तय न कर पायी संसद भी

अब तनिक विवेचन करें कि आखिर यह है क्या बला? परिभाषा क्या है? पढ़िये : ”चुम्बन किसी अन्य व्यक्ति या वस्तु को होठों के स्पर्श करने अथवा लगाने की क्रिया हैं। चुम्बन के सांस्कृतिक अर्थ व्यापक रूप से भिन्न होते हैं। संस्कृति और संदर्भ के अनुसार, एक चुम्बन, अन्य कई भावों में से, प्यार, जुनून, प्रणय, यौन आकर्षण, कामुक गतिविधि, कामोत्तेजना, स्नेह, आदर, अभिवादन, मित्रता, अमन और खुशकिस्मती के भावों को दर्शा सकती हैं। कुछ परिस्थितियों में, चुम्बन एक अनुष्ठान होती हैं, अथवा औपचारिक या प्रतीकात्मक संकेत होती हैं, जो भक्ति, सम्मान या संस्कार को दर्शाती हैं।”

राज्यसभा में सांझ ढलेने तक चली इस बहस में एक विशेष गिला दीर्घा में विराजे दर्शकों की थी। हिन्दी—उर्दूभाषी राज्यों से सौ के लगभग सदस्य थे। मगर काव्यमय या शेरोशायरी वाला तत्व अभिव्यक्त नहीं हो पाया। मसलन अतिरंजनभरा एक जानामाना शेर है:” क्या नजाकत है कि आरिज उनके नीले पड़ गये, मैंने (शायर ने, पोस्ट लेखक ने नहीं) तो बोसा लिया था ख्वाब में तस्वीर का!

फिर याद आया हमारे बीए कक्षा (1957) का दौर। तब हम सब लखनऊ विश्वविद्यालय की समाजवादी युवक सभा में थे। मैं सचिव था। (पं. जनेश्वर मिश्र राज्य सचिव थे)। तभी डा. राममनोहर लोहिया ने हैदराबाद में सोशलिस्ट पार्टी गठित की थी। प्रजा सोशलिस्ट पार्टी पंगु हो गयी थी। जुझारु क्षत्रिय पुरोधा ठाकुर चन्द्रिका सिंह ‘करुणेश’ राज्य पार्टी के महासचिव होते थे। उनकी कुछ पंक्तियां थी: ”जब कोई ”ना” कह देता सब बात वहीं रह जाती। जब कोई ”हां” कहा देता, सब बात वहीं बह जाती। लेकिन जब नयनों—अधरों में ”हां—ना संग—संग” हो तो उस ”हां—ना” मिश्रित सुख को विश्वास भला क्या जाने?”

इसी सिलसिले में मशहूर अंग्रेजी उक्ति याद आई: ”जब कोई राजनेता ”हां” कह दे, तो मानो ”शायद”। जब वह ”शायद” कहे तो समझो ”नहीं”। वह राजनेता नहीं जो सीधे ”ना” कह दे।” ठीक उल्टा परिवेश है। जब कोई नारी ”ना” कहे तो समझो ”शायद”। और अगर वह ”शायद” कहे तो समझें ‘ना’। वह नारी ही नहीं जो सीधे ”हां” कह दे।”

आज इस अवधारणा पर मेरी शंका का समाधान मैंने चाहा है कि यदि वह राजनेता महिला हो तो? मसलन इन्दिरा गांधी, सोनिया गांधी, प्रियंका गांधी? क्या कभी ये सास, बहू और पोती सीधे कहतीं ”हां”।

अब एक किस्सा हमारे लखनऊ प्रेस क्लब का है। चिरकुमार अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा कि : ”पत्रकारों और राजनेताओं का चोली—दामन का साथ होता है।” अनुभव के आधार पर था या अन्दाज से कही थी? कुछ पहले एक महिला पत्रकार ने इन्टर्व्यू में अटलजी से पूछा था: ”अब आपसे एक आखिरी प्रश्न। आपने आज तक शादी क्यों नहीं की?” जवाब मिला: ”यह प्रश्न है अथवा प्रस्ताव?” तुलना में बताता चलूं कि शरिया का कठोरता से पालन करने वाले डा. फार्रुख अब्दुल्ला एक पत्नीव्रती ही हैं। यारी भले ही बहुलता में रही हो।

के. विक्रम राव

Adv from Sponsors