web-pakistan-1-reutersआज मैं आप लोगों के सामने सिर्फ चंद सवाल रखना चाहती हूं, और आप लोगों से उनके जवाब चाहती हूं. क्योंकि आप लोग इन सब चीज़ों के लिए ज़िम्मेदार हैं. आप में मैं भी शामिल हूं. आज मुझे बड़ी उम्मीद थी जब सुबह मैंने यह खबर देखी और हर बड़े एंकर को यह बोलते सुना कि अब वक्त आ चुका है, जब हमें उठकर कुछ करना है. हमें कुछ तब्दीली लाने के बारे में सोचना है. अब हमें सचमुच कुछ करके दिखाना है. लेकिन अफ़सोस! बहुत अफ़सोस के साथ मुझे यह कहना पड़ रहा है कि वही सारी पुरानी बातें ही टेलीविजन पर हो रही हैं. बेशक मेरा भी संबंध मीडिया के साथ है, लेकिन वही पुराने मौलाना, वही पुराने मुफ़्ती, वही पुराने पत्रकार बैठे हैं. वही बातें की जा रही हैं जो दहशतगर्दी मिलते-जुलते जितने भी वाक़यात पर की जाती हैं कि दहशतगर्दी का बदला लिया जाएगा, दहशतगर्दों को मिटा दिया जाएगा. मैं उन मौकों पर भी एक छोटा सा सवाल अपने दिल से किया करती थी. वही सवाल मैं आज आप लोगों से करना चाहती हूं कि पाकिस्तान में अगर कोई तरक्कीपसंद लीडर आ भी जाए तो क्या उन माओं के बच्चे वापस आ जाएंगे, जो जा चुके हैं. हर वह घर जो इस दुख को सह रहा है क्या उसके लिए पाकिस्तान में किसी परिवर्तन से कोई फर्क पड़ेगा? मुझे बताइए यह हमारा मीडिया उन नेताओं को क्यों दिखा रहा है जिनकी बातें हम रोजाना सुनते हैं. वह उन मांओं को क्यों नहीं दिखा रहा है जिनके कलेजे फटे हैं आज? सिर्फ इसलिए कि दूसरे लोग बर्दाश्त नहीं कर पाएंगे? क्या हम अभी बर्दाश्त कर पा रहे हैं? हम से वे चीज़ें छिपाई जा रही हैं. मैं कहती हूं कि आज अगर मीडिया वाले वह सबकुछ दिखा देते तो हमें किसी लीडर को आवाज देनें की जरूरत नहीं प़डती, हम सब खुद सड़कों पर होते. हम खुद उनके गिरेबां पकड़ते. ये कौन होते हैं बच्चों को दहशतगर्दों के आगे डालने वाले? आप मुझे बताइए! जब वह मां सुबह उठ कर अपने बच्चे की आलमारी खोलेगी, वह मरते दम तक नहीं भूलेगी अपने बच्चे को. वह जब उसकी पसंदीदा डिश बनाएगी तो उस दिन वह रोएगी.
मैं मां हूं, मैं जानती हूं. एक मां का मरा हुआ बच्चा भी पैदा होता है तो वह उसको भी नहीं भूलती मरते दम तक. खुदा के लिए आज मेरा पत्रकार भाइयों से भी सवाल है. बहुत अच्छी बातें कर रहे थे, ठीक है. बहुत से क्लास लेने की कोशिश कर रहे थे, ठीक है. बड़-बड़े नाम हैं हमारी मीडिया के. बड़ी अच्छी लग रही थीं मुझे उनकी बातें कि आज कोई जश्‍न न हो. बड़ी ख़ुशी हुई कि हमारा मीडिया अपनी ज़िम्मेदारी निभा रहा है. लेकिन क्या हुआ? समाचार चैनलों पर ब्रेक के अंदर म्यूजिक के साथ विज्ञापन चलाए गए. जबकि आप लोगों से जश्‍न मनाने के लिए या गाने बजाने के लिए मना कर रहे हैं. क्या आप अपने चैनल को विज्ञापन बंद करने पर मजबूर कर सकते हैं? जिन घरों के बच्चे गए हैं वो तो टीवी देख नहीं रहे हैं. न वो टीवी देख सकते हैं. यह हम लोग देख रहे हैं. और हम से वह सब चीज़ें छिपाई जा रहीं हैं कि आप लोग बर्दाश्त नहीं कर पाएंगे. मेरा ख्याल है कि अगर ऐसी एक भी घटना की तस्वीर पहले दिखाई गई होती तो यह घटना घटती ही नहीं. हम सोचते हैं कि बच्चों को कुछ उल्टा सीधा नहीं दिखाएंगे. लेकिन हमारे ही मुल्क में इंटरनेट पर ऐसा कंटेंट मौजूद है जो बच्चों के लिए नहीं है. पाकिस्तान नंबर एक पर आता है, पूरी दुनिया में पोर्नोग्राफी देखने में. क्या वह सब चीज़ें बच्चों के लिए अच्छी हैं? क्या वो बच्चे देख सकते हैं और ये नहीं देख सकते? मेरे ख्याल से आप अगर आज ये दिखाएं तो वे हमारे मां बाप की तरह गलतियां नहीं करेंगे. दोस्तों ये हमारे मां-बाप हैं जिन्होंने आज हमें इस हाल तक पहुंचाया है. किस तरह की हुकूमतें मेरे मुल्क में आती रहीं हैं, मुझे नहीं मालूम. मैंने तो बचपन से पाकिस्तान को ऐसे ही देखा है.

मेरी आपलोगों से इल्तजा है कि सबकुछ भूल जाएं सिर्फ ये याद रखें कि हमारे पाकिस्तान के सिर्फ दुश्मन ही दुश्मन हैं. हमें उन दुश्मनों से इकट्ठे हो कर ल़डना है. हमें कोर्स में सिखाया जाता है कि एकता में बहुत ताकत है. लेकिन ये कोर्स बनाने वाले ही इस पर अमल नहीं करते. मेरा आपलोगों से सवाल है, ये सब कब खत्म होगा? एक फिरके के लोग फेसबुक पर कुछ लगाते हैं, दूसरे फिरके के लोग गालियां देते हैं. किसको दी जाती है वो गालियां.

हम लोग बड़े-बड़े हीरो को रोजाना टीवी पर देखते हैं. लेकिन असल हीरो को हम नहीं जानते हैं और न ही हमारे बच्चे जानते हैं. हमें आप बताइए आज कितने बच्चे हैं जो निशाने हैदर लेने वाले फौजियों को जानते हैं? हम आठ फौजियों को जानते हैं क्योंकि हमने अपने कोर्स में उन्हें पढ़ा है. आठ से वे बारह हो गए लेकिन बाकी के नाम मुझे भी नहीं मालूम. मीडिया पर कभी दिखाया नहीं गया उनको, कभी वे बार-बार रिपीट नहीं हुए. हम अपने समय में ऐसे ड्रामे देखा करते थे जो राशीद मीनार से ताल्लुक रखते हों, मेजर अज़ीज़ भट्टी को दिखाया गया हो उसमें. क्या हम आंसूओं से नहीं रोते थे? आज तक हम उस दुख और दर्द को महसूस करते हैं लेकिन हमारे बच्चों को नहीं पता कि निशान-ए-हैदर है क्या चीज़? उन्हें ऑस्कर का पता होगा. नोबेल का पता होगा, लेकिन निशान ए हैदर नहीं पता, क्योंकि उन्हें बताया नहीं गया. इसके अलावा जब सरहद पर कोई जवान शहीद होता है तो उसके बारे में भी कुछ नहीं बताया जाता.तनख्वाह तो हर नौकरी में मिलती है. क्या आपने कभी सोचा आर्मी के बड़े-बड़े लीडर के नाम तो आप जानते होंगे. और आज मैंने किसी के बयान में थोड़ी सी ताक़त देखी है तो वह हमारे डीजीआई थे आईएसपीआर के. इसीलिए मैं आर्मी की दिल से इज्ज़त करती हूं. नेवी के जवान कैसे अपनी जिंदगी गुजारते हैं, यह बात शायद ही किसी को पता हो. अमेरीका के दो टावर्स गिरे थे तो उसने दो मुल्क उ़डा दिए. उसे आप क्या कहेंगे? इसको आप गैरत नहीं कहेंगे. कितनी मांओं की गोद उजा़डने के बाद आपकी गैरत जोश मारेगी? मेरा तो कहना है कि लोग उन दहशतगर्दों को उन मांओं के हवाले कर दें जिनके बच्चे हमले में शहीद हुए हैं. ताकि उनकी बोटी-बोटी नोची जा सके.
मैं यकीन से कहती हूं जिस किसी ने भी अपने की मौत को देखा हो वो बर्दाशत नहीं कर सकता. मेरा भी अपना मरा है लेकिन वो दुख मुझे कम लग रहा है. यहां तो मां ने सुबह बच्चे को तैयार कर के भेजा था. वो इंतजार अर रही थी कि वो दोपहर को आएगा. उससे पूछेगी कि उसके स्कूल में पेपर था, कैसा हुआ, मैं आपलोगों के आगे हाथ जोडती हूं. आप सच्चे मुसलमान बन जाइए, हमारे नबी ने जो बोला है, उस पर अमल करें. मैं नहीं जानती किसी मुफ्ती, किसी मौलाना को. मैं उनकी शक्लें देख-देख कर तंग आ गई हूं. जो बच्चे मरे हैं वो शिया नहीं थे, वो सुन्नी नहीं थे. वो सिर्फ बच्चे थे. उन्हें तो दहशतगर्दी का मतलब भी नहीं पता. उन्हें ये भी नहीं पता कि जेहाद के नाम पर उनके साथ क्या किया जा रहा है? हम अपने बच्चों को क्या दिखा रहे हैं? मेरे बच्चे मुझसे सवाल करते हैं, जब मैं कहती हूं कि हमारे बचपन में लाइट नहीं जाती थी. वो हैरान होते हैं कि पाकिस्तान कभी ऐसा था. कौन सी पॉलिसी है पाकिस्तान की? मैं नहीं जानती? पाकिस्तान किसे खुश करना चाहता है? लेकिन आज अगर आप (मीडिया) उन बच्चों की लाशें दिखा देते तो शायद ये लोग अपनी नफरतें भूल जाते. उनको भी अपने बच्चे याद आ जाते.
मेरी आपलोगों से इल्तजा है कि सबकुछ भूल जाएं सिर्फ ये याद रखें कि हमारे पाकिस्तान के सिर्फ दुश्मन ही दुश्मन हैं. हमें उन दुश्मनों से इकट्ठे हो कर ल़डना है. हमें कोर्स में सिखाया जाता है कि एकता में बहुत ताकत है. लेकिन ये कोर्स बनाने वाले ही इस पर अमल नहीं करते. मेरा आपलोगों से सवाल है, ये सब कब खत्म होगा? एक फिरके के लोग फेसबुक पर कुछ लगाते हैं, दूसरे फिरके के लोग गालियां देते हैं. किसको दी जाती है वो गालियां. औरत को, मां को. आज एक मां ही त़डप रही है. प्लीज छोटी-छोटी बातों पर ल़डना छोड दें. छोटे मसले को ब़डा और ब़डे मसले को छोटा बना के पेश करते हैं.
आज मीडिया को बहुत ब़डी खबर मिली है. सब पुरजोश है. मीडिया के एंकर अपनी तकरीरें तैयार कर रहे हैं. सब को बोलना है. सबको मज़म्मत करना है. लेकिन, मैं इन चीजों को नहीं मानती. आज मीडिया का दिन था. आज उनलोगों का दिन था जिनके बच्चे मरे हैं. आज उनको टीवी पर लाया जाता, वो जिस हाल में भी थे. दिखाया जाता कि वो किस हाल में हैं. दिखाया जाता उनका गम. लोगों को होश आता कि वो हमारे भी बच्चे हो सकते थे. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. इसकी जगह वही लोग, वही अल्फाज. वही सब कुछ सुन-सुन के मेरे कान पक चुके हैं. मौलाना साहब बैठे हुए है आईपैड ले कर के. एक बंदा बैठा हुआ है फोन ले कर के. एक से बात हो रही है दूसरा बंदा मैसेज प़ढ रहा है. मैंने बहुत कोशिश की कि किसी चैनल पर मेरी लाइव कॉल मिल जाए. लेकिन नहीं. ना ही तो कोई चैनल मुझे इतना टाइम देता और न ही किसी चैनल में इतना हौसला है कि वो मेरी इतनी बातें सुनता. इसलिए मैं मजबूर हुई कि आज के दिन आपलोगों को जगाने के लिए था़ेडी सी कोशिश करूं. मुझे नहीं पता मेरी बात किसी के दिल पर असर करेगी या नहीं. क्योंकि पाकिस्तान में अक्सर औरतों को सिर्फ औरत होने की वजह से ज्यादा तवज्जो नहीं दी जाती. लेकिन मैं औरत नहीं सिर्फ एक मां बन कर बात कर रही हूं. प्लीज मेरे सवालों का जवाब दे दें.


क्या वह बच्चा याद है?

आप मुझे बताइए स्वात में एक बच्चा शहीद हुआ. एक स्कूल को उड़ाने के लिए जो दहशतगर्द आ रहा था उससे लिपट कर उसने अपनी जान दे दी. क्या उस बच्चे का नाम आप को याद है? मुझे भी नहीं याद है. क्यों नहीं याद. क्योंकि दोबारा उसका ज़िक्र नही किया गया. कभी किसी ने टीवी पर उसके लिए एक शब्द नहीं कहा. तो कैसे याद रहेगी. और जो बच्चे हमारे बड़े हो रहे हैं, उनको कैसे पता चलेगा. आज का बच्चा जो तीन साल का है जब वह 6 साल का होगा तो उसे क्या पता चलेगा कि कभी कुछ अच्छे लोग भी पाकिस्तान में मौजूद थे.

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