डायन बताकर महिला एवं उसके परिवार को प्रताड़ित करने की घटनाओं में लगातार वृद्धि हो रही है. हद तो तब हो जाती है जब डायन बताकर महिला को मल-मूत्र पिलाया जाता है. निर्वस्त्र कर उसका सामूहिक बलात्कार किया जाता है. एक से एक अमानवीय घटना को सुन कर लोगों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं, लेकिन डायन के नाम पर हत्याओं का सिलसिला बढ़ता ही जा रहा है.

tantrikडायन बिसाही के नाम पर झारखंड के गांवों की औरतें अमानवीय अत्याचार की शिकार हो रही हैं. डायन होने का आरोप  लगाकर औरतों को मल-मूत्र पिलाने, नंगा कर गांवों में घुमाने और उनके साथ सामूहिक बलात्कार करने जैसी खबरें झारखंड में आए दिन सुनने को मिल रही हैं. डायन के नाम पर जघन्य हत्या को अंजाम दिया जा रहा है. झारखंड गठन के बाद से अब तक डायन होने का आरोप लगाकर लगभग 1,600 महिलाओं की हत्या की जा चुकी है. केवल 2016 में ही डायन होने के संदेह में 54 महिलाओं की हत्या कर दी गई.

डायन के नाम पर औरतों के साथ ज्यादती की तो कई कहानियां हैं, लेकिन हाल में एक विधवा महिला के साथ जो घटना घटित हुई, उसने पूरे मानवता को शर्मसार कर दिया. वृद्ध महिला को डायन बताकर उसके पूरे शरीर से सिरींज के जरिए खून निकाला गया. इतना ही नहीं, उसके नाजुक अंगों में सुई चुभोया गया. राज्य में इसके खिलाफ सख्त कानून बने हैं और सरकार से लेकर अदालत तक इस मुद्दे पर संवेदनशील है, लेकिन फिर भी किसी औरत को डायन बताकर उसकी हत्या कर देना आम बात है.

झारखंड के लिए ये कलंक है, लेकिन इस मुद्दे पर समाज अभी तक जागरूक नहीं हो सका है. इस गंभीर समस्या के निराकरण के लिए कई लोग और कई संस्थाएं लड़ाई लड़ रही हैं. लेकिन ये कुप्रथा गांवों में इस तरह से फैली हुई है कि इतनी जल्दी इससे छुटकारा संभव नहीं लग रहा. तमाम तरह की योजनाओं और कई संस्थाओं के काम करने के बावजूद इस कुप्रथा को लोगों के दिमाग से नहीं निकाला जा सका है. लोग इसे ही सही मानकर जी रहे हैं. लेकिन डायन के नाम पर औरतों के साथ जुल्म करने वाले लोग समझ नहीं पा रहे कि वे ऐसा कर के इस सामाजिक बिमारी को और बढ़ावा ही दे रहे हैं.

पलामू के एक गांव में सुबह-सुबह एक भैंस ने जब दम तोड़ा, तो उसके मालिक को लगा कि उसके घर के बगल में रहने वाले दंपति ने तंत्र-मंत्र के सहारे उसे मार डाला. इसके बाद भैंस वाले ने उस पूरे परिवार को घेर लिया और डायन होने के आरोप में महिला और उसके पति को फरसा से मारकर उनकी नृशंस हत्या कर दी. ऐसी ही एक घटना रांची से सटे मांडर गांव में भी घटित हुई.

यहां एक नवजात की मौत के आरोप में बगल की एक महिला को डायन बताकर मार दिया गया. बच्चे के घरवालों ने कहा कि वो महिला डायन थी और उसने ही बच्चे को नजर लगा दी, जिससे बच्चे की मौत हो गई. जबकि सच्चाई ये थी कि नवजात की मौत बीमारी से हुई थी. स्थानीय डॉक्टर ने भी इसकी पुष्टि की.

हजारीबाग के कर्णपुरा में तो इसप्रकार की एक दिल दहलाने वाली घटना घटी. पति की मौत के बाद मायके में रह रही एक बेसहारा बूढ़ी महिला को उसी के परिवार वालों ने डायन बताकर नंगा कर दिया. उसके शरीर के हर अंग से सूई घोंपकर खून निकाला गया. इतना ही नहीं, उसके नाजुक अंगों से भी सिरींज लगाकर खून खींचा गया.

वो महिला हाथ जोड़ती रही, गिड़गिड़ाती रही, पर लोगों का वहशी व्यवहार जारी रहा. उसके खून के साथ ओझा रात भर तंत्र-मंत्र करता रहा. पुलिस अधिकारी मुकेश कुमार का कहना है कि इस बारे में कोई लिखित शिकायत आने पर ही कार्रवाई करेंगे. वृद्ध महिला दबंगों के डर से प्राथमिकी तक दर्ज नहीं करा पा रही है.

चाईबासा जिले के एक सुदूर गांव का रहने वाला मोहन भुईयां बहुत दिनों से बीमार था. उसकी बिमारी ठीक नहीं हो पा रही थी. उसके घरवालों ने गांव के ही एक दंपत्ति पर आरोप लगाया कि उन्होंने जादू-टोना कर के मोहन को बीमार कर दिया है. उस महिला को पंचायत में लाया गया और उस पर जादू-टोना का आरोप लगाते हुए मोहन पर से नजर उतारने को कहा गया.

महिला पंचायत में हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाती रही, लेकिन पंचायत ने उसकी एक न सुनी. उसपर डायन होने का आरोप लगाते हुए उसे जबरन मानव मल खाने को विवश किया गया. इतना ही नहीं, बाद में जब बीमारी बढ़ जाने के कारण मोहन भुईयां की मौत हो गई, तो उसके परिवार वालोें ने उस महिला और उसके पति की भी हत्या कर दी.

डायन बताकर महिलाओं को मारने और उसके परिवार को प्रताड़ित करने की घटनाओं में लगातार वृद्धि हो रही है. हद तो तब हो जाती है, जब डायन बताकर महिला को मल-मूत्र पिलाया जाता है. निर्वस्त्र कर उसका सामूहिक बलात्कार किया जाता है. ऐसी अमानवीय घटनाओं के बारे में सुनकर लोगों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं.  साल 2000 से 2016 तक डायन के नाम पर 1554 महिलाओं की हत्याएं हुई हैं.

राज्य सरकार द्वारा कानून बनाए जाने के बाद भी हर साल औसतन 45 महिलाओं की नृशंस हत्या डायन बिसाही के नाम पर कर दी जाती है. पिछले पांच वर्ष में डायन के नाम पर प्रताड़ना के आरोप में 3300 मामले दर्ज हुए, लेकिन पुलिस इस मामले को लेकर हमेशा उदासीन बनी रही है. पुलिस द्वारा सख्त कार्रवाई नहीं किए जाने से ग्रामीणों का भी मनोबल हमेशा बढ़ा रहता है.

समाज के कुछ पढ़े-लिखे जागरूक लोग इस कुप्रथा के खिलाफ आवाज उठाते हैं और इस अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं देने की बात कहते हैं, तो उन्हें ही डायन करार दिया जाता है. खूंंटी जिले के राजा कुंजला गांव की सावित्री ने जब इस अंधविश्वास के खिलाफ आवाज बुलंद की तो, उसपर ही डायन होने का आरोप लगा दिया गया. काफी प्रताड़ना के बाद उसे लोगों ने गांव से निकाल दिया. दरअसल, इसके पीछे सावित्री का दस एकड़ खेत का भी मामला था.

उसके खेतों पर दबंग कब्जा करना चाहते थे. लेकिन सावित्री का परिवार इस पर खेती कर गुजर-बसर कर रहा था. खेत हथियाने के लिए ही उन लोगों ने सावित्री पर डायन होने का आरोप लगाया. ठीक इसी तरह राजधानी रांची से सटे गांव बरटोली चौनपुर की सुषमा टोपनो ने जब अपने माता-पिता की मृत्यु के बाद अपने पैरों पर खड़े होकर भाई-बहन को भी पढ़ाना शुरू किया, तो ये दबंगों को नागवार गुजरा. टोपनो पर भी डायन होने का आरोप लगाया गया. दबंगों ने उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया.

इस घटना के बाद सुषमा ने हर जगह न्याय की गुहार लगाई, लेकिन उसे न्याय नहीं मिल सका. इससे क्षुब्ध होकर सुषमा ने आत्महत्या कर लिया. इस तरह की घटनाएं झारखंड के गांवों में आम हैं. किसी की जमीन पसंद आ जाय या कोई औरत पसंद आ जाय और वो अगर दबंगों की बातें नहीं माने, तो उसके साथ रूह कंपा देने वाली ज्यादतियां की जाती हैं. बलात्कार की बात सामने नहीं आए, इसलिए उसे डायन बताकर उसकी हत्या कर दी जाती है.

मिशन से ही निकलेगा समाधान : प्रेमचंद

फ्री लीगल एड कमिटी संस्था इस सामाजिक कुरीति को खत्म करने के लिए काम करती है. इस संस्था के संयोजक प्रेमचंद का कहना है कि डायन बिसाही के नाम पर महिलाओं पर अमानवीय प्रताड़ना का सिलसिला आज भी जारी है. राज्य में डायन प्रथा प्रतिषेध अधिनियम 2001 बना. इसके बावजूद ऐसी घटनाओं में कमी नहीं आ रही है. इस सामाजिक कुरीति पर अंकुश लगाने के लिए सामाजिक संगठनों को आगे आना होगा.

प्रेमचंद का मानना है कि इस गंभीर समस्या को तभी दूर किया जा सकता है, जब सबलोग अपनी नैतिक व मानवीय जवाबदेही समझें. महिलाओं पर होने वाले अत्याचार अपने आप में अमानवीय हैं. प्रेमचंद का कहना है कि हम इस सामाजिक कुरीति को पूर्णत: समाप्त करने को लेकर कृतसंकल्प हैं. अपनी संस्था फ्री लीगल एड कमिटी के माध्यम से हम पूरे राज्य में जनजागरण अभियान चला रहे हैं. प्रेमचंद का मानना है कि बिना लोगों को जागरूक किए इस समस्या से निजात नहीं पाया जा सकता है. केवल सरकार द्वारा कानून बना दिए जाने से इस पर काबू नहीं पाया जा सकता. इस कानून को कैसे अमल में लाया जाय, इस पर चिंतन करने की जरूरत है.

जब तक सभी लोगों में इसे लेकर पूर्णरुपेण इच्छाशक्ति नहीं होगी, तब तक इस गंभीर समस्या को जड़ से खत्म नहीं किया जा सकता है. अंधविश्वास उन्मूलन मिशन बनाकर इसे दूर करने की दिशा में प्रयास किया जा सकता है. इसके लिए ग्रासरुट से ऊपर तक के स्तर पर काम करने की जरूरत है. साथ ही सामाजिक सशक्तिकरण का अभियान चलाने की जरूरत है. प्रेमचंद्र ने बताया कि उनकी संस्था द्वारा ऑपरेशन अंधविश्वास अभियान चलाया जा रहा है. इस अभियान के लिए उन्हें युनिसेफ का भी सहयोग मिल रहा है.

पंचायतें निभा सकती हैं कारगर भूमिका : लुईस मरांडी

राज्य की समाज कल्याण मंत्री डॉ. लुईस मरांडी डायन प्रथा को एक गंभीर समस्या मानती हैं और इसे दूर करने के लिए कानूनी और सामाजिक स्तर पर लड़ाई लड़ने के पक्ष में हैं. वे इस बात से चिंतित दिखती हैं कि झारखंड में अंधविश्वास और डायन के नाम पर हर साल सैकड़ों हत्याएं होती हैं. उनका कहना है कि ये समस्या समाज के लिए तो एक बड़ा अभिशाप है ही, सरकार के लिए भी एक बड़ी चुनौती है. सरकार इस समस्या को खत्म करने के लिए निश्चित रुप से प्रयास कर रही है.

इसके लिए कानून बनाए गए हैं और साथ ही राज्य सरकार कई योजनाएं भी चला रही है. झारखंड मंत्रिमंडल ने 3 जुलाई, 2001 को ही डायन प्रथा प्रतिषेध अधिनियम को स्वीकृति दी थी. इस कानून के तहत डायन के नाम पर किसी को प्रताड़ित करने पर जुर्माना और कैद दोनों ही करना अनिवार्य है. लेकिन इसे केवल सरकारी योजना और प्रयास से खत्म नहीं किया जा सकता है. गांव समाज के हर व्यक्ति को जागरूक होना होगा, तभी इस अंधविश्वास को खत्म किया जा सकता है. राज्य की पंचायतें भी इसमें अहम भूमिका निभा सकती हैं.

ये पूछे जाने पर कि कानून लागू होने के बाद भी ठोस नतीजे क्यों सामने नहीं आ रहे हैं, इन्होंने  कहा कि लोगों पर कानूनी कार्रवाई हो रही है, जहां भी डायन उत्पीड़न का मामला पकड़ में आता है, वहां मामले दर्ज होते हैं और कार्रवाई भी होती है. लेकिन ये भी सच है कि कानून को लेकर लोगों में जो भय होना चाहिए, वो बहुत ज्यादा नहीं दिख रहा है. एक कमी ये भी है कि इस कानून को लागू करने वाली एजेंसियों और इससे प्रभावित होने वाले लोगों के बीच कहीं न कहीं गैप है.

इसे और भी सख्ती से लागू करने की जरूरत है. लोगों को जागरूक करने के लिए सरकार की तरफ से प्रचार गाड़ियां और रथ निकाले गए हैं. साथ ही इसके लिए बजट में एक बड़ी राशि का भी प्रावधान किया गया है. समाज कल्याण विभाग की तरफ से इसके लिए आंगनबाड़ी सेविका और पोषण सखी की भी सहायता ली जा रही है. इस मामले में पुलिस की भी भूमिका महत्वपूर्ण है. समाज कल्याण मंत्री का ये भी मानना है कि इस प्रथा को खत्म करने में पंचायती राज संस्थाएं सबसे कारगर साबित हो सकती हैं.

सरकार को इनसे काफी अपेक्षाएं भी हैं. जिला परिषद के अध्यक्ष, पार्षद से लेकर मुखिया और वार्ड सदस्य इसमें बड़ी भूमिका निभा सकते हैं. गांव समाज के एक-एक व्यक्ति तक पंचायती राज संस्थाओं की व्यापक पहुंच है और पूरा समाज इनके इर्द-गिर्द रहता है. इस कारण इनकी भूमिका अहम हो सकती है.

जब ये पूछा गया कि आपके मंत्री बनने के बाद भी घटनाओं में वृद्धि हुई, आपने क्या कदम उठाया, तो इनका जवाब था कि सरकार की तरफ से जितना प्रयास हो सकता है, हम वो सब कर रहे हैं. लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए हम नुक्कड़ नाटक और प्रचार गाड़ी एवं अन्य माध्यमों की भी सहायता ले रहे हैं. साथ ही पुलिस प्रशासन को भी इस संबंध में सख्त हिदायत दी गई है.

डायन कुप्रथा दूर करने के लिए बच्चों को किया जा रहा जागरूक

राज्य में डायन कुप्रथा दूर करने के लिए राज्य सरकार स्कूली बच्चों को जागरूक करने का काम कर रही है. साथ ही पाठ्‌य पुस्तक में भी इससे जुड़ा अध्याय शामिल किया गया है. साक्षरता विभाग ने कक्षा छह की किताब सामाजिक व राजनीतिक व्यवस्था नामक पुस्तक में डायन कुप्रथा के नाम से एक अध्याय शामिल किया है. इस अध्याय में डायन प्रथा को एक सामाजिक समस्या बताया गया है. इसमें बताया गया है कि डायन बिसाही का कोई अस्तित्व नहीं होता, ये महज एक सामाजिक कुरीति एवं अंधविश्वास है.

गांव में कोई बीमारी फैलती है और इससे किसी की मौत होती है, तो इसकी कोई खास वजह होती है, किसी अंधविश्वास के साथ इसका कोई ताल्लुक नहीं होता. इस अध्याय इससे जुड़ी एक कहानी भी दी गई है. इसमें बताया गया है कि एक गांव में एक महिला रहती थी, जिसके पति की मृत्यु हो गई. बाद में बेटे की भी मौत हो गई.

बरसात के मौसम में बहुत सारे लोग बीमार पड़ने लगे, तो गांव के लोग उस महिला के घर पहुंचे और उसके पति और बेटे की मौत के लिए उसे जिम्मेदार बताने लगे. लेकिन फिर आंगनबाड़ी की दीदी ने गांव के लोगों का ईलाज कराया, तो सभी ठीक होने लगे. इस पुस्तक में डायन प्रथा समाप्त करने के लिए बने कानून के बारे में भी बताया गया है.

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