणे के कालेज में अंग्रेजी के शिक्षक थे इस कारण मराठी में शिक्षक को मास्तर भी बोला जाता है तो प्रधान जी को हम लोग मास्तर ही बोलते थे ! वह 4 जून 1941 के दिन स्थापित राष्ट्र सेवा दल के प्रथम कार्यकर्ताओमेसे एक थे ! और अंग्रेजी के अलावा अन्य अध्ययन में अगुवा होने के कारण उन्होंने राष्ट्र सेवा दल के अभ्यास मंडल जैसी गतिविधिको गति देने मे अहम भूमिका निभाई है ! मुख्यतः जनतांत्रिक, समाजवादी, समता, बंधुता, सेक्युलर और विज्ञानाभिमुख समाज के लिए राष्ट्र सेवा दल के सदस्यों की बौद्धिक तैयारी करने के लिए संपूर्ण महाराष्ट्र में राष्ट्र सेवा दल के सदस्यों की बौद्धिक तैयारी करने के लिए घुमने से लेकर इन विषयों पर अत्यंत सरल भाषा में प्रस्तुत किया है !

हमारे जैसे कई-कई मित्रों को तैयार करने में उनकी भुमिका रही है ! और मुझे तो वह अपना बेटा ही मानते थे ! इस कारण मेरी पुणे की यात्रा मे शायद ही कोई समय होगा कि उन्होंने और उनकी जीवन संगीनी डॉ मालविका प्रधान ने मुझे खाने पर नहीं बुलाया होगा और सबसे अहम बात मुझे खद्दर के पजामा, कुर्ता और जाकिट और उस समय उन्होंने लिखी हुई किताब की कापी अभिप्राय के साथ भेट देने का सिलसिला लगातार शुरू था ! और वर्तमान देश-दुनिया के सवालों पर लंबी बातचीत होती थी ! और उसमे भी मेरा क्या आकलन है ?

यह सवाल इतनी नम्रता से पूछते थे कि मैं कई-कई बार बोला कि आप मेरे पिताजी के उम्र के है खुद प्रोफेसर और बहुत ही अच्छी तरह से पढने-लिखने वाले साहित्यिक होकर ऐसा क्यों पूछते हो ? तो वह कहते थे कि तुम्हारे साथ मुझे बात करते हुए बहुत इनपुट मिलता है ! क्योंकि तुम्हारे अॅनालिटिकल स्किल्स का मै मुरीद हूँ ! और तुम काफी जगह घुमते-फिरते हो और इसी तरह काफी पढते रहते हो और तुम्हारी सबसे बड़ी खासियत मार्क्सवादीयोसे लेकर राॅयवादी, अंबेडकरवादी, गाँधीवादी, समाजवादी यानी हमारे देश के सभी परिवर्तन करने की कोशिश करने वाले लोगों से तुम्हारे गहरे संबंध है और यह बात नाना साहब गोरे मुझे कहाँ करते हैं कि अपने परिवार मे सुरेश खैरनार एक मात्र कार्यकर्ता है जिसके इतने व्यापक संबंध है और इन सभी ग्रुपो मे वह बराबर उठता-बैठता है ! इसलिए मेरे लिए तुम्हारे विचारों को जानने समझने की उत्सुकता हमेशा ही बनी रहती है !

इसी कारण वह और कुछ और समाजवादी लोग अण्णा हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन मे शुरू मे शामिल हो गए थे और प्रधान मास्तर ने मुझे कलकत्ता में था तो एक लंबी चिठ्ठी लिखी थी कि तुम अब महाराष्ट्र में आ जाओगे तो अण्णा हजारे के आंदोलन के लिए अच्छा होगा इत्यादि बाते लिखीं थीं तो मैंने जवाब दिया कि आप और अन्य समाजवादी आपके हम उम्र लोगोकी नाखून की भी बराबरी अण्णा नहीं कर सकते और आप तो हर तरह से बडे हो क्यों आप लोग इस तरह के शरद जोशी से लेकर अण्णा जैसे लोगों को बडा करने की गलती करते हो ? क्योंकी यह लोग एखादा मुद्दे पर वह भी बहुत ही चतुराई से सिर्फ उनके इर्द-गिर्द ताना-बाना बुनकर आंदोलन करते हैं देखिये आज देश में संघ परिवार सांप्रदाईकता के मुद्दे पर वह भी बहुत ही आक्रामक तरीके से उधम मचा रहा है भागलपुर दंगा उसके लिए उदाहरण के लिए ताजा-ताजा है और मैं बार-बार कह-लीख रहा हूँ कि आने वाले पचास साल की भारत की राजनीति का केंद्र बिंदु सिर्फ और सिर्फ सांप्रदायिकता ही रहेगा और अण्णा हजारे एक शब्द से उसपर बोलना तो दूर की बात है उल्टा संघीयो के इशारों पर नाच रहा है! क्यों आप लोग इस तरह के लोगो को प्रतिष्ठित करने का काम कर रहे हैं कृपया मेरे आने की बात तो बहुत दूर है आप लोग अण्णा से पल्ला झाड़ने कि जरूरत है ! और प्रधान मास्तर का बडप्पन की उन्होंने थोड़ी देर बाद ही सही पर अण्णा के कुछ और भी रंग ढंग देखने के बाद अपने आप को अलग किया है ! उसी तरह भागलपुर दंगे के बाद संघ ने बिहार में पिछडी और दलितों की बस्ती में जाकर बुजुर्ग दलित व्यक्तियों के पैर धोने का कार्यक्रम शुरू किया था तो मैंने उनसे बातचीतमे मैंने वह प्रसंग बताया तो मास्तर बोले कि अच्छा है संघ थोडा-सा बदलने की शुरूआत है ! मैंने कहा कि यह शत-प्रतिशत संघ की नौटंकी है क्योंकि बिहार मे आपहीके पार्टी के लालूप्रसाद यादव दंगे के बाद मुख्यमंत्री बने हैं और उनकी विजय में दलित, पिछडी और मुसलमानों के एकमुश्त वोट लालूप्रसाद यादव को मुख्यमंत्री बनने के लिए मददगार साबित हो देखकर संघ दलितों और पिछड़ों को पुचकारने की कोशिश कर रहे हैं और जब मौका आयेगा तब उन्ही पैरों को खींचकर पटकने और जलाना मारने का काम करेगा और वर्तमान उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ का क्या चल रहा है यह पूरी दुनिया को मालुम है ! आपको संघ बदल रहा है यह बिल्कुल गलत लग रहा है क्योंकि जनता पार्टी बनने के पहले एस एम हम लोगों को जेलो में मिलते हुए यहीं तर्क देते थे ! और हम उन्हें कहते थे कि अण्णा हमारे साथ जेल मे संघ के लोग रात-दिन की सोहबत मे रह रहे हैं और आये दिन हमारे वाद विवाद इन्ही मुद्दों पर आये दिन चल रहे हैं और हमें मालूम है कि यह लोग गोलवलकर-सावरकर के हिंदू राष्ट्र के हिमायती है और मनुस्मृति के अनुसार भारत में समाज की व्यवस्था दुनिया के किसी भी देश की तुलना मे सबसे आदर्श व्यवस्था थी ! क्या आप बदलने की बात करते हो ? और उन्नीस महीनों बाद जनता पार्टी की टूटन के कारण क्या आप भूल गये ? खैर प्रधान मास्तर का बडप्पन की उन्होंने तुरंत अपने संघ बदलने की बात पीछे लेते हुए मुझे दुरूस्त करने के लिए धन्यवाद देने लगे !

और मेरे इस तरह के पहचान रखने वाले दुसरे यदुनाथ थत्ते और वसंत पळशिकर, अम्लान दत्त और गौर किशोर घोष तथा शिवनारायण राय थे और यदुनाथजीसे लेकर प्रधान मास्तर, पळशिकर जब भी कभी कलकत्ता मेरे मेहमान रहे हैं तब-तब मैंने बंगाल के हमारे तीनों दिग्गजों के साथ इंटेलेक्चुअल फिस्ट का आनंद लिया है !

प्रधान मास्तर ने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन से लेकर गोवा मुक्ति, और मेरे आँखो के सामने जेपिके आंदोलन और आपातकाल मे उन्नीस महीने जेलो में रहे हैं लेकिन यरवडा कारागृह में उन्होंने साता ऊत्तराची कहाणी नामसे मराठी भाषा का सर्वश्रेष्ठ राजनीतिक-समाजनितिक पर आजादी से शुरू करते हुए जेपि ,नक्सल आंदोलन तक फिर बिचमे एम एन राय की कोशिश से लेकर सत्तर के दशक में दलित पैंथर और,आर एस एस तथा महाराष्ट्र मे चले सभी राजनीतिक-समाजनितिक उथल-पुथल को अपने उपन्यास में बहुत ही सशक्त ढंग से छूने की कोशिश की है ! उसी तरह के लोकमान्य तिलक, आगरकर पर और सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण भारत की आजादी के इतिहास का मराठी भाषा में इतना सरल और सुन्दर प्रस्तुति कोई दूसरा नहीं है ! और यह सभी किताबें उन्होंने मुझे विशेष रूप से अभिप्राय देने के लिए खुद भेंट दिया है !

वैसे वह महाराष्ट्र विधान परिषद के सदस्य और बाद में उसके सभापति भी रहे हैं ! लेकिन खुद ही निर्णय लिया कि अब मैं संसदीय राजनीति से सन्यास ले रहा हूँ ! जो की उनकी शिक्षक मतदाता संघ मे जबरदस्त पकड़ थी ! और काफी लोगोंने उन्हें मनाने की कोशिश की है ! मुख्यतः एस एस जोशी, नानासाहब गोरे, प्रोफेसर मधु दंडवते, मधु लिमये, डॉ बापु कालदाते,प्रोफेसर सदानंद वर्दे, लेकिन प्रधान मास्तर ने अपना निर्णय नहीं बदला ! और बादमे वह साने गुरूजी ने स्थापित कि हुई मराठी पत्रिका साधना साप्ताहिक के संपादक रहे और बाद में उसके भी पद से मुक्त होकर इस दरम्यान डॉ मालविका प्रधान की मृत्यु भी होने के कारण उन्होंने अपने सदाशिव पेठ के अपने घर और जो कुछ भी जमा पूँजी थी सबकुछ साधना साप्ताहिक को दान देकर अंतिम दिन हडपसर स्थित साने गुरूजी हास्पीटल में रहे और आज की तारीख आज से ग्यारह साल पहले उम्र के कारण हमारे बीच नहीं रहे !

मराठी भाषा के मूर्धन्य साहित्यकार श्री जी ए कुलकर्णी जो बहुत ही एकांत पसंद और प्रसिद्धीपराग्मुख , लोगो से नहीं मिलने के लिए बदनाम थे!लेकिन प्रधान मास्तर से उनके संबंध संपूर्ण महाराष्ट्र के लिए आश्चर्य की बात है कि उन्होंने उनको जितने भी खत लिखें है हर खत की शुरूआत मेरे प्रिय संत प्रधान ! वह भी धारवाड के कालेज में अंग्रेजी के शिक्षक थे और उनकी बराबरी कर सकने वाले मराठी कथा लेखन अभी तक करने वाले कोई अन्य अस्तित्व में नहीं है ! लेकिन जी ए कुलकर्णी और प्रधान मास्तर के स्नेह संबंध मराठी जगत में आज भी चर्चा का विषय है !

मेरी व्यक्तिगत राय या सोच है कि प्रधान मास्तर भले समाजवादी पार्टी के और राष्ट्र सेवा दल के निष्ठावान नेता रहे हो लेकिन वह अजातशत्रु थे ! मैंने साने गुरूजी को कभी देखा नहीं क्यों की मै पैदा होने के तीन साल पहले ही वह इस दुनिया को विदा कर गए थे ! लेकिन साने गुरूजी के प्रेममयी, स्नेहिल स्वभाव की बातें उनके सहयोगी रहे लोगों से और आचार्य अत्रे से लेकर और भी साहित्यिक रचनाओ मे मातृहृदयी साने गुरूजी के किस्से पढे हैं तो मुझे राष्ट्र सेवा दल मे उम्र के पंद्रह साल के भी पहले शामिल होने के कारण प्रधान मास्तर से परिचित और बाद में बहुत ही करीब जाने का मौका मिला है ! और वह भी हमारे घर मुख्यतः कलकत्ता और मुझे उनके घर पुणे में तथा साधना साप्ताहिक के कार्यालय और विधान परिषद के सभापति के निवास मुंबई में रहने का मौका मिला है ! और वह अपने व्यस्तता के बावजूद मुझसे बात करते थे ! और उस बातचीत मे साहित्य, समाज, राजनीति से लेकर अन्य विषयों पर भी बातें होती थीं और यह बौद्धिक फिस्ट पुणे-मुंबई की यात्रा मेरी सबसे आकर्षणों में से एक थी लेकिन अब यह लोग एक एक करके चले गए है और अब जो तथाकथित विचारक, साहित्यिक सिर्फ लेखन के कुली जिसे मराठी में लेखन कामाठी बोला जाता है ! यह लोग अपने आयफैल टावरों मे रहते है और सबसे खतरनाक और चिंता की बात है कि यह वर्तमान देश-दुनिया के सवालों पर बात करना तो दूर उल्टा कलाकारों को अपने कला से मतलब रखना चाहिए और कला एक कला वाली पुरानी चादर ओढ़े हुए है ! प्रोफेसर ग प्र प्रधान जैसे लेखक, संपादक, सामाजिक और राजनैतिक सरोकारों वाले मेरे पितृतुल्य वरिष्ठ मित्र की ग्यारहवीं पुण्यतिथि के अवसर पर विनम्र अभिवादन के साथ

डॉ सुरेश खैरनार 29, मई, 2021

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