बेटा, “मां! अपना खयाल रखना। हम सब अपना खयाल रख रहे हैं यहाँ विदेश में। छोटू बहुत याद करता है अपनी दादी को,आप हमारी चिंता मत करना। हम यहां मजे में हैं। पापा को चरणस्पर्श देना, ऑफिस जाना है, फिर बात करूंगा, उनका ख्याल रखना”🙂

माँ, “हाँ, बेटा तेरे पिता मेरा अभी भी इस उम्र में बहुत खयाल रखते हैं, तू बस बहु और बच्चों का खयाल रखना।”😢

माँ फोन् काट कर, अपने पति से,” देखा जी, विदेश में रहकर भी बबलू, हमारी ही चिंता करता रहता है, बचपन से मैं जानती हूं उसको, मां जो हूं। और यहाँ एक उसका छोटा भाई है, नालायक! दिन भर अपनी दुकान मे व्यस्त उसे हमारी कोई चिंता ही नहीं। सुबह से निकल जाता है, नालायक! नाश्ता भी ढंग से नहीं करता। एक बार भी नहीं पूछता कैसे हो?! पहले तो डॉक्टर का बिल, बिजली का बिल, दूध का बिल, किराये का ब्यौरा और अखबार के बिल मांगने के वास्ते ही उसकी अवाज सुन लेते थे-“माँ वो बिल आ गया क्या?।अब तो वो भी नहीं, सब कुछ ऑनलाइन हो गया। अब वो ‘नालायक’, कि अवाज भी सुनायी नहीं देती, सबकुछ चुपचाप कर लेता है।” “विदेश से बबलू की अवाज सुनती हूं तो दिन बन जाता है”।

जी वेंकटेश,

लेखक, 1973 में भोपाल में जन्मे, और 1997 से, भारत में, एक वास्तुविद एवं नगर निवेशक हैं। वह एक शिक्षाविद, समाज सेवी, कलाकार एवं दार्शनिक भी हैं।

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