मोदी को जीतना ही है । सात सालों में अपना देश कितना बदल गया है । 2022 के यूपी विधानसभा और 2024 के आम चुनाव देश के लिए निर्णायक हैं । मोदी के जीतने पर ये चुनाव बताएंगे कि फासीवाद का रास्ता कैसा होता है । मोदी जैसे हाथ और जुबान की सफाई वाले लोग कभी हारने के लिए नहीं आते ।हाथ की सफाई जादूगर करता है । एक जादूगर पीसी सरकार होता है तो एक वह जो आपके स्कूल ,कालेज और गली मोहल्लों में घूमता है । मोदी पीसी सरकार नहीं हैं ।पीसी सरकार होते तो पिछले आम चुनावों में बालाकोट के बाद नये वोटरों से निर्लज्जता के साथ वोट की भीख नहीं मांगते । देखने वाले 2002 से देख रहे हैं कि वे निर्लज्ज होने के साथ क्रूर भी हैं ।यहां एक बात मैं साफ कर दूं यह विश्लेषण सिर्फ नरेंद्र मोदी शख्श के लिए है । प्रधानमंत्री पद से इसका कोई लेना देना नहीं।

कल्पना कीजिए 2022 और 2024 दोनों चुनाव मोदी जीत लेते हैं तो मोदी विरोधियों का क्या हाल होगा । इसीलिए ये निर्णायक चुनाव हैं । आजकल हम यूपी में अखिलेश यादव और प्रियंका गांधी की सभाएं और उनमें उमड़ती भीड़ देख देख कर गद् गद् हैं । स्वाभाविक रूप से होना भी चाहिए , क्योंकि यह भीड़ वह नहीं है जो मोदी और योगी की रैलियों में ढोकर लाई जाती है । प्रियंका की रैली में हो सकता है आधे लोग प्रियंका को देखने आते हों पर अखिलेश में ऐसा कोई आकर्षण नहीं है ।वह भीड़ न समाजवादी पार्टी की है न किसी और दल की वह मोदी के विरोध की भीड़ है । लेकिन सनातन सत्य है आज बदलता कल नहीं हो सकता । आज मोदी की जगह कोई और होता तो बदलते कल पर आज का भरोसा हम कर लेते ।

मुझे याद आता है पिछले आम चुनावों में महाराष्ट्र में राज ठाकरे ने एक कमाल किया था । उन्होंने मोदी की ‘आज’ की हर बात पर जबरदस्त कटाक्ष करते हुए और पोल खोलते हुए उनके पुराने वीडियो दिखाए थे । राज ठाकरे का अंदाज इतना निराला था कि वहां मौजूद हजारों की संख्या में खड़ी जबरदस्त भीड़ ठहाकों के साथ उनकी बात की तस्दीक करती दिखाई पड़ी थी । वे जलसे इस बात के भी द्योतक थे कि मोदी बुरी तरह बदनाम हो चुके हैं और हारने जा रहे हैं। लेकिन परिणाम हम सबने देखा ।तो मोदी भी अपने भीतर अंतर्विरोधों से जूझ रहे दिखते हैं ।वे जानते हैं कि उनकी योजनाएं धरातल पर न तो उतरी हैं और यदि उतरी हैं तो वह सफल नहीं हुईं ।वे जानते हैं कि आदर्श गांवों और स्वच्छ भारत की स्कीमों के बाद नोटबंदी से लेकर कोरोना के मिस मैनेजमैंट तक सबमें विफलता ही विफलता है । इसलिए भले वे अपने लोगों से कहते फिरें कि लोग मुझे भगवान समझते हैं ।पर लोग क्या समझते हैं यह वे भी भीतर ही भीतर बखूबी समझने लगे हैं । अब मोदी अपने मूल चरित्र के मुताबिक क्रूर होना चाहते हैं ।उस दृष्टि से ये चुनाव उनके लिए जीने मरने के समान हैं ।धीरे धीरे जनता उनका फर्जी राष्ट्रवाद और सारे पैंतरे समझ चुकी है । पर जनता का मूल स्वभाव लालची होना है ।जिस दिन जनता का यह स्वभाव बदलेगा उस दिन हम ‘मैच्योर लोकतंत्र’ कहलाएंगे ।घाघ प्रवृत्ति के मोदी यह सब कुछ बखूबी जानते हैं । अगर ये चुनाव मोदी जीतते हैं तो कहना न होगा कि यह जीत हम उनको थाली में सजा कर देंगे । हमने ऐसा कुछ नहीं किया ।न सोशल कहे जाने वाले मीडिया ने , न प्रबुद्ध आलसी जनों ने और न विपक्षी दलों ने । कांग्रेस अपने आलाकमान की वजह से अपनी मौत खुद मरने वाली है ।सोशल मीडिया घट चुकी घटनाओं पर सिर्फ अपना ज्ञान बिखेर रहा है । समाज के बौद्धिक जनों को ऐसे वक्त में जिस तरह की पारी खेलनी चाहिए , बजाय उसके वह भी सोशल मीडिया का अंग ही बना हुआ दिखता है ।सब कुछ घिसा पिटा और पारंपरिक । सबसे निराशाजनक स्थिति कांग्रेस और उसके तथाकथित मुखिया राहुल गांधी की है ।जो एक ही कन्फ्यूज्ड और आत्मविश्वास से खाली कटोरे जैसा व्यक्तित्व ज्यादा दिखता है । कांग्रेस और राहुल से बीजेपी हमेशा खुश रहती और आक्सीजन पाती दिखती है ।हम कहां चूक रहे हैं ? दरअसल ,हम हर जगह चूक रहे हैं । सवाल यह है कि हमारे सामने जो है वह सत्य है या मृग मरीचिका ! यह आने वाला समय बताएगा ।यों यह तय होगा मोदी की जीत – हार पर । यदि वह हारते हैं तो अखिलेश की सभा की भीड़ का दृश्य सत्य समझिए । और यदि वे जीतते हैं तो समझिए यह सब मृग मरीचिका है या था । भाजपा ने ट्रोल्स का एक ऐसा जंगल खड़ा कर दिया है जहां सत्य आकर रोने लगा है ।वे जानते नहीं कि उन्होंने इस देश को कितना पीछे धकेल कर छिछला कर दिया है । मोदी, भाजपा और आरएसएस मात्र अपनी सत्ता के लिए ऐसे ऐसे घिनौनी चालें चलेंगे न ऐसी कल्पना कभी दीनदयाल उपाध्याय जैसों ने की होगी और न अटल बिहारी वाजपेई जैसों ने ।जो हो रहा है और जो इनके इस बार जीतने पर होगा वह आश्चर्यजनक और अप्रत्याशित ही होगा ,लिख कर रख लीजिए ।
गये रविवार अभय दुबे शो लाउड इंडिया टीवी पर नहीं आया ।मित्र लोग कारण पूछते हैं । संतोष भारतीय जी से निवेदन है कि न आने की सूचना जरूर दिलवा दिया करें ।’सत्य हिंदी’ की डिबेट और वाजपेई जैसों बखान सुनते जाइए यदि सुनना चाहें तो ।होने जाने वाला कुछ नहीं ।

हां, एक बात जरूर कहनी है वह भी ताकतवर तरीके से यह कि मोदी जैसों को भी डर लगता है – किसान आंदोलन जैसे संघर्षों से ।यह सच है कि यदि अभी पांच राज्यों में चुनाव नहीं होते तो मोदी किसान आंदोलन से हिलते भी नहीं । लेकिन वे चुनावों के बरक्स किसानों की ताकत समझ रहे थे । तात्पर्य यह कि आज का संघर्ष मोदी बनाम किसान आंदोलन है ।बीच में कुछ नहीं दिखता ।याद रहे किसानों ने अभी आंदोलन समाप्त नहीं किया है ।वे मोदी सरकार के सिर पर हैं और रहेंगे भी । आंदोलन की वापसी पर नीलू व्यास ने कई भारी भरकम लोगों के साथ सफल कार्यक्रम किया ,बधाई !

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