2014_8$img05_Aug_2014_PTI8_भूतकाल व्याकुल करे या भविष्य भरमाए, वर्तमान में जो जिए, तो जीना आ जाए…यह कहते हुए अमर सिंह वर्तमान में फिर से समाजवादी पार्टी में शामिल होने को तैयार दिखते हैं. अमर सिंह कहते हैं कि अगर ऐसा संभव हुआ, तो न इसका भूतकाल की व्याकुलता से कोई मतलब है और न कोई भविष्य की भरमाहट है. अगर यह होगा, तो नितांत तात्कालिक होगा. लखनऊ में जनेश्‍वर मिश्र पार्क के लोकार्पण समारोह में मुलायम सिंह यादव की तरफ़ से आमंत्रित अमर सिंह की मौजूदगी देश भर में चर्चा का विषय बन गई. अमर सिंह के सपा में वापस लौटने से लेकर राज्यसभा में उनकी सीट फिर से एलॉट हो जाने तक की बातें सड़क से लेकर सत्ता के गलियारे तक होती रहीं. पूरे परिदृश्य पर अमर सिंह से विस्तार से चर्चा हुई और कई अन्य नेताओं ने भी अपने-अपने थर्मामीटर में चढ़े अपने-अपने ताप का आभास कराया.
छोटे लोहिया कहे जा रहे जनेश्‍वर मिश्र के नाम पर लखनऊ के विशाल भू-क्षेत्र पर बने पार्क के भव्य लोकार्पण समारोह में अमर सिंह खास तौर पर आमंत्रित किए गए थे. यह न्यौता खुद मुलायम सिंह यादव ने दिया था. समाजवादी पार्टी के अभिभावक के आमंत्रण पर अमर सिंह अभिभूत थे और कार्यक्रम में आने से खुद को रोक नहीं पाए. इस आमंत्रण पर सपा के कई नेता मसलन, आजम खान और प्रोफेसर राम गोपाल यादव वगैरह नाराज़ हुए और कार्यक्रम में नहीं आए. लेकिन, मुलायम के इस आमंत्रण की राजनीतिक समीक्षा हो, तो यह समझ में आता है कि समाजवादी पार्टी के मुखिया अब पार्टी की तमाम ग़ैर-लाभकारी चीजों (नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स) को किनारे करना चाहते हैं या उनकी अनुत्पादकता का एहसास कराना चाहते हैं. अमर सिंह जब पार्टी में थे, तो उन्होंने पार्टी के लिए क्या-क्या किया, यह सड़क छाप सपाई से लेकर वीआईपी-छाप सपाई तक जानता है. लोकसभा चुनाव में स्वनामधन्य कर्ताधर्ताओं ने अपने प्रदर्शन और अपनी बात-बहादुरी से पूरी पार्टी को ही सड़क छाप बना दिया, इसे लेकर मुलायम की पीड़ा आसानी से समझी जा सकती है. लिहाजा, पार्टी में यह समय आ गया है कि ग़ैर-उत्पादक नेताओं और उत्पादक नेताओं के बीच स्पष्ट लाइन खींची जाए और नेतृत्व यह साफ़ करे कि वह किस लाइन की तरफ़ खड़ा है. इसी लाइन से सपा कार्यकर्ता भी अपनी लाइन तय करेगा और जनता भी अपने मत निर्धारित करेगी. मुलायम अब यही लाइन खींचना चाह रहे हैं.
ठाकुर अमर सिंह का समाजवादी पार्टी के कार्यक्रम में आना गर्म हवा के झोंके की तरह हुआ और चर्चा का विषय बन गया. अमर सिंह कहते हैं, मैं क्या करूं अगर चर्चा होती है तो…मैं संगम में स्नान करता हूं, तो चर्चा होती है, मैं बांग्ला या मलयाली फिल्म में काम करता हूं, तो चर्चा होती है. बहुत लोग बहुत कुछ करते हैं, तो चर्चा नहीं होती. यही तो मलाल है लोगों को, तो इसके लिए मैं क्या करूं..? अमर सिंह के साथ हुई इस बातचीत के साथ ही आपको घटनाक्रम भी बताते चलें. जनेश्‍वर मिश्र पार्क के लोकार्पण समारोह में मुलायम सिंह यादव की ओर से आमंत्रित किए गए अमर सिंह के बारे में सरगर्मी से यह चर्चा फैली कि वह फिर से समाजवादी पार्टी में शामिल हो रहे हैं. एक हलके में यह भी कहा गया कि नवंबर में राज्यसभा का उनका कार्यकाल समाप्त हो रहा है, तो उसे बढ़वाने के लिए अमर सिंह समाजवादी पार्टी की शरण में जा रहे हैं. इस पर अमर सिंह बेसाख्ता कहते हैं, मुझे तुमसे कुछ भी न चाहिए, मुझे मेरे हाल पे छोड़ दो…मुझको किसी से कुछ भी नहीं चाहिए. नेता जी ने खुद कहा था आने के लिए. मैं आ गया. जनेश्‍वर जी की स्मृति में कोई कार्यक्रम हो और सपा का शीर्ष अभिभावक बुलाए और मैं न आऊं, तो यह अशिष्टता होती.
जब मंच पर अमर सिंह को संबोधन के लिए बुलाया गया, तब भी उन्होंने यही कहा कि वह मुलायमवादी हैं. मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को उन्होंने आयुष्मान कहा. खुद को मुलायमवादी होने के दावे का प्रसंग बताते हुए उन्होंने कहा कि एक बार जनेश्‍वर मिश्र ने उनसे कहा था, तुम समाजवादी नहीं हो. तुम्हें जो मिला है, बिना संघर्ष के मिला है. काश, तुम जेल गए होते. काश, तुमने चुनाव लड़ा होता. काश, तुमने ग़रीबों के पसीने की गंध महसूस की होती. इस पर अमर सिंह ने जनेश्‍वर से एक ही बात कही, मैं मुलायमवादी हूं. इस पर जनेश्‍वर उनकी पीठ थपथपा कर हंसने लगे. हालांकि, अमर ने खुद के समाजवादी होने का भी संकेत दिया और कहा, अब तो उनके जीवन में वह सब भी हो चुका है, जो जनेश्‍वर चाहते थे. जेल जा चुका और चुनाव भी लड़ चुका. जनेश्‍वर जी आज होते, तो मैं उनसे कहता कि आपकी परिभाषा के मानक पूरा कर चुका हूं.
यह लोगों को दिखाई दे रहा था कि कभी हर समारोह में मुलायम के बगल में बैठने वाले अमर सिंह के बैठने की व्यवस्था प्रदेश के लोक निर्माण मंत्री शिवपाल सिंह यादव के बगल की सीट पर की गई थी. लेकिन यह पूर्व नियोजित भी हो सकता है. राजनीति की नब्ज समझने वाले ऐसा ही कहते हैं. लिहाजा, अगर मुलायम सिंह और अमर सिंह के रिश्ते एक बार फिर सुधरते हैं, तो सपा उन्हें फिर से राज्यसभा में भेज सकती है. 25 नवंबर को अमर सिंह का कार्यकाल ख़त्म हो रहा है. 2009 के लोकसभा चुनाव में सपा नेतृत्व ने आजम खां की जगह अमर सिंह को तरजीह दी थी और आजम के विरोध के बावजूद जयाप्रदा को रामपुर लोकसभा सीट का टिकट दिया गया था. जया चुनाव जीत भी गई थीं. इसके बाद अमर सिंह और सपा के रिश्तों में खटास आती गई, जो बाद में अलगाव में बदल गई. वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में अमर सिंह ने अपनी पार्टी बनाकर उम्मीदवार खड़े किए और सपा पर जमकर निशाना साधा. लोकसभा चुनाव 2014 में वह राष्ट्रीय लोकदल के प्रत्याशी के रूप में खुद फतेहपुर सीकरी और जयाप्रदा बिजनौर से लड़ीं, पर दोनों ही चुनाव हार गए.
राज्यसभा के कार्यकाल की समाप्ति और सपा से नज़दीकी की कड़ियां जोड़े जाने पर अमर सिंह नाराज़ भी होते हैं. कहते हैं, मुझे राज्यसभा की भूख नहीं है. मैं 18 सालों तक राज्यसभा का सदस्य रहा. अब मैं विश्राम करूंगा. राजनीतिक इतिहास ने कई महान हस्तियों एवं विभूतियों को वृष्टि छाया क्षेत्र में रखा है, पराभव दिखाया है, भुला दिया है, मैं क्या चीज हूं. अमर सिंह की क्या बिसात है. जॉर्ज जैसे जुझारू नेता तक को पराभव दिखा दिया. राजनीतिक मंच का स्वामित्व जब दूसरों के हाथ में हो, तो कभी कोई अभूतपूर्व, तो कभी कोई भूतपूर्व. राज्यसभा कार्यकाल समाप्त होते ही मैं सरकारी आवास छोड़ दूंगा. अब तो मैंने अपना घर बना लिया है, उसी में आराम करूंगा.
अमर सिंह विश्राम और आराम की बात बोलते ज़रूर हों, पर राजनीति का मैदान छोड़ते कहीं दिखते नहीं हैं. बात में तलवार की धार से यह साफ़ दिखता है कि वह मैदान में डटे ही हुए हैं. आजम खान के मंच पर न होने और अमर सिंह का विरोध जताने जैसे आचरण पर वह कहते हैं, आजम खान जैसे लोग देश, समाज और राजनीति की विसंगति हैं. मैं आजम की दुनिया का कभी हो नहीं सकता. जो यह कहता हो कि करगिल युद्ध में केवल मुसलमानों ने शहादत दी, वह किसी भी स्तर पर नीचे गिर सकता है. ऐसा कहना शहीदों का अपमान है. देश का अपमान है. शहीद का कोई धर्म नहीं होता. वह केवल हिंदुस्तानी होता है. अल्लामा इकबाल ने कहा, हिंदी हैं हम, वतन है हिंदोस्तां हमारा… और यह आजम खान देश और सेना पर कटाक्ष कर रहा है! तो यह किसे छोड़ देगा! क्या यह मुलायम, अखिलेश, शिवपाल को छोड़ देगा!
बहरहाल, राजनीति की जो भी धारा निकले और अमर सिंह को लेकर मुलायम सिंह यादव जो भी ़फैसला करें, लेकिन जब मुलायम मंच पर आए, तो वह अमर सिंह का अभिवादन कर निस्पृह भाव से आगे बढ़ गए. पर जिन लोगों ने उनकी आंखों में रौशनी की एक कौंध देखी, वे नए राजनीतिक संकेतों पर समीक्षा लिख सकते हैं. और, जब अमर सिंह मंच से कहते हैं, सियासत की अपनी ज़ुबान होती है, लिखा हो इंकार, तो इकरार पढ़ना…तो इसके भी मायने निकलते हैं. राजनीतिक समीक्षक इसके भी मायने निकाल रहे हैं कि समारोह के दौरान अमर सिंह से दूरी बनाए रखने वाले मुलायम ने लखनऊ हवाई अड्डे के वीवीआईपी लॉन्ज में अमर सिंह के साथ तक़रीबन घंटे भर अकेले में क्या बातें कीं? इस कयास पर ही राजनीति चल रही है और इसमें घी का काम कर रहा है अमर सिंह का वह बयान, जिसमें उन्होंने कहा कि वह कभी मुलायम सिंह के अमित शाह हुआ करते थे. अमर सिंह के इस एक वाक्य के कितने गहरे निहितार्थ हैं, जो राजनीति करते या जानते हैं, वे इसे अच्छी तरह समझ सकते हैं.

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