yogiभारतीय जनता पार्टी अयोध्या में राम मंदिर क्या बनाएगी, उसकी सरकार उत्तर प्रदेश में धार्मिक स्थल तोड़ने में लगी है और विवादों में घिरती चली जा रही है. इलाहाबाद हाईकोर्ट का आदेश यूपी सरकार के लिए गले की हड्‌डी बना हुआ है. प्रदेश में सड़कों और सार्वजनिक स्थलों पर अवैध तरीके से बने धार्मिक स्थलों को हटाने का आदेश सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट की तरफ से पहले भी कई बार जारी होता रहा है, लेकिन पूर्ववर्ती सरकारें इस आदेश को ठेंगा दिखाती रही हैं. इस बार योगी सरकार ने हाईकोर्ट के आदेश पर सख्ती से अमल शुरू किया तो सत्ताधारी पार्टी लोगों की निंदा का शिकार हो रही है. 2019 का लोकसभा चुनाव सामने है. भाजपा को फिर से राम मंदिर का मसला खड़ा करना है, ऐसे में धार्मिक स्थलों की तोड़ाई कहीं वोटर न तोड़ दे. उत्तर प्रदेश में अवैध धार्मिक स्थलों की कोई कमी नहीं है. इसे हटाना भी सरकार के लिए अत्यंत दुरूह कार्य है.

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले दिनों यह आदेश जारी किया कि सड़कों पर बने अवैध धार्मिक स्थल फौरन हटाए जाएं. हाईकोर्ट का निर्देश है कि एक जनवरी 2011 के बाद सार्वजनिक स्थलों, सड़कों, गलियों, फुटपाथों और चौराहों पर अतिक्रमण कर बनाए गए मंदिर, मस्जिद, मजार या अन्य कोई भी धार्मिक स्थल तत्काल प्रभाव से हटा दिए जाएं. इसके लिए हाईकोर्ट ने खास तौर पर जिलों के जिलाधिकारियों को इसकी जिम्मेदारी सौंपी है और उन्हें हिदायत दी है कि वे डीएम के साथ-साथ राजस्व अधिकारी होने के नाते कृषि भूमि और सार्वजनिक भूमि पर अवैध कब्जे और उसका स्वरूप बदलने से सख्ती से रोकें.

फतेहपुर के मोहम्मद हुसैन की याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल और अजित कुमार की पीठ ने कृषि भूमि पर मस्जिद बना लेने के एक मामले को अवैध करार देते हुए तमाम ऐसे अवैध धार्मिक स्थलों को हटाने का आदेश दिया. इस आदेश के अनुपालन की रिपोर्ट तीन महीने के अंदर कोर्ट के समक्ष पेश करने का मुख्य सचिव को आदेश दिया गया है. हाईकोर्ट ने यह भी कहा है कि सड़क पर अतिक्रमण कर धार्मिक स्थलों के निर्माण की जवाबदेही डीएम, एसडीएम, एसएसपी, एसपी और सीओ पर तय होगी. अवैध धार्मिक स्थलों को तोड़ कर छह महीने के अंदर मूल भूमिधर को जमीन हस्तांतरित करने का भी आदेश दिया गया है.

अवैध धर्मस्थलों को सियासी शह

आपको याद ही होगा कि कुछ ही दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने अवैध धार्मिक स्थलों से जुड़े मामलों को सम्बद्ध राज्यों के उच्च न्यायालयों को भेज दिया था. सार्वजनिक स्थलों पर अवैध धार्मिक स्थलों का मामला सुप्रीम कोर्ट में वर्ष 2006 से लंबित था. सरकार के इस तर्क पर कि धार्मिक स्थल हटाने से कानून व्यवस्था पर असर पड़ सकता है, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्य सरकारें ऐसे धार्मिक स्थलों की सूची बनाएं और यह बताएं कि कौन से धार्मिक स्थल बहुत पुराने हैं जिन्हें नियमित किया जा सकता है. अन्य सभी अवैध धार्मिक स्थल ध्वस्त कर दिए जाएं और यह सुनिश्चित किया जाए कि भविष्य में कहीं भी सार्वजनिक स्थान पर अवैध धार्मिक स्थल न बनें. देश में अवैध धार्मिक स्थलों को हटाने के विषय में अदालतों का बार-बार फैसला सुनाना साबित करता है कि केंद्र सरकार और राज्य सरकारों की ओर से अतिक्रमण के समाधान की दिशा में कुछ भी कारगर कदम नहीं उठाया जा रहा.

हाईकोर्ट का यह अतिक्रमण विरोधी आदेश जनहित का फैसला है और योगी सरकार के लिए गंभीर चुनौती. क्योंकि प्रदेश की जमीनी स्थिति यही है कि राष्ट्रीय राजमार्गों, नगर निगम, रेलवे व सरकारी जमीनों पर मंदिर, मस्जिद और मजार के नाम पर धड़ल्ले से कब्जा किया जा रहा है. सड़क के किनारे, सड़क के बीचो-बीच, पार्क, सार्वजनिक भूमि, संवेदनशील सैन्य क्षेत्रों, पुलिस ठिकानों तक अवैध मजारों, मस्जिदों और मंदिरों का जाल खड़ा है. राजधानी लखनऊ में नालों को पाटकर शिवालय और मजार स्थापित किए गए हैं. भू-माफियाओं ने आस्था के स्थान की आड़ में जमीनों और आस्तिकों के चढ़ावे पर आपराधिक कब्जा जमा लिया है.

इन तथाकथित धर्म स्थलों के नाम पर भूमाफियाओं ने समानान्तर अर्थ साम्राज्य खड़ा कर लिया है. यूपी में आप जिधर नजर डालें उधर अवैध मंदिर, मस्जिद और मजारों की भरमार दिखाई देगी. आंकड़े बताते हैं कि उत्तर प्रदेश में सार्वजनिक भूमि, पार्क और सड़कों के किनारे 38,355 धार्मिक स्थल अवैध तरीके से बने हैं. राजधानी लखनऊ में ही 971 गैर कानूनी धार्मिक स्थल हैं. उत्तर प्रदेश सरकार ने 45,152 अवैध धार्मिक स्थलों की पहचान की थी. इनमें से 68 धार्मिक स्थल हटाए गए थे और 48 धार्मिक स्थलों को दूसरी जगहों पर स्थानांतरित किया गया था. लेकिन बाकी 38,355 अवैध धार्मिक स्थल अभी भी मौजूद हैं.

सरकारी भूमि पर सबसे अधिक 4,706 अवैध धार्मिक स्थल पूर्वी उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर में हैं और सबसे कम 38 कौशाम्बी जिले में हैं. मुजफ्फरनगर में 4,043, रामपुर में 2,349, कानपुर शहर में 1,490, फैजाबाद में 1,417, मेरठ में 1,415, ज्योतिबा फुलेनगर में 1,200, बिजनौर में 1,198, झांसी में 1,101, गोंडा में 1,008, वाराणसी में 949, आगरा में 536, इलाहाबाद में 381, गौतमबुद्ध नगर में 349 और मथुरा में 205 अवैध धार्मिक स्थल हैं. देश की राजधानी दिल्ली के नजदीक यूपी के गाजियाबाद में भी अवैध धार्मिक स्थलों की भरमार है. कई अवैध धार्मिक स्थल डंके की चोट पर बन रहे हैं.

गाजियाबाद महानगर में 84 अवैध धार्मिक स्थल ऐसे पाए गए जिनके संचालक सरकारी महकमों के अधिकारी और मुलाजिम निकले. कौशांबी, वैशाली और गोविंदपुरम के 18 आरडब्लूए पदाधिकारी अवैध धार्मिक स्थलों के संचालक निकले. गाजियाबाद डेवलपमेंट अथॉरिटी के आधिकारिक आंकड़े कहते हैं कि सबसे अधिक 32 अवैध धार्मिक स्थल प्रताप विहार में हैं. इसके बाद राजनगर में 22, इंदिरापुरम में 17, वैशाली में 13, नेहरूनगर में 12, कविनगर में 10, संजयनगर में 8 और नंदग्राम, पटेलनगर और लोहियानगर में तीन-तीन अवैध धार्मिक स्थल बने हैं.

गाजियाबाद में 138 अवैध धार्मिक स्थल पार्क और ग्रीन बेल्ट पर बनाए गए हैं. पुलिस ने रिपोर्ट भी दे रखी है कि 38 अवैध धार्मिक स्थलों के कारण ट्रैफिक जाम की समस्या बनी रहती है. नेपाल से सटे यूपी के जिलों में ऐसे अवैध धर्म स्थलों और मजारों की बाढ़ है. ये सारे धार्मिक स्थल सड़कों, गलियों के नुक्कड़ पर स्थित हैं, जहां लोग आते-जाते रोजाना मत्था टेकते हैं. धर्म की आड़ में सरकारी सम्पत्ति का अतिक्रमण कर जब यहां निर्माण कराया जा रहा था, उस समय सरकारी तंत्र, नगर निगम, विकास प्राधिकरण के अभियंता आंखें मूंदे रहे.

आप याद करते चलें कि ग्रेटर नोएडा के कादलपुर गांव में जिस मस्जिद की दीवार गिराने के आरोप में आईएएस अफसर दुर्गा नागपाल को निलंबित किया गया था, वह मस्जिद भी ग्राम समाज की भूमि पर अवैध ढंग से बन रही थी. दुर्गा शक्ति नागपाल को इतना तंग किया गया कि वे यूपी कैडर छोड़ कर चली गईं. ऐसी राजनीतिक दखलंदाजी में हाईकोर्ट के आदेश पर प्रशासन कैसे काम करे! मायावती के कार्यकाल के दौरान यूपी के सभी जिलों में अवैध धार्मिक स्थलों की पहचान के लिए कमिश्नर और जिलाधिकारी की अगुआई में कमेटियां गठित की गई थीं. लेकिन ये कमेटियां मायावती के कार्यकाल में केवल 116 अवैध धार्मिक स्थलों के खिलाफ ही कार्रवाई कर पाईं. इसके बाद आई अखिलेश सरकार तो सुप्रीम कोर्ट के आदेश को सत्तासन की गद्दी बना कर उसपर बैठ गई.

नेता और माफिया बनवाते हैं अवैध धार्मिक स्थल

वर्ष 2001 की जनगणना में आश्चर्यजनक तथ्य उजागर हुआ था कि भारत में धार्मिक स्थलों की संख्या 24 लाख थी. यह संख्या 21 लाख विद्यालयों से कहीं अधिक थी. इनमें से अनगिनत धार्मिक स्थलों का निर्माण अवैध रूप से सार्वजनिक जमीन पर किया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने सितम्बर 2010 में भी राज्य सरकारों को निर्देश दिया था कि वे सार्वजनिक स्थानों, सड़कों, नुक्कड़ों और पार्कों में मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर, गुरुद्वारा या अन्य धार्मिक ढांचों के निर्माण की अनुमति न दें. सुप्रीम कोर्ट ने तभी राज्य सरकार को दो हफ्ते के अंदर हलफनामे के साथ स्टेटस रिपोर्ट फाइल करने को कहा था. लेकिन राज्यों ने हलफनामा और स्टेट रिपोर्ट पेश नहीं की. अदालतों के लगातार हस्तक्षेप के बावजूद अवैध धर्म स्थलों का बनना नहीं रुका.

आज राजधानी दिल्ली में ही अवैध धार्मिक स्थलों की संख्या 60 हजार से अधिक है. इनमें से अधिकतर निर्माण धर्म और आस्था के नाम पर असामाजिक तत्वों ने जमीन हड़प कर किया है. विडंबना यह है कि इन सारे अवैध निर्माणों में कहीं न कहीं नेताओं की भूमिका रहती है. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के ही दो उदाहरण अवैध धार्मिक स्थलों के निर्माण में नेताओं की भूमिका उजागर करते हैं. लखनऊ के मध्य में स्थित हजरतगंज में मुख्य सड़क से बिल्कुल सटा हुआ दक्षिणमुखी हनुमान मंदिर आज वीआईपी मंदिर बन चुका है. यहां बड़े-बड़े नेता और नौकरशाह पूजा करने आते हैं.

मंगलवार और शनिवार को इस मंदिर में लगने वाली भीड़ के कारण सड़क जाम की भीषण समस्या रहती है. प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे कमलापति त्रिपाठी की कृपा से सत्तर के दशक में ही इस मंदिर को वीआईपी होने का मौका मिल गया, फिर इस पर कौन हाथ डालता. बाद में मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह समेत कई मुख्यमंत्री इस मंदिर में आकर मत्था टेकते रहे. यही हाल राजभवन परिसर से लगी मस्जिद का है. अस्सी के दशक (1985 से 90) में उत्तर प्रदेश के राज्यपाल बनकर लखनऊ आए मोहम्मद उस्मान आरिफ ने इस अवैध मस्जिद पर अपनी कृपा कर दी. फिर यह मस्जिद भी वीआईपी बन गई. शुक्रवार को जुमे की नमाज के लिए लगने वाली भीड़ राजभवन और विधानसभा भवन के बीच की मुख्य और महत्वपूर्ण सड़क पर भारी जाम का कारण बनती है, लेकिन उसमें कई नेता नौकरशाह शरीक रहते हैं तो पुलिस क्या करे.

ऐसी मस्जिदों और मंदिरों के लिए कोई पूछने वाला नहीं कि जिस भूमि पर ये मंदिर मस्जिद बने हैं उसे किसने किससे खरीदा? सरकारी तंत्र तब क्या कर रहा था? इस तरह की अंधेरगर्दी आपको राजधानी लखनऊ समेत पूरे प्रदेश में देखने को मिलेगी. एक वरिष्ठ नौकरशाह ने ही कहा कि छोटे-मोटे अवैध धार्मिक स्थलों को हटा कर सरकार भले ही औपचारिकता निभा ले, लेकिन जो अवैध धार्मिक स्थल आज वीआईपी बन चुके हैं और समस्या का कारण बने हुए हैं, वे बड़े-बड़े नेताओं और माफियाओं के चंगुल में हैं, उन्हें हटाने की हिम्मत किसी भी सरकार में नहीं है.

ऐसा नहीं है कि अवैध धार्मिक स्थलों के इस बवंडर से अकेले उत्तर प्रदेश सरकार को ही जूझना पड़ रहा है. अवैध धार्मिक स्थलों के मामले में तमिलनाडु देशभर में अव्वल है. तमिलनाडु में सबसे अधिक 77,450 अवैध धार्मिक स्थल हैं. राजस्थान में 58,253 अवैध धार्मिक स्थल, मध्य प्रदेश में 52,923 अवैध धार्मिक स्थल, छत्तीसगढ़ में 30,000 अवैध धार्मिक स्थल और गुजरात में 15,000 धार्मिक स्थल ऐसे हैं, जो सार्वजनिक स्थलों पर अवैध तरीके से बने हैं. गुजरात में दर्जनों अवैध धार्मिक स्थलों को ध्वस्त किया जा चुका है. इस मामले में अरुणाचल प्रदेश सबसे सभ्य राज्य है, क्योंकि वहां एक भी अवैध धर्म स्थल नहीं बना है.

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