lalu-yadavकहते हैं इतिहास अपने आप को दोहराता है. लालू प्रसाद के राजनीतिक जीवन के उतार-चढ़ाव को देखें, तो ये बात सौ फीसदी सही लगती है. जब-जब लालू सत्ता के शीर्ष पर रहे या फिर सत्ता के शीर्ष पर पहुंचने की कवायद करते दिखे, ठीक उसी समय कोर्ट के फैसलों ने इनके अभियान को ब्रेक लगाया है और इनके रुतबे को कम किया है. लालू प्रसाद की राजनीतिक ताकत से पूरा देश वाकिफ है.

इसलिए हाल के दिनों में जब सुशील मोदी ने इन्हें और इनके बेटों को आरोपों में घेरना शुरू किया, तो लालू के माथे पर शिकन तक नहीं आई. उल्टे इन्होंने 27 अगस्त को गांधी मैदान में भाजपा हटाओ देश बचाओे महारैली करने का ऐलान कर दिया. राजगीर में अपनी पार्टी के सम्मेलन में लालू प्रसाद पूरी लय में थे और यहीं पर इन्होंने अपने दिल्ली अभियान का खाका भी खींच लिया.

लालू चाहते हैं कि 2019 के चुनाव और उसके बाद के राजनीतिक परिदृश्य में वे किंग मेकर की भूमिका मेें रहें. 27 अगस्त की पटना रैली इसी की एक कड़ी है. लालू प्रसाद इस रैली के लिए देश के सभी भाजपा विरोधी दलों के प्रमुख नेताओं को बुलाने वाले हैं. बताया जा रहा है कि इस रैली के लिए लालू प्रसाद सोनिया गांधी, राहुल गांधी, नवीन पटनायक, नीतीश कुमार, अखिलेश यादव, मायावती, अरविंद केजरीवाल, करुणानिधि, ममता बनर्जी सहित कई बड़े नेताओं को बुलाना चाहते हैं, ताकि विपक्षी एकता की मजबूत बुनियाद पटना में रखी जा सके.

इस रैली के बहाने लालू अपने बेटों को भी राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करना चाहते हैं. देश के सभी बड़े नेताओं के सामने तेजस्वी और तेजप्रताप का परिचय इनके आगे की राह को आसान कर सकता है. इन्हीं सब बातों के मद्देनजर लालू प्रसाद ने एक व्यापक रणनीति के तहत अपनी राजनीतिक योजनाओं को अंजाम देना शुरू कर दिया था. जानकार बताते हैं कि लालू प्रसाद ये नहीं चाहते हैं कि भाजपा विरोध के अभियान में नीतीश कुमार इनसे आगे निकल पाएं. इसलिए वे हर संभव कोशिश कर रहे हैं कि विपक्षी एकता के किसी भी पहल का वे ही अगुआ बनें.लालू प्रसाद अपने इस मुहिम में लगे ही थे कि इनको झटके पर झटका लगना शुरू हो गया.

सुशील मोदी के आरोपों का लालू प्रसाद ने खुद तो नहीं, पर अपने प्रवक्ताओं से जबाव दिलवाना शुरू कर दिया था. जानकार बताते हैं कि इन आरोपों को लेकर लालू प्रसाद बहुत चिंतित भी नहीं हैं, क्योंकि इस तरह के आरोपों से इनका पूरे राजनीतिक जीवन में आमना-सामना होता ही रहा है. ये सिलसिला अभी चल ही रहा था कि एक निजी चैनल ने शहाबुद्दीन और लालू प्रसाद के बीच की बातचीत के टेप को सार्वजनिक कर दिया. बात यहीं से बिगड़नी शुरू हो गई. लालू खेमे को नाराजगी टेप के सार्वजनिक होने से कहीं ज्यादा बातचीत टेप होने पर है. रघुवंश प्रसाद कहते हैं कि जब लालू प्रसाद का ही फोन टैप हो रहा है, तो दूसरे की क्या बात की जाए. इनकी मांग है कि इसकी जांच हो कि फोन टेप किसने और किसके कहने पर किया.

रघुवंश प्रसाद कहते हैं कि कोई है जो सूबे के बड़े नेताओं की बातचीत को सुन रहा है. अगर ऐसा है, तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं. लालू प्रसाद की जान को भी खतरा हो सकता है. भाजपा को इन बातों से ये कहने का मौका मिल गया कि सुशासन में जेल से ही शासन चल रहा है. शहाबुद्दीन और लालू प्रसाद की बातचीत होती है और नीतीश कुमार मूकदर्शक बने हुए हैं. सुशील मोदी कहते हैं कि ये सुशासन का मजाक है. जेल से शहाबुद्दीन लालू प्रसाद से बात करते हैं और एसपी को हटाने की मांग करते हैं. क्या सुशासन ऐसा ही होता है. जदयू इन घटनाओं पर बहुत ही बारीक नजर रख रहा है और बहुत ही सधी हुई प्रतिक्रिया दे रहा है. ये मामला अभी गर्म ही था कि इसी बीच चारा घोटाले में लालू प्रसाद को सुप्रीम कोर्ट से करारा झटका लग गया.

सुप्रीम कोर्ट ने चारा घोटाले के चार मामलों में लालू प्रसाद पर आपराधिक साजिश के तहत मुकदमा चलाने का आदेश दे दिया. झारखंड हाईकोर्ट ने ऐसा न करने का आदेश दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सीबीआई की विशेष अदालत इसे नौ महीने में पूरा करे. इस फैसले के बाद लालू प्रसाद को सीबीआई कोर्ट से फिर से जमानत लेनी पड़ सकती है. हालांकि लालू प्रसाद के वकील चितरंजन सिन्हा का कहना है कि इसकी अभी तुरंत जरूरत नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड हाईकोर्ट द्वारा राहत दिए जाने के फैसले पर भी कड़ी आपत्ति जताई. जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस अमिताव रॉय की पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट को ऐसे मामले के निपटारे में सावधानी बरतनी चाहिए. हाईकोर्ट का आदेश अवैध, त्रुटिपूर्ण व कानून के आधारभूत सिद्धांत के विपरीत है.

सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद सूबे का राजनीतिक पारा आसमान तक पहुंच गया. लालू के आवास पर गहन बैठकों का दौर शुरू हो गया. हमेशा की तरह जदयू ने इस मामले में ज्यादा बोलने से परहेज किया. लेकिन भाजपा ने तो लालू के खिलाफ जोरदार हमला बोल दिया. भाजपा जानती है कि चारा घोटाला लालू प्रसाद की सबसे कमजोर कड़ी है और इस बार जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया है, इससे यह साफ है कि अब नौ महीने के अंदर ही बिहार का राजनीतिक परिदृश्य बदलना तय है. इसलिए भाजपा अब मांग कर रही है कि लालू प्रसाद को राजद का अध्यक्ष पद छोड़ देना चाहिए और नीतीश कुमार को नैतिकता के आधार पर राजद से अलग हो जाना चाहिए. भाजपा अब इस सारे मामले को लेकर पूरे बिहार में जनसंवाद भी करने वाली है.

भाजपा पूरे बिहार में आंदोलन करने के लिए एक मजबूत मुद्दे की तलाश में थी और अब उसकी मनोकामना पूरी हो गई है. फिलहाल लालू खेमा बचाव की मुद्रा में है और आगे होने वाली घटनाओं पर इनकी नजर है. लेकिन इतना तो तय है कि राजगीर से जो उर्जा लेकर लालू प्रसाद पटना आए थे, वो उर्जा अब निष्क्रिय हो गई है. कहने का अर्थ ये है कि जो ताकत लालू प्रसाद दिल्ली कूच के लिए लगाना चाहते थे, उसे अब कोर्ट कचहरी में लगाने को मजबूर होना पड़ेगा. साफ है कि लालू प्रसाद के दिल्ली कूच को फिलहाल तो ब्रेक लग ही गया है.

दो दशक से जारी है तारी़ख पर तारी़ख
चारा घोटाला, बिहार के संदर्भ में महाघोटाला कहलाता है. वजह, सिर्फ इसमें शामिल रकम (950 करोड़) नहीं है, बल्कि इससे जुड़ा सबकुछ व्यापक रहा है. 21 साल गुजर चुके हैं. सीबीआई को दस्तावेज के लिए 11 करोड़ पन्नों की फोटोकॉपी करानी पड़ी. इस मामले में 978 आरोपी व 8 हजार गवाह रहे. जांच में सीबीआई के 400 अफसर लगे. 70 से ज्यादा जज इस मामले की सुनवाई कर चुके हैं. घोटाले की जांच और अदालती कार्रवाई के दौरान तत्कालीन पशुपालन मंत्री भोला राम तूफानी, चंद्रदेव प्रसाद वर्मा तथा पूर्व तथा पूर्व सांसद राजो सिंह की मृत्यु हो गई.

ये भी आरोपी थे. बाकी आरोपियों में लालू प्रसाद, डॉ जगन्नाथ मिश्र, धु्रव भगत, जगदीश शर्मा, आरके राणा, विद्यासागर निषाद, ज्योति कुमारी कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं. वरीय नौकरशाहों में से बेक जूलियस, के. अरुमुगम, महेश प्रसाद, एमसी सुवर्णो, फूलचंद सिंह, एसएन दुबे, एसी चौधरी, सजल चक्रवर्ती आरोपी बने. बाद में सजल चक्रवर्ती को अदालत ने बरी कर दिया.

1995 : सीएजी रिपोर्ट में ये गोलमाल सामने आया. अलग-अलग कोषागारों से रुपए की अवैध निकासी की बात सामने आई.
27 जनवरी, 1996 : उपायुक्त अमित खरे ने पशुपालन विभाग के चाईबासा स्थित दफ्तर पर छापा मारा. ऐसे दस्तावेज मिले, जो चारा आपूर्ति के नाम पर रुपए की हेराफेरी की गवाही दे रहे थे. प्राथमिकी दर्ज की गई.
11 मार्च, 1996 : पटना हाईकोर्ट ने सीबीआई को जांच का जिम्मा सौंपा.
19 मार्च, 1996 : सीबीआई ने बिहार पुलिस द्वारा दर्ज 41 मामलों को अपने अधीन लेकर जांच शुरू की.
27 मार्च, 1996 : सीबीआई ने चाईबासा ट्रेजरी के मामले में प्राथमिकी दर्ज की.
23 जून, 1997 : कांड संख्या आरसी 20ए/96 में लालू प्रसाद सहित 56 आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल हुई.
23 जुलाई, 1997 : कोर्ट ने आरोपियों के खिलाफ संज्ञान लिया.
30 जुलाई, 1997 : राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद ने सीबीआई की विशेष अदालत में समर्पण किया. अदालत ने इन्हें न्यायिक हिरासत में भेजा.
12 दिसंबर, 1997 : 135 दिन न्यायिक हिरासत में रहने के बाद लालू जमानत पर रिहा हुए.
4 अप्रैल, 2000 : लालू पर चार्जशीट. इनकी पत्नी राबड़ी देवी को सह आरोपी बनाया गया. मामला आय से अधिक संपति का था. बाद में अदालत ने लालू प्रसाद व राबड़ी देवी को बेकसूर ठहराया.
10 मई, 2000 : पटना हाईकोर्ट ने लालू को प्रोविजनल बेल दिया.
5 अक्टूबर, 2001 : झारखंड बनने के बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश से चारा घोटाले के कमोबेश सभी मामले झारखंड ट्रांसफर किए गए.
31 मई, 2007 : सीबीआई के विशेष न्यायाधीश यूएसपी सिन्हा ने आरसी 66ए/96 में 82 लोगों को सजा सुनाई. इसमें लालू प्रसाद के दो भतीजे वीरेंद्र यादव और नागेंद्र राय भी थे.
20 जून, 2013 : सीबीआई के स्पेशल जज ने कांड आरसी 20ए/96 में फैसले के लिए तिथि निर्धारित की.
30 सितंबर, 2013 : सीबीआई की विशेष अदालत ने लालू प्रसाद को 5 साल की सजा सुनाई. लोकसभा की सदस्यता छोड़नी पड़ी. चुनाव लड़ने पर रोक लगी.
14 नवंबर, 2014 : झारखंड हाईकोर्ट ने लालू प्रसाद को राहत देते हुए इन पर घोटाले की साजिश/षड्‌यंत्र रचने की धारा को हटाने का आदेश दिया. (इसके खिलाफ सीबीआई सुप्रीम कोर्ट पहुंंची).
20 अप्रैल, 2017 : सुप्रीम कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद फैसला सुरक्षित किया.
8 मई, 2017 : सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया.

बढ़ गई लालू की परेशानी
सुप्रीम कोर्ट के फैसले से नए सिरे से शुरू होने वाला ट्रायल लालू की परेशानी बढ़ाएगा. झारखंड हाईकोर्ट के फैसले से वे राहत में थे. लेकिन अब इनकी मुसीबतें बढ़ेंगी. अदालतों में पेशी, बेल और कानूनी दांव-पेंच का खेल फिर शुरू होगा. जिन मामलों का ट्रायल रुक गया था, वे अब फिर शुरू हो जाएंगे.

आरसी 20 ए/96 में मिली है सज़ा
चारा घोटाला केस (आरसी 20ए/96) में चाईबासा कोषागार से 37.70 करोड़ की अवैध निकासी के मामले में लालू दोषी करार दिए गए हैं. 30 सितम्बर 2013 को सीबीआई अदालत ने उन्हें 5 साल कैद की सजा दी. हालांकि 13 दिसम्बर 2013 को लालू को जमानत मिल गई. सजा के कारण इन्हें लोकसभा की सदस्यता गंवानी पड़ी. इनके चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी गई.

47 में से 15 आरोपी जीवित नहीं हैं
आरसी 38 ए/96, दुमका कोषागार से हुई फर्जी निकासी से संबंधित है. इसमें लालू प्रसाद समेत कुल 47 आरोपी हैं. इनमें से 15 अब इस दुनिया में नहीं हैं.

लालू पर दर्ज चारा घोटाला के मुकदमे
कांड संख्या ट्रेजरी फर्जी निकासी कुल गवाह
आरसी 20ए 96 चाईबासा 37.70 करोड़ 590
आरसी 38ए 96 चाईबासा 37.68 करोड़ 345
आरसी 47ए 96 डोरंडा 184 करोड़ 804
आरसी 64ए 96 दुमका 3.47 करोड़ 269
आरसी 68ए 96 देवघर 97 करोड़ 287

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