मिस्टर इंडिया का नायक अदृश्य होकर भी दृश्य है। दिखता भी है पर नहीं भी दिखता। अरविंद केजरीवाल का भूत मिस्टर इंडिया का नायक जैसा लगता है। जिसके गुनाह होकर भी गुनाह नहीं लगते। जिसके बारे में कहा जाता है कि वह बीजेपी की ‘बी’ टीम का नायक है। पर कोई भी इस बात को आज तक साबित नहीं कर पाया है। तो केजरीवाल को एक द्वंद्वात्मक भौतिकवाद का नायक भी कहिए तो वह भी क्या गलत है। किसी भी द्वंद्व से केजरीवाल मुक्त हों पर उनके विरोधी और उनके समर्थक या मेरे जैसे चाहने वाले जरूर द्वंद्व में हैं। केंद्र की कोई सत्ता अपनी ही ‘बी’ टीम के नायक को इस कदर पैदल कैसे कर सकती है कि उसके खिलाफ बिल लाकर उसे लै.गवर्नर के रहमोकरम पर छोड़ दे।

केजरीवाल का भाग्य जिस दिन उदय हुआ उस दिन राजनीति के वातावरण में कई तरह कोलाहल था जिसमें सबसे मुखर होकर आरएसएस का स्वर दिखाई और सुनाई पड़ रहा था। सच है। यहीं से अगर आप केजरीवाल के व्यक्तित्व और चरित्र को समझने का प्रयास करें तो तस्वीर एकदम साफ हो जाएगी। फिर चाहे आप उसे स्वीकार करें या न करें। कुछ भी आगे कहने से पहले यह साफ कर देना जरूरी है कि वामपंथी रुझान वाले कई बुद्धिजीवी केजरीवाल को स्वीकार करने में सरासर हिचकते हैं। अब देखें कि अन्ना आंदोलन से पहले केजरीवाल और उनके लोग क्या कर रहे थे। वे दिल्ली की जनता के बीच वह काम कर रहे थे जो दिल्ली में उनके मजबूत अस्तित्व का आधार बनने वाला था।

उन्होंने जो कुछ किया वह सब दिल्ली के लोग जानते हैं।उनकी मोहल्ला सभाएं सबसे ज्यादा चर्चित रहीं। केजरीवाल का उद्देश्य भले आप उस समय न समझ सकते हों जैसे मोदी का उद्देश्य जो आज हमारी समझ में आ रहा है उतना 2014 में स्पष्ट नहीं था। अन्ना आंदोलन को लेकर भी सबसे बड़ा भ्रम यह था कि केजरीवाल अन्ना के आंदोलन में थे जबकि सच यह है कि अन्ना हजारे को केजरीवाल ने अपने मतलब के लिए साथ जोड़ा था और उन्हें आंदोलन के नायक का चेहरा दिया था। उससे जो कुछ उपजा वह सब सोचा समझा था। अन्ना हजारे की भूमिका वहीं तक सीमित थी। मोदी और केजरीवाल के व्यक्तित्व की जब आप परख करेंगे तो बहुत सी समानताएं आपको मिलेंगी। चतुर, चालाक, बेशर्म, यूटर्न लेने वाला जैसी अनेक लेकिन बड़ा फर्क दोनों की नीयत में है।

केजरीवाल का सबसे बड़ा गुनाह है कि वे ‘मैं’ शैली वाले नेता हैं। लेकिन इसे मैं तब तक गुनाह नहीं मानता जब तक कि उनका ‘मैं’ दूसरों के लिए अहितकर न हो जाए। मोदी का ‘मैं’ देश के लिए अहितकर बन गया है। केजरीवाल जैसे लोग आदर्शवाद को स्थापित तो कर सकते हैं पर किसी आदर्शवादी को खुद के ऊपर बर्दाश्त नहीं कर सकते। इसीलिए तीन प्रबुद्ध लोगों को केजरीवाल ने बाहर का रास्ता दिखाया। पर क्या वे तीनों आज मुखर होकर और चाहते हुए भी केजरीवाल के कार्यों को नकार सकते हैं ? प्रश्न यही है।

दिल्ली को एक चालाक नगरी कहा जाता है। दिल्ली पंजाबियों की नगरी के रूप में भी प्रसिद्ध है। केजरीवाल दिल्ली से सटे हरियाणा से आते हैं। सभी के गुण मिलते जुलते हैं। क्या दिल्ली, क्या हरियाणा और क्या पंजाब। अगर बाबा रामदेव हरियाणा का नहीं होता तो योगी होकर भी कारोबार में इतना सफल नहीं होता। तो अपनी धुन का पक्का केजरीवाल मोदी से इस अर्थ में अलग है कि वह झूठा वायदा नहीं करता (कुछेक उदाहरण हो सकते हैं ), कार्पोरेट जगत का साथी नहीं बनता, भ्रष्टाचार का दाग न खुद पर और न पार्टी पर लगने देता (व्यक्तिगत दाग तो एक भी नहीं है) और जहां मोदी से

देश की जनता धीरे धीरे हलाकान हो रही है वहीं केजरीवाल से दिल्ली की जनता आज भी मोहभंग की स्थिति में नहीं आयी है। मोदी ने अपने ही कामों पर भ्रम की स्थिति पैदा की है तो केजरीवाल के काम साफ नजर आते हैं। आज का ही चित्र देख लीजिए मोदी की कोरोना बीमारी निवारण की प्रतिबद्धताएं जहां फेल होती दिख रही हैं, केजरीवाल फिर भी इस मोर्चे पर बखूबी डटा हुआ है। यही उसकी शख्शियत है।

तो अब सवाल यह है जो मुझसे भी कईयों ने पूछा है कि क्या वास्तव में केजरीवाल बीजेपी की ‘बी’ टीम है। ‘सत्य हिंदी’ के एक कार्यक्रम में पत्रकार अनिल त्यागी का सम्पूर्ण विश्लेषण मुझे बहुत भाया था पर उनकी यही बात समझ से परे लगी कि केजरीवाल के बारे में बात न की जाए क्योंकि वह बीजेपी की ‘बी’ टीम है। क्या अन्ना आंदोलन में आरएसएस का शामिल होना, केजरीवाल का स्वयं को ज्यादा हिंदू साबित करना, शाहीन बाग के आंदोलन को समर्थन नहीं देना, कश्मीर में धारा 370 हटाने का समर्थन करना जैसी बातें इस बात पर्याप्त हैं कि वह ‘बी’ टीम है। यह सब केजरीवाल की अपनी सत्ता को बरकरार रखने की रणनीतियां भी हो सकती हैं।

कब केंद्र की सरकार को गरियाना है और कब गले लगाना है यह तो चतुर खिलाड़ी ही कर सकता है, फिर चाहे उसे आप मतलबी, स्वार्थी, धूर्त, बेपेंदी का या कुछ भी कहिए। पर यह मत कहिए कि उसका साध्य साधन एक होना चाहिए। वह गांधी की बात थी। आज साध्य के लिए चतुर और धूर्त राजनीति अपना साधन खुद तय करती है। बस इतना देखिए कि उस राजनेता की आंख अपने लक्ष्य पर है या नहीं। भटकी तो नहीं ? केजरीवाल ने पार्टी को नाम दिया है – ‘आम आदमी पार्टी’। शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में जो काम दिल्ली में हुआ उसकी भरपूर तारीफ हो चुकी है।सरकारी स्कूलों में आम आदमी के बच्चे जाते हैं।

इन स्कूलों की तो काया ही बदल दी गयी है।कोरोना की आंधी न आती तो केजरीवाल कुछ और दिखाने वाला काम कर रहे होते। केजरीवाल से जिसको जो नहीं मिला वह गाली देता गया। आशुतोष गाली नहीं देते। इसलिए आशुतोष से एक निवेदन है कि एक कार्यक्रम इस पर रखिए कि केजरीवाल बीजेपी की ‘बी’ टीम है या नहीं। और उसमें अनिल त्यागी को भी अवश्य बुलाएं। यह इसलिए कि जनता में केजरीवाल को लेकर भ्रम ही भ्रम हैं। एक बार खुल कर बहस हो जाए तो स्थितियां साफ हों। ओम थानवी को, अपूर्वानंद जैसों को भी न्योता दें। मुझे लगता है कि ‘बी’ टीम के सारे तर्क बेमानी साबित होंगे।

अब कुछ हफ्ते की बातें। इस बार ‘लाउड इंडिया टीवी’ में अभय कुमार दुबे का रविवार को लाइव शो नहीं आया। कांग्रेस पर बात होनी थी। निराशा हुई। संतोष भारतीय जी से आग्रह है कि कैसे भी इस शो को न छोड़ा जाए। पांच राज्यों के चुनावों पर अमरीका से कार्तिकेय बत्रा और यूपी में जबरदस्त तरीके से फैलता कोरोना पर एपी सिंह से संतोष जी की बातचीत दिलचस्प थी। लेकिन सबसे मजेदार सुप्रीम कोर्ट के पूर्व सचिव अशोक अरोड़ा से रही। वे तो शायरी का खजाना निकले। वाह! समाज, सुप्रीम कोर्ट, सरकार, किसान सब की बात शायरी ही शायरी के जरिए।

रवीश कुमार फिर से गायब हैं इस पूरे हफ्ते। लोगों की बेचैनी फिर से बढ़ गयी है। पुण्य प्रसून वाजपेयी बिना आंकड़ों के अपनी बात कहते हैं तो कभी कभी खूब जमता है। आरफा खानम शेरवानी का ‘आरफा की बात’ में कल का कार्यक्रम था – ‘कोरोना का कहर, श्मशान में जलती लाशें ही लाशें। जेएनयू के राजीव दास गुप्ता से बातचीत। जरूरी लगी। भाषा सिंह का बंगाल में बीड़ी मजदूरिनों के बीच जाकर उनसे उनकी जिंदगी और चुनाव में उनकी शिरकत पर उनसे सवाल जवाब बहुत भाये। यही भाषा की खासियत है। कुछ अलग हट कर।

शीतल पी. सिंह के विश्लेषण ‘सत्य हिंदी’ पर अच्छे लगते हैं। आशुतोष जब एंकरिंग करते हैं तो बड़े हाबड़ ताबड़ से लगते हैं। जरा भी नहीं भाते लेकिन जब पैनलिस्ट होते हैं किसी भी कार्यक्रम में या आलोक जोशी के साथ तो बड़े सुलझे और कमाल के हो जाते हैं। केजरीवाल के साथ से जो निकल कर आये हैं। केजरीवाल ने मिस्टर इंडिया की खूबियां सबको दी हैं। इसलिए केजरीवाल पर एक प्रोग्राम तो होना ही चाहिए। वरना जैसे नोबल पुरस्कार विजेता प्रो. गुन्नार मिर्डल ने भारत को एक ‘सोफ्टस्टेट’ की संज्ञा दी थी यानि लुंज पुंज समाज। लुंज पुंज सोच समझ। वैसे ही सब धुंधला धुंधला रहेगा। मोदी सरकार तो हर चीज को धुंधला कर देने में माहिर दिख ही रही है। केजरीवाल तो स्पष्ट और साफ हों। जरा सोचिए।

बसंत पांडे

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