aa1सांसदों का मूल काम होता है विधेयक बनाना. संसद में बैठे सांसदों से यही अपेक्षा की जाती है कि वे देशहित एवं जनहित में बेहतरीन क़ानून बनाने का काम करेंगे. इस लिहाज से देखें, तो पंद्रहवीं लोकसभा कामकाज के मामले में अब तक की सबसे फिसड्डी लोकसभा साबित हुई है. संसद के एक सत्र के दौरान लोकसभा की कार्यवाही के एक मिनट के लिए जनता की जेब से 2.5 लाख रुपये खर्च हो जाते हैं. सत्र चलने के दौरान सांसदों को अलग से हज़ारों रुपये रोजाना भत्ते के रूप में दिए जाते हैं. ऐसे में इन महानुभावों से यही उम्मीद की जाती है कि ये संसद में बैठकर जनता से जुड़ी समस्याओं पर बात करेंगे, उनके समाधान के लिए क़ानून बनाएंगे. इस हिसाब से अगर एक सत्र का एक दिन औसतन आठ घंटे का हो और उस दिन अगर कोई काम न हो, तो जनता की गाढ़ी कमाई के करोड़ों रुपये बर्बाद हो जाते हैं.2b
1aपिछले 62 सालों के संसदीय इतिहास में इस 15वीं लोकसभा ने निकम्मेपन का कीर्तिमान स्थापित किया है. पहली से लेकर पांचवीं लोकसभा, जो पांच साल तक चली, ने न्यूनतम 216 और अधिकतम 482 विधेयक पास किए. एनडीए के शासनकाल (1999 से 2004) में भी 297 विधेयक पास किए गए. खुद यूपीए-1 की सरकार ने भी (2004 से 2009 के बीच) 248 विधेयक पास किए, लेकिन यूपीए-2 के दौरान यानी पंद्रहवीं लोकसभा क़रीब 165 विधेयक ही पारित हो सके. इसके अलावा, जहां तक सत्र के दौरान बर्बाद हुए समय का सवाल है, तो इस दौरान ऐसे कई मौ़के आए, जब एक पूरे सत्र के दौरान 99 फ़ीसद से भी अधिक समय संसद में बैठे महानुभावों के हंगामे की भेंट चढ़ गया. स़िर्फ पहला सत्र (एक जून से 9 जून, 2009) ही ऐसा रहा, जिसमें 100 फ़ीसद काम हुआ. ग़ौरतलब है कि यह सत्र यूपीए-2 के सत्ता में आने के तुरंत बाद आयोजित किया गया था. 15वीं लोकसभा में महज 61 फ़ीसद समय ही हमारे महानुभावों ने काम किया यानी 39 फ़ीसद वक्त हंगामे और शोर-शराबे के नाम रहा. यह आंकड़ा संसदीय इतिहास में एक नया कीर्तिमान है.
ग़ौरतलब है कि इस लोकसभा की शुरुआत में ठीकठाक काम चलता रहा, लेकिन जैसे ही 2010 के दौरान 2जी मामला सामने आया, संसद में भारी गतिरोध शुरू हो गया. इसके बाद लगातार संसद में विभिन्न मुद्दों जैसे कोल ब्लॉक, लोकपाल से लेकर तेलंगाना तक यह गतिरोध बना रहा. ऐसे में यह अनुमान लगाया जा सकता है कि हमारे जनप्रतिनिधि संसद में जाकर आख़िर करते क्या हैं? क्या उन्हें इस बात की जानकारी नहीं होती है कि उनके एक-एक मिनट के लिए जनता की जेब से लाखों रुपये खर्च होते हैं. पांच सालों के दौरान इस लोकसभा ने अब तक के इतिहास में सबसे कम काम किया है और दूसरी तरफ़ माननीय सांसदों ने सदन की बैठक बाधित करने, वक्त खराब करने, सदन की कार्यवाही स्थगित कराने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी. मजेदार बात यह है कि इस सबमें न सिर्फ विपक्ष, बल्कि सत्ता पक्ष के सांसद भी पीछे नहीं रहे.

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