अगर इसी लोक में कहीं राक्षसों का साम्राज्य चल रहा हो और जनता बहते पानी जैसी हो जाए तो दर्द भरे गीतों के सिवाय याद क्या आता है।‌ दर्द भरे गीत वो भी मुकेश के‌। मुकेश की याद को कुछ पल बाद दर्ज करेंगे फिलहाल मणिपुर से उबल रहे देश के बारे में कुछ सोचें।
आज की सत्ता सोशल मीडिया की देन है। इसलिए समझना होगा कि आज की लड़ाई लोकतंत्र के परंपरागत तरीकों के बजाय प्रिंट और सोशल मीडिया की तू तड़ाक से ज्यादा लड़ी जानी है। और वह लड़ी जा रही है। बेशक से मणिपुर की आग और वहां से आये दरिंदगी के वीडियो ने इस सरकार के मुखिया की मंशा और उसके पूरे तंत्र की पोल खोल कर रख दी हो पर फिर भी चार दिन बाद सब सोशल मीडिया की तू तड़ाक में ध्वस्त होता दिख रहा है। दिख नहीं रहा उसे षड़यंत्र के तहत ध्वस्त किया जा रहा है। जिसका सूत्र मोदी ने संसद के बाहर अपनी छत्तीस सेकेंड की बात से रख दिया था। वहीं से समूचे तंत्र को दिशा मिल गई। तो ऐसे में आप आने वाले समय का खाका खींचिए। जिस तरह मूर्खों से लड़ाई या बहस में सज्जन व्यक्ति मात खाता है उसी तरह सोशल मीडिया, फेक न्यूज और फेक व्हाट्सएप मैसेजेस के जरिए सत्ता के खिलाफ आज का आग उगलता भारत मात खाएगा। यह आशंका पीढ़ा भरी जरूर है पर हर कोई जानता है कि एक शख्स ने किस तरह ऐसा जाल बिछाया है कि उसका पैतृक संगठन तक उसके सामने लाचार सा नजर आता है। बहुत सारे लोग इस भ्रम में हैं और रहते हैं कि संघ इस सत्ता को संचालित कर रहा है। आज की तारीख में वे जितना जल्दी इस भ्रम से निकल जाएं तो अच्छा। एक उदाहरण ही काफी है कि संघ हमेशा स्वदेशी का हकदार रहा है। आज स्वदेशी का हमारे यहां क्या हाल है जगजाहिर है। महंगाई और बेरोजगारी के सवाल मोदी के व्यक्तित्व और दुनिया में उनके जलवे के सामने बौने होते दिख रहे हैं। गंगा यमुना सरस्वती में हमने गंगा यमुना की सुध ली सरस्वती को छोड़ दिया। मोदी का वोटर वही सरस्वती जैसा समझिए जो 2014 से अब तक किंचित बदला हो । दरअसल उसे बदलने की फुरसत ही नहीं दी गई। और सुविधा संपन्न वर्ग और हिंदू राष्ट्र का दिग्भ्रमित वर्ग सब अपनी अपनी जगह यथावत हैं। चारों तरफ चर्चा है मोदी युग समाप्त होने वाला है 2024 में। पर मुझे तो शंका है इसमें फिलहाल । मुझे कोई भ्रम नहीं । अगर मणिपुर की घटना को राजस्थान और छत्तीसगढ़ से जोड़ कर तेल कर दिया जाता है तो इससे बड़ा संताप और क्या होगा। तेल करना ध्वस्त करने के अर्थ में मुहावरा समझिए। इसलिए सब कुछ तेल हो रहा है। आज का दिन कल नहीं रहता वैसे ही आज की बातें, आज के दृश्य और आज की राजनीति कल नहीं रहती। समझिए इस खेल को। अगर जेल जाने से डरा विपक्ष सचमुच मोदी युग का अंत चाहता है तो शीघ्रातिशीघ्र किसी अर्थपूर्ण निर्णय पर पहुंच कर जनता के बीच जाए । अर्थपूर्ण निर्णय दो ही हो सकते हैं या तो हर सीट पर एनडीए के उम्मीदवार के सामने एक उम्मीदवार समूचे विपक्ष का खड़ा किया जाए या फिर जो क्षेत्रिय दल जहां मजबूत हैं वहां समूचा विपक्ष उनका समर्थन करे। यह कल पर नहीं छोड़ा जा सकता। आज और अभी वाली शैली में होना चाहिए। सुस्त चाल को यह सत्ता उखाड़ कर फेंक देने में सक्षम है।
कुछ लोग कह रहे और मान रहे हैं कि विपक्ष की एकता से मोदी घबराए हुए हैं। सही है मोदी घबराए हुए हैं। इतिहास साक्षी है कि जब जब जनता का वक्त आता है तब तब हर तानाशाह घबराता है। लेकिन इतना ध्यान रखें कि बेशक विपक्ष की एकता से मोदी घबराए हों पर उनका तंत्र बहुत विशाल और एकजुट है। मोदी की पराजय उनके ही बहुत से लोगों के सपने ध्वस्त करेगी । इसीलिए उनके तंत्र की एकजुटता मजबूत है।
चलिए अब कुछ हलकी बातें हो जाएं।
अमर गायक और दर्द भरे गीतों के बादशाह मुकेश को याद किया जाए । यह वर्ष उनकी जन्मशताब्दी का है। तीन दिन पहले उनकी सौंवी जयंती थी। उन्हें याद किया गया इस बार के ‘सिनेमा संवाद’ कार्यक्रम में। कार्यक्रम में नयी ताजगी थी। वैसे ताजगी हमेशा नयी ही होती है। सारे चेहरे नये थे और मुकेश जी को अलग अलग तरीकों से उन्हें याद करने वाले थे। बहुत समय से इस कार्यक्रम में पुराने चेहरों से कुछ ऊब होने लगी थी।
मुकेश की गायकी और उनके जीवन प्रसंगों पर अच्छी पकड़ रखने वाले डा राजीव श्रीवास्तव की बातें बड़ी लुभावनी थीं। उन्होंने बड़ी मार्के की बात कही कि मुकेश ने सरलता को साध लिया था इसलिए शास्त्रीयता स्वयं ही पीछे रह गयी। इसे दूसरे गायकों के संदर्भ में लें। विवेक देशपांडे रोजाना ‘सत्य हिंदी’ के कार्यक्रमों में बुलाए जाते हैं। सच कहें तो हम वहां उन्हें सुन सुन कर बोर हो गए थे। उनकी शैली में तीखापन, आक्रामकता और शिकायती लहजे के साथ अनजान से संवाद जैसा कुछ होता है। एक सा लहजा। ऐसे में व्यक्ति को स्वयं ही कुछ दिनों के लिए आराम लेना चाहिए। रोजाना नीलू के यहां या मुकेश कुमार के यहां सुन सुन कर बोरियत हो गई थी। पर कल के कार्यक्रम में उनका अलग रूप दिखा जब उन्होंने मुकेश के दो गीत सुनाए। पहला गीत ‘चांद आहें भरेगा, फूल दिल थाम लेंगे, हुस्न की बात चली तो सब तेरा नाम लेंगे….’ और दूसरा गीत ‘चंदन सा बदन चंचल चितवन….’ पहला गीत गीत तो ‘मार्वेलस’ था। विवेक जी को गायकी के लिए बधाई। सबसे रोचक मास्को से इंद्रजीत सिंह की बातें भी रहीं। उन्होंने बताया कि जर्मन कवि लोठार लुत्से का मानना था कि हिंदू धर्म के चार वेदों में पांचवा वेद सिनेमा को भी जोड़ना चाहिए। लोठार लुत्से सत्तर के दशक में भारत में बहुत चर्चित रहे हैं। हमारा भी उनसे मिलना हुआ था। मुझे लगता है सही कहा। सिनेमा बहुत प्रभावी माध्यम है। पंकज राग और शुभ्रा ठाकुर ने भी मुकेश जी से संबंधित रोचक प्रसंग बता कर याद किया। शुभ्रा जी की जन्मतिथि ही मुकेश जी की पुण्यतिथि है। कार्यक्रम कितना लुभावना रहा इसका प्रमाण यह है कि एक घंटे का नियमित कार्यक्रम डेढ़ घंटे में भी मन नहीं भर पाया। खैर यह सब चलता रहेगा।
इस बार अभय दुबे शो में वह तारतम्यता नहीं दिखी जिसकी उम्मीद हर बार रहती है। अभय जी से अनुरोध है कि किसी एक कार्यक्रम में गोदी मीडिया के साथ अपने अनुभव साझा करें। जनता जानना चाहेगी कि पीछे का खेल क्या होता है। एक सुझाव और कि संतोष भारतीय जी अब प्रश्न रखने के बजाय यदि यह पूछें कि आज आप किस विषय पर बोलना चाहते हैं तो अभय जी के समक्ष किसी प्रश्न की बाध्यता नहीं रहेगी। और उनका सतत चिंतन भी सामने आएगा। संतोष जी कार्यक्रम से पूर्व उनसे इस विषय पर हर हफ्ते बात कर सकते हैं। उसके आधार पर बीच बीच में अपने प्रश्न भी।
फ्री प्रेस जर्नल के लिए नीलू व्यास ने सुब्रमण्यम स्वामी से मजेदार इंटरव्यू लिया है। स्वामी को मोदी पसंद नहीं। वे यह भी कहते हैं कि अगर सोनिया, राहुल और प्रियंका इटली का टिकट कटा लें तो कांग्रेस पहली पसंद होगी। सुनिए। मजेदार इंटरव्यू है।

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