up-governmentमथुरा कांड को लेकर खूब बवाल हुआ. विपक्षियों ने इस मामले में सरकार को कसूरवार ठहराते हुए मुख्यमंत्री के इस्तीफे की मांग की. विपक्ष की इस मांग पर सरकार ने इस पूरे प्रकरण में अपनी संलिप्तता और सरगना रामवृक्ष यादव को किसी भी प्रकार का संरक्षण दिए जाने से साफ इन्कार कर दिया. सरकार का दावा है कि वह सूबे की कानून व्यवस्था को लेकर बेहद सजग है और उन लोगों को लेकर सख्त है जो कानून व्यवस्था से खिलवाड़ कर रहे हैं. लेकिन यह दावा सरकार का सफेद झूठ है. कानून व्यवस्था को लेकर सरकार की कथित संजीदगी धरातल पर कहीं नजर नहीं आ रही. सरकार को यह बात समझ में नहीं आ रही कि कानून व्यवस्था बेमानी बयानबाजी से नहीं चलती. आज प्रदेश के हर गली कूचे में ऐसे हालात हैं जो प्रदेश की कानून व्यवस्था की ऐसी-तैसी कर रहे हैं. आम लोगों की सुरक्षा रामभरोसे ही रह गई है.

हिला आत्मविश्वावस समेटने की मायावी कोशिश

बीते दिनों बुंदेलखंड के महोबा जनपद में सत्तामद में चूर कुछ दबंग लोगों ने पुलिस की मौजूदगी में एक दलित युवक और दो पत्रकारों को मार-मार कर यही साबित किया कि वे यादव हैं, इसलिए यूपी में उनका राज है. दोनों पत्रकारों और दलित युवक को सरेआम दौड़ा-दौड़ा कर पीटा गया. पुलिस आई तो पुलिस के सामने भी उन्हें पीटा गया. पुलिस को गालियां दी गईं, लेकिन पुलिस का रवैया ऐसा रहा कि उसे हिजड़ा भी नहीं कहा जा सकता, क्योंकि हिजड़े भी अपने स्वाभिमान को सरेआम रौंदे जाना स्वीकार नहीं करते. इस घटना ने यह साफ कर दिया कि सूबे में कानून व्यवस्था नाम की कोई चीज ही नहीं है.

पूरे प्रदेश में कानून व्यवस्था ध्वस्त हो चुकी है. प्रदेश का हर शहर, कस्बा और गांव गुंडों और दबंगों के दबाव में है. बुंदेलखंड इससे अछूता नहीं. यहां सत्तामद में चूर मुख्यमंत्री के सजातियों ने मनमानी और गुंडागर्दी के सारे रिकार्ड तोड़ दिए हैं. इनकी नजर में न कानून के कोई मायने हैं और न ही उन्हें सरकार की धूमिल होती छवि से कोई सरोकार है. एक जाति विशेष के लोगों की बेजा हरकतें सरकार की छवि पर बट्‌टा लगा रही हैं. बुंदेलखंड में इस जाति विशेष के रुतबे और हैसियत को परखने के लिए बीते दिनों महोबा में घटी उस घटना पर नजर डालनी होगी जिसके शिकार एक दलित युवक और दो पत्रकार हुए. घटना 18 जून की है. दैनिक अखबार के दो पत्रकार मोहम्मद अकील और मूरतध्वज राजपूत देर शाम मुख्यालय से अपने घर के लिए रवाना हुए.

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अभी वे कुलपहाड़ कस्बे से कुछ आगे ही पहुंचे थे कि उनकी नजर सुंगिरा गांव में सड़क के किनारे लगी लोगों की भीड़ पर पड़ी. दोनों पत्रकार पेशेगत उत्सुकतावश गाड़ी से उतरकर वहां पहुंचे तो देखा कि कुछ लोग एक व्यक्ति को बुरी तरह पीट रहे हैं. उन्होंने जब वहां खड़ी भीड़ से जानकारी ली तो पता चला कि पिटने वाला एक गरीब दलित है और उसे मार रहे लोग यादव जाति के दबंग लोग हैं. कारण पूछने पर लोगों ने बताया कि दलित का कसूर यह था कि उसने एक सूखे पेड़ की कुछ लकड़ी काट ली थी. इस वजह से उसे बेरहमी से पीटा जा रहा है. लोगों ने बताया कि पीटने वालों में वन विभाग का एक वॉचर भी है. घटना की संवेदनशीलता को देखते हुए पत्रकार अकील ने कुलपहाड़ कोतवाली के प्रभारी निरीक्षक का सीयूजी नम्बर डायल किया, पर कई बार घंटी जाने के बाद भी फोन नहीं उठा.

वैसे भी पुलिसवाले किसी आम आदमी का फोन मुश्किल से ही उठाते हैं. दारोगा का फोन नहीं उठने पर पत्रकार ने घटना की फोटो खींचने के लिए कैमरा निकाला. उसने जैसे ही क्लिक की, दबंगों ने पत्रकारों पर हमला बोल दिया. सत्ता और शराब के नशे में चूर दर्जनभर लोगों ने दलित युवक सहित दोनों खबरनवीसों को लाठी-डंडों से तब तक मारा जब तक वह तीनों बेदम नहीं हो गए. दबंगों ने उन्हें मार-मार कर अधमरा कर दिया और उनके पैसे, मोबाइल, चेन और अंगूठी वगैरह छीन ली. राहगीरों की सूचना पर काफी देर बाद वहां पहुंची पुलिस के सामने हमलावरों ने फिर पत्रकारों को पीटा और पुलिस को भी भद्दी गालियां दीं. पुलिस ने मुंह तक नहीं खोला. दबंगों ने पुलिस को भी ललकारा, लेकिन पुलिस खामोश रही और घायलों को ले जाकर अस्पताल में भर्ती कराने की औपचारिकता पूरी कर दी.

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दबंगों के सामने भीगी बिल्ली बने पुलिस वाले कोतवाली में आते ही बदल गए और पूरा तेवर दिखाते हुए दबंगों से समझौता करने के लिए दबाव बनाने लगे. कोतवाली का प्रभार संभाले एसआई वीरेंद्र यादव ने अस्पताल से मरहमपट्‌टी करा कर थाने पहुंचे दलित रामकिशुन श्रीवास को धमकाकर भगा दिया, लेकिन पत्रकारों के सामने उसकी नहीं चल सकी. घटना की सूचना पर कुलपहाड़ कस्बे के सारे पत्रकार अस्पताल पहुंच गए और उन्होंने इसकी सूचना मुख्यालय के पत्रकारों को भी कर दी. घायलों को जिला अस्पताल रेफर किए जाने की सूचना पाकर मुख्यालय के प्रिंट तथा इलेक्ट्र्रॉनिक मीडिया से जुड़े सभी पत्रकार वहां जमा हो गए. जिला चिकित्सालय में साथी पत्रकारों का हाल देखकर प्रेस क्लब के अध्यक्ष संजय मिश्रा समेत कई अन्य पत्रकारों ने पुलिस अधीक्षक गौरव सिंह को मामले से अवगत कराते हुए दबंगों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई की मांग की.

एसपी ने मामले को गंभीरता से लेते हुए तत्काल मुकदमा दर्ज करने का आदेश दिया तथा रात में ही आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया. एसपी के आदेश पर कोतवाली पुलिस को दलित की तहरीर पर भी मुकदमा लिखना पड़ा. फिलहाल इस घटना के तीन नामजद आरोपी बहादुर यादव, राजेश व वीर सिंह यादव जेल भेज दिए गए हैं, लेकिन अज्ञात हमलावरों की तलाश को लेकर कोतवाली पुलिस अभी भी उदासीनता बरत रही है. इस घटनाक्रम में पुलिस अधीक्षक गौरव सिंह की कार्यशैली काबिले तारीफ तो थी, लेकिन उन्होंने एसआई वीरेन्द्र सिंह यादव पर कोई एक्शन नहीं लिया, इसको लेकर लोगों में चर्चा है. सार्वजनिक तौर पर लोग यह कहते मिल जाएंगे कि यादव दारोगा पर एसपी कार्रवाई कैसे कर सकता है. मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से पंगा लेना है क्या?

बहरहाल, पत्रकारों पर हो रहे सिलसिलेवार हमलों को लेकर महोबा सहित पूरे बुंदेलखंड के पत्रकार गुस्से में हैं. महोबा में आल्हा चौक स्थित अम्बेडकर पार्क में बड़ी संख्या में पत्रकारों ने बैठक कर पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर चर्चा की और उसके उपरान्त सड़क पर बाइक जुलूस निकालकर प्रदर्शन किया. पत्रकारों ने जिलाधिकारी वीरेश्वर सिंह को ज्ञापन सौंपकर पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर कठोर कदम उठाए जाने की मांग भी की. बाद में डीएम के आदेश पर हमले के आरोपी वन वॉचर बहादुर सिंह को प्रभागीय वनाधिकारी ने निलम्बित कर दिया. जनपद जालौन में भी उपजा के बैनर तले पत्रकारों ने विरोध जताया और जिलाधिकारी संदीप कौर को ज्ञापन सौंपा.

सुलझ नहीं रहा एसी डीसी बिल का विवाद

सरकार हमारी है, दारोगा तुम्हारी वर्दी उतरवा दूंगा ः महोबा कोतवाली का दारोगा जब वारंट तामील कराने एक आरोपी के घर गया तो उसने दारोगा के साथ जो सलूक किया, उसे सुनें तो आप यह समझ जाएंगे कि उत्तर प्रदेश में असामाजिक तत्वों और अपराधियों के मन में पुलिस का और कानून का कितना बाकी डर रह गया है. एसआई जब वारंट तामील कराने आरोपी के घर पहुंचा तो आरोपी अपने घर के सामने ही नशे में धुत्त हालत में कुर्सी पर पैर चढ़ाए बैठा था. एसआई ने उससे वारंट में दर्ज नाम वाले व्यक्ति से उसका मिलान किया तो उसने मूंछों पर ताव देते हुए कहा, हां मैं ही हूं! दारोगा ने जब आरोपी को सलीके से बैठने की नसीहत दी तो उसने चिल्ला कर कहा, अभी हमारी सरकार छह महीने और है, जब तक सरकार है, तब तक हम ऐसे ही रहेंगे. आरोपी ने दारोगा जी को वहां से चुपचाप चले जाने की धमकी भरी नसीहत दी और कहा, नहीं गए तो दारोगा तुम्हारी वर्दी उतरवा दूंगा. दारोगा जी अपनी वर्दी संभालते वापस लौट गए और कानून व्यवस्था का अखिलेशी-दावा फिसड्‌डी होता दिख गया.

दलित युवक को कीचड़ में घसीट-घसीट कर मारा

पत्रकारों को भी पीट-पीट कर अधमरा कर दिया

पुलिस गालियां सुनती रही और गुंडई देखती रही

 सुंगिरा गांव के बहादुर यादव ने किया नंगा नाच

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