janmat-sangrahयूरोपीय यूनियन से अलग होने के निर्णय से पूरी दुनिया के साथ सबसे प्राचीन लोकतांत्रिक देश यूनाइटेड किंगडम के निवासी भी हैरान हैं. यूनाइटेड किंगडम पिछले 43 साल तक यूरोपीय यूनियन (ईयू) से किसी न किसी तरह से जुड़ा था. हालांकि ब्रिटेन पहले से ही एकल मुद्रा और सीमा रहित यूरोप से खुद को अलग रखे था.

जनमत संग्रह किसी मुद्दे पर जनता की राय जानने का एक विशेष जरिया होता है. किसी आम चुनाव में कई दल मैदान में होते हैं, जिसमें जीतने और हारने का फैसला सबसे अधिक सीट हासिल कर होता है. इसमें एक तिहाई वोट लेकर कोई पार्टी भारी बहुमत हासिल कर सकती है. जनमत संग्रह में ‘हां’ या ‘ना’ में जवाब देना होता है, लिहाज़ा इसमें कोई उलझाव नहीं होता. इसमें जीत और हार का अंतर बहुत छोटा होता है, आम तौर पर चार प्रतिशत से भी कम. लेकिन यहां फैसला अपरिवर्तनीय होता है.

जनमत संग्रह की बहस ने उदारवादी और कॉस्मोपॉलिटन लोगों को वैसे लोगों से अलग कर दिया था जो खुद को अशक्त और विकास की धारा में पीछे छूट गया समझते थे. जहां एक तरह यूरोपीय यूनियन में बने रहने की वकालत करने वाला ग्रुप यूनियन छोड़ने से उत्पन्न विपरीत परिणामों की बात कर रहा था, वहीं बाहर जाने की वकालत करने वाला समूह यह कह रहा था कि यूनाइटेड किंगडम का अपने आंतरिक मामलों पर नियंत्रण कमज़ोर होता जा रहा है, इसलिए उन्हें अपनी आज़ादी पुनः हासिल कर लेनी चाहिए. एक ऐसे देश के लिए जो यूरोप में सबसे प्राचीन पॉलिटी (शासन विधि) वाला देश है, उसके अन्दर ऐसी सोच हैरान करने वाली थी. यह विचार कि जब कोई राष्ट्र किसी बहुराष्ट्रीय संघ से जुड़ता है तो अपनी आज़ादी खो देता है, आसानी से गले नहीं उतरती. लेकिन आख़िरकार यह संदेश जनता ने दिया है. वे अपने देश में ईयू से बड़े पैमाने पर हो रहे अप्रवासन से चिंतित थे. इस अप्रवासन को रोका नहीं जा सकता था क्योंकि श्रमिकों की मुक्त आवाजाही ईयू का बुनियादी सिद्धांत है. ऐसा लगता है कि ईयू अपने संस्थानों, नीतियों और नियमों की तकनीकी शब्दजाल से अवगत ही नहीं था.

ईयू की संसद ने ब्रिटेन की जनता को कभी अपना समझा ही नहीं. काफी समय तक ब्रिटेन का ईयू से अलग होने से संबंधित सवाल पूछा जाता रहेगा-क्या यह ग्रेट ब्रिटेन के लंबे इतिहास का नतीजा है? क्या यह इसलिए हुआ क्योंकि ब्रिटेन का दुनिया पर लंबे समय तक वर्चस्व रहा और जिसके पास यूरोप के शक्ति संतुलन की कुंजी थी. या एक आइलैंड देश की अलग-थलग रहने और आज़ादी की अपनी अनूठी भावना ने ऐसा किया. या फिर हालिया मंदी के दौर ने गरीब लोगों को बहुत पीछे छोड़ दिया और अमीर आगे निकल गए इस कारण लोग ईयू से अलग होना चाहते थे? इस जनमत संग्रह को ‘असली लोगों की जीत’ के रूप में दिखाया जा रहा है. दरअसल यह एक अतिशयोक्तिहै क्योंकि 48 प्रतिशत लोग जिन्होंने इस प्रस्ताव के समर्थन में वोट दिया क्या वे नकली लोग थे?

जनमत संग्रह का यह नतीजा ब्रिटेन की राजनीति को कई पीढ़ियों तक प्रभावित करेगा. ईयू से अलग होने के जनमत संग्रह की मांग कंजर्वेटिव पार्टी की तरफ से उठी थी. इस पार्टी में यूरोप को लेकर 1990 के बाद से ही दरार पैदा हो गई थी. यह वही दौर था जब मार्गरेट थैचर पार्टी नेतृत्व की लड़ाई हार गई थीं. यह भी आशंका जताई जा रही है कि एक दो साल में कंजर्वेटिव पार्टी दो हिस्सों में विभाजित हो जाएगी. कैमरन ने तो पहले ही इस्तीफा दे दिया है. पार्टी जिसे भी अपना नया नेता चुनेगी वे उसे अपनी कुर्सी सौंप देंगे. बोरिस जॉनसन को पार्टी का नया नेता चुने जाने की प्रबल सम्भावना है. नए नेता के साथ कैबिनेट में भी बदलाव होगा.

यूनाइटेड किंगडम के सामने उसकी एकता एक बड़ी गंभीर समस्या है. 1990 के दशक के आखिरी वर्षों से ग्रेट ब्रिटेन की संसद ने स्कॉटलैंड, वेल्स और उत्तरी आयरलैंड की सरकारों को ज्यादा अधिकार दिए हैं. जहां तक यूरोपीय यूनियन के जनमत संग्रह का सवाल है तो इंग्लैंड ने निर्णायक तौर पर इससे बाहर जाने का फैसला लिया, जबकि स्कॉटलैंड ने ईयू में बने रहने की राय ज़ाहिर की. लिहाज़ा स्कॉटलैंड की आज़ादी की मांग एक बार फिर उठ सकती है. उत्तरी आयरलैंड भी यूरोपीय यूनियन में बने रहना चाहता है. चूंकि उत्तरी आयरलैंड की सीमा आयरिश रिपब्लिक से मिलती है इसलिए दोनों आयरलैंड के एकीकरण की मांग के लिए आंदोलन शुरू हो सकता है, जो ऐतिहासिक होगा.

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