raghubar-dasझारखंड के अधिकांश विधायकों की नापसंदगी के बावजूद मुख्यमंत्री का ताज रघुवर दास को पहना दिया गया था. आला नेताओं द्वारा दास को मुख्यमंत्री के पद पर तो आसीन करा दिया गया, लेकिन अपने अव्यवहारिक रवैये के कारण रघुवर दास अपनी ही पार्टी के विधायकों का दिल जीतने में पूरी तरह से विफल रहे. झारखंड गठन के बाद पहली बार भाजपा बहुमत में आई, लेकिन रघुवर दास को अपने ही विधायकों पर भरोसा नहीं था और हमेशा सत्ता से हटने का भय सताता रहा. मुख्यमंत्री दास ने अपने को सुरक्षित रखने के लिए दूसरे दल के विधायकों को तोड़ कर अपने साथ मिलाने की कोशिश की और इसमें काफी हद तक सफल भी रहे.

रघुवर दास ने पूर्व मुख्यमंत्री बाबुलाल मरांडी की पार्टी के छह विधायकों को तोड़ा और उन्हें अपने मंत्रिमंडल में शामिल कर मलाईदार विभाग दे दिया. उन्होंने कांग्रेस को तोड़ने की पूरी कोशिश की, इसमें सफल भी रहते, लेकिन कांग्रेस विधायक बादल पत्रलेख के विरोध के बाद रघुवर दास बैकफुट पर आ गए. मुख्यमंत्री तो संकट की घड़ी में साथ पाने के लिए भाजपा के घोर विरोधी दल झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन के पास भी जा पहुंचे और उनका आशीर्वाद मांगा. इसके बाद झामुमो ने रघुवर दास की कमजोर नस पकड़ ली और मुख्यमंत्री के विरोध में अपनी रणनीति बनानी शुरू कर दी. झामुमो के विरोध के कारण ही सीएनटी-एसपीटी संशोधन विधेयक पर मुख्यमंत्री को झुकना पड़ा और इस विवादित विधेयक को वापस लेना पड़ा. इस विधेयक का विरोध भाजपा के आदिवासी एवं मूलवासी विधायकों ने भी किया था.

मुख्यमंत्री दास के घोर विरोधी पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा तो इसे लेकर खुलकर सामने आ गए. भाजपा के 26 विधायकों ने जब इस मुद्दे पर मुंडा का खुलकर साथ दिया, तो रघुवर दास की नैया डगमगाने लगी, लेकिन पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के आशीर्वाद से वे इस संकट से उबर गए. एक बार फिर से रघुवर दास विपक्षियों के साथ-साथ अपनी ही पार्टी के नेताओं के निशाने पर आ गए हैं. इस बार कारण बना है राज्य के शीर्ष चार अधिकारियों पर भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद भी उन्हें न हटाया जाना और स्थानीय नियोजन नीति. एक तरफ विपक्ष ने इस मुद्दे को लेकर विधानसभा का बजट सत्र नहीं चलने दिया और भारी हंगामे के कारण सत्र को आठ दिन पहले ही स्थगित करना पड़ा, वहीं दूसरी तरफ सत्ता पक्ष के विधायक भी अपने ही मुख्यमंत्री पर निशाना साधते हुए खुलकर सामने आ गए. भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुवा ने भी मुख्यमंत्री की कार्यशैली पर नाराजगी जताते हुए कहा कि मुख्यमंत्री को इस मामले में विधायकों को विश्वास में लेना चाहिए था. पार्टी के 26 विधायकों ने नाराजगी जाहिर की है. वहीं संसदीय कार्य मंत्री सरयू राय ने तो अपने पद से इस्तीफा ही दे दिया.

आर-पार के मूड में विधायक

झारखंड में भाजपा एवं उसके सहयोगी दल के 43 विधायक हैं, इनमें से 26 विधायकों ने स्थानीय नियोजन नीति के बहाने मुख्यमंत्री की मुखालफत करनी शुरू कर दी है. भाजपा से नाराज विधायकों ने पार्टी के वरिष्ठ नेता अर्जुन मुंडा के आवास पर जाकर मुलाकात की, इसके बाद झारखंड की राजनीतिक गतिविधियां तेज हो गईं. इन नाराज विधायकों को पार्टी के मुख्य सचेतक राधा कृष्ण किशोर का भी साथ मिला. पार्टी के 24 विधायकों ने एक सुर में कहा कि स्थानीय नीति ही गलत है. उन्होंने इस संबंध में विधानसभा अध्यक्ष दिनेश उरांव को एक पत्र लिखकर सरकार की स्थानीय नीति, स्थानीय नियोजन नीति और आरक्षण नीति के साथ ही जिला रोस्टर के खिलाफ अपना विरोध दर्ज कराया. विधायकों ने इसमें भारी विसंगतियां बताते हुए इसमें सुधार के लिए एक कमिटी गठित करने की मांग की है. विधायकों का आरोप है कि रघुवर सरकार की तरफ से वर्ष 2016 में जो स्थानीय और नियोजन नीति पारित कराई गई, उसके अनुसार 1985 तक यहां आकर निवास करने वाले व्यक्ति और उसके परिवार के लोग भी स्थानीय की श्रेणी में आ गए.

इसका असर ये हुआ कि यहां के वास्तविक मूलवासियों को स्थानीय की श्रेणी में आए लोगों से अब नौकरी में कड़ी प्रतिस्पर्धा से गुजरना पड़ रहा है. यह स्थिति 24 में से 11 जिलों में हैै. इन जिलों में तृतीय और चतुर्थ वर्ग के पदों पर नियुक्तियों में स्थानीय बने नए लोगों की भी नियुक्ति हो जा रही है. इससे यहां के मूलवासियों की हकमारी हो रही है. इस मुद्दे को लेकर ही विधायक एकजुट हुए हैं, विधायकों का कहना है कि अगले वर्ष लोकसभा और विधानसभा का चुनाव है, ऐसे में स्थानीय और नियोजन नीति के कारण भाजपा का वोट बैंक बिगड़ सकता है.

इन नाराज विधायकों ने रघुवर दास के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए पार्टी के आला नेताओं को यह बताने की कोशिश की है कि अगर मुख्यमंत्री अपनी कार्यषैली और व्यवहार में सुधार नहीं करते हैं, तो आगामी आम चुनावों में भाजपा की भारी किरकिरी होगी. पार्टी विधायकों को भी नुकसान का भय सता रहा है. इस संकट को सुलझाने आए झारखंड भाजपा के सह प्रभारी राम विचार नेताम से असंतुष्ट विधायकों ने दो टूक कहा कि अगर रघुवर के नेतृत्व में चुनाव हुए, तो पार्टी परिणाम भुगतने को तैयार रहे. पार्टी के असंतुष्ट विधायकों का तेवर देखकर आलाकमान ने मामला सुलझाने के लिए संगठन महामंत्री धर्मपाल को भेजा. धर्मपाल ने सभी विधायकों से अलग-अलग बात की और उन्हें पार्टी के आला नेताओं के संदेश से अवगत कराया.

संगठन महामंत्री ने विधायकों को यह समझाने की कोशिश की कि विधानसभा और लोकसभा चुनाव सर पर हैं, ऐसे में सभी विधायकों एवं नेताओं की बीच किसी तरह का मतभेद नहीं रहना चाहिए, इससे पार्टी की छवि पर असर पड़ेगा. संगठन महामंत्री ने असंतुष्ट विधायकों से यह भी अनुरोध किया कि पार्टी के अंदर उपजे मतभेदों को पार्टी के भीतर ही सुलझा लिया जाना चाहिए, इसे सार्वजनिक करने से पार्टी की छवि खराब होगी और जनता के बीच गलत संदेश जाएगा. पार्टी विधायकों ने आला नेताओं के सामने अपनी उपेक्षा का भी दुखड़ा रोया और कहा कि मुख्यमंत्री तो इनकी समस्याएं ही नहीं सुनते हैं.

राज्य के अधिकारियों का भी रवैया जनप्रतिनिधियों के प्रति ठीक नहीं है. अगर जनता की समस्याएं दूर नहीं होगी, सरकार गलत नीतियां बनाती रहेगी, तो वे जनता के बीच वोट मांगने के लिए किस मुंह से जाएंगे. सीएनटी-एसपीटी एक्ट में संशोधन के कारण आदिवासी एवं मूलवासी मतदाता पहले ही भाजपा से नाराज हैं. अब स्थानीय नीति एवं नियोजन नीति आ जाने से राज्य की जनता भाजपा से विमुख हो रही है. विरोधी पार्टियां इसे मुद्दा बनाकर जनआंदोलन खड़ा कर रही हैं. इसका खामियाजा भाजपा को ही भुगतना पड़ेगा. असंतुष्ट विधायकों ने पार्टी के आला नेताओं के सामने चुटकी लेते हुए यह बात भी कही कि मुख्यमंत्री जीरो टॉलरेंस की बातें करते हैं, लेकिन राज्य के चार शीर्ष पदों पर दागी अधिकारी बैठे हैं, ये दागी अधिकारी हर दिन समाचार-पत्र की सुर्खियां बनते हैं, पर इन अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करने से जनता के बीच सरकार एवं पार्टी की छवि खराब हो रही है.

मुख्यमंत्री के खिलाफ साथ आए सरयू और मुंडा

झारखंड की राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले राज्य के खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री सरयू राय ने रघुवर दास के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. सरयू राय ने अपना मंत्री पद छोड़ दिया और रघुवर दास के घोर विरोधी रहे राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा के आवास पर जाकर उनसे मुलाकात की. इन घटनाओं से झारखंड की राजनीति के संभावित समीकरणों को लेकर अटकलें तेज हो गईं. इसके बाद आठ विधायकों ने भी मुंडा के आवास पर जाकर बैठक की. पार्टी के अन्य विधायक भी पर्दे के पीछे से मुंडा का साथ दे रहे हैं.

सुलह की कोशिशों को लेकर पार्टी के आला नेताओं द्वारा भेजे गए दो दूतों से भी असंतुष्ट विधायकों ने दो टूक कह दिया कि अगर मुख्यमंत्री का यही रवैया रहा तो पार्टी को भारी क्षति उठानी पड़ सकती है. पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह पूरे घटनाक्रम पर नजर रखे हुए हैं और पार्टी के संकट को दूर करने की कोशिश कर रहे हैं. सरकार गिराने और बनाने में माहिर सरयू राय को मनाने की कोशिशें हो रही हैं. सरयू राय अभी दिल्ली में ही डेरा डाले हुए हैं. उन्होंने पार्टी के आला नेताओं से मुलाकात भी की. अर्जुन मुंडा भी नई दिल्ली में पार्टी के आला नेताओं से मिले और उन्हें असंतुष्ट विधायकों के विचारों से अवगत कराते हुए पूरे मामले में हस्तक्षेप की मांग की. मुंडा ने आलाकमान से कहा है कि दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई नहीं होने से पार्टी के खिलाफ जनता में गलत संदेश जा रहा है.

आर-पार के मूड में आ चुके विधायकों की नाराजगी को देखते हुए मुख्यमंत्री रघुवर दास ने नरम रूख अख्तियार कर लिया है. नियोजन नीति को लेकर वे झुकने को तैयार हो गए हैं. नियोजन नीति में संशोधन एवं सुधार के लिए मुख्यमंत्री ने खेल एवं पर्यटन मंत्री अमर बाउरी की अध्यक्षता में एक उच्चस्तरीय समिति का गठन कर दिया है. हालांकि नाराज विधायक मुख्यमंत्री के इस कदम को ‘आई वॉश’ ही मान रहे हैं. कुल मिलाकर विधायकों ने मुख्यमंत्री के खिलाफ बिगूल फूंक दिया है. 43 में से 30 से ज्यादा विधायक अर्जुन मुंडा के साथ हैं और यह बात पार्टी के आला नेता भी भली-भांति जानते हैं. अब देखना यह है कि आलाकमान इस अन्तर्कलह को खत्म करने में सफल होते हैं या फिर सत्ता परिवर्तन की नौबत आती है.

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