cowगाय धंधा हो गई है. सियासतदानों के लिए भी और व्यापारियों-माफियाओं के लिए भी. राजस्थान में जिस तरह गौशाला में नारकीय अवस्था में गायों को घिसटते हुए और मरते हुए देखा गया, उसने पूरे देश के लोगों का दिल दहला दिया. पूरा देश ऐसे गौरक्षकों के प्रति घृणा से भर गया. गायों का ऐसा ही हाल अन्य राज्यों में भी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुरुस्त कहा कि गौरक्षा के नाम पर 80 फीसदी लोग धंधा कर रहे हैं. गायों को मारने का मसला हो या सरकारी धन लेकर गायों को पालने का, गायों की रक्षा के नाम पर चमड़े का कारोबार करने वाले दलितों की बर्बर पिटाई का मसला हो या गोमांस के बहाने किसी अल्पसंख्यक की हत्या करने का, या गायों के पक्ष-विपक्ष को लेकर सियासत करने का मसला हो, सबके पीछे झांकें तो आपको धंधा ही दिखाई देगा.

गुजरात में कथित गौरक्षकों ने जिस तरह दलितों को सार्वजनिक और बर्बर तरीके से पीटा और जिस तरह राजस्थान में गायों की मौत की तस्वीरें सामने आईं, उसने देश के लोगों को दुख पहुंचाया और राजनीतिक दलों को राजनीति करने का मौका दिया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब सार्वजनिक सभा में गौरक्षा के नाम पर धंधा करने वालों को धिक्कारा तो अन्य राजनीतिक दलों ने इसे नाकाफी बताया. मोदी ने कहा कि गाय के नाम पर धर्म नहीं, धंधा हो रहा है. कई लोगों ने गौरक्षा के नाम पर दुकानें खोल रखी हैं. ऐसे गौरक्षकों को देख कर बहुत गुस्सा आता है. मोदी ने यह भी कहा कि कुछ लोग जो पूरी रात असामाजिक गतिविधियों में संलग्न रहते हैं, वे दिन में गौरक्षक का चोला पहन लेते हैं. प्रधानमंत्री ने राज्य सरकारों से अनुरोध किया कि ऐसे गौरक्षकों की डोजियर तैयार करें तो पाएंगे कि इनमें से 70 से 80 फीसदी अपराधी तत्व हैं. मोदी ने कहा कि अगर सचमुच में गौरक्षक हैं तो प्लास्टिक फेंकना बंद करवा दें.

गायों का प्लास्टिक खाना रुकवा दें तो यह सच्ची गोसेवा होगी. क्योंकि अधिकांश गायें कत्ल से नहीं बल्कि सबसे ज्यादा प्लास्टिक खाने की वजह से मरती हैं. मोदी का बयान आने के बाद गाय पर राजनीति और तेज हो गई. कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों ने मोदी पर कस कर निशाना साधा. विपक्ष ने आरोप लगाया कि दलित वोट पाने की मजबूरी में प्रधानमंत्री को इस मुद्दे पर बोलना पड़ा जबकि कार्रवाई कुछ नहीं हो रही. कांग्रेस के साथ सुर में सुर मिलाते हुए कई राजनीतिक दलों ने आरोप लगाया कि मोदी सिर्फ बोलते हैं, कार्रवाई नहीं करते. जबकि गौरक्षा के नाम पर गुंडागर्दी की घटनाएं भाजपा शासित राज्यों में अधिक हो रही है. एनसीपी नेता नवाब मलिक ने कहा कि अगर मोदीजी इस तरह का बयान दे रहे हैं तो इसका मतलब है कि गौरक्षा के नाम पर देश में गलत काम हो रहा है. अब उन्होंने बयान दिया है तो जिम्मेदारी भी उनकी ही बनती है. राजद के मुखिया लालू प्रसाद यादव ने अपने अंदाज में फेसबुक के जरिए कहा कि मोदी जी को मेरी दो दिन पहले कही हुई बात समझ में आ गई कि गाय दूध देती है, वोट नहीं. लालू ने कहा, ‘और समझ भी क्यों न आए. गोमाता इनकी सरकार बनवाना तो दूर, बनी-बनाई सरकारों को हिला रही है’. बसपा नेता सुधींद्र भदौरिया ने कहा कि भाजपा की जमीन खिसक चुकी है और मोदी घबरा गए हैं. इतने सारे राज्यों में उनकी सरकारें हैं, उन राज्यों में क्या कार्रवाई हुई है? विपक्ष के हमलों पर भाजपा का कहना है कि प्रधानमंत्री को जो संदेश देना था उन्होंने दे दिया है. राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने प्रधानमंत्री के बयान के प्रति अपना समर्थन जताया. संघ के सर सहकार्यवाह भैय्याजी जोशी ने कहा कि गौरक्षा के नाम पर कुछ लोग कानून हाथ में लेकर सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने का काम कर रहे हैं. ऐसे लोगों को बेनकाब किए जाने की जरूरत है. दलितों पर हुए हमलों के प्रति संघ ने सरकार को कठोरता से पेश आने के लिए कहा है. जेडीयू नेता शरद यादव ने भी प्रधानमंत्री के बयान का समर्थन करते हुए कहा कि गौरक्षा के नाम पर गुंडागर्दी करने वालों पर पाबंदी लगाई जाए. शरद यादव बोले कि प्रधानमंत्री ने ठीक कहा कि सरकार को गाय बचाने का आयोग चलाना चाहिए. पूरे देश में सड़कों पर गाय पॉलिथीन खा रही है और सबसे ज्यादा गाय की हत्या इस कारण से हो रही है तो गोरक्षक इसकी चिंता करें, जनता कानून को अपने हाथ में न ले.

गुजरात में दलितों की पिटाई का मसला सुर्खियों में ही था कि राजस्थान के हिंगोनिया स्थित सरकारी गौशाला में हजारों गायों के नारकीय हालात में मरने की खबर सामने आई. वहां ढाई साल में 27 हजार गायों की मौत हुई. अर्थात हर महीने 900 गायें मरीं. यानी, प्रतिदिन 30 गायों ने भूख, प्यास और बीमारी से दम तोड़ा. हिंगोनिया गौशाला में एक पखवाड़े में 500 से ज्यादा गायों की मौत की खबर फैलने के बाद पूरा सरकारी तंत्र गौशाला पर जमा हो गया. पूरी सरकार ने गहरे कीचड़ में धंसी पड़ी भूखी प्यासी गायें देखीं. राजस्थान के मुख्य सचिव को मौके पर बताया गया कि पांच दिन में ही वहां 200 गायों की मौत हुई है. गौशाला में 80 फीसदी  बाड़ों की नालियां बंद पाई गईं. तकरीबन सारे बाड़ों में गोबर का अंबार लगा था. शहर से गौशाला पहुंचने वाली 90 प्रतिशत गायें मर गईं. गौशाला के आईसीयू में 23 और बाड़ों में 17 गायें मरी पाई गईं. गौशाला के 30 प्रतिशत कर्मचारी काम पर आते ही नहीं. गायों की मौत का यह कांड पूरा का पूरा भ्रष्टाचार जनित है. यह हाल भाजपा शासित सरकार है, जिसके नेता गौरक्षा के नाम पर बड़ी-बड़ी तकरीरें देते हैं और गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने, बीफ के कारोबार पर रोक लगाने और गौमांस खाने वालों पर कानूनी कार्रवाई करने की बातें करते रहते हैं. राजस्थान में भाजपा की सरकार है, लेकिन हिंगोनिया में गायों के मरने का सिलसिला लगातार जारी है. गौभक्त होने का दावा करने वाली भाजपा सरकार ने गौ-संरक्षण के लिए विशेष कदम क्यों नहीं उठाया? हिंगोनिया कांड पर मुख्यमंत्री का कोई बयान भी नहीं आया. मामला अदालत तक जा पहुंचा और इस घटना को संज्ञान में लिया गया. अदालत ने भी सरकारी इंतजामात और कार्रवाई के बारे में पूछा. अदालत ने इस बात पर गहरी चिंता जाहिर की कि गोबर से बने दलदल में फंस कर सैकड़ों गायें मर गईं. अदालत के निर्देश पर प्रदेश के महाधिवक्ता ने गौशाला का निरीक्षण भी किया और वहां की बदतर स्थिति के बारे में अपनी रिपोर्ट पेश की. महाधिवक्ता ने देखा कि बाड़ों में गोबर का नारकीय दलदल बना था, जिसमें गायें मरी पड़ी थीं और अनगिनत गायें मरणासन्न हालत में थीं. गोबर और गंदगी का साम्राज्य ऐसा था कि बुल्डोजरों से गायें खींची जा रही थीं. महाधिवक्ता ने मौके पर रजिस्टर की जांच की तो पता चला कि औसतन रोजाना 35 से 40 गायों की मौत हो रही है. अर्थात हर महीने 1200 गायें मर रही हैं.

मोदी की फटकार राजनीतिक हथकंडाः आईपीएफ 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गौरक्षकों को फटकार केवल राजनीतिक हथकंडा है. यह कहना है ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट के राष्ट्रीय प्रवक्ता एसआर दारापुरी का. दारापुरी ने कहा कि देश में गौरक्षा समितियों का गठन भारतीय जनता पार्टी के तत्वाधान में किया गया था और उन्हें पूरा सरकारी संरक्षण दिया गया था. वास्तव में भाजपा ने गौरक्षा को अपने विरोधियों को दबाने के लिए एक हथियार के रूप में अपनाया था. इसी लिए दो साल तक पूरे देश में गौरक्षकों की गुंडागर्दी निर्बाध चलती रही. इस पर न तो कोई प्रभावी कार्रवाई हुई और न भाजपा के किसी नेता ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त की. गुजरात में गौरक्षकों द्वारा चार दलितों की निर्मम पिटाई के मामले को लेकर दलितों का एक बड़ा जनांदोलन उठ खड़ा हुआ है, इसकी गूंज पूरे देश में सुनाई दे रही है. निकट भविष्य में गुजरात, उत्तर प्रदेश और अन्य कई राज्यों में चुनाव होने वाले हैं जिनमें दलित प्रतिरोध का असर पड़ना ज़रूरी है. इसीलिए मोदी ने दलितों की नाराज़गी को कम करने के लिए गौरक्षकों को फटकार लगाई है. यह केवल एक राजनीतिक हथकंडा है.

दलितों की पिटाई में कांग्रेस विधायक और सरपंच का हाथ!

गुजरात के ऊना में दलितों की पिटाई पर देश के सारे लोगों का ध्यान गया. वहां भाजपा की सरकार है, लिहाजा भाजपा अपने शासनिक दायित्वों से नहीं बच सकती. दलितों की पिटाई के मसले में जिस तरह के तथ्य सामने आ रहे हैं और जिस तरह अलग-अलग सियासी खेमों के लोग गिरफ्तार हो रहे हैं या जिन फरार लोगों की खोज की जा रही है, वह इस घटना के पीछे राजनीतिक साजिशों की तरफ इशारा कर रही है. इस मामले में गिरफ्तार तकरीबन दो दर्जन लोगों से चौंकाने वाली जानकारियां मिल रही हैं. इस घटना में ऊना के कांग्रेसी विधायक वंश पंजाभाई भीमभाई और मोटा समधियाला गांव के सरपंच प्रफुल्ल कोराट का नाम सामने आ रहा है. फोन रिकॉर्ड खंगालने से पता चला है कि घटना के पहले कांग्रेस विधायक और सरपंच के बीच तीन सौ से अधिक बार बात हुई थी. घटना के बाद से सरपंच फरार है. विधायक और सरपंच के बीच काफी अच्छे संबंध बताए गए हैं. पता चला कि सरपंच प्रफुल्ल कोराट का स्थानीय दलित परिवार से काफी दिनों से झगड़ा चल रहा था. झगड़े के पीछे वह जमीन है जिसे खाली करने की धमकियां दी जा रही थीं. दलित परिवार उसी जमीन पर मरे हुए जानवरों की खाल उतारने का काम किया करता था. दलितों की पिटाई का वीडियो भी सरपंच के मोबाइल फोन से ही बनाया गया है. दलितों की पिटाई में इस्तेमाल में लाई गई गाड़ी दमन से ऊना आई थी. दमन से ऊना की दूरी छह सौ किलोमीटर से ज्यादा है. जांच हो रही है कि दलितों की पिटाई करने वाले गौरक्षक दमन से ऊना क्यों आए थे? दलितों की पिटाई के मामले में एक मुस्लिम युवक भी आरोपी है.

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